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  • 22 Dec, 2018
  • 10 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंकों की हालत सुधारने के लिये सरकार ने उठाया बड़ा कदम

चर्चा में क्यों?


सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये बैंक पुनर्पूंजीकरण परिव्यय (Bank Recapitalisation Outlay) को चालू वित्त वर्ष में 65 हज़ार करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1,06,000 करोड़ रुपए करने का प्रस्ताव संसद में रखा। देश के विकास में सरकारी क्षेत्र के बैंकों की भूमिका के मद्देनज़र बैंकिंग सेक्टर को मज़बूत बनाने के लिये और अधिक पूंजी उपलब्ध कराई जाएगी। इससे Prompt Corrective Action (PCA) से बाहर निकलने के लिये बेहतर प्रदर्शन करने वाले बैंकों को भी पर्याप्त पूंजी दी जाएगी।

Prompt Corrective Action (PCA) क्या है?

RBI


बैंकों को लाइसेंस देने का काम रिज़र्व बैंक का है। रिज़र्व बैंक ही नियम बनाता है और बैंक ठीक से काम करें इसकी निगरानी करता है। बैंक कारोबार करते हुए कई बार वित्तीय संकट में फँस जाते हैं। बैंकों को इस संकट से उबारने के लिये रिज़र्व बैंक समय-समय पर गाइडलाइंस जारी करता है और फ्रेमवर्क बनाता है। प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (Prompt Corrective Action-PCA) इसी तरह का एक फ्रेमवर्क है, जो किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पैमाना तय करता है। यह फ्रेमवर्क समय-समय पर हुए बदलावों के साथ दिसंबर, 2002 से चल रहा है। यह सभी व्यावसायिक बैंकों सहित छोटे बैंकों तथा भारत में शाखा खोलने वाले विदेशी बैंकों पर भी लागू होता है।

रिज़र्व बैंक को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने के लिये पर्याप्त पूंजी नहीं है, दिये गए उधार से न आय हो रही है और न ही मुनाफा हो रहा है, तो वह उस बैंक को Prompt Corrective Action फ्रेमवर्क में डाल देता है, ताकि उसकी वित्तीय हालत सुधारने के लिये तत्काल कुछ किया जा सके। किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पता लगाने के लिये रिज़र्व बैंक ने कुछ पैरामीटर्स तय किये हैं, जिनमें Capital to Risk Asset Ratio (CRAR), Net NPA और Return on Assets प्रमुख हैं।

11 सरकारी बैंक हैं रिज़र्व बैंक की निगरानी में


जैसा हमने बताया कि रिज़र्व बैंक ने बैंकों की वित्तीय सेहत को बनाए रखने के लिये Prompt Corrective Action फ्रेमवर्क बनाया हुआ है। इसका उद्देश्य बैंकों को कुछ जोखिमपूर्ण गतिविधियों को छोड़ने, परिचालन दक्षता में सुधार लाने और उन्हें मज़बूत करने के लिये पूंजी संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रोत्साहित करना है। इस फ्रेमवर्क का उद्देश्य आम जनता के लिये बैंकों के सामान्य कामकाज को बाधित करना कतई नहीं है। रिज़र्व बैंक ने देना बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, यूको बैंक, आईडीबीआई बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, इंडियन ओवरसीज़ बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को लिये Prompt Corrective Action फ्रेमवर्क के तहत रखा है।

क्यों दी जा रही है और पूंजी?

  • पूंजी से जुड़े नियामकीय मानकों को पूरा करने के लिये।
  • बेहतर प्रदर्शन करने वाले बैंकों को पूंजी मुहैया करना, ताकि वे 9 प्रतिशत के पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) को बनाए रख सकें।
  • इसके अलावा, 1.875 प्रतिशत के पूंजी संरक्षण बफर और 6 प्रतिशत की निवल (Net) NPA से जुड़ी कुछ सीमाओं के उल्लंघन की स्थिति में आ चुके निजी बैंकों को सुविधा देना, ताकि वे उल्लंघन से बच सकें।
  • नियामकीय एवं विकास पूंजी मुहैया कराकर विलय कर रहे बैंकों को सुदृढ़ बनाना।

4R की अवधारणा


सरकार की 4R अवधारणा के तहत बैंकिंग प्रणाली में व्यापक बदलाव के साथ व्यवस्था को दुरुस्त करने के बाद बैंकों को और अधिक पूंजी उपलब्ध कराकर वे वित्तीय दृष्टि से वैश्विक मानकों की तुलना में बेहतर स्थिति में हो जाएंगे। ये 4R इस प्रकार हैं...

  1. Recognition (पहचान करना)
  2. Resolution (समाधान)
  3. Recapitalisation (पुनर्पूंजीकरण)
  4. Reform (सुधार)

कितने असरकारी रहे 4R ?

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल NPA मार्च, 2018 में उच्च स्तर पर पहुँचने के बाद घटने लगा है। चालू वित्त वर्ष की प्रथम छमाही के दौरान इसमें 23,860 करोड़ रुपए की कमी दर्ज़ की गई है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के 31 से 90 दिन तक गैर-अदायगी वाले गैर-एनपीए खातों में 5 लगातार तिमाहियों के दौरान 61 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
  • यह जून, 2017 के 2.25 लाख करोड़ रुपए से घटकर सितंबर, 2018 में 0.87 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर आ गया है। इसकी वज़ह से जोखिम वाले ऋणों में काफी कमी आई है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रोविज़न कवरेज अनुपात मार्च, 2015 के 46.04 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर, 2018 में 66.85 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है। इससे नुकसान को खपाने संबंधी बैंकों की क्षमता में बढ़ोतरी हुई है।
  • चालू वित्त वर्ष की प्रथम छमाही में पीएसबी ने 60,726 करोड़ रुपए की रिकॉर्ड रिकवरी की है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में हुई रिकवरी राशि की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।

‘इंद्रधनुष 2.0’ योजना और बासेल-III नियम

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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये सरकार ने 2015 में इंद्रधनुष 2.0 योजना शुरू की थी। यह योजना सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण का एक समग्र कार्यक्रम है, जिससे बैंकों को बासेल-III नियमों के तहत अपनी पूंजीगत स्थिति बनाए रखने में मदद मिलती है।

केंद्र सरकार का मानना है कि रिज़र्व बैंक को बैंकों में पूंजी पर्याप्तता के मौजूदा कड़े दिशा-निर्देशों के बजाय उन्हें बासेल-III से जुड़े पूंजी पर्याप्तता नियमों के अनुरूप रखना चाहिये। वर्तमान में रिज़र्व बैंक के कड़े नियमों के चलते बैंकों को पूंजी पर्याप्तता के लिये अधिक पूंजी अलग रखनी पड़ती है।

बासेल समिति की बैंकिंग निरीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, रिज़र्व बैंक ने बैंकों के लिये मूल पूंजी आवश्यकता को बासेल-III नियमों की तुलना में एक प्रतिशत अधिक रखा हुआ है। भारतीय बैंकों को साझा इक्विटी टियर-1 को 5.5 प्रतिशत रखना होता है, जबकि बासेल-III नियमों के तहत यह 4.5 प्रतिशत होनी चाहिये। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊँची पूंजी पर्याप्तता नियमों के कारण बैंकों को अतिरिक्त पूंजी की ज़रूरत होती है, जिससे उनकी कर्ज़ देने और आय बढ़ाने की क्षमता प्रभावित होती है।

सरकार ने 2018-19 में सरकारी बैंकों में 65 हज़ार करोड़ रुपए की पूंजी डालने की घोषणा की थी। इसमें से 23 हज़ार करोड़ रुपए की पूंजी पहले ही डाली जा चुकी है और 42 हज़ार करोड़ रुपए शेष बचे हैं। अब सरकार ने उक्त राशि के अलावा 41 हज़ार करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी डाले जाने के संबंध में संसद की मंज़ूरी मांगी है। इस प्रकार चालू वित्त वर्ष के बचे हुए महीनों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में डाली जाने वाली पूंजी बढ़कर 83 हज़ार करोड़ रुपए हो जाएगी।

वित्त मंत्री का मानना है, चूँकि बैंकों में पूंजीकरण बॉण्ड के तौर पर किया जाएगा, इसलिये इससे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार को उम्मीद है कि इस अतिरिक्त पूंजी से बैंकों की पूंजी जरूरतों को पूरा करने से 4 से 5 बैंक Prompt Corrective Action फ्रेमवर्क से बाहर आ जाएंगे।


स्रोत: Indian Express, PIB


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