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जैव विविधता और पर्यावरण

आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र

  • 05 Feb 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

2 फरवरी, 2021 को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetland Day) के अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने  राष्ट्रीय सतत् तटीय प्रबंधन केन्द्र (National Centre for Sustainable Coastal Management- NCSCM) के एक भाग के रूप में आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (Centre for Wetland Conservation and Management- CWCM) स्थापित करने की घोषणा की।

  • प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है।
  • 2 फरवरी, 1971 के दिन ही ईरान के रामसर शहर में आर्द्रभूमियों के संरक्षण से संबंधित  रामसर अभिसमय/समझौते (Ramsar Convention) पर हस्ताक्षर किये गए, जिसकी 50वीं वर्षगाँठ वर्ष  2021 में  मनाई जा रही है।
  • वर्ष 2021 के लिये विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम 'आर्द्रभूमि और जल' (Wetlands and Water) है।

प्रमुख बिंदु:

आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (CWCM) का महत्त्व:

  • CWCM आर्द्रभूमि के विषय में विशिष्ट अनुसंधान आवश्यकताओं और इससे संबंधित ज्ञान एवं सूचनाओं की कमी आदि समस्याओं को संबोधित करेगा और आर्द्रभूमि के संरक्षण तथा प्रबंधन के लिये एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने में सहायता करेगा।
  • यह केंद्र देश में आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये नीति व नियामक ढाँचे, प्रबंधन योजना तथा लक्षित अनुसंधान को डिज़ाइन तथा कार्यान्वित करने में राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारों की सहायता करेगा।
  • यह प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ साझेदारी करने एवं नेटवर्क विकसित करने में मदद करेगा। 
  • यह केंद्र आर्द्रभूमि शोधकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं, प्रबंधकों और उपयोगकर्त्ताओं के लिये एक ‘नॉलेज हब’ के रूप में कार्य करेगा।

आर्द्रभूमि:

  • आर्द्रभूमियांँ पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं। इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे अपशिष्ट-जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं।
  • आर्द्रभूमियांँ कुल भू सतह के लगभग 6% हिस्से को कवर करती हैं। पौधों और जानवरों की सभी 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं।

आर्द्रभूमियों का महत्त्व:

  • आर्द्रभूमियांँ हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती  हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।
  • मानव विकास और ग्रह (पृथ्वी) पर जीवन के लिये वेटलैंड महत्त्वपूर्ण हैं। 1 बिलियन से अधिक लोग जीवित रहने के हेतु आर्द्रभूमियों पर निर्भर हैं।
  • ये भोजन, कच्चे माल, दवाओं के लिये आनुवंशिक संसाधनों और जलविद्युत के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • भूमि आधारित कार्बन का 30% पीटलैंड (एक प्रकार की आर्द्रभूमि) में संग्रहीत है।
  • ये परिवहन, पर्यटन और लोगों की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • कई आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्र हैं और आदिवासी लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

खतरा:

  • आर्द्रभूमियों पर गठित आईपीबीईएस (जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवा पर अंतर-सरकारी विज्ञान नीति प्लेटफॉर्म) के अनुसार, ये सबसे अधिक विक्षुब्ध पारिस्थितिकी तंत्रों में शामिल हैं।
  • आर्द्रभूमि मानव गतिविधियों और ग्लोबल वार्मिंग के कारण जंगलों की तुलना में 3 गुना तेज़ी से समाप्त हो रही है।
  • यूनेस्को के अनुसार, आर्द्रभूमि के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न होने से विश्व के उन 40% वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो इन आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं या प्रजनन करते हैं।
  • प्रमुख खतरे: कृषि, विकास, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन।

भारत में आर्द्रभूमियों की स्थिति:

  • भारत में लगभग 4.6% भूमि आर्द्रभूमि के रूप में है जो 15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है। भारत में 42 स्थल हैं जिन्हें आर्द्रभूमि के रूप में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व (रामसर स्थल) का नामित किया गया है।
    • रामसर स्थलों के रूप में घोषित आर्द्रभूमियों को सम्मेलन के सख्त दिशा- निर्देशों के तहत संरक्षण प्रदान किया गया हैं।
    • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर  2,300 से अधिक रामसर साइटस विद्यमान हैं।
    • हाल ही में लद्दाख स्थित त्सो कार आर्द्रभूमि क्षेत्र (Tso Kar Wetland Complex) को भारत के 42वें रामसर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है।
  • आर्द्रभूमियों का विनियमन आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत किया जाता है।
  • केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण हेतु वर्ष 2010 में बनाए गए नियमों को राज्य-स्तरीय निकायों के साथ वर्ष 2017 में  परिवर्तित किया गया तथा एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति का गठन किया गया जो सलाहकार की भूमिका में है।
  • नए नियमों ने ‘आर्द्रभूमि’ की परिभाषा से कुछ वस्तुओं को हटा दिया जिसमें बैकवाटर (Backwater) लैगून (Lagoon), क्रीक (Creek) और एस्ट्रुअरीज़ (Estuaries) शामिल हैं।
    • वर्ष 2017 के नियमों के तहत आर्द्रभूमि की पहचान करने की ज़िम्मेदारी राज्यों को सौंपी गई है।

सतत् ​​तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र

  • अवस्थिति: 
    • इसका केंद्र चेन्नई (तमिलनाडु) में स्थित है।
  • प्रभाग:
    • इसमें भू-स्थानिक विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली, तटीय पर्यावरण प्रभाव आकलन, तटीय एवं समुद्री संसाधनों का संरक्षण आदि विभिन्न अनुसंधान विभाग शामिल हैं।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीपीय समुदायों के लाभ एवं कल्याण के लिये भारत में तटीय व समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
    • इसका उद्देश्य जनभागीदारी, संरक्षण प्रथाओं, वैज्ञानिक अनुसंधान और ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से स्थायी तटों को बढ़ावा देना और वर्तमान तथा भावी पीढ़ी का कल्याण करना है।
  • भूमिका:
    • भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey Of India) और NCSCM ने बाढ़, कटाव तथा समुद्र-स्तर में वृद्धि की भेद्यता के मानचित्रण (Mapping) को शामिल करते हुए भारतीय तटीय सीमाओं के लिये खतरे की सीमा की मैपिंग की है।
    • यह केंद्र, राज्य सरकारों और नीति निर्माण से संबद्ध अन्य हितधारकों को एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM) से संबंधित वैज्ञानिक मामलों में भी सलाह देता है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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