भारतीय राजव्यवस्था
असम-मिज़ोरम सीमा विवाद
- 14 Jul 2021
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प्रीलिम्स के लियेपूर्वोत्तर की भौगौलिक अवसंरचना मेन्स के लियेअसम-मिज़ोरम सीमा विवाद, भारत में सीमा-विवादों की समग्र स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम के कछार ज़िले के अंदर कथित तौर पर मिज़ोरम के निवासियों द्वारा कई ‘इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस’ यानी आईईडी विस्फोट किये गए हैं। ये विस्फोट लंबे समय से अनसुलझे असम-मिज़ोरम सीमा विवाद के फिर से उभरने का संकेत देते हैं।
- असम और मिज़ोरम के बीच सीमा का मुद्दा मिज़ोरम के गठन के बाद अस्तित्त्व में आया था। मिज़ोरम सर्वप्रथम वर्ष 1972 में एक केंद्रशासित प्रदेश के रूप में और फिर वर्ष 1987 में एक पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्त्व में आया।
- भारत में अंतर्राज्यीय विवाद बहुआयामी हैं, सीमा विवादों के अलावा देश में पानी (नदियों) के बँटवारे और प्रवासन को लेकर भी विवाद देखने को मिलते हैं, जो कि भारत की संघीय राजनीति को भी प्रभावित करते हैं।
नोट
- औपनिवेशिक काल के दौरान मिज़ोरम को असम के ‘लुशाई हिल्स’ ज़िले के नाम से जाना जाता था।
- मिज़ोरम राज्य अधिनियम, 1986 द्वारा वर्ष 1987 में मिज़ोरम को राज्य का दर्जा दिया गया था।
- असम वर्ष 1950 में भारत का एक घटक राज्य बन गया और 1960 तथा 1970 के दशक की शुरुआत के बीच इसके अधिकांश क्षेत्र को पूर्वोत्तर में स्वतंत्र राज्य बना दिया गया।
प्रमुख बिंदु
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असम-मिज़ोरम सीमा विवाद- पृष्ठभूमि
- असम और मिज़ोरम के बीच मौजूदा सीमा विवाद की शुरुआत औपनिवेशिक युग के दौरान तब हुई थी जब ब्रिटिश राज की प्रशासनिक ज़रूरतों के अनुसार इस क्षेत्र का आंतरिक सीमांकन किया गया था।
- असम-मिज़ोरम विवाद ब्रिटिश काल में पारित दो अधिसूचनाओं के कारणउत्पन्न हुआ।
- सबसे पहली अधिसूचना वर्ष 1875 में जारी की गई, जिसके तहत ‘लुशाई हिल्स’ क्षेत्र को कछार के मैदानी इलाकों से अलग कर दिया गया।
- दूसरी अधिसूचना वर्ष 1933 में जारी हुई और इसके तहत ‘लुशाई हिल्स’ तथा मणिपुर के बीच एक सीमा का सीमांकन किया गया।
- मिज़ोरम का मानना है कि सीमा का सीमांकन वर्ष 1875 की अधिसूचना के आधार पर किया जाना चाहिये था, जो कि ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन’ (BEFR) अधिनियम, 1873 के तहत जारी की गई थी।
- मिज़ो नेता वर्ष 1933 में अधिसूचित सीमांकन के विरुद्ध हैं, क्योंकि उनके अनुसार इस अधिसूचना के दौरान मिज़ो समाज से परामर्श नहीं किया गया था।
- वहीं दूसरी ओर असम सरकार वर्ष 1933 के सीमांकन को अपना आधार मानती है।
- परिणामस्वरूप दोनों राज्यों की अपनी-अपनी सीमा के बारे में अलग-अलग धारणा बनी हुई है और यही विवाद का मुख्य कारण है।
- असम और मिज़ोरम को अलग करने वाली 164.6 किलोमीटर की अंतर-राज्यीय सीमा है, जिसमें असम के तीन ज़िले- कछार, हैलाकांडी और करीमगंज, मिज़ोरम के कोलासिब, ममित एवं आइज़ोल ज़िलों के साथ सीमा साझा करते हैं।
- इसके अलावा मिज़ोरम और असम के बीच की सीमा पहाड़ियों, घाटियों, नदियों तथा जंगलों के कारण स्वाभाविक रूप से विभाजित है एवं दोनों पक्षों के बीच यह विवाद एक काल्पनिक रेखा संबंधी धारणात्मक मतभेदों पर आधारित है।
- हालाँकि पूर्वोत्तर के जटिल सीमा समीकरणों में असम और मिज़ोरम के निवासियों के बीच संघर्ष असम के अन्य पड़ोसी राज्यों जैसे नगालैंड की तुलना में काफी कम है।
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भारत में अंतर्राज्यीय विवादों की समग्र स्थिति:
- सीमा का मुद्दा: राज्यों के बीच सीमा विवाद भारत में अंतर्राज्यीय विवादों के प्रमुख कारणों में से एक है। उदाहरण के लिये-
- कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों ही बेलगाम पर अपना दावा करते हैं, जिससे इन दोनों के बीच समय-समय पर विवाद देखने को मिलता रहता है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम [North-Eastern Areas (Reorganisation) Act], 1971 ने मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों की स्थापना तथा मेघालय के गठन से पूर्वोत्तर भारत के राजनीतिक मानचित्र को बदल दिया।
- इस पुनर्गठन के परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई सीमा विवाद हुए हैं जैसे- असम-नगालैंड, असम-मेघालय आदि।
- प्रवासन का मुद्दा: कुछ राज्यों में दूसरे राज्यों के प्रवासियों और नौकरी चाहने वालों को लेकर हिंसक आंदोलन हुए हैं।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि मौजूदा संसाधन और रोज़गार के अवसर बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- संबंधित राज्यों में रोज़गार में वरीयता के लिये 'सन ऑफ द साइल' (Sons of The Soil) की अवधारणा संघवाद की जड़ों को नष्ट कर देती है।
- जल संसाधनों के बँटवारे पर विवाद: सबसे लंबे समय से चल रहा और विवादास्पद अंतर्राज्यीय मुद्दा नदी के पानी के बँटवारे का रहा है।
- भारत की अधिकांश नदियाँ अंतर्राज्यीय हैं, अर्थात् ये एक से अधिक राज्यों से होकर बहती हैं।
- पानी की मांग में वृद्धि के कारण नदी के पानी के बँटवारे को लेकर कई अंतर्राज्यीय विवाद सामने आए हैं।
- सीमा का मुद्दा: राज्यों के बीच सीमा विवाद भारत में अंतर्राज्यीय विवादों के प्रमुख कारणों में से एक है। उदाहरण के लिये-
आगे की राह:
- राज्यों के बीच सीमा विवादों को वास्तविक सीमा स्थानों के उपग्रह मानचित्रण का उपयोग करके सुलझाया जा सकता है।
- अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना अंतर-राज्यीय विवाद के समाधान के लिये एक विकल्प हो सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्यीय परिषद से विवादों पर पूछताछ और सलाह देने, सभी राज्यों के लिये सामान्य विषयों पर चर्चा करने तथा बेहतर नीति समन्वय हेतु सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।
- इसी तरह प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों की सामान्य चिंता के मामलों पर चर्चा करने हेतु क्षेत्रीय परिषदों को पुनर्जीवित किये जाने की आवश्यकता है। जैसे- सामाजिक और आर्थिक योजना, सीमा विवाद, अंतर-राज्यीय परिवहन आदि से संबंधित मामले।
- भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र तथा राज्य सरकारें दोनों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।