दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 28 Sep, 2021
  • 12 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

न्यूनतम समर्थन मूल्य: आलोचना और महत्त्व

यह एडिटोरियल 27/09/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘MSP is not the way to increase farmers’ income’’ पर आधारित है। इसमें किसानों की आय को दोगुना करने हेतु ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) योजना के योगदान का मूल्यांकन किया गया है।

संदर्भ

वर्ष 2014-15 और वर्ष 2015-16 में सूखे की लगातार दो घटनाओं के बाद सरकार ने वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय को दोगुना करने का एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय को दोगुना करने के इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक रणनीति निर्धारित करने के लिये सरकार द्वारा अशोक दलवाई समिति का गठन किया गया है।    

समिति ने स्पष्ट रूप से कहा कि वर्ष 2022-23 तक किसानों की वास्तविक आय को दोगुना करने हेतु प्रतिवर्ष 10.4 प्रतिशत की वृद्धि दर की आवश्यकता होगी। ज्ञात हो कि किसानों की आय के संबंध में नाबार्ड द्वारा वर्ष 2016-17 में किये गए एक आकलन के अनुसार, वर्ष 2015-16 में किसानों की औसत मासिक आय 8,931 रुपए थी।  

‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ (NSO) द्वारा वर्ष 2018-2019 में कृषक परिवारों की स्थिति पर किये गए एक आकलन सर्वेक्षण के मुताबिक, वर्ष 2018-19 में एक औसत कृषक परिवार ने 10,218 रुपए की मासिक आय अर्जित की। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य काफी महत्त्वाकांक्षी है और इसे प्राप्त करने हेतु एक वैकल्पिक नीति के तौर पर ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price-MSP) प्रणाली का मूल्यांकन करना महत्त्वपूर्ण होगा।  

न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली का लक्ष्य- 

  • किसानों को उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रेरित करना और इस प्रकार खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि करके किसानों के लिये लाभकारी एवं अपेक्षाकृत स्थिर मूल्य वातावरण सुनिश्चित करना।
  • खाद्य तक पहुँच में सुधार लाना।
  • एक उत्पादन पैटर्न का विकास करना जो अर्थव्यवस्था की समग्र आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

MSP की आलोचना

  • संबद्ध क्षेत्र के लिये कोई MSP नहीं: जानकार मानते हैं कि किसानों की आय बढ़ाने के अवसर में पशुपालन और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों का अधिक योगदान होता है। किंतु इसके बावजूद पशुपालन या मत्स्यपालन से जुड़े उत्पादों के लिये कोई ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ प्रणाली मौजूद नहीं है, न ही सरकार द्वारा इनकी खरीद की कोई व्यवस्था की गई है। 
    • ये उत्पाद मुख्यतः मांग-प्रेरित होते हैं और इसका अधिकांश विपणन APMC मंडियों के बाहर होता है।  
  • अपर्याप्त भंडारण व्यवस्था: माना जाता है कि ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) और सरकारी खरीद में लगातार बढ़ोतरी के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है।  
    • हालाँकि सरकार के पास मौजूद अनाज का स्टॉक पहले से ही काफी अधिक है, जो कि सरकार को और अधिक खरीद करने हेतु हतोत्साहित करता है।
  • धान और गेहूँ के पक्ष में MSP प्रणाली का झुकाव: भारत में ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ प्रणाली धान और गेहूँ के पक्ष में काफी अधिक झुकी हुई है, जिसने इन फसलों के आवश्यकता से अधिक उत्पादन की प्रवृत्ति को जन्म दिया है।  
    • इसके अलावा, यह किसानों को अन्य फसलों और बागवानी उत्पादों की खेती के लिये हतोत्साहित करता है, जबकि उनकी मांग काफी अधिक है और वे किसानों की आय में वृद्धि में योगदान कर सकते हैं।
  • आर्थिक रूप से असंवहनीय: भारतीय खाद्य निगम द्वारा खरीदे गए चावल की आर्थिक लागत लगभग 37 रुपए प्रति किलोग्राम और गेहूँ की लगभग 27 रुपए प्रति किलोग्राम आती है। भारतीय खाद्य निगम की इस आर्थिक लागत की तुलना में चावल और गेहूँ का बाज़ार मूल्य काफी कम है। 
    • इसके कारण FCI पर 3 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक बोझ पड़ रहा है।
    • इस बोझ का वहन अंततः केंद्र सरकार को ही करना पड़ता है और इससे कृषि अवसंरचना में निवेश किये जाने वाले धन का विचलन होता है।
  • गैर-कृषि क्षेत्र में बाज़ार-संचालित प्रणाली: दुग्ध और पोल्ट्री के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली मौजूद नहीं है और मूल्य निर्धारण कंपनी द्वारा  दुग्ध संघों के परामर्श से किया जाता है, न कि सरकार द्वारा।  
    • इसके कारण, दूध उत्पादकों को मंडी प्रणाली से नहीं गुजरना पड़ता जहाँ प्रायः किसानों को उच्च कमीशन, बाज़ार शुल्क और उपकर का भुगतान करना पड़ता है।
    • इसके अलावा, ये सहकारी समितियाँ नेस्ले और हटसन (Hatsun) जैसी बहुराष्ट्रीय निजी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करती हैं, जो अंततः किसानों की आय बढ़ाने में योगदान करता है।
    • इसके साथ ही निजी कंपनियाँ ग्रामीण आधारभूत अवसंरचना में भी निवेश करती हैं।
    • इन कारकों के संयुक्त प्रभाव से दुग्ध क्षेत्र चावल, गेहूँ और गन्ने की तुलना में दो से तीन गुना अधिक तेज़ी से विकास कर रहा है।
  • निर्यात पर प्रतिबंध: अनाजों के अधिशेष उत्पादन के साथ ही प्रत्येक वर्ष इन अनाजों का एक बड़ा भाग सड़कर बर्बाद हो जाता है। ऐसा विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मानदंडों के अधीन अधिरोपित प्रतिबंधों के कारण होता है, जहाँ शर्त लगाई गई है कि भारतीय खाद्य निगम के पास मौजूद अनाज भंडार (जो MSP के कारण भारी सब्सिडी युक्त होता है) का निर्यात नहीं किया जा सकता है। 
  • MSP योजना के कार्यान्वयन में त्रुटियाँ: वर्ष 2015 में भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन पर सुझाव देने हेतु गठित शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि MSP का केवल 6% ही किसानों को प्राप्त हो पाता है, जिसका प्रत्यक्ष अर्थ यह है कि देश के 94% किसान MSP के लाभ से वंचित रह जाते हैं। 

