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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

पर्ल रिवर एश्चुरी में डॉल्फिन

  • 19 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड, पर्ल रिवर एश्चुरी, इंडो-पैसिफिक हम्पबैक डॉल्फिन

मेन्स के लिये: 

COVID-19 और डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, पर्ल रिवर एश्चुरी (Pearl River Estuary- PRE) में चाइनीज़ पिंक डॉल्फिन (Chinese Pink Dolphins) की संख्या में वृद्धि देखी गई है। 

  • इंडो-पैसिफिक हम्पबैक डॉल्फिन (Indo-Pacific Humpback Dolphins) को चाइनीज़ व्हाइट डॉल्फिन (Chinese White Dolphins) या पिंक डॉल्फिन (Pink Dolphins) के रूप में भी जाना जाता है, जो उनकी त्वचा के रंग को दर्शाता है।

प्रमुख बिंदु: 

 पर्ल रिवर एश्चुरी (Pearl River Estuary- PRE): 

Pearl-River-Estuary

  • इसमें हाॅन्गकाॅन्ग, मकाओ के साथ-साथ शेन्ज़ेन, ग्वांगझू और डोंगगू नामक मुख्य चीनी शहर शामिल हैं। 
  • इस क्षेत्र में लगभग 22 मिलियन लोग रहते हैं।
  • पर्ल रिवर डेल्टा (Pearl River Delta), PRE के आसपास का निचला इलाका है जहाँ पर्ल नदी (Pearl River) दक्षिण चीन सागर में मिलती है। 
    • यह पृथ्वी पर दुनिया के सबसे घने शहरी क्षेत्र, गहन औद्योगिक क्षेत्र और सबसे व्यस्त शिपिंग लेन में से एक है।

वर्तमान परिदृश्य:

  • गौरतलब है कि डॉल्फिन जल में अपना रास्ता खोजने के लिये इकोलोकेशन (Echolocation) का उपयोग करते हैं किंतु पानी के जहाज़ अक्सर उनके द्वारा  रास्ता खोजे जाने दौरान अवरोध उत्पन्न करते हैं और यहाँ तक ​​कि जहाज़ों से टकराने के कारण  कभी-कभी उनकी मृत्यु भी हो जाती है।

इकोलोकेशन (Echolocation):

  • इकोलोकेशन, ध्वनि तरंगों एवं गूँज का उपयोग यह निर्धारित करने के लिये किया जाता है कि आसपास के क्षेत्र में वस्तुएँ कहाँ अवस्थित हैं।
  • चमगादड़ नेवीगेशन एवं अंधेरे में भोजन खोजने के लिये इकोलोकेशन का उपयोग करते हैं।
  • हालाँकि हाॅन्गकाॅन्ग और मकाओ के बीच जल में डॉल्फिन की संख्या में वर्ष 2020 में एक बदलाव देखा गया है क्योंकि COVID-19 महामारी के मद्देनज़र तटीय घाटों को बंद कर दिया गया था जिससे जलीय यातायात में भी कमी आई थी।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, PRE के जल में पिंक डॉल्फिन की संख्या में लगभग एक-तिहाई वृद्धि हुई है।

इंडो-पैसिफिक हम्पबैक डॉल्फिन (Indo-Pacific Humpback Dolphins):

Dolphin

  • वैज्ञानिक नाम: सौसा चिनेंसिस (Sousa Chinensis)
  • पर्यावास क्षेत्र (Habitat Region): 

    • यह मध्य चीन के दक्षिण-पश्चिम से पूरे दक्षिण-पूर्वी एशिया तक और मध्य चीन के पश्चिम से बंगाल की खाड़ी तक के आसपास के ज्वारनदमुख में उच्चतम घनत्व में पाई जाती है।  
    • विभिन्न क्षेत्रों में इसका वितरण खंडित है अर्थात् ये डॉल्फिन समुद्र तट से संबंधित विस्तृत जल क्षेत्रों से स्पष्ट रूप से अनुपस्थित हैं। 
      • डॉल्फिन के इस विखंडित वितरण के बारे स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह  प्राकृतिक है या मानव गतिविधियों के कारण है।
  • वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर (WWF) का कहना है कि PRE में इन डॉल्फिनों की संख्या लगभग 2500 है किंतु युवा डॉल्फिनों की गिरती संख्या भविष्य में इनकी संख्या को कम कर सकती है।
    • इनकी संख्या में पिछले 15 वर्षों में 70-80% की गिरावट देखी गई है।
  • खतरा: इन डॉल्फिनों को निम्नलिखित घटकों से खतरा है:  
    • कृषि, औद्योगिक एवं शहरी प्रदूषण से।
    • अत्यधिक मत्स्यन से।
    • हवाई अड्डों के विस्तार एवं आवासीय/कार्यालय विकास के लिये पुल-निर्माण और भूमि निर्माण सहित समुद्री तटीय निर्माण के कारण।
    • तेज़ फेरी सेवा के संचालन के साथ-साथ अन्य जलीय परिवहन से। 
  • प्रभाव: उपर्युक्त खतरों से डॉल्फिनों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है: 
    • डॉल्फिनों के उपयुक्त निवास स्थान को नुकसान।
    • अवरोध एवं पोत हमलों से डॉल्फिन की मृत्यु। 
    • डॉल्फिनों के स्वास्थ्य पर रासायनिक एवं ध्वनि प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव। 
  • संरक्षण:
    • IUCN की रेड लिस्ट में ‘इंडो-पैसिफिक हम्पबैक डॉल्फिन’ को संवेदनशील (Vulnerable) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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