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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तुर्की पर CAATSA प्रतिबंध

  • 17 Dec 2020
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका प्रशासन (USA) ने तुर्की पर रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली ( S-400 Missile System) की खरीद के लिये प्रतिबंध लगाए हैं

  • रूसी हथियारों की खरीद के लिये अमेरिका द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) की धारा 231 के तहत प्रतिबंधों का मुद्दा भारत के लिये विशेष महत्व रखता है, क्योंकि भारत भी रूस से S-400 खरीदने की प्रक्रिया में है।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका ने तुर्की को स्पष्ट कर दिया था कि S-400 प्रणाली की खरीद संयुक्त राज्य अमेरिका की सुरक्षा को खतरे में डालेगी।
    • यह खरीद रूस के रक्षा क्षेत्र को पर्याप्त वित्त प्रदान करने के साथ-साथ तुर्की के सशस्त्र बलों और रक्षा उद्योग तक रूस की पहुँच को बढ़ाएगी।
  • तुर्की ने अपनी रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये नाटो-इंटरऑपरेबल सिस्टम (NATO-interoperable systems) [यथा- USA की पैट्रियट ( Patriot) मिसाइल रक्षा प्रणाली] जैसे विकल्पों की उपलब्धता के बावजूद S-400 की खरीद और परीक्षण के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।
  • वर्ष 2019 में USA ने तुर्की को अपने एफ -35 जेट कार्यक्रम (F-35 Jet Program) से इस चिंता के कारण हटा दिया था  कि यदि तुर्की USA जेट विमानों के साथ-साथ रूसी प्रणालियों का उपयोग भी करता है तो संवेदनशील जानकारी रूस तक पहुँच सकती है।
  • S-400 प्रणाली को रूस द्वारा डिज़ाइन किया है। यह  सतह से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की मिसाइल प्रणाली (SAM) है। 
  • यह 30 किमी. तक की ऊँचाई और 400 किमी. की सीमा के अंदर विमानों, चालक रहित हवाई यानों (UAV), बैलिस्टिक तथा क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को भेद सकती है।
  • वर्तमान में यह विश्व की अत्यंत शक्तिशाली और अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणाली है। यह अमेरिका द्वारा विकसित ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम’ (THAAD) से भी अधिक उन्नत है।
  • इसके अलावा यह प्रणाली एक ही समय में 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है तथा छह लक्ष्यों को एक साथ भेद सकती है। यह रूस की लंबी दूरी की मिसाइल रक्षा प्रणाली की चौथी पीढ़ी है।

तुर्की पर प्रतिबंध:

  • ये प्रतिबंध तुर्की की मुख्य रक्षा खरीद एजेंसी, रक्षा उद्योग विभाग (Presidency of Defense Industries- SSB) पर लगाए गए थे।
  • इन प्रतिबंधों में किसी भी सामान या प्रौद्योगिकी के लिये विशिष्ट अमेरिकी निर्यात लाइसेंस और प्राधिकरण के लिये अनुमोदन शामिल है।
  • इसके अलावा किसी अमेरिकी वित्तीय संस्थान द्वारा 12 महीने की अवधि में 10 मिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक के ऋण या क्रेडिट पर प्रतिबंध शामिल है।

अमेरिका द्वारा प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम (CAATSA):

  • 2 अगस्त, 2017 को अधिनियमित और जनवरी 2018 से लागू इस कानून का उद्देश्य दंडनीय उपायों के माध्यम से ईरान, रूस और उत्तरी कोरिया की आक्रामकता का सामना करना है। 
    • विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अधिनियम प्राथमिक रूप से रूसी हितों जैसे कि तेल और गैस उद्योग, रक्षा क्षेत्र एवं वित्तीय संस्थानों पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित है।
  • यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों से संबंधित महत्त्वपूर्ण लेन-देनों में शामिल व्यक्तियों पर अधिनियम में उल्लिखित 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम-से-कम पाँच प्रतिबंध लागू करने का अधिकार देता है।
  • इनमें से एक ‘निर्यात लाइसेंस’ प्रतिबंध है जिसके द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति को युद्ध, दोहरे उपयोग और परमाणु शक्ति संबंधी वस्तुओं के निर्यात लाइसेंस निलंबित करने के लिये अधिकृत किया गया है। 

