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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G-7 समूह और भारत

  • 01 Jun 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

G-7, G20

मेन्स के लिये

G-7 का महत्त्व व चुनौतियाँ, वैश्विक संस्थानों और संगठनों में सुधार की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने G-7 को एक ‘पुराना समूह’ बताते हुए इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और रूस को भी शामिल करने की बात कही है। 

प्रमुख बिंदु

  • डोनाल्ड ट्रंप ने G-7 के 46वें शिखर सम्मेलन को स्थगित करते हुए कहा कि यह अपने वर्तमान प्रारूप में विश्व की विभिन्न घटनाओं का सही ढंग से प्रतिनिधित्त्व नहीं करता है।
    • उल्लेखनीय है कि 46वें शिखर सम्मेलन का आयोजन अमेरिका के कैंप डेविड (Camp David) में 10-12 जून के मध्य किया जाना था।
  • बीते वर्ष 45वाँ G-7 शिखर सम्मेलन 24-26 अगस्त को फ्रांँस के बिआरित्ज़ (Biarritz) में आयोजित किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक विशेष अतिथि के रूप में भाग लिया था।
  • डोनाल्ड ट्रंप के अनुसार, इस समूह को G-10 अथवा G-11 कहा जा सकता है।

G-7 समूह का अर्थ

  • G-7 अर्थात ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (Group of Seven) फ्राँस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देशों का एक समूह है।
  • यह एक अंतर सरकारी संगठन है जिसे वर्ष 1975 में उस समय की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा विश्व के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक अनौपचारिक मंच के रूप में गठित किया गया था।

    • कनाडा वर्ष 1976 में और यूरोपीय संघ (European Union) वर्ष 1977 में इस समूह में शामिल हुआ।
  • आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिये अमेरिका तथा उसके सहयोगियों द्वारा एक प्रयास के रूप में गठित G-7 समूह दशकों से वैश्विक समाज के समक्ष मौजूदा विभिन्न चुनौतियों जैसे- वित्तीय संकट, आतंकवाद, हथियारों पर नियंत्रण और मादक पदार्थों की तस्करी आदि पर विमर्श कर रहा है।
  • वर्ष 1997 में रूस के इस समूह में शामिल होने के बाद कई वर्षों तक G-7 को 'G- 8' के रूप में जाना जाता था, हालाँकि वर्ष 2014 में रूस को क्रीमिया विवाद के बाद समूह से निष्कासित कर दिये जाने के पश्चात् समूह को एक बार पुनः G-7 कहा जाने लगा।
  • G-7 देशों के राष्ट्राध्यक्ष वार्षिक शिखर सम्मेलन में मिलते हैं जिसकी अध्यक्षता सदस्य देशों के नेताओं द्वारा एक ‘रोटेशनल बेसिस’ (Rotational Basis) पर की जाती है।
  • उल्लेखनीय है कि G-7 का कोई भी औपचारिक संविधान या एक निर्धारित मुख्यालय नहीं है। इसलिये वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान समूह द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।
  • वर्ष 2016 में राष्ट्रपति के तौर पर अपने चुनाव के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप विभिन्न अवसरों पर रूस के वैश्विक रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए उसे पुनः समूह में शामिल करने की बात पर ज़ोर दे चुके हैं।

G-7 और G-20 में अंतर

  • G-20 समूह देशों का एक बड़ा समूह है, जिसमें G-7 समूह के सदस्य भी शामिल हैं। G-20 समूह का गठन वर्ष 1999 में वैश्विक आर्थिक चिंताओं से निपटने हेतु और अधिक देशों को एक साथ एक मंच पर लाने के उद्देश्य से से किया गया था।
  • समग्र रूप से G-20 समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था के तकरीबन 80 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • G-7 के विपरीत, जो वैश्विक समुदाय से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करता है, G-20 में केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाज़ारों से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है।
  • भारत वर्ष 2022 में G-20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।

G-7 के विस्तार के निहितार्थ

  • G-7, जिसमें विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ पहले से ही शामिल हैं, में चार अन्य देशों को शामिल करने के कदम को चीन के लिये एक संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और चीन के संबंधों में विभिन्न मुद्दों पर तनाव बना हुआ है, जिसमें हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता, ताइवान, COVID-19 की उत्पत्ति, दक्षिण चीन सागर में तनाव और व्यापार जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।
  • विभिन्न विशेषज्ञ अमेरिका के इस निर्णय को आगामी भविष्य में चीन की नीतियों से निपटने के लिये सभी पारंपरिक सहयोगियों को एक साथ लाने की योजना के रूप में देख रहे हैं।
  • आलोचकों का सदैव यह मत रहा है कि G-7 समूह की सदस्यता से भारत और ब्राज़ील जैसी महत्त्वपूर्ण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वंचित रखना इसकी एक बड़ी कमी है। 
  • G-20 (जो भारत, चीन, ब्राज़ील जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है) के उभार ने G-7 जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले समूह को चुनौती दी है। इस चुनौती से निपटना भी समूह के विस्तार का एक प्रमुख कारण हो सकता है।
    • विदित हो कि बीते कुछ दशकों में भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देशों के आर्थिक उदय ने वैश्विक स्तर पर G-7 की प्रासंगिकता को कम कर दिया है और वैश्विक GDP में G-7 समूह की हिस्सेदारी लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में समूह के अस्तित्त्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।

भारत का पक्ष

  • वर्ष 2019 में आयोजित 45वें G-7 शिखर सम्मेलन में फ्रांँस के राष्ट्रपति ने लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को बढ़ावा देने और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रभाव रखने वाले चार भागीदार देशों (ऑस्ट्रेलिया, चिली, भारत और दक्षिण अफ्रीका); पाँच अफ्रीकी भागीदारों [बुर्किना फासो, सेनेगल, रवांडा एवं दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीकी संघ आयोग (AUC) के अध्यक्ष] तथा नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया था। 
  • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान भी भारत ने पाँच बार G-7 (तत्कालीन G-8 समूह) में भाग लिया था।
  • उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिये वैश्विक संस्थानों और समूहों में सुधार करने का आह्वान करता रहा है।
  • भारत सदैव ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) जैसी संस्थाओं में सुधार का पक्षधर रहा है। ऐसे में यदि भारत G-7 समूह का हिस्सा बनता है तो उसे वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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