दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 21 Sep, 2019
  • 55 min read
कृषि

राष्‍ट्रीय कृषि सम्‍मेलन – रबी अभियान 2019

चर्चा में क्यों?

20 सितंबर, 2019 को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने रबी अभियान-2019 के लिये राष्‍ट्रीय कृषि सम्‍मेलन की शुरुआत की।

सम्मेलन के प्रमुख बिंदु

  • इस सम्मेलन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्‍याण राज्‍य मंत्री ने खाद्यान्‍नों के अभूतपूर्व उत्‍पादन (285 मिलियन टन) के बारे में चर्चा की और केंद्र प्रायोजित योजनाओं को कारगर रूप से लागू करने के लिये राज्‍य सरकारों की सराहना की।
  • राज्य सरकारों के इस सहयोग से ही चावल (116 मिलियन टन), गेहूं (102.5 मिलियन टन), दलहनों और तिलहनों का सर्वाधिक उत्‍पादन संभव हुआ है।
  • हालाँकि तिलहनों की कमी एक चिंताजनक बिंदु है, खाद्य तेलों की उत्‍पादन क्षमता को बढ़ाने और आयात में कमी लाने के लिये एक अलग अभियान शुरू करने की आवश्यकता है।
  • ज़िला स्‍तर पर किसान संगठनों से परामर्श के बाद उर्वरकों की मांग की जानी चाहिये। साथ ही राज्‍य के कृषि विभागों को समय रहते केंद्र सरकार को उर्वरक की अपनी मांगों से अवगत कराना चाहिये, जिससे फसलों के महत्त्वपूर्ण चरणों में किसानों के लिये उर्वरकों की उपलब्‍धता को सुनिश्चित किया जा सके।
  • कृषि विभाग ने राज्‍यों के कृषि विभागों की सक्रिय भागीदारी से रबी फसलों, दलहनों और तिलहनों के लिये बीज के मिनी किट वितरित करने का निर्णय लिया है।
  • जहाँ तक किसान क्रेडिट कार्ड का सरोकार है, बड़ी संख्‍या में किसानों को इसमें शामिल करने के लिये पंजीकरण शुल्‍क में छूट देने, किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने के लिए न्‍यूनतम समय, ऋणों की संख्‍या बढ़ाने जैसे अनेक बदलाव किये गए हैं।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए राज्‍यों के कृषि विभागों से विवरण प्राप्‍त किये गए है और तदनुसार योजना की समीक्षा की जाएगी।
  • जल्‍द ही रबी तिलहनों और दलहनों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य के बारे में निर्णय लिया जाएगा।

तिलहन और दलहन के विषय में

  • इसके अतिरिक्त तिलहन और दलहन की 45 जैव बायोफोर्टिफिकेशन किस्में जारी की गई हैं। इनमें प्रोटीन और पोषक तत्त्वों आदि की काफी मात्रा मौजूद है।

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • इसके लिये आवश्यक है कि किसानों को सर्वाधिक लाभ मुहैया कराने के लिये खेती को कृषि प्रयोगशालाओं से सीधे जोड़ा जाए। 
  • उर्वरकों की ज़रूरतों की जानकारी ज़िला स्तर पर मुहैया कराई जाए तथा इसे बाद में संबंधित राज्य सरकारों के कृषि विभाग द्वारा आगे केंद्र सरकार को प्रेषित किया जाए।
  • ज़िला स्तर पर यूरिया जैसे उर्वरकों का अतिरिक्त भंडार बनाने की संभावनाएँ तलाशी जानी चाहिये।
  • राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ चर्चा सत्र के दौरान कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग की ओर से क्रेडिट, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य संचालन, किसान कल्याण और उर्वरक जैसे विषयों पर प्रस्तुतियाँ दी गईं।

स्रोत: pib


भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI द्वारा सरकार को धन का हस्तांतरण

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) और सरकार के मध्य आरक्षित निधि के बँटवारे का विवाद बिमल जालान समिति (Bima।Jalan Committee) की रिपोर्ट के साथ ही सुलझ गया है। 

प्रमुख बिंदु 

  • समिति ने वित्तीय स्थिरता (Financia Stability) का संकट उत्पन्न होने की दशा में इससे निपटने हेतु जोखिम प्रावधान के तहत आवश्यक आरक्षित निधि की मात्रा को स्पष्ट किया है। 
  • RBI बोर्ड ने भी इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपए हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है।