भारत के लिये चिंता:

  • भारत ने अक्तूबर 2018 में अल्माज़-एंटेई कोर्पोरेशन रूस से S-400 ट्रायम्फ लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिये 39,000 करोड़ रुपए का सौदा किया था जिसकी डिलीवरी वर्ष 2021 में होने की उम्मीद है।
    • S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के अलावा प्रोजेक्ट 1135.6 युद्ध-पोत ( Project 1135.6 Frigates) और Ka226T हेलीकॉप्टर की खरीद भी इससे प्रभावित होगी। साथ ही यह इंडो रूसी एविएशन लिमिटेड, मल्टी-रोल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट लिमिटेड और ब्रह्मोस एयरोस्पेस जैसे संयुक्त उपक्रमों को भी प्रभावित करेगा। यह भारत के स्पेयर पार्ट्स, पुर्जों, कच्चे माल और अन्य सहायक उपकरणों की खरीद को भी प्रभावित करेगा।
    • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) आर्म्स ट्रांसफर डेटाबेस के अनुसार, 2010-17 की अवधि के दौरान रूस भारत का शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्त्ता था।
    • रूसी मूल के भारतीय हथियार: 
      • परमाणु पनडुब्बी INS चक्र, किलो-क्लास पारंपरिक पनडुब्बी, सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल, मिग 21/27/29 और Su-30 MKI फाइटर, IL-76/78 परिवहन विमान, T-72 और T-90 टैंक, Mi हेलीकॉप्टर तथा विक्रमादित्य विमानवाहक पोत।
  • CAATSA में 12 प्रकार के प्रतिबंध हैं। इनमें से 10 का रूस या अमेरिका के साथ भारत के वर्तमान संबंधों पर बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। केवल दो प्रतिबंध हैं जो भारत-रूस संबंधों या भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • इनमें से पहला, जिसका भारत-रूस संबंधों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, वह है "बैंकिंग लेनदेन का निषेध"।
      • इसका मतलब भारत को S-400 सिस्टम की खरीद के लिये रूस को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करने में कठिनाई होगी।
    • दूसरे प्रतिबंध के भारत-अमेरिका संबंधों पर अधिक प्रभाव होंगे।
      • यह "निर्यात प्रतिबंध" भारत-अमेरिका रणनीतिक व रक्षा साझेदारी को पूरी तरह से पटरी से उतारने की क्षमता रखता है, क्योंकि यह अमेरिका द्वारा नियंत्रित किसी भी वस्तु के निर्यात के लिये व्यक्ति के लाइसेंस को प्रतिबंधित कर देगा।
        • सभी दोहरे उपयोग वाले उच्च प्रौद्योगिकी वस्तुएँ और प्रौद्योगिकी,
        • सभी रक्षा संबंधी वस्तुएँ,
        • परमाणु से संबंधित सभी वस्तुएँ
        • अन्य सभी वस्तुएँ जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका की पूर्व समीक्षा और अनुमोदन की आवश्यकता है।
      • यह भारत को अमेरिका से किसी भी बड़े रक्षा उपकरण खरीदने से प्रभावी रूप से रोक देगा, भारत और अमेरिका के मध्य किसी भी रक्षा और सामरिक भागीदारी पर रोक लगाएगा। प्रमुख रक्षा सहयोगी (Major Defence Partner- MDP) पदनाम उस संदर्भ में अपनी प्रासंगिकता खो देगा।

आगे की राह:

रूस सदैव SCO में चीन की उपस्थिति के बीच संतुलन कायम करने के लिये भारत की भूमिका को महत्त्वपूर्ण मानता है, इसीलिये रूस ने SCO में भारत के समावेश और RIC सिद्धांत के गठन की सुविधा प्रदान की। भारत आज एक अनन्य स्थिति में है जहाँ उसका सभी महान शक्तियों के साथ एक अनुकूल संबंध है और उसे इस स्थिति का लाभ एक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था के निर्माण के लिये उठाना चाहिये। अंत में भारत को न केवल रूस के साथ बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भी घनिष्ठ संबंध विकसित करने की आवश्यकता है, जो चीन और रूस के मध्य रणनीतिक साझेदारी की दिशा में किसी भी कदम को संतुलित कर सके।

स्रोत: द हिंदू

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