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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में महिलाओं संबंधित डेटा

  • 16 Dec 2020
  • 10 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) 2019-20 के पहले चरण का डेटा जारी किया गया है, जो भारत में महिलाओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर डेटा प्रदान करता है। 

  • NFHS एक बड़े पैमाने पर किया जाने वाला बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने में किया जाता है।
  • इस सर्वेक्षण के चरण- I में 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के आँकड़े जारी किये गए हैं और शेष 14  राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वेक्षण (चरण- II) का कार्य अभी जारी है।
  • सभी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों को भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नेतृत्त्व में आयोजित किया गया है तथा NFHS के लिये मुंबई स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान’ नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। 

प्रमुख बिंदु:

    कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rates- TFR): 

    • पिछले आधे दशक की समयावधि में अधिकांश भारतीय राज्यों में TFR में गिरावट दर्ज की गई है विशेषकर शहरी महिलाओं में। इसका अर्थ है यह है कि भारत की जनसंख्या में स्थिरता आ रही है।
    • सिक्किम में सबसे कम TFR दर्ज किया गया है, जिसमें प्रति महिला औसतन 1.1  TFR दर्ज किया गया साथ ही बिहार में प्रति महिला औसत TFR 3 दर्ज किया गया।
    • सर्वेक्षण में शामिल 22  में से 19 में, TFR को प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से कम पाया गया।
      • TFR 15 से 49 वर्ष की आयु के बीच की प्रजनन आयु के दौरान एक महिला से जन्म लेने वाले अनुमानित बच्चों की औसत संख्या को दर्शाता है। 
      • प्रतिस्थापन स्तर, यह एक ऐसी अवस्था होती है जब जितने बूढ़े लोग मरते हैं उनका खाली स्थान भरने के लिये उतने ही नए बच्चे पैदा हो जाते हैं। कभी-कभी कुछ समाजों को ऋणात्मक संवृद्धि दर की स्थिति से भी गुजरना होता है अर्थात् उनका प्रजनन शक्ति स्तर प्रतिस्थापन दर से नीचा रहता है। कुल प्रजनन दर के इस स्तर से नीचे चले जाने पर जनसंख्या में गिरावट होने लगती है।  

    महिलाओं में एनीमिया:

    • सर्वेक्षण में शामिल 22 में से 13 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएँ एनीमिया से ग्रस्त पाए गए। 
    • साथ ही NFHS-4 की तुलना में देश के आधे राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की वृद्धि देखी गई है। 
    • सभी राज्यों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में एनीमिया बहुत अधिक है।

    गर्भनिरोध:

    • आंध्र प्रदेश (98%), तेलंगाना (93%), केरल (88%), कर्नाटक (84%), बिहार (78%) और महाराष्ट्र (77%) जैसे राज्यों में महिला नसबंदी गर्भनिरोधक की आधुनिक पद्धति के रूप में  जारी है।
    • साथ ही समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (CPR) के मामले में देश के ज़्यादातर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में काफी वृद्धि देखी गई और यह हिमाचल प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल (74%) में सबसे अधिक है।

    बाल विवाह : 

    • देश के कुछ राज्यों में बाल विवाह के मामलों में वृद्धि देखी गई है जिनमें त्रिपुरा (2015-16 के 33.1% से बढ़कर 40.1%), मणिपुर (2015-16 के 13.7% से बढ़कर 16.3%) और असम (2015-16 के 30.8% से बढ़कर 31.8%) प्रमुख हैं।
    • पश्चिम बंगाल (41.6%) और बिहार (40.8%) जैसे राज्यों में वर्तमान समय में भी बाल विवाह की उच्च व्यापकता बनी हुई है।
    • त्रिपुरा, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड जैसे राज्यों में किशोरावस्था में गर्भधारण के मामलों में वृद्धि देखी गई है।

    घरेलू हिंसा:  

