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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डीएनए बिल का दुरुपयोग संभव: संसदीय समिति

  • 25 Aug 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक

मेन्स के लिये:

डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक

चर्चा में क्यों?

‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति’ की मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, ‘डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक’ [DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill], 2019 का जाति या समुदाय-आधारित प्रोफाइलिंग के लिये दुरुपयोग किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • संसदीय स्थायी समिति की बैठक में मसौदा रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाना था परंतु कोरम की पूर्ति न होने का कारण इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
  • संसदीय स्थायी समिति ने डीएनए बिल को अपरिपक्व तथा दुरुपयोग की संभावना वाला बताया है।

पृष्ठभूमि:

  • अगस्त 2018 में ‘डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक’ लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन वह व्यपगत हो गया।
  • 8 जुलाई, 2019 को विधेयक को फिर से लोकसभा में पेश किया गया। 17 अक्तूबर 2019 को विधेयक को संसदीय स्थायी समिति को निर्दिष्ट किया गया।
  • संसदीय स्थायी समिति को मानसून सत्र, 2020 के पहले सप्ताह के अंत तक अपनी मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी (विस्तारित अवधि)।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान:

  • डीएनए डेटा का उपयोग:
    • विधेयक के अनुसार, केवल विधेयक की अनुसूची में सूचीबद्ध मामलों के संबंध में ही डीएनए परीक्षण की अनुमति है।
    • अनुसूची में भारतीय दंड संहिता- 1860 के तहत अपराध और पितृत्त्व निर्धारण मुकदमा जैसे नागरिक मामलों तथा व्यक्तिगत पहचान की स्थापना से संबंधित मामलों को शामिल किया गया है।
  • डीएनए का संग्रह:
    • डीएनए प्रोफाइल तैयार करते समय जाँच अधिकारियों द्वारा व्यक्तियों के शारीरिक नमूनों को एकत्र किया जा सकता है। अधिकारियों को कुछ स्थितियों में संग्रह के लिये व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
    • कुछ मामलों में यदि व्यक्ति द्वारा सहमति नहीं दी जाती है, तो जाँच अधिकारी ज़िला मजिस्ट्रेट से इस संबंध में आदेश प्राप्त कर सकते हैं।
  • डीएनए डेटा बैंक:
    • विधेयक में एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक और प्रत्येक राज्य या दो या अधिक राज्यों के लिये क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंकों की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
    • डीएनए प्रयोगशालाओं को उनके द्वारा तैयार डीएनए डेटा को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंकों के साथ साझा करना आवश्यक होगा।
    • प्रत्येक डेटा बैंक को डेटा की निम्न श्रेणियों के लिये सूचकांक बनाए रखने की आवश्यकता होगी:
      1. अपराध दृश्य सूचकांक
      2. संदिग्ध या विचाराधीन कैदियों का सूचकांक
      3. अपराधी सूचकांक
      4. लापता व्यक्ति सूचकांक
      5. अज्ञात मृतक व्यक्तियों का सूचकांक।
  • डीएनए प्रोफाइल को हटाना:
    • विधेयक के अनुसार, डीएनए प्रोफाइल के प्रवेश, प्रतिधारण या हटाने (Entry, Retention or Removal) के मापदंड नियमों द्वारा निर्दिष्ट किये जाएंगे।
  • डीएनए नियामक बोर्ड:
    • विधेयक में डीएनए नियामक बोर्ड की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जो डीएनए डेटा बैंकों और डीएनए प्रयोगशालाओं की निगरानी की दिशा में कार्य करेगा।
  • डीएनए प्रयोगशालाएँ:
    • किसी भी प्रयोगशाला उपक्रम को डीएनए परीक्षण के लिये बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
  • अपराध:
    • विधेयक में विभिन्न अपराधों के लिये दंड निर्दिष्ट हैं, जिनमें (i) डीएनए जानकारी के प्रकटीकरण (ii) प्राधिकरण को अनुमति के बिना डीएनए नमूने का उपयोग करना आदि शामिल हैं।

संसदीय समिति द्वारा उठाए गए चिंता के विषय:

  • संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग:
    • डीएनए प्रोफाइल, किसी व्यक्ति की अत्यंत संवेदनशील जानकारी जैसे कि वंशावली, त्वचा का रंग, व्यवहार, बीमारी, स्वास्थ्य की स्थिति और बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता को प्रकट कर सकती है।
    • इस प्रकार, अनाधिकृत रूप से प्राप्त जानकारी का दुरुपयोग व्यक्तियों और उनके परिवारों से संबंधित जानकारी को प्राप्त करने में किया जा सकता है।
    • इस प्रकार से प्राप्त जानकारी का उपयोग किसी विशेष जाति/समुदाय को आपराधिक गतिविधियों से जोड़ने के लिये भी किया जा सकता है।
  • डीएनए प्रोफाइल संग्रह:
    • विधेयक में भविष्य में अन्वेषण के लिये संदिग्धों, विचाराधीन कैदियों, पीड़ितों और उनके रिश्तेदारों के डीएनए प्रोफाइल को संग्रहीत करने का प्रस्ताव है।
    • संसदीय स्थायी समिति का मानना है कि केवल दोषियों के डीएनए डेटाबेस को संग्रहीत किया जाना चाहिये अन्य श्रेणियों में नहीं, क्योंकि इससे डेटा दुरुपयोग की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाएगी।
  • व्यक्ति की सहमति का उल्लंघन:
    • विधेयक में कई मामलों में DNA नमूने लेने से पूर्व व्यक्ति की सहमति को आवश्यक माना गया है लेकिन इस मामले में मजिस्ट्रेट की शक्तियों का दुरुपयोग किया जा सकता है।
    • मजिस्ट्रेट कब-कब , व्यक्ति की सहमति को अधिभावी (ओवरराइड) कर सकता है, इस संबंध में विधेयक में कोई आधार तथा कारणों के संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दिये गए हैं।
  • स्वतंत्र जाँच का अभाव:
    • संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि जैविक नमूनों को नष्ट करने और डेटाबेस से डीएनए प्रोफाइल को हटाने के प्रस्तावों की स्वतंत्र जाँच की जानी चाहिये।
  • निजता का उल्लंघन:
    • विधेयक यह भी प्रावधान करता है कि नागरिक मामलों से सबंधित डीएनए प्रोफाइल को भी डेटा बैंकों में ही संग्रहीत किया जाएगा हालाँकि इसके लिये अलग से सूचकांक तैयार नहीं किया जाएगा।
    • संसदीय स्थायी समिति के अनुसार, इस प्रकार नागरिक मामलों का डीएनए प्रोफाइल संग्रह, निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है

डीएनए विधेयक की आवश्यकता:

  • अनेक खामियों के बावज़ूद तत्काल रूप से डीएनए विधेयक को संसद में पास किये जाने की आवश्यकता है।
  • 'राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो' के अनुसार, प्रतिवर्ष 1,00,000 बच्चे लापता हो जाते हैं, विधेयक लापता बच्चों की पहचान करने में मदद करेगा। विधेयक, अज्ञात लोगों की पहचान करने में भी मदद करेगा।
  • बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
  • वर्तमान में भारत में डीएनए परीक्षण बेहद सीमित पैमाने पर किया जा रहा है, जो कुल आवश्यकता के 2-3% का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, अत: विधेयक के माध्यम से व्यापक डीएनए परीक्षण करने में मदद मिलेगी।

वैश्विक परिदृश्य:

  • यूएस इंटरपोल के ग्लोबल डीएनए प्रोफाइलिंग सर्वे परिणाम- 2016 के अनुसार, वर्तमान में 69 देशों; जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और चीन भी शामिल हैं, में राष्ट्रीय डीएनए डेटाबेस पहले से स्थापित हैं।
  • 'मानव आनुवंशिक डेटा पर घोषणा'; जिसे 16 अक्तूबर 2003 को यूनेस्को के 32वीं आम सभा सम्मेलन में सर्वसम्मति से अपनाया गया था, का उद्देश्य मानव आनुवंशिक डेटा तथा जैविक नमूने के संग्रह, प्रसंस्करण, उपयोग और भंडारण में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

निष्कर्ष:

  • यदि ‘डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक’, 2019 कानून का रूप ले लेता है तो तमाम खामियों के बावज़ूद यह आशा की जा सकती है कि इस प्रकार के अपराधों में इस प्रौद्योगिकी के विस्तारित उपयोग से न केवल न्यायिक प्रक्रिया में तेज़ी आएगी, बल्कि सज़ा दिलाने की दर भी बढ़ेगी।

स्रोत: द हिंदू

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