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फिट फॉर 55 पैकेज: यूरोपीय संघ

  • 17 Jul 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये 

यूरोपीय संघ, फिट फॉर 55 पैकेज, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये

जलवायु परिवर्तन और जलवायु तटस्थता के संबंध में भारत द्वारा किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ (EU) ने एक नया जलवायु प्रस्ताव ‘फिट फॉर 55 पैकेज’ जारी किया है।

  • ज्ञात हो कि यूरोपीय संघ ने दिसंबर 2020 में पेरिस समझौते के तहत संशोधित ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (NDC) प्रस्तुत किया था।

European-Union

प्रमुख बिंदु

उद्देश्य

  • यूरोपीय संघ का यह नया पैकेज प्रस्तावित परिवर्तनों के माध्यम से NDC और कार्बन तटस्थता लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करता है। ये प्रस्तावित परिवर्तन अर्थव्यवस्था, समाज और उद्योग को प्रभावित करेंगे तथा वर्ष 2030 तक निष्पक्ष, प्रतिस्पर्द्धी एवं ग्रीन ट्रांज़ीशन सुनिश्चित करेंगे।
    • जलवायु तटस्थता की स्थिति तब प्राप्त होती है जब किसी देश के उत्सर्जन को वहाँ के वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और उन्मूलन से संतुलित किया जाता है। इसे शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की स्थिति के रूप में भी व्यक्त किया जाता है।
  • यह पैकेज नुकसान से बचते हुए ‘नियामक नीतियों’ और बाज़ार-आधारित कार्बन मूल्य निर्धारण के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।

प्रमुख प्रस्ताव

  • नवीकरणीय स्रोत:
    • यह यूरोपीय संघ के ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय स्रोत के बाध्यकारी लक्ष्य को 40% (पहले 32%) तक बढ़ाने और वर्ष 2030 तक ऊर्जा दक्षता में 36% (पहले 32.5%) तक सुधार करने का प्रस्ताव करता है।
  • वाहनों संबंधी कार्बन उत्सर्जन:
    • इसे वर्ष 2030 तक 55% और वर्ष 2035 तक 100% तक कम किया जाना चाहिये, जिसका अर्थ वर्ष 2035 तक पेट्रोल और डीज़ल वाहनों के चरणबद्ध उन्मूलन से है।
    • इसमें ऑटो उद्योग को लाभांवित करने संबंधी प्रावधान भी शामिल हैं। इसके तहत सार्वजनिक धन का उपयोग प्रमुख राजमार्गों पर प्रत्येक 60 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन बनाने के लिये किया जाएगा, जिससे इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • यह हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशनों के नेटवर्क को भी वित्तपोषित करेगा।
  • उत्सर्जन व्यापार प्रणाली:
    • यह पैकेज वर्ष 2026 से कार्यान्वित होने वाले यूरोपीय संघ की वर्तमान ‘उत्सर्जन व्यापार प्रणाली’ (ETS) से अलग इमारतों और सड़क परिवहन के लिये एक अलग ‘उत्सर्जन व्यापार प्रणाली’ (ETS) के निर्माण का आह्वान करता है।
      • ‘उत्सर्जन व्यापार प्रणाली’ एक बाज़ार-आधारित उपकरण है, जो प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने हेतु आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान कर प्रदूषण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। 
  • सामाजिक जलवायु कोष:
    • कम आय वाले नागरिकों और छोटे व्यवसायों को नए ईटीएस में समायोजित करने में मदद के लिये यूरोपीय संघ एक सामाजिक जलवायु कोष (Social Climate Fund) के निर्माण का प्रस्ताव करता है, जो इमारतों के नवीनीकरण हेतु फंडिंग और कम कार्बन उत्सर्जन वाले परिवहन तक पहुँच से लेकर प्रत्यक्ष आय सहायता तक को शामिल करेगा।
    • वह नए ईटीएस से 25% राजस्व का उपयोग करके इस फंड का निर्माण करने की उम्मीद करते हैं। वर्तमान ईटीएस ने वर्ष 2023 और वर्ष 2025 के बीच समुद्री क्षेत्र को विस्तारित करने का प्रस्ताव किया है।
  • कार्बन सीमा समायोजन तंत्र::
    • अन्य बाज़ार आधारित तंत्रों में यूरोपीय संघ कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism) का प्रस्ताव कर रहा है, जो कार्बन गहन उत्पादन वाले स्थानों से आयात पर कर लगाएगा।
    • इसको व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Conference on Trade and Development) द्वारा वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर छोटा प्रभाव माना गया है और इसका विकासशील देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • सिंक क्षमता बढ़ाना:
    • इसने यूरोपीय संघ की कार्बन डाइआक्साइड (CO2) की सिंक क्षमता को 310 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जिससे सदस्य देशों के विशेष राष्ट्रीय लक्ष्यों द्वारा प्राप्त किया जाएगा।

विश्लेषण:

  • यूरोपीय संघ का NDC लक्ष्य वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को वर्ष 1990 के स्तर से 55% कम करना है। इसने वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का दीर्घकालिक लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
    • यूरोपीय संघ का लक्ष्य अमेरिका की तुलना में अधिक आक्रामक है, जो इसी अवधि में उत्सर्जन को 40% से 43% तक (परंतु ब्रिटेन से पीछे है जिसने 68% की कमी का वादा किया) कम करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • विश्व के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन ने केवल इतना कहा है कि उसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को चरम पर पहुँचाना है।
  • फिट फॉर 55 पैकेज, यूरोप को इलेक्ट्रिक कार बैटरी, अपतटीय पवन उत्पादन या हाइड्रोजन पर चलने वाले विमान इंजन जैसी नई तकनीकों में सबसे आगे रख सकता है।
  • परंतु कुछ उपभोक्ताओं और कंपनियों के लिये यह ट्रांज़ीशन काफी चुनौतीपूर्ण भी होगा, क्योंकि इससे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं जैसे- चीन से आयातित वीडियो मॉनीटर, वायु यात्रा लागत तथा गैसोलीन टैंक आदि की लागत बढ़ जाएगी। 
    • कंपनियाँ जो नियत उत्पाद जैसे- आंतरिक दहन इंजन के लिये पुर्जे आदि का निर्माण करती हैं, उन्हें अनुकूलित किया जाना चाहिये या व्यवसाय से बाहर किया जाना चाहिये।
  • यह प्रस्ताव स्टीलमेकिंग जैसे प्रदूषणकारी उद्योगों को नया आकार दे सकता है, जो प्रत्यक्ष तौर पर यूरोपीय संघ में 330,000 लोगों को रोज़गार देता है।

भारत का INDC मुख्य रूप से वर्ष 2030 तक हासिल किया जाना है

  • सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को लगभग एक-तिहाई कम करना।
  • बिजली की कुल स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त होगा।
  • भारत ने वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक (वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने का एक साधन) की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।

जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध भारतीय पहल:

आगे की राह:

  • जलवायु न्याय के सिद्धांत पर बातचीत आधरित मार्गदर्शन प्रदान किया जाना चाहिये।
  • ‘फिट फॉर 55’ यूरोपीय संघ के डीकार्बोनाइज़ेशन में वृद्धि करता है, सभी यूरोपीय नागरिकों और कंपनियों के दैनिक जीवन में जलवायु नीति के दृश्य प्रवेश को चिह्नित करता है और वैश्विक व्यापार भागीदारों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है।
  • यह सुनिश्चित करना कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमण सामाजिक रूप से निष्पक्ष है, इसे लंबे समय तक सफल बनाए रखना सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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