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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एनएसजी पर भारत को मिल सकता है जर्मनी का साथ

  • 05 Apr 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों ?
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश की उम्मीद बढ़ती जा रही है। जहाँ पहले कुछ सदस्य देश भारत के खिलाफ नज़र आ रहे थे वे अब भारत का समर्थन कर सकते हैं। विदित हो कि जर्मनी के एनएसजी परामर्श समूह की बैठक में भारत को सदस्य बनाए जाने की बात कही गई है। ऐसी उम्मीद व्यक्त की जा रही है कि इस बैठक में जर्मनी ने भारत को अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है। हालाँकि भारत की एनएसजी सदस्यता पर चीन अभी भी समर्थन को तैयार नहीं है फिर भी भारत के कूटनीतिक प्रयासों के कारण एनएसजी सदस्यता की उम्मीदें बरकरार हैं। हाल ही में  अमेरिका ने भी भारत की सदस्यता को समर्थन देने के अपने दावे की पुष्टि की थी।

क्या है एनएसजी?
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) 48 देशों का समूह है। इसका लक्ष्य परमाणु सामग्री, तकनीक एवं उपकरणों का निर्यात नियंत्रित करना है। परमाणु हथियार बनाने में इस्‍तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर नियंत्रण तक इसी के दायरे में आता है।

क्यों भारत के खिलाफ है चीन ?
चीन लगातार एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध करता आ रहा है। चीन का कहना है कि जब तक भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करता तब तक एनएसजी में चीन उसका समर्थन नहीं करेगा। विदित हो कि भारत ने एनपीटी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है। दरअसल, एनपीटी पर भारत के हस्ताक्षर नहीं करने के मामले को उठाकर चीन, पाकिस्तान के साथ अपने गठजोड़ में निहित हितों का पालन करता है। पिछले कुछ दिनों से एनसीजी में भारत के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है क्योंकि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) के सदस्य देशों को नया मसौदा प्रस्ताव दिया गया है, जिससे भारत के इस विशिष्ट समूह का सदस्य बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

क्या है एनपीटी ?
एनपीटी परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। एनपीटी की घोषणा 1970 में हुई थी। अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 188 सदस्य देश ने इसके पक्ष में हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते। हालाँकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के पर्यवेक्षक करेंगे।

भारत के लिये क्यों ज़रूरी है एनएसजी की सदस्यता ?
गौरतलब है कि भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु करार किया है वहीं  ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ परमाणु करार की बातचीत चल रही है। फ्रांसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं अमेरिकी कंपनियाँ गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में है। एनएसजी की सदस्यता हासिल करने से भारत परमाणु तकनीक और यूरेनियम बिना किसी विशेष समझौते के हासिल कर सकेगा। परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह ज़रूरी है कि भारत को एनएसजी में प्रवेश मिले।

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