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एडिटोरियल

  • 07 Dec, 2021
  • 12 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-रूस संबंध: संभावनाएँ और चुनौतियाँ

यह एडिटोरियल 06/12/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Resetting Putin’s Red Carpet” लेख पर आधारित है। इसमें सुस्त पड़े भारत-रूस आर्थिक संबंधों को पुनर्जीवित करने के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में नई दिल्ली में 21वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन  किया गया, जिसके अंतर्गत दोनों देशों के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों की पहली ‘2+2’ मंत्रिस्तरीय वार्ता भी संपन्न हुई। 

कोविड महामारी के उभार के बाद से किसी भी देश के साथ रूसी राष्ट्रपति की यह पहली द्विपक्षीय बैठक थी, जो यह दर्शाती है कि दोनों देशों के बीच के दीर्घकालिक संबंध अभी भी हमेशा की तरह सुदृढ़ बने हुए हैं।

यद्यपि रूस और पश्चिमी देशों के बीच जारी संघर्ष और भारत एवं रूस के बीच एक व्यापक रूप से फलते-फूलते वाणिज्यिक संबंधों का अभाव दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय साझेदारी को पुनर्जीवित करने की राह की दो बड़ी बाधाएँ बनी हुई हैं।

भारत और रूस

  • राजनयिक संबंध: भारत और रूस, ब्रिक्स (BRICS) एवं शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सहित कई मंचों पर एक साथ मौजूद हैं। 
    • भारत ने ’हिंद महासागर रिम एसोसिएशन’ (Indian Ocean Rim Association- IORA) में रूस को एक संवाद भागीदार के रूप में शामिल कराने में मदद की है, जो रूस को हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख स्थिति प्रदान कर सकता है। 
    • रूस ने मास्को में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन के अवसर पर भारतीय और चीनी विदेश मंत्रियों की आपसी बैठक एवं वार्ता को सुगम बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, ताकि लद्दाख में जारी गतिरोध को दूर किया जा सके।    
    • इसके साथ ही, भारत की अध्यक्षता में आयोजित संयुक्त राष्ट्र समुद्री सुरक्षा सम्मेलन में रूस ने भारत के साथ अपनी निकटता का मुखर प्रदर्शन किया।   
  • भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन: यह भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी में सर्वोच्च संस्थागत संवाद तंत्र है।    
    • नवीनतम शिखर सम्मेलन एक नए ‘टू-प्लस-टू’ तंत्र का संस्थागत निर्माण है, जो दोनों पक्षों के विदेश और रक्षा मंत्रियों को एक मंच पर लाता है।
    • दोनों देशों के बीच एक नए 10-वर्षीय रक्षा समझौते के संपन्न होने को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं।   
      • अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ रूस अब चौथा राष्ट्र बन गया है जिसके साथ भारत ने ऐसा एक संयुक्त फ्रेमवर्क तैयार किया है।
  • रक्षा क्षेत्र में हालिया सहयोग: वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बलों के 65% हथियार/उपकरण रूसी मूल के हैं और भारत इनके कल-पुर्जों के लिये रूस पर निर्भर है।    
    • अमेरिका के कड़े विरोध के बावजूद भारत ने रूस से S-400 ट्रायम्फ मिसाइल की खरीद की है।   
    • 203 असॉल्ट राइफल के निर्माण के लिये रूस के साथ 5,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के एक सौदे पर भी वार्ता चल रही है।
    • फिलहाल भारत S-400 मिसाइलों की खरीद के लिये अमेरिकी प्रतिबंधों से बच गया है, लेकन रूस के साथ भारत के गहरे होते रक्षा संबंध संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ चीन को भी असहज और चिंतित करते रहेंगे। 
  • संबंधों का आर्थिक पक्ष: भारत और रूस को आर्थिक क्षेत्र में अधिकाधिक स्वतंत्रता प्राप्त है, लेकिन वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने में उन्होंने भारी विफलता ही पाई है। 
    • भारत-रूस का वार्षिक व्यापार मात्र 10 बिलियन डॉलर का है जबकि चीन के साथ रूस का वार्षिक व्यापार 100 बिलियन डॉलर से कुछ मूल्य का ही है।  
    • दूसरी ओर, भारत का अमेरिका और चीन के साथ माल का व्यापार 100 बिलियन डॉलर के स्तर पर है।
  • रूस के लिये भारत का महत्त्व: अमेरिका, यूरोप और जापान के साथ लगातार संघर्ष ने मास्को को बीजिंग के सबसे निकट ला दिया है, लेकिन रूस, चीन जैसे पड़ोसी पर पूरी तरह निर्भर रहने के खतरों से भी भलीभाँति परिचित है।  
    • जबकि पश्चिम के साथ रूस के संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिये अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है, भारत के साथ पारंपरिक साझेदारी को बनाए रखना मास्को के लिये राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।  
  • भारत-रूस संबंध में विद्यमान समस्याएँ: 
    • रूस एवं चीन के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी और हिंद-प्रशांत फ्रेमवर्क के प्रति उनका साझा विरोध भारत को असहज करता है।
    • राजनीतिक तनाव के बावजूद भारत का चीन के साथ व्यापार लगातार बढ़ रहा है, जबकि रूस के साथ उसके अच्छे राजनीतिक संबंधों के बावजूद दोनों देशों के वाणिज्यिक संबंध गतिहीन बने हुए हैं।  
      • रूस का व्यापार यूरोप और चीन के प्रति आकर्षित है, वहीं दूसरी ओर भारतीय कॉर्पोरेट अमेरिका और चीन पर केंद्रित हैं।
    • रूस ‘क्वाड’ (Quad) को 'एशियाई नाटो' (Asian NATO) की तरह देखता है और मानता है कि एशिया में ऐसे सैन्य गठबंधन के प्रतिकूल परिणाम होंगे।    

आगे की राह

  • भारत के अच्छे मित्रों की आपसी मित्रता:यदि वाशिंगटन और मॉस्को के बीच के संबंधों में सुधार होता है, तो वृहत शक्ति समीकरण और क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण के प्रति व्यापक रूप से भिन्न दृष्टिकोणों से उत्पन्न संरचनात्मक बाधाओं को कम किया जा सकता है।  
    • दोनों देशों के बीच कम संघर्षपूर्ण संबंध भारत के लिये बहुत बड़ी राहत होगी।
    • इसके साथ ही, शक्ति के लिये अमेरिका-चीन के बीच होड़ या चीन के साथ रूस के गहरे होते संबंध भारत के लिये अधिक मायने नहीं रखते अगर चीन के साथ उसके संबंध अधिक शांतिपूर्ण और स्थिर होते।
  • रूसी सुदूर-पूर्व के साथ संपर्क: रणनीतिक साझेदारी में संपर्क (Connectivity) एक अन्य महत्त्वपूर्ण चालक है, जो अंतर्निहित वाणिज्यिक लाभ और समग्र आर्थिक विकास सुनिश्चित करता है।  
    • मल्टीमॉडल अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के समानांतर प्रस्तावित चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मैरीटाइम कॉरिडोर (CVMC) से दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक मंशा को बल मिलेगा, जहाँ उसकी नौसैनिक उपस्थिति रूसी सुदूर-पूर्व (Russian Far East) से उसकी ऊर्जा और व्यापार शिपमेंट की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।   
    • साइबेरिया, आर्कटिक और सुदूर पूर्व के दूर-दराज़ के क्षेत्र दुनिया में हाइड्रोकार्बन, धातुकर्म कोक, दुर्लभ-मृदा धातु और कीमती धातुओं के सबसे बड़े भंडार में से एक हैं। 
      • भारत और रूस सुदूर पूर्व, आर्कटिक और साइबेरिया में अन्वेषण हेतु संयुक्त निवेश को बढ़ावा देने के लिये जापान और कोरिया जैसे देशों के साथ कार्य कर सकते हैं। 
  • ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग: जलवायु परिवर्तन में निहित व्यापक अज्ञात तत्वों को देखते हुए भारत के लिये उपयुक्त होगा कि वह जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की ओर अपने ऊर्जा ट्रांजीशन में तेज़ गति से आगे बढ़े। 
    • ऊर्जा बाज़ार के प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों में से एक रूस, भारत के इस तरह के ट्रांजीशन के लिये एक अनिवार्य भागीदार के रूप में उभर सकता है। 
    • सौभाग्य से, दोनों देश ऊर्जा क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग का व्यापक रिकॉर्ड रखते हैं, लेकिन निस्संदेह ही सहयोग के विस्तार के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
  • संबंधों में सुधार के लिये बहुपक्षीय संस्थानों का लाभ उठाना: रूस, चीन और भारत के बीच पारस्परिक रूप से लाभकारी त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना भारत और चीन के बीच अविश्वास एवं संदेह को कम करने में भी योगदान दे सकता है। 
    • इस संदर्भ में, SCO और RIC त्रिपक्षीय मंच का लाभ उठाया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष

हालाँकि, भारत और रूस एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वियों के साथ संलग्नता के संबंध में कुछ अधिक नहीं कर सकते, लेकिन दिल्ली और मॉस्को को अपने वाणिज्यिक संबंधों की बदतर स्थिति पर संतुष्ट नहीं बने रहना चाहिये।

अपने संबंधों के पुनरुद्धार की शुरुआत के लिये भारत और रूस को व्यापक आर्थिक सहयोग के लिये एक स्पष्ट मार्ग के निर्माण और हिंद-प्रशांत पर एक-दूसरे की अनिवार्यताओं की बेहतर समझ पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत-रूस संबंधों में गिरावट के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारकों और उनके दीर्घकालिक संबंधों के पुनरुद्धार के लिये अपनाए जा सकने वाले दृष्टिकोण की चर्चा कीजिये।


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