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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

अंडमान-दुर्लभ ताड़ का संरक्षण

  • 20 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

पिनंगा अंडमानेंसिस

मेन्स के लिये:

जैव-विविधता संरक्षण की पद्धतियाँ 

चर्चा में क्यों?

दक्षिणी अंडमान द्वीप के दुर्लभ ताड़/पाम को ‘जवाहरलाल नेहरू ट्रॉपिकल बोटैनिकल गार्डन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (Jawaharlal Nehru Tropical Botanic Garden and Research Institute- JNTBGRI) की मदद से पलोदे (Palode) (केरल) में उगाया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • पिनंगा अंडमानेंसिस (Pinanga andamanensis) जिसे एक समय विलुप्त प्रजाति के रूप में दर्ज किया गया था। यह एरेका ताड़ (Areca Palm) से संबंधित है। दक्षिण अंडमान के 'माउंट हैरियट नेशनल पार्क' के एक छोटे क्षेत्र में 600 पौधे पाए जाते है।
  • भारतीय मुख्य भूमि पर ‘अंडमान द्वीप के दुर्लभ ताड़’ के जर्मप्लाज़्म का संरक्षण किया जाएगा ताकि प्राकृतिक आपदा के समय यदि अंडमान द्वीप से यह नष्ट भी हो जाए तो इसका निरंतर अस्तित्त्व सुनिश्चित हो सके।

पिनंगा अंडमानेंसिस (Pinanga andamanensis):

  • ‘पिनंगा अंडमानेंसिस’ ‘चरम लुप्तप्राय प्रजाति’ (Critically Endangered Species) है, जो अंडमान द्वीप समूह के स्थानिक लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है। 
  • सर्वप्रथम वर्ष 1934 में ‘इतालवी वनस्पतिशास्त्री’ ओडोराडो बेस्करी द्वारा इसे वर्णित किया गया था।
  • वर्ष 1992 में इसे विलुप्त मान लिया गया था।

ताड़ के पेड़ का नाम पिनंगा क्यों?

  • यह नाम 'पेनांग ’से लिया गया है, जो मलेशिया का एक राज्य है। पिनांग का मूल 'पुलाऊ पिनांग' (Pulau Pinang) में है, जिसका अर्थ है 'अरेका नट पाम का द्वीप' (Island of the Areca Nut Palm)।

जैव विविधता संरक्षण की विधियाँ:

स्व-स्थानिक संरक्षण (In Situ Conservation):

  • इस प्रकार के संरक्षण के अंतर्गत पौधों एवं प्राणियों को उनके प्राकृतिक वास स्थान अथवा सुरक्षित क्षेत्रों में संरक्षित किया जाता है। संरक्षित क्षेत्र भूमि या समुद्र के वे क्षेत्र होते हैं जो संरक्षण के लिये समर्पित हैं तथा जैव विविधता को बनाए रखते हैं।

गैर-स्थानिक संरक्षण (Ex Situ Conservation):

  • गैर-स्थानिक संरक्षण विधि में वनस्पति या जीन को मूल वातावरण से अलग स्थान पर संरक्षित किया जाता है।
  • इसमें चिड़ियाघर, उद्यान, नर्सरी, जीन पूल आदि में पूर्ण नियंत्रित स्थितियों में प्रजातियों का संरक्षण किया जाता है।

गैर-स्थानिक संरक्षण की विधियाँ:

  • गैर-स्थानिक संरक्षण रणनीतियों में निम्नलिखित विधियाँ शामिल हैं 
    • वनस्पति उद्यान (Botanical Garden) 
    • प्राणी उद्यान (Zoological Garden)
    • जीन, पराग, बीज आदि का संरक्षण (Conservation of Gene, Pollen, Seed etc.)
    • टिशू कल्चर (Tissue Culture)
    • डीएनए बैंक (DNA bank)

जीन बैंकः 

  • आनुवांशिक संसाधनों का गैर-स्थानिक संरक्षण जीन बैंकों एवं बीज बैंकों द्वारा किया जाता है। ‘राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो’ (The National Bureau of Plant Genetic Resources, NBPGR), नई दिल्ली फसल के पौधों के जीन पूल तथा उगाई जाने वाली किस्मों के बीजों को संरक्षित रखता है।  
  • ‘राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो’ (The National Bureau of Animal Genetic Resources) करनाल (हरियाणा), पालतू पशुओं के आनुवांशिक पदार्थ का रखरखाव करता है।  
  • राष्ट्रीय मत्स्य आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो (The National Bureau of Fish Genetic Resources), लखनऊ मत्स्यन के संरक्षण के लिये समर्पित है।

गैर-स्थानिक संरक्षण का महत्त्व:

  • यह प्रजातियों को लंबा जीवनकाल तथा प्रजनन गतिविधि के लिये स्थान प्रदान करता है।
  • संरक्षण प्रणालियों में आनुवंशिक तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • जीवों की प्रजातियों को फिर से वन में स्थानापन्न किया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन और गैर-स्थानिक संरक्षण:

  • वर्तमान में सभी पारिस्थितिक तंत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य हैं, और विशेष रूप से समुद्र तटीय वनों में गिरावट आ सकती है। जलवायु परिवर्तन मॉडलों के अनुसार, वैश्विक प्रजातियों तथा उनके आवासों के वितरण में तीव्र तथा व्यापक बदलाव हो सकता है।
  • हालांकि जलवायु परिवर्तन में वृद्धि, निवास स्थान का विखंडन कारण प्रजातियों की अनुकूलन क्षमता कम हो जाती है। अत: प्रजातियों के संरक्षण में मानव की भूमिका लगातार बढ़ रही है।

 गैर-स्थानिक प्रजातीय संरक्षण की सीमाएँ:

  • चिड़ियाघर में जानवरों का व्यवहार बड़ी संख्या में लोगों के लगातार भ्रमण पर आने से प्रभावित हो सकता है।
  • यद्यपि गैर-स्थानिक संरक्षण विधियाँ यद्यपि कुछ प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्त्व के लिये लाभदायक हो सकती हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के दौरान जीवों को प्रजनन तथा पुनर्स्थापन के दौरान ठीक से प्रबंधित नहीं होने पर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

निष्कर्ष:

  • जैव विविधता मानव अस्तित्त्व तथा प्राकृतिक प्रणालियों के अस्तित्त्व के लिये बेहद आवश्यक है, हालाँकि जैव-विविधता को सर्वाधिक नुकसान मानवजनित गतिविधियों के कारण हुआ है है। अत: जैव-विविधता संरक्षण की दिशा में स्व-स्थानिक और गैर-स्थानिक दोनों तरीकों से  संरक्षण की आवश्यकता होती है।

स्रोत: द हिंदू

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