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वायु गुणवत्ता में कमी समय-पूर्व मृत्यु का कारण

  • 23 May 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

उत्तर भारत के 11 शहरों में किये गए एक नए अध्ययन में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता में कमी पिछले दो दशक में समय से पूर्व मृत्यु के प्रमुख कारण के रूप में सामने आया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), दिल्ली ने सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (Centre for Environment and Energy Development- CEED) नामक पर्यावरणीय NGO के साथ मिलकर ‘know what you breathe’ शीर्षक से, ये निष्कर्ष जारी किये हैं।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, प्रति एक लाख की आबादी पर 150-300 व्यक्तियों की वार्षिक मृत्यु दर पाई गई।
  • इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश के सात शहरों (इलाहाबाद, आगरा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, वाराणसी और गोरखपुर), बिहार के तीन (पटना, गया और मुज़फ्फरपुर) तथा झारखण्ड की राजधानी राँची को शामिल किया गया था।
  • कानपुर में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली समय-पूर्व मृत्यु की दर सबसे अधिक (4,173 प्रति वर्ष) पाई गई। इसके बाद क्रमशः लखनऊ में (4,127 प्रति वर्ष), आगरा में (2,421 प्रति वर्ष), मेरठ में (2,044 प्रति वर्ष), वाराणसी में (1,581 प्रति वर्ष), इलाहाबाद में (1,443 प्रति वर्ष) तथा गोरखपुर में (914 प्रति वर्ष) की मृत्यु दर पाई गई।
  • इस अध्ययन में, शहर में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD), तीव्र श्वसन संक्रमण (ALRI), कोरोनरी डिज़ीज़, दौरा तथा फेफड़े के कैंसर के कारण होने वाली औसत वार्षिक मौतों का अध्ययन किया गया।
  • COPD के कारण होने वाली मौतें सर्वाधिक तथा फेफेड़े के कैंसर से होने वाली मौतें सबसे कम पाई गईं।
  • ALRI के कारण मेरठ तथा आगरा में सर्वाधिक मौतें हुई जबकि COPD के कारण इलाहाबाद, गया, कानपुर, गोरखपुर, लखनऊ, पटना, मुज़फ्फरपुर और वाराणसी में सबसे अधिक मौतें हुईं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, यदि वायु की गुणवत्ता में सुधार हो जाए, तो इन मृत्यु दरों में 14% से 28% तक कमी हो सकती है।
  • पिछले 17 वर्षों से वायु में उपस्थित कणों के आंकड़े प्राप्त करने के लिए सैटेलाइट आधारित उच्च-रिज़ॉल्यूशन PM 2.5 डेटाबेस का उपयोग करते हुए,  इस रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि अध्ययन में शामिल 11 में से 10 शहरों में PM 2.5 का विस्तार तेज़ी से हुआ है।
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