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शासन व्यवस्था

गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तपोषण पर प्रतिबंध

  • 21 Sep 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-सरकारी संगठन, भारतीय रिज़र्व बैंक, एमनेस्टी

मेन्स के लिये:

विदेशी अंशदान के विनियमन की आवश्यकता, FCRA संशोधन के प्रमुख प्रावधान, नियमों में किये गए परिवर्तन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने बाल अधिकार, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण परियोजनाओं पर काम कर रहे 10 अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के विदेशी वित्तपोषण पर प्रतिबंध लगा दिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • परिचय:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहले कई विदेशी संगठनों को पूर्व संदर्भ श्रेणी (Prior Reference Category-PRC) की सूची में रखने के लिये कहा था।
      • इसका आशय यह है कि जब भी विदेशी दाता भारत में किसी प्राप्तकर्ता संघ को धन हस्तांतरित करना चाहता है, तो उसे गृह मंत्रालय से पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
      • 80 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ इस सूची में शामिल हैं।
  •  विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 के तहत प्रावधान:
    • इसके लिये आवश्यक है कि कोई भी संगठन जो एफसीआरए के तहत खुद को पंजीकृत करना चाहता है वह कम-से-कम तीन वर्षों से अस्तित्व में हो और समाज के बेहतरी के लिये पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान उसने अपनी मुख्य गतिविधियों पर न्यूनतम 15 लाख रुपए खर्च किये हों।
    • गैर-सरकारी संगठनों को अपने दाताओं को प्रतिबद्धता पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, जिसमें विदेशी योगदान की राशि और उस उद्देश्य को निर्दिष्ट करना होता है जिसके लिये उन्हें यह धन दिया जाना प्रस्तावित है।
  • प्रतिबंध का कारण:
    • यह तर्क दिया गया था कि विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले दर्जनों एनजीओ इस फंड की पूर्ण रूप से हेराफेरी या दुरुपयोग में लिप्त थे।
    • यहाँ तक कि वर्ष 2010 और 2019 के बीच विदेशी योगदान के अंतर्प्रवाह को दोगुना किया गया फिर भी कई प्राप्तकर्त्ताओं ने उस उद्देश्य के लिये फंड का उपयोग नहीं किया जिसके लिये उन्हें फंड दिया गया था या एफसीआरए अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था।
      • इन कारणों के चलते केंद्र सरकार को 2011 और 2019 के बीच की अवधि के दौरान 19,000 से अधिक योगदान प्राप्तकर्त्ता संगठनों के पंजीकरण प्रमाणपत्र रद्द करने पड़े।
  • प्रतिबंध का आशय:
    • संवैधानिक अधिकारों को हतोत्साहित करना:
      • इन कदमों का प्रभाव संघ, अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों को हतोत्साहित करने वाला होगा (अनुच्छेद 19)। 
      • सरकार ने भारत में गैर-सरकारी संगठनों के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के संबंध में सरकार के विवेक, नौकरशाही द्वारा नियंत्रण और निरीक्षण में वृद्धि की है।
    • NGO के मानवीय कार्यों पर अंकुश लगाना:
      • लालफीताशाही के ज़रिये NGO पर नियंत्रण से ये संगठन मानवीय कार्य करने में असमर्थ होंगे।
      • यह सरकार, व्यापार, धर्म और राजनीतिक समूहों से स्वतंत्र ज़मीनी स्तर के गैर-सरकारी संगठनों के लिये भारत में कार्य करना और कठिन बना सकता है।
    • दमनकारी स्वतंत्रता:
      • FCRA संशोधन, 2020 के पारित होने और एमनेस्टी के खिलाफ कार्रवाई में यह भारत को केवल रूस के बाद रखता है, जहाँ सरकार ने विदेशी एजेंट कानून, 2012 और अवांछित संगठन कानून, 2015 को संघ व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिये एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
      • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत में कार्यकर्त्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों की ‘आवाज़ को दबाने’ के लिये विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम के उपयोग पर चिंता व्यक्त की थी।

आगे की राह

  • विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज को प्रभावित कर सकता है जो ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में सहायक होगा। यह उन अंतरालों को भरता है जहाँ सरकार अपना काम करने में विफल रहती है।
  • विनियमन को वैश्विक समुदाय के कामकाज के लिये आवश्यक राष्ट्रीय सीमाओं के पार संसाधनों के बँटवारे में बाधा नहीं डालनी चाहिये और इसे तब तक हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि यह मानने का कारण न हो कि धन का उपयोग अवैध गतिविधियों की सहायता के लिये किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू

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