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एडिटोरियल

  • 25 Sep, 2020
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

श्रम संहिता और श्रमिकों के अधिकार

यह एडिटोरियल द लाइवमिंट में प्रकाशित “Rajya Sabha approves three codes subsuming 25 central labour laws” लेख पर आधारित है। यह हाल ही में संसद द्वारा पारित की गईं तीन श्रम संहिताओं का मूल्यांकन करता है।

संदर्भ

श्रम संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है। हाल ही में संसद ने औद्योगिक संबंधों पर, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर तीन श्रम संहिताएँ पारित की हैं जो देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और श्रमिकों के लाभों से समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिये प्रस्तावित हैं। ये श्रम संहिता भारत में श्रम संबंधों पर एक परिवर्तनकारी प्रभाव डाल सकती हैं। श्रम संहिता अधिनियम (Code on Wages Act 2019) के साथ ये श्रम पर केंद्रीय और राज्य कानूनों की व्यापकता को समेट कर व्यवसाय के संचालन को आसान बना सकते हैं। श्रम संहिता को द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) की सिफारिशों पर अपनाया गया था, जिसमें उद्योगों, व्यवसायों और क्षेत्रों में 100 राज्य कानूनों एवं 40 केंद्रीय कानूनों को समेकित करने का सुझाव दिया गया था।

मौजूदा श्रम संहिता में समाहित कानून


  • सामाजिक सुरक्षा संहिता सामाजिक सुरक्षा पर नौ कानूनों की जगह लेती है जिसमें कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 शामिल हैं।
  • औद्योगिक संबंध संहिता औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1974, व्यापार संघ अधिनियम, 1926, और औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946।
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 13 श्रम कानूनों की जगह लेती है।

तीन श्रम संहिताओं में मुख्य प्रस्ताव

औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020

  • इस संहिता के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों में कंपनियों में काम करने वाले श्रमिकों को काम पर रखने और उनकी छंटनी करने को आसान बनाना है।
    • औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों के लिये 300 से अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाली कंपनियों को आचरण के नियमों की आवश्यकता नहीं होगी। वर्तमान में 100 श्रमिकों तक काम करने वाले प्रतिष्ठानों के लिये यह अनिवार्य है।
  • विधेयक के अनुसार, औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत श्रमिकों को कम-से-कम 14 दिन पहले नोटिस देना होगा यदि वे हड़ताल पर जाना चाहते हैं। 
    • वर्तमान में केवल सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में श्रमिकों को हड़ताल करने के लिये नोटिस देने की आवश्यकता होती है।
  • इसके अलावा 20 या अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाले प्रत्येक औद्योगिक प्रतिष्ठान में श्रमिकों की शिकायतों से उत्पन्न होने वाले विवादों के समाधान के लिये एक या एक से अधिक शिकायत निवारण समितियाँ होंगी।
  • संहिता में सेवानिवृत्त श्रमिकों की मदद करने के लिये एक कौशल कोष की स्थापना का प्रस्ताव है।

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति सहिंता विधेयक, 2020

  • यह नियोक्ताओं और श्रमिकों के कर्त्तव्यों को पूरा करता है और विभिन्न क्षेत्रों के लिये सुरक्षा मानकों की परिकल्पना करता है, जिसमें श्रमिकों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, काम के घंटे, छुट्टियाँ आदि शामिल हैं।
  • संहिता संविदाकर्मियों के अधिकार को भी मान्यता देती है।
  • संहिता नियोक्ताओं को किसी भी क्षेत्र में आवश्यकता के आधार पर और बिना किसी प्रतिबंध के निश्चित अवधि के आधार पर श्रमिकों को नियुक्त करने की सुविधा प्रदान करती है।
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह सामाजिक सुरक्षा जैसे वैधानिक लाभों के लिये और स्थायी कर्मचारियों को उनके स्थायी समकक्षों के बराबर वेतन देने का भी प्रावधान करता है।
  • यह भी अनिवार्य है कि किसी भी श्रमिक को किसी भी प्रतिष्ठान में प्रतिदिन 8 घंटे या सप्ताह में 6 दिन से अधिक काम करने की अनुमति नहीं होगी।
    • ओवरटाइम के मामले में किसी कर्मचारी को उसके वेतन का दोगुना भुगतान किया जाना चाहिये। यह उन छोटे प्रतिष्ठानों पर भी लागू होगा जिनके पास 10 श्रमिक हैं।
  • यह संहिता लैंगिक समानता भी लाता है और महिला कर्मचारियों को सशक्त बनाता है। महिलाएँ सभी प्रकार के कार्यों के लिये सभी प्रतिष्ठानों में नियुक्त होने की हकदार होंगी और उनकी सहमति से सुरक्षा एवं अवकाश तथा काम के घंटे से संबंधित स्थितियों के अधीन सुबह 6 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद काम कर सकती हैं।
    • पहली बार श्रम संहिता भी ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को मान्यता देती है। यह औद्योगिक प्रतिष्ठानों को पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर कर्मचारियों के लिये वॉशरूम, स्नान स्थल और लॉकर रूम प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020