    • आमतौर पर अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में घरेलू हिंसा के मामलों में गिरावट देखने को मिली है।
    • लेकिन पाँच राज्यों (सिक्किम, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, असम और कर्नाटक) में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी गई है।
    • कर्नाटक में घरेलू हिंसा के मामलों में  सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है। NFHS 4 में यहाँ घरेलू हिंसा के 20.6% मामले दर्ज किये गए थे जबकि NFHS-5 में यह आँकड़ा 44.4% हो गया है।
    • इसके अतिरिक्त देश के पाँच राज्यों (असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मेघालय और पश्चिम बंगाल) में यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है।

    संस्थागत प्रसव :  

    • 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पाँच में से चार से अधिक महिलाओं के संस्थागत प्रसव के साथ इसमें व्यापक वृद्धि देखने को मिली हुई है।
    • कुल 22 में से 14 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संस्थागत प्रसव का स्तर 90% से अधिक है।

    सिजेरियन (सी-सेक्शन) प्रसव: 

    • देश के अधिकांश राज्यों में सिजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) से होने वाले प्रसव की संख्या में वृद्धि हुई है।
      • अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य समुदाय द्वारा सीज़ेरियन सेक्शन के लिये आदर्श दर को 10% से 15% के बीच माना गया है।
    • पिछले पाँच वर्षों में तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों, विशेष रूप से निजी स्वास्थ्य केंद्रों पर सी-सेक्शन प्रसव में अत्यधिक वृद्धि देखी गई है।
      • तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में, निजी स्वास्थ्य केंद्रों पर सी-सेक्शन प्रसव के मामलों में 81% और 82% तक वृद्धि देखी गई है।

    जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth-SRB):

    • अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में SRB या तो अपरिवर्तित रहा है या इसमें वृद्धि देखी हुई है।
    • अधिकांश राज्यों में लिंगानुपात सामान्य (952) या उससे अधिक है। 
    • हालाँकि तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, गोवा, दादरा नगर हवेली और दमन तथा दीव में जन्म के समय लिंगानुपात  900 से नीचे है।

    बाल पोषण:

    • बाल पोषण संकेतकों में सभी राज्यों में मिश्रित पैटर्न देखने को मिलता है। जहाँ कई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में स्थिति में सुधार हुआ है, वहीं कुछ अन्य राज्यों में मामूली गिरावट आई है।
    • देश में बहुत कम समय में स्टंटिंग और वेस्टिंग के मामलों में कोई बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं है।

    वित्तीय समायोजन: 

    • महिलाओं द्वारा संचालित बैंक खातों के संदर्भ में NFHS-4 और NFHS-5 के बीच उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गई है।

    सफाई और स्वच्छ वायु:

    • पिछले चार वर्षों में (वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 के बीच) लगभग सभी 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में बेहतर स्वच्छता सुविधाओं और खाना पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से अधिक से अधिक घरों को शौचालय की सुविधा प्रदान करने हेतु ठोस प्रयास किये हैं और देश में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से घरेलू वातावरण में सुधार किया है।

    आगे की राह: 

    • वर्तमान समय में सेवाओं को सुलभ, सस्ती और सभी के लिये स्वीकार्य बनाने हेतु स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी स्वास्थ्य संस्थानों, शिक्षाविदों और अन्य भागीदारों के माध्यम से एकीकृत एवं समन्वित प्रयासों को बढ़ाया जाना बहुत ही आवश्यक है। 
    • NFHS-5 द्वारा उपलब्ध कराया गया डेटा मौजूदा कार्यक्रमों को मजबूत बनाने और नीतिगत हस्तक्षेप हेतु नई रणनीतियों को विकसित करने के लिये अपेक्षित जानकारी प्रदान करता है, अतः सरकार एवं अधिकारियों को भारत में महिलाओं की स्थिति को और बेहतर बनाने के लिये आवश्कयक कदम उठाने चाहिये।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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