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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मानसून को लेकर आशंकाएँ तेज़, फिर आ रहा है अल-नीनो?

  • 21 Feb 2017
  • 4 min read

सन्दर्भ

  • पिछले साल अच्छी बारिश के बाद बिगड़े हालात सुधरने ही वाले थे कि इस साल फिर से देश पर सूखे का खतरा मंडराने लगा है। दुनिया भर की मौसम विज्ञान विशेषज्ञ एजेंसियों ने आशंका जताई है कि ला-नीना, जो आमतौर पर अच्छी बारिश के लिए जाना जाता है। ये अब कमजोर पड़ गया है और आगे चलकर अल-नीनो फिर मज़बूत हो सकता है।
  • विदित हो कि वर्ष 2014 और 2015 अल-नीनो वर्ष थे और तब देश में सूखा पड़ा था। यह चिंतनीय है कि इस साल भी अल-नीनो की आशंका बढ़ गई है। विभिन्न एजेंसियाँ ये कयास लगा रही हैं कि यदि परिस्थितयाँ ऐसी ही बनी रहीं तो फिर से सूखा पड़ सकता है। गौरतलब है कि अल-नीनो वर्ष में आमतौर पर सूखा पड़ता है।

क्यों जताई जा रही है अल-नीनो की आशंका ?

  • गौरतलब है कि प्रशांत महासागर से लिये गए कुछ वैश्विक नमूनों के मुताबिक कुछ समय से उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्री सतह के तापमान में अचानक बढ़ोतरी हुई है। हालाँकि इस सन्दर्भ में भारतीय मौसम वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत हैं। कुछ वैज्ञानिक इसे अल-नीनो की वापसी का पहला संकेत मान रहे हैं लेकिन दूसरों की राय इसके उलट है। अधिकांश वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी यह कहना ज़ल्दबाजी होगी कि इसका भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून पर क्या प्रभाव पड़ेगा और इस बारे में मई के महीने में ही तस्वीर साफ हो पाएगी।

क्या है अल-नीनो ?

  • दरअसल, अल-नीनो का स्पेनी भाषा में अर्थ होता है 'छोटा बालक'। अल-नीनो का दूसरा मतलब 'शिशु क्राइस्ट' भी बताया जाता है। यह अल-नीनो का ही प्रभाव था कि 2015 में भारत में मानसून सामान्य से 15 फीसदी कम रहा और इस वज़ह से भारत में कृषि खासी प्रभावित रही और खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान पर पहुँच गई थीं।
  • दरअसल, प्रशांत महासागर में बीते कुछ वर्षों से समुद्र की सतह गर्म होती जा रही है, जिससे हवाओं का रास्ता और भी रफ्तार बदल जाती है। यही कारण है मौसम का चक्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। मौसम के बदलाव की वज़ह से कई जगह सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आ जाती है। इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। विदित हो कि बहुत से जानकारों का यह मानना है कि प्रशांत महासागर के सतह का तापमान बढ़ने का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।
  • अल–नीनो एक वैश्विक प्रभाव वाली घटना है और इसका प्रभाव क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। स्थानीय तौर पर प्रशांत क्षेत्र में मतस्य उत्पादन से लेकर दुनिया भर के अधिकांश मध्य अक्षांशीय हिस्सों में बाढ़, सूखा, वनाग्नि, तूफान या वर्षा आदि के रूप में इसका असर सामने आता है।
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