  • यह नौ सामाजिक सुरक्षा कानूनों की जगह लेगा जिनमें मातृत्व लाभ अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, कर्मचारी पेंशन योजना, कर्मचारी मुआवजा अधिनियम अन्य शामिल हैं।
  • संहिता असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों श्रमिकों जैसे कि प्रवासी श्रमिकों, गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा कवरेज को सार्वभौमिक बनाती है।
  • पहली बार सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों को कृषि श्रमिकों के लिये भी बढ़ाया जाएगा।
  • संहिता सभी प्रकार के कर्मचारियों के लिये ग्रेच्युटी भुगतान प्राप्त करने की समय सीमा को पांच वर्ष से एक वर्ष की निरंतर सेवा तक कम करता है, जिसमें निश्चित अवधि के कर्मचारी, अनुबंध श्रम, दैनिक और मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं।

श्रम संहिताओं के लाभ

  • जटिल कानूनों का समेकन और सरलीकरण: ये तीन संहिता 25 केंद्रीय श्रम कानूनों को कम करके श्रम कानूनों को सरल बनाती हैं।
    • यह उद्योग और रोज़गार को बढ़ावा देगा और परिभाषाओं की बहुलता और व्यवसायों के लिये प्राधिकरण की बहुलता को कम करेगा।
  • एकल लाइसेंसिंग तंत्र: संहिता एकल लाइसेंसिंग तंत्र प्रदान करती हैं। यह लाइसेंसिंग तंत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार की शुरुआत करके उद्योगों को प्रेरित करेगा। वर्तमान में उद्योगों को विभिन्न कानूनों के अंतर्गत अपने लाइसेंस के लिये आवेदन करना होता है।
  • आसान विवाद समाधान: संहिता औद्योगिक विवादों से निपटने वाले पुरातन कानूनों को भी सरल बनाती हैं और उन विवाद प्रक्रियाओं को संशोधित करती हैं जो विवादों के शीघ्र समाधान के लिये मार्ग प्रशस्त करेंगी।
  • व्यापार करने में आसानी: उद्योग और कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस तरह के सुधार से निवेश को बढ़ावा मिलेगा और व्यापार करने में आसानी होगी। यह जटिलता को कम कर देता है और आंतरिक विरोधाभास बढ़ाता है तथा सुरक्षा/कार्य स्थितियों पर नियमों का आधुनिकीकरण करता है।
  • अन्य लाभ: तीन संहिता निश्चित अवधि के रोज़गार को बढ़ावा देंगी, ट्रेड यूनियनों के प्रभाव को कम करेंगी और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करेंगे।

श्रम संहिता से संबंधित चिंताएँ

  • कर्मचारियों के हितों के विरुद्ध: संहिता औद्योगिक प्रतिष्ठानों को अपने कर्मचारियों को अपनी इच्छा से काम पर रखने और उनकी छंटनी की स्वतंत्रता प्रदान करती है।
    • यह कदम कंपनियों को श्रमिकों के लिये मनमाने ढंग से सेवा की स्थितियों को पेश करने में सक्षम कर सकता है।
  • राज्यों को छूट का अधिकार: राज्यों को श्रम अधिकारों के उल्लंघन में कानूनी छूट देने के लिये एक स्वतंत्र अधिकार दिया गया है। हालाँकि केंद्रीय श्रम मंत्री ने कहा है कि श्रम मुद्दा संविधान की समवर्ती सूची में है और इसलिये राज्यों को उनकी इच्छानुसार बदलाव करने की छूट दी गई है।
  • औद्योगिक शांति प्रभावित: औद्योगिक संबंध संहिता का प्रस्ताव है कि कारखानों में श्रमिकों को कम-से-कम 14 दिन पहले कर्मचारियों को नोटिस देना होगा यदि वे हड़ताल पर जाना चाहते हैं।
    • हालाँकि इससे पहले श्रम पर स्थायी समिति ने सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं जैसे पानी, बिजली, प्राकृतिक गैस, टेलीफोन और अन्य आवश्यक सेवाओं से परे हड़ताल के लिये आवश्यक सूचना अवधि के विस्तार के विरुद्ध सिफारिश की थी।
    • इसके अलावा भारतीय मजदूर संघ ने भी संहिता का विरोध किया और इसे ट्रेड यूनियनों की भूमिका को कम करने के लिये एक स्पष्ट प्रयास बताया है।

निष्कर्ष

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यह देखता है कि गैर-कृषि क्षेत्र में 71% नियमित वेतन/वेतनभोगी श्रमिकों के पास लिखित अनुबंध नहीं था और 50% सामाजिक सुरक्षा कवर के बिना थे। अनुपालन को सरल बनाने के नए कानूनों से कार्यबल औपचारिकता के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • नई श्रम संहिता बढ़ते कार्यबल को पूरा करने और उनकी बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये अच्छी गुणवत्ता वाले रोज़गार पैदा करने की गति बढ़ाने तथा कृषि से श्रम के प्रवास को दूर करने में मदद करेगी। इस तरह भारत पूरी तरह से अपने निहित श्रम और कौशल लागत को भुनाने में सक्षम हो सकता है और विशेष रूप से COVID-19 के बाद तेज़ी से आर्थिक सुधार कर सकता है।

In-a-Nutshell

मुख्य परीक्षा  प्रश्न : हाल ही में पारित श्रम संहिताएँ भारत में श्रम सशक्तीकरण पर कितना परिवर्तनकारी प्रभाव डाल सकती हैं, चर्चा करें। साथ ही संहिताओं से जुड़ी चुनौतियों पर भी चर्चा करें।


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