आगे की राह

  • कृषि-संबद्ध क्षेत्र में अधिक निवेश: यह महत्त्वपूर्ण है कि पशुपालन और मत्स्यपालन तथा फलों एवं सब्जियों के क्षेत्र में अधिक निवेश किया जाए जो अधिक पौष्टिकता प्रदान करते हैं।  
    • निवेश करने का सबसे बेहतर तरीका यही होगा कि निजी क्षेत्र को कुशल मूल्य शृंखला के निर्माण के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
  • FPO को सशक्त बनाना: लाभ उन्मुख बाज़ार से किसानों की रक्षा करना भी काफी महत्त्वपूर्ण है।  
    • ऐसे में ’किसान उत्पादक संगठनों’ (FPOs) को सशक्त बनाना आवश्यक है। इससे एक ओर तो किसानों की सौदेबाजी की शक्ति बढ़ेगी, दूसरी ओर एक उपयुक्त निवेश वातावरण का निर्माण होगा। 
  • किसानों के बीच जागरूकता में बढ़ोतरी की जानी चाहिये और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये सभी आवश्यक सूचनाओं का प्रसार न्यूनतम स्तर तक हो, जो कि किसानों की सौदेबाजी की शक्ति को सबल करेगा।  
  • किसानों को समयबद्ध भुगतान: किसानों के लिये आजीविका का मूल स्रोत खेती ही है और भुगतान में देरी से उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।  
    • भुगतान में देरी की समस्या को दूर करने की आवश्यकता है और तत्काल भुगतान की व्यवस्था  किया जाना महत्त्वपूर्ण है। कृषि आजीविका की संवहनीयता के लिये लाभकारी दरों पर शीघ्र भुगतान किया जाना बेहद आवश्यक है।
  • सिंचाई की सुविधा: देश की अधिकांश कृषि-जीडीपी वृद्धि अस्थिर है और काफी हद तक मानसून पर निर्भर करती है। यह बात उन राज्यों पर विशेष रूप से लागू होती है, जहाँ सिंचाई का स्तर अपेक्षाकृत निम्न है।  
    • उदाहरण के लिये लगभग 99 प्रतिशत सिंचाई कवर वाले पंजाब राज्य में मात्र 19 प्रतिशत सिंचाई कवर वाले महाराष्ट्र की तुलना में आय स्थिरता काफी अधिक है।

निष्कर्ष

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। ऐसे में उत्पादकता में वृद्धि करना, उच्च-मूल्य फसलों का विविधिकरण और लोगों को कृषि क्षेत्र से अन्य उच्च उत्पादकता क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित करना अधिक संवहनीय समाधान हैं। 

अभ्यास प्रश्न: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली किसानों के लिये लाभकारी एवं अपेक्षाकृत स्थिर मूल्य वातावरण सुनिश्चित करती है और किसानों की आय को दोगुना करने में मददगार हो सकती है। आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow