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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वर्ष 2014 के सूखे का रहस्य

  • 03 Oct 2017
  • 6 min read

संदर्भ
हाल ही में आंध्र विश्वविद्यालय के ‘मौसम और समुद्र विज्ञान विभाग’ (Department of Meteorology and Oceanography) के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2014 के जलवायु आँकड़ों का पुनः अध्ययन किया और पाया कि वर्ष 2014 के सूखे का एक प्रमुख कारण जल वाष्प का विचलन  (divergence) था। विदित हो कि वर्ष 2014 में भारत में होने वाली मौसमी वर्षा में 12% की कमी दर्ज़ की गई थी। 

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, नमी परिवहन के विभिन्न स्वरूपों ने इस तर्क को भी स्पष्ट कर दिया कि जल वाष्प का अभिसरण और विचलन दो ऐसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जो भारत में होने वाली ग्रीष्मकालीन मौसमी वर्षा (जो जून से सितम्बर के दौरान होती है) के प्रमुख संचालक हैं।
  • विदित हो कि वर्ष 2000-20114 के दौरान 1 जून से 30 सितम्बर के मध्य होने वाली वर्षा के आँकड़ों ने इस तथ्य को भी उजागर कर दिया कि वर्ष 2014 में चार महीनों के दौरान देश के लगभग सभी भागों में अल्प मासिक वर्षा (scanty monthly rainfall ) हुई थी। 
  • इस दौरान भारत में होने वाली कुल मौसमी वर्षा 775.5 मिलीमीटर थी, जिसमें सामान्य वर्षा की तुलना में 12% की कमी देखी गई थी।
  • चूँकि पूर्व के अन्य अध्ययनों में यह दर्शाया गया था कि जलवाष्प परिवहन (water vapour transport) भी वर्षा के वितरण को प्रभावित कर सकता है। अतः शोधकर्त्ताओं ने पृथ्वी के क्षोभमंडलीय क्षेत्र की सतही परत से लगे जलवाष्प परिवहन का भी मापन किया।

अध्ययनों से प्राप्त अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • नमी प्रवाह के विसरण से जून के महीने में कम वर्ष हुई, जोकि औसत वर्षा का मात्र 57.5% थी।
  • वर्ष 2014 के अगस्त माह में भारत के उत्तर-पूर्वी और मध्य भागों में वर्षा के साथ ही मानसून में बदलाव आया। वस्तुतः वर्षा वाले क्षेत्रों में नमी का अभिसरण देखा गया, जबकि वर्षा के अभाव वाले क्षेत्रों में नमी का विसरण देखा गया। 
  • सितंबर माह में भारत के अनेक भागों में होने वाली वर्षा में संतोषजनक वृद्धि दर्ज़ की गई। इस दौरान होने वाली कुल वर्षा औसत वर्षा का 108% थी। 
  • उल्लेखनीय है कि यह आँकड़ा इस तर्क का समर्थन करता है कि भूमि पर होने वाली वर्षा पर नमी प्रवाह (moisture flux) अत्यधिक प्रभाव डालता है। 
  • इस नए अध्ययन में उन अन्य भौतिक प्रक्रियाओं का भी अध्ययन किया गया, जिनके कारण सामान्यतः सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 
  • यह पाया गया कि वर्ष 2014 की मानसूनी वर्षा में अल-नीनो का प्रभाव बहुत कम था, क्योंकि वायु समुद्र युग्मन (air-sea coupling) ने इस प्रभाव को कमज़ोर कर दिया था जिसके कारण अल-नीनो दक्षिण दोलन अथवा कम्पन ( El Nino – Southern Oscillation - ENSO) की उदासीन परिस्थितियाँ बन गई थीं।
  • पूर्व के अध्ययनों से यह पाया गया कि भारतीय मानसूनी मौसमी वर्षा और अन्य कारकों के मध्य बहुत सूक्ष्म संबंध है।
  • इस दौरान मध्य भारत की ओर पश्चिम एशियाई रेगिस्तान की वायु का प्रवेश सूखे का एक महत्त्वपूर्ण कारक था।
  • हालाँकि, ये अध्ययन आंशिक रूप से वर्षा के अभाव की तो व्याख्या करते हैं परन्तु ये सामान्य अथवा औसत वर्षा से अधिक वर्षा होने की स्पष्ट व्याख्या नहीं करते।

वर्तमान परिदृश्य

  • आज हमारे महासागर गर्म हो रहे हैं और भूमि और महासागर के मध्य ‘तापमान प्रवणता’(temperature gradient) में बहुत कम बढ़ोतरी हो रही है। अतः हमें समुद्र से भूमि तक नमी के उपलब्ध होने की प्रक्रिया का अध्ययन तथा विश्लेषण करने की अति आवश्यकता है।
  • अध्ययन के परिणामस्वरूप यह बात भी सामने आई कि जलवाष्प के अभिसरण और विसरण स्वरूपों का मापन कर वर्षा होने अथवा सूखा पड़ने की प्रवृत्तियों की भविष्यवाणी की जा सकती है।

निष्कर्ष
इस अध्ययन के परिणामों ने यह दर्शाया कि जल वाष्प परिवहन प्रक्रिया एक महत्त्वपूर्ण भौतिक प्रक्रिया है, जोकि मानसून को प्रभावित करती है। जहाँ एक ओर अभिसरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारी मात्रा में वर्षा होती है वहीं दूसरी ओर विसरण के कारण सूखा पड़ता है। यह अध्ययन इस बात पर अधिक बल देता है कि भविष्य में जलवायु की सटीक भविष्यवाणी (accurate prediction) के लिये नमी प्रवाह को भी संज्ञान में लिया जाना चाहिये।

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