RBI एवं सरकार

  • हालाँकि RBI पूरी तरह से सरकार से संबंधित है परंतु देश में वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करने और डॉलर की परिवर्तनशीलता जैसे बाज़ार के जोखिमों से निपटने के लिये इसकी बैलेंस शीट (Balance Sheet) को सुरक्षित स्तर पर बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।

समिति द्वारा संज्ञान में लिये गये प्रमुख बिंदु

  • समिति ने वित्तीय सलाह में क्रॉस-कंट्री प्रैक्टिस (Cross-country Practices), सांविधिक (statutory) प्रावधानों एवं इसकी सार्वजनिक नीतियों और कार्यात्मक वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव आदि बिंदुओं पर RBI की भूमिका को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की है। 
  • इन कारकों के आधार पर समिति ने आर्थिक संकट की स्थिति में वित्तीय प्रणाली का समर्थन करने के लिये आवश्यक आरक्षित निधि की मात्रा पर निर्णय लिया। इसने निष्कर्ष निकाला कि वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये विकसित देशों की तुलना में प्रावधान अधिक कठोर होने चाहिये।
  • समिति ने इसके लिये भारत की कम रेटिंग वाली अर्थव्यवस्था और भारतीय रुपए का डॉलर की तरह आरक्षित मुद्रा का दर्जा न होने को विशेष आधार माना है। 

समिति क्या कहती है 

  • इसने एक संशोधित आर्थिक पूंजी ढाँचे (Capita Framework) का सुझाव दिया जो 'रिवैल्यूएशन रिज़र्व' (Revaluation Reserves) और 'वास्तविक इक्विटी' (Realised Equity) के बीच RBI की आर्थिक पूंजी को पृथक करता है। रिवैल्यूएशन रिज़र्व को कैपिटल रिज़र्व के रूप में माना जाता है क्योंकि इसे लाभांश के रूप में वितरित नहींं किया जा सकता है। यह बैलेंस शीट में किसी परिसंपति से संबद्ध होता है। 
  • 'रिवैल्यूएशन रिज़र्व’ (Revaluation Reserves) बाज़ार जोखिमों के विरुद्ध एक बफर रिज़र्व है जिसका हस्तांतरण सरकार को नहींं किया जा सकता है। 
  • समिति ने बाज़ार के जोखिम को मापने के लिये अपेक्षित कमी (Expected Shortfall-ES) पद्धति का उपयोग किया। इस पद्धति में बाज़ार जोखिमो का मूल्यांकन किया जाता है। 
  • संशोधित ढाँचे के अनुसार, आर्थिक पूंजी को बैलेंस शीट के 24.5% से 20% के स्तर पर होना चाहिये। समिति ने बैलेंस शीट के 6.5% से 5.5% के बीच इक्विटी सीमा की भी सिफारिश की है।

RBI पूंजी हस्तांतरण (Capita Transfer) से सरकार को लाभ

  • RBI ने वर्ष 2018-19 के दौरान अर्जित 1,23,414 करोड़ रुपए के पूरे अधिशेष को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। यह फरवरी 2019 में अंतरिम लाभांश के रूप में 28,000 करोड़ रुपए पहले ही स्थानांतरित कर चुका है और शेष राशि चालू वित्त वर्ष में हस्तांतरित की जाएगी। 
  • वर्ष 2018-2019 में केंद्र का वास्तविक शुद्ध कर राजस्व संग्रह 15.9 लाख करोड़ रुपए था। वर्ष 2019-2020 में 19.78 लाख करोड़ रुपए के राजस्व संग्रह लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये शुद्ध कर राजस्व में लगभग 25% की वृद्धि और सकल कर राजस्व में 26.5% की वृद्धि को प्राप्त करना होगा।
  • केंद्र सरकार के कर राजस्व में लगभग 70,000 करोड़ रुपए की अपेक्षित कमी होने की संभावना है, जिसकी प्रतिपूर्ति रिज़र्व बैंक द्वारा हस्तांतरित राशि से की जा सकेगी। 

राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना

  • आर्थिक मंदी (Eeconomy Slowing Down) और वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) से कर संग्रह न हो पाने के कारण राजकोषीय घाटे में वृद्धि हो सकती है। 
  • रिज़र्व बैंक द्वारा हस्तांतरित राशि से सरकार सामाजिक क्षेत्र और गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में धन आवंटन मे कटौती किये बिना राजकोषीय घाटे को कम करने का लक्ष्य प्राप्त कर सकेगी।

आगे की राह 

  • यदि कर राजस्व वृद्धि होने से सरकार अतिरिक्त धन का उपयोग सार्वजनिक उपक्रमों के ऋण को चुकाने के लिये कर सकती है ताकि अगले वित्तीय वर्ष के राजस्व घाटे को कम करने में सहायता किया जा सके। 
  • हस्तांतरित धन का उपयोग बुनियादी ढाँचे जैसे पूंजीगत व्यय पर खर्च करने के लिये भी किया जा सकता है। 

निष्कर्ष

RBI बोर्ड के निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिये और आर्थिक मंदी (Economic Slowdown) से निपटने के लिये तथा राजकोषीय लक्ष्यों (Fisca।Targets) के अनुरूप सरकार की मदद करनी चाहिये। सरकार को भी इस हस्तांतरित निधि का विवेकपूर्ण उपयोग में करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


भारत-विश्व

भारत-मंगोलिया संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मंगोलियाई राष्ट्रपति कोट्टमगिगी/खल्टमागीन बत्तुलगा/खाल्‍तमागिन बटुल्‍गा (Khaltmaagii Battulga) ने भारत का दौरा किया। यात्रा के दौरान दोनों देशों ने न केवल रणनीतिक साझेदारी के विस्तार पर बल दिया, बल्कि आध्यात्मिक भाईचारे में एक रणनीतिक संबंध के रूपांतरण पर भी विशेष ज़ोर दिया।

प्रमुख बिंदु

  • दोनों देशों ने अंतरिक्ष सहयोग और आपदा प्रबंधन पर समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किये हैं जो भारत-मंगोलिया रणनीतिक साझेदारी को एक नया आयाम प्रदान करेगा।
  • दोनों पक्षों ने मंगोलिया में स्थापित होने वाले साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण केंद्र के निर्माण के लिये परियोजना का भी जायजा लिया।
  • भारत और मंगोलिया के नियमित सैन्य अभ्यासों का नाम "नोमैडिक एलीफेंट" (Nomadic Elephant) और "खान क्वेस्ट" (Khaan Quest) रखा गया है।
  • वर्ष 2020 में भारत और मंगोलिया के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 65वीं वर्षगाँठ होगी।

India-Mangolia relation

महत्त्व

  • भारत ने वर्ष 1955 में मंगोलिया के साथ अपने राजनयिक संबंध स्थापित किये क्योंकि मंगोलिया ने भारत को "आध्यात्मिक पड़ोसी" और रणनीतिक साझेदार घोषित किया
  • भारत और भूटान के साथ मंगोलिया ने वर्ष 1972 में एक स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश की मान्यता के लिये प्रसिद्ध संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव (UN Resolution) को सह-प्रायोजित किया था।
  • पिछले दस वर्षों में किसी मंगोलियाई राष्ट्रपति की यह प्रथम भारत यात्रा है। यह यात्रा भारत-मंगोलिया द्विपक्षीय संबंधों में मील का पत्थर साबित होगी।
  • मंगोलिया पारंपरिक रूप से संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का समर्थन करता रहा है।
  • मंगोलिया ने योग के शिलालेख (Yoga’s inscription) के लिये यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (UNESCO’s Intangible Cultural Heritage) की सूची में भारत के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
  • मंगोलिया ने सार्वजनिक रूप से UNSC में स्थायी सीट के लिये भारत की सदस्यता का समर्थन किया दोहराया है।

संवाद वार्ता

  • SAMVAAD वार्ता बौद्ध धर्म से संबंधित समकालीन मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिये विभिन्न देशों के बौद्ध धर्मगुरुओं, विशेषज्ञों एवं विद्वानों को एक मंच प्रदान करती है।
  • "संवाद", संस्कृत शब्द "संवदम्" से उत्पन्न हुआ है [इसका अर्थ है 'संवाद'] 

शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन (ABCP) की आम सभा

General Assembly of Asian Buddhist Conference for Peace (ABCP)

  • इसकी शुरुआत वर्ष 1969-70 में उलानबटार, (मंगोलिया) में भगवान बुद्ध के अनुयायियों, भिक्षुओं और स्वयंसेवकों दोनों के स्वैच्छिक आंदोलन के रूप में हुई थी, जो शांति, सद्भाव, करुणा और प्रेम-दया के लिये अपनी शिक्षा को प्रचारित करने और कार्यान्वित करने का प्रयास करते हैं।
  • इसका उद्देश्य सार्वभौमिक शांति, सद्भाव और एशिया के निवासियों के बीच सहयोग को मज़बूत बनाने के समर्थन में बौद्धों के प्रयासों को एक साथ लाना है।
  • वर्ष 2019 में शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन (ABCP) की आमसभा की 50वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है।

पृष्ठभूमि

  • भारत मंगोलिया के साथ अपने घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बहुत महत्त्व देता है।
  • भारत और मंगोलिया 'सामरिक साझीदार' ही नहीं बल्कि अपनी साझा बौद्ध विरासत से जुड़े 'आध्यात्मिक पड़ोसी' भी हैं।
  • पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में अब बुनियादी ढाँचे, अंतरिक्ष और डिजिटल संपर्क जैसे कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग का विस्तार हो रहा है।
  • दोनों देश साइबर सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, आपदा प्रबंधन, खनन और पशुपालन के क्षेत्र में भी परस्‍पर सहयोग कर रहे हैं।

सदियों से दोनों देशों के लोगों के बीच आदान-प्रदान दोनों के संबंधों का आधार रहा है। भारत के बौद्ध भिक्षु और व्यापारी शांति, सद्भाव एवं मित्रता के संदेश के साथ मंगोलिया गए। इसी प्रकार समय के साथ-साथ मंगोलियाई विद्वान और तीर्थयात्री बौद्ध अध्ययन एवं आध्यात्मिक लाभ के लिये भारत आए और यह परंपरा निरंतर रूप से जारी है। भारत आज बौद्ध अध्ययन में लगे लगभग 800 मंगोलियाई छात्रों की मेजबानी करने का विशेषाधिकार रखता है। दोनों देशों की सरकारें एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध है, ताकि दोनों देशों के नागरिकों की समृद्धि हेतु पारस्परिक सामरिक भागीदारी को और अधिक मज़बूत बनाते हुए विस्तारित किया जा सके।

स्रोत: pib


भारतीय अर्थव्यवस्था

इंटरनेट तक पहुँच

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार के साथ-साथ शिक्षा के मौलिक अधिकार के एक हिस्से के रूप में इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को बरकरार रखा।

न्यायालय द्वारा अवलोकन

  • न्यायालय ने कहा कि इंटरनेट एक शिक्षा के उपकरण के रूप में कार्य करता है और कोई भी अनुशासन का हवाला देते हुए इस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता है।
  • यह निर्णय एक याचिका की सुनवाई एक दौरान दिया गया। न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि इंटरनेट के उपयोग पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
  • इसके उत्तर में केरल उच्च न्यायालय ने एस. रंगराजन और अन्य बनाम पी. जगजीवन राम मामले (1989) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत मौलिक अधिकारों के अंतर्गत दी गई स्वतंत्रता केवल अनुच्छेद 19 (2) में उल्लेखित उद्देश्यों के लिये ही प्रतिबंधित की जा सकती है।
  • इसके तहत प्रतिबंध को आवश्यकता के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिये, न कि सुविधा या शीघ्रता के आधार पर।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार परिषद भी इंटरनेट के अधिकार को मौलिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के उपकरण के रूप में मानता है।

अनुच्छेद 19 (1) (a): बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रत्येक नागरिक को भाषण द्वारा लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से किसी के विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने का अधिकार प्रदान करती है।

अनुच्छेद 19 (2): इसके आधार पर राज्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार रखता है। युक्तियुक्त निर्बंधनों की घोषणा निम्न है-

  • भारत की सुरक्षा व संप्रभुता 
  • मानहानि
  • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
  • सार्वजनिक व्यवस्था, 
  • शिष्टाचार या सदाचार 
  • न्यायालय की अवमानना

अनुच्छेद 21 यह घोषणा करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।

अनुच्छेद 21 (a) कहता है कि राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा तथा इसे कानून द्वारा राज्य निर्धारित कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

द वर्ल्ड एट रिस्क रिपोर्ट

चर्चा में क्यों ?

सितंबर, 2019 में ग्लोबल प्रिपेयर्डनेस मॉनीटरिंग बोर्ड (Global Preparedness Monitoring Board- GPMB) द्वारा द वर्ल्ड एट रिस्क रिपोर्ट (The World AT Risk Report) जारी की गई है। 

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • वर्तमान समय में विश्व अनेक प्रकार के नए संक्रामक रोगों का सामना कर रहा है। एन्फ्लूएंज़ा, इबोला, ज़ीका और प्लेग जैसे रोग तेज़ी से फैल रहे हैं, जिनके प्रभावों को आसानी से समाप्त नहीं किया जा सकता है। 

emerging countries

  • इस प्रकार के रोगों से गरीब सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। बुनियादी एवं सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं व अवसंरचना से अभावग्रस्त देशों को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ता है, जिसमें मृत्यु, विस्थापन और आर्थिक तंगी आदि समस्याएँ शामिल हैं। 
  • जहाँ एक ओर वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुरक्षित करने  का प्रयास हो रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रतिरोधक क्षमता युक्त नवीन बीमारियों का भी जन्म हो रहा है। इससे वैश्विक स्तर पर महामारियों के प्रसार की आशंका है।
  • महामारी केवल जीवन या स्वास्थ्य को ही नुकसान नहीं पहुँचाती है बल्कि इससे देशों की अर्थव्यवस्थाएँ भी प्रभावित होती हैं, जिसका परिणाम विभिन्न देशों की GDP में गिरावट के रूप में देखा जाता है। वस्तुतः इससे व्यापार एवं पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

The world at risk report

  • ग्लोबल प्रिपेयर्डनेस मॉनीटरिंग बोर्ड (Global Preparedness Monitoring Board) द्वारा स्वास्थ्य आपात स्थितियों का सामना करने हेतु 7 आवश्यक कार्यवाहियों पर बल दिया गया है, जो निम्नलिखित हैं: 
  1. सभी देशों की सरकारों को प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिये, साथ ही इन बीमारियों से निपटने हेतु अधिक निवेश पर बल देना चाहिये।
  2. अंतराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों द्वारा इन बीमारियों को रोकने हेतु कार्यक्रमों का नेतृत्व किया जाना चाहिये।
  3. सभी देशों को प्रभावी नीतियों एवं प्रणाली का निर्माण करना चाहिये।
  4. विपरीत परिस्थितियों के लिये देशों और बहुपक्षीय संस्थानों को पूर्व निर्धारित तैयारी करनी चाहिये।
  5. विकास सहायता कोष में धन प्रवाह को बढ़ाया जाना चाहिये।
  6. संयुक्त राष्ट्र के समन्वय तंत्र को मज़बूत करना चाहिये।                             

ग्लोबल  प्रिपेयर्डनेस मॉनीटरिंग बोर्ड

(Global Preparedness Monitoring Board- GPMB): 

  • यह एक सलाहकारी और स्वतंत्र निगरानी तंत्र के रूप में स्थापित निकाय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा विश्व बैंक द्वारा इसे मई 2018 में स्थापित किया गया। 
  • वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य आपात स्थितियों पर प्रतिक्रिया देने, प्रभावों को कम करने एवं इन स्थितियों में प्रभावी नीतियों को तैयार करने के लिये इसकी स्थापना की गई है।
  • यह राजनीतिज्ञों, एजेंसियों के प्रमुखों और विशेषज्ञों का 15 सदस्यीय बोर्ड है।    

 महामारी (Pandemic) क्या है?

  • महामारी का आशय विश्व में किसी बीमारी के प्रसार से है।
  • एन्फ्लूएंज़ा महामारी का रूप तब लेती है जब एक एन्फ्लूएंज़ा वायरस तेज़ी से विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है।
  • एन्फ्लूएंज़ा महामारी काफी हद तक मौसमी होती है और लगभग एक बिलियन लोगों को प्रभावित करती है तथा प्रतिवर्ष हज़ारों लोगों के मृत्यु का कारण बनती है। इसलिये यह विश्व की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है।
  • उदाहरणस्वरूप H5N1 (जिसे एवियन एन्फ्लूएंज़ा या "बर्ड फ्लू" कहा जाता है) एक प्रकार का एन्फ्लूएंज़ा वायरस है, जो पक्षियों में अत्यधिक संक्रामक गंभीर श्वसन रोग का कारण बनता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु संकट, मानवाधिकारों के लिये सबसे बड़ा संकट

चर्चा में क्यों?

9 से 27 सितंबर, 2019 तक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human Rights Council) के 42वें सत्र का आयोजन जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में किया जा रहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु :

  • इस बैठक का केंद्रीय बिंदु पर्यावरण एवं मानवाधिकारों के बीच संबंधों को परिभाषित करते हुए जलवायु संकट का समाधान निकालना है।
  • परिषद में न केवल पारंपरिक मानवाधिकारों के मुद्दों को शामिल किया गया है बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन एवं डिजिटल परिदृश्य के संदर्भ में उत्पन्न मानवाधिकार के मुद्दों को शामिल किया गया है।
  • मानव पर वैश्विक तापन का विनाशकारी प्रभाव तटीय शहरों व द्वीपों के डूबने, जंगलों में आग लगने और ग्लेशियरों के पिघलने जैसे रूपों स्पष्ट में दिखाई दे रहा है। 
  • इस प्रकार का पर्यावरणीय आपातकाल- संघर्ष, विस्थापन, सामाजिक तनाव, आर्थिक विकास में बाधा और असमानता को बढ़ावा दे रहा है, जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मानवाधिकारों के हनन से संबंधित हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में कार्यवाही हेतु मार्गदर्शक के रूप में मुख्यतः 5 प्रमुख बिंदुओं को चिह्नित किया गया, जो निम्नलिखित हैं:
  1. जलवायु परिवर्तन; अधिकार, विकास और शांति में बाधा उत्पन्न करने के नवीन उपकरण के रूप में उभरकर सामने आया है। 
  2. प्रभावी जलवायु कार्यवाही के लिये व्यापक और सार्थक भागीदारी की जानी चाहिये।
  3. पर्यावरण की रक्षा करने वालों के लिये बेहतर सुरक्षा प्रबंध की जानी चाहिये। 
  4. सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों की सहायता सबसे पहले होनी चाहिये।
  5. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान के समाधान के रूप में जलवायु न्याय को सुनिश्चित करना चाहिये।
  • जलवायु संकट से उत्पन्न होने वाले मानवाधिकार विषयों के अतिरिक्त परिषद ने विश्व के विभिन्न नागरिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विकास से संबंधित मानवाधिकारों की बात कही है।
  • वर्तमान में अफगानिस्तान, अमेरिका में मेक्सिको प्रवासियों, सीरिया, फिलिस्तीन,अफ्रीका और म्याँमार के रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित मुद्दों के साथ ही हॉन्गकॉन्ग आदि देशों के लोगों के मानवाधिकारों की चर्चा की गई है।

भारत के संदर्भ में चर्चित मुद्दे:

  • परिषद द्वारा जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में बुनियादी सेवाओं को उपलब्ध कराने और कर्फ्यू जैसी स्थितियों को कम करने की अपील की गई, साथ ही लोगों के मानवाधिकारों के सम्मान तथा  सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाने की बात कही गई है।
  • इसके अतिरिक्त असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की वजह से बढ़ी अनिश्चितता पर चिंता व्यक्त गई है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

(United Nations Human Rights Council)

  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ,संयुक्त राष्ट्र के अंग के रूप में कार्यरत एक  अंतर-सरकारी निकाय है।
  • परिषद का गठन वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के स्थान पर किया गया था।
  • इसमें 47 सदस्य हैं और सीटों का बंँटवारा भोगौलिक आधार पर होता है।
  • सदस्यों का चुनाव तीन वर्षों की अवधि के लिये किया जाता है और इनका कार्यकाल अधिकतम दो बार के लिये होता है।
  • परिषद का उद्देश्य विभिन्न देशों में मानवाधिकारों को बढ़ावा देना,उनकी रक्षा करना और  उल्लंघन की स्थिति में समाधान निकालना है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

बेसल बैन संशोधन

चर्चा में क्यों?

6 सितंबर, 2019 को क्रोएशिया (Croatia) द्वारा बेसल बैन संशोधन (Basel Ban Amendment), 1995 की पुष्टि  के बाद वैश्विक अपशिष्ट डंपिंग निषेध एक अंतर्राष्ट्रीय कानून बन गया है।

वैश्विक अपशिष्ट डंपिंग के खिलाफ बेसल कन्वेंशन  

  • बेसल एक्शन नेटवर्क (Basel Action Network-BAN) के अनुसार, 1995 में बेसल कन्वेंशन, मानव स्वास्थ्य की रक्षा और खतरनाक कचरे के दुष्प्रभावों के खिलाफ पर्यावरण की रक्षा के लिये किया गया।        
  • बैन एक संयुक्त राज्य-आधारित चैरिटी संगठन (United States-based Charity Organisation) है और उन संगठनों एवं देशों में से एक है जिन्होंने वैश्विक पर्यावरणीय न्याय के लिये ऐतिहासिक समझौते के रूप में बेसल बैन संशोधन का समर्थन किया।  
  • बैन संशोधन पर कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ की दूसरी बैठक में निर्णय लिया गया और इसे  मूल रूप से मार्च 1994 में अपनाया गया था।
  • बैन संशोधन OECD के 29 सबसे अमीर देशों से गैर OECD देशों को इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट और पुराने पानी के जहाज़ों सहित खतरनाक अपशिष्ट के सभी प्रकार के निर्यात को प्रतिबंधित करता है। 
  • कन्वेंशन के तहत निम्नलिखित अपशिष्टों को सीमा-पारीय आवागमन (Transboundary Movement) हेतु खतरनाक अपशिष्ट (Hazardous Wastes) की श्रेणी में रखा गया है:  
    • एनेक्स-I (Annex I) में शामिल किसी भी श्रेणी के अपशिष्ट जब तक कि वे एनेक्स-III (Annex III) में निहित किसी भी विशेषता से युक्त नहीं हैं; तथा  
    • वे अपशिष्ट जो अनुच्छेद (A) के तहत कवर नहीं किये गए हैं, लेकिन निर्यात, आयात या पारगमन हेतु किसी पक्षकार देश के घरेलू कानून द्वारा खतरनाक अपशिष्ट के रूप में परिभाषित किये गए हैं।
  • वे अपशिष्ट जो सीमा-पारीय आवागमन एवं एनेक्स-II से संबंधित किसी भी श्रेणी में आते हों इस कन्वेंशन के लिये "अन्य अपशिष्ट" (Other Wastes) होंगे।
  • रेडियोधर्मी होने के परिणामस्वरूप अन्य अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण प्रणालियों के अधीन आने वाले अपशिष्टों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में शामिल रेडियोधर्मी सामग्रियों को इस कन्वेंशन के दायरे से बाहर रखा गया है।
  • पानी के जहाज़ों के सामान्य संचालन से उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट इसके तहत आते हैं।
  • परंतु वह अपशिष्ट जिसको किसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौते (internationa।instruments) द्वारा कवर किया जाता है, को इस कन्वेंशन के दायरे से बाहर रखा गया है। 

पुष्टिकर्त्ता देश 

  • अधिकांश देशों जैसे- अमेरिका, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया, रूस, भारत, ब्राज़ील और मेक्सिको द्वारा इस प्रतिबंध की पुष्टि किया जाना शेष है।
  • अमेरिका प्रति व्यक्ति सबसे अधिक अपशिष्ट का उत्पादन करता है लेकिन इसके द्वारा बेसल कन्वेंशन (Basel Convention) की पुष्टि नहीं की गई है। अमेरिका बैन संशोधन का भी सक्रिय रूप से विरोध करता है। 
  • खतरनाक अपशिष्ट के सीमा-पारीय आवागमन पर नियंत्रण और उसके निपटान को लेकर वर्ष 1989 में बेसल कन्वेंशन को अपनाया गया था और यह वर्ष 1992 में लागू हुआ था। 
  • यह खतरनाक कचरे और अन्य कचरे को लेकर सबसे व्यापक वैश्विक पर्यावरण समझौता है। 181 पक्षकारों (वर्ष 2014 में) के साथ इसकी लगभग सार्वभौमिक सदस्यता है। 

अन्य प्रमुख बिंदु

  • कन्वेंशन का उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को खतरनाक अपशिष्ट के उत्पादन, सीमा पारीय आवगमन और प्रबंधन एवं अन्य कचरे के परिणामस्वरूप होने वाले प्रतिकूल प्रभावों से बचाना है।
  • बेसल कन्वेंशन खतरनाक अपशिष्ट और अन्य कचरे के सीमा पारीय आवगमन को नियंत्रित करता है और अपने पक्षकारों को यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करता है कि इस तरह के अपशिष्ट का प्रबंधन और सुरक्षित तरीके से निपटारा किया जाना चाहिये।
  • कन्वेंशन के तहत विषैले, ज़हरीले, विस्फोटक, संक्षारक, ज्वलनशील, इकोटॉक्सिक और संक्रामक अपशिष्ट शामिल हैं। 
  • कन्वेंशन के सभी पक्षकारों का यह दायित्व है कि वे अपशिष्ट की न्यूनतम मात्रा का परिवहन करने, अपशिष्ट का उपचार और निपटान उत्पादन स्थल के निकट करने और स्रोत पर ही अपशिष्ट उत्पादन को रोकने या कम करने के लिये प्रयास करें
  • वर्ष 2014 में इस कन्वेंशन के तहत 14 बेसल कन्वेंशन क्षेत्रीय और समन्वय केंद्र स्थापित किये गए हैं। ये केंद्र अर्जेंटीना, चीन, मिस्र, अल साल्वाडोर, इंडोनेशिया, ईरान, नाइज़ीरिया, रूस, सेनेगल, स्लोवाक गणराज्य, दक्षिण प्रशांत क्षेत्रीय पर्यावरण कार्यक्रम, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद एवं टोबैगो और उरुग्वे में स्थित हैं। 
  • ये केंद्र खतरनाक अपशिष्ट और अन्य अपशिष्ट के प्रबंधन तथा इसके उत्पादन के न्यूनीकरण के संबंध में प्रशिक्षण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रदान करते हैं ताकि कन्वेंशन के कार्यान्वयन में पार्टियों की सहायता एवं समर्थन प्राप्त किया जा सके। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

कुपोषण: भारत में होने वाले बच्चों की मौत के दो-तिहाई का कारण

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में द लैंसेट चाइल्ड एंड अडलसेंट हेल्थ (The Lancet Child & Adolescent Health) द्वारा “द बर्डन ऑफ चाइल्ड एंड मैटरनल मालन्यूट्रिसन एंड ट्रेंड्स इन इट्स इंडीकेटर्स इन द स्टेट्स ऑफ इंडिया : ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 1990-2017” (The Burden of Child And Maternal Malnutrition And Trends in its Indicators in the States of India: the Global Burden of Disease Study 1990–2017) नामक एक रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया। 

प्रमुख बिंदु:

  • इंडिया स्टेट-लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनिशिएटिव (India State-Level Disease Burden Initiative) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR)’, ‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ और ‘इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन’ की एक संयुक्त पहल है। इस पहल में विशेषज्ञों के साथ-साथ 100 से अधिक भारतीय संस्थानों से जुड़े हितधारक तथा कई प्रमुख स्वास्थ्य वैज्ञानिक और नीति निर्माता शामिल हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि पांँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मृत्यु दर और कुपोषण के कारण मृत्यु दर में वर्ष 1990 से 2017 तक गिरावट आई है, लेकिन कुपोषण अभी भी पांँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का सर्वप्रमुख कारक बना हुआ है।
  • अभी भी कुपोषण अधिकांश राज्यों में एकीकृत रूप से सभी उम्र की बीमारियों का सबसे बड़ा जोखिम कारक है।
  • इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से करीब दो-तिहाई मृत्यु का कारण कुपोषण है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न राज्यों के स्तर पर बच्चों में कुपोषण के कारण विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability Adjusted Life Year-DALY) की दर अलग-अलग है। यह दर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और असम में सर्वाधिक है, इसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नगालैंड और त्रिपुरा का स्थान आता है। 

Disability adjusted

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 में भारत में चाइल्ड स्टंटिंग का प्रसार 39% था। यह गोवा में 21% से लेकर उत्तर प्रदेश में 49% तक था और आमतौर पर ‘सशक्त कार्रवाई समूह’ राज्यों में सबसे अधिक था। इस समूह के अंतर्गत बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा,, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित कुल आठ राज्य आते हैं जो सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के रूप में जाने जाते हैं। ये राज्य जनसांख्यिकीय संक्रमण में पिछड़े हुए हैं, साथ ही यहाँ शिशु मृत्यु दर भी सबसे अधिक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2017 में जन्म के समय कम वज़न (Low Birth Weight) का प्रसार 21% था, जो मिज़ोरम में न्यूनतम 9% और उत्तर प्रदेश में अधिकतम 24% था।
  • वर्ष 2017 में भारत में अंडरवेट बच्चों का प्रसार 33% था, जो मणिपुर में न्यूनतम 16% और झारखंड में अधिकतम 42% था। 
  • वर्ष 2017 में भारत में बच्चों में एनीमिया की व्यापकता 60% थी, जो मिज़ोरम में न्यूनतम 21% और हरियाणा में अधिकतम 74% थी।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि कुपोषण के संकेतकों में जन्म के समय कम वज़न (Low Birth Weight) का बीमारियों के बोझ में सबसे बड़ा योगदान है, तत्पश्चात् स्टंटिंग (Stunting) और वेस्टिंग (Wasting) शामिल है।
  • साथ ही रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि, बच्चों के एक उपसमूह के बीच अधिक वज़न सभी राज्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में 54% महिलाओं में एनीमिया का प्रसार पाया गया, जो मिज़ोरम में न्यूनतम 28% और दिल्ली में अधिकतम 60% तक था इसके अतिरिक्त स्तनपान का प्रसार भारत में 53% पाया गया, जो मेघालय में न्यूनतम 34% और छत्तीसगढ़ में अधिकतम 74% था।

वर्तमान में किये जा रहे प्रयास

  • पोषण अभियान:
    • पोषण अभियान (पूर्ववर्ती राष्ट्रीय पोषण मिशन) के तहत 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों को चरणबद्ध तरीके से कवर किया गया है। यह वर्ष 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये एक एकीकृत बहुमंत्रालयी मिशन है।
    • समान लक्ष्य प्राप्ति के लिये एकीकृत योजनाओं की विद्यमान कमी को दूर करने हेतु पोषण अभियान प्रारंभ किया गया जिसमें सभी तंत्रों और घटकों को समग्रता से शामिल किया जा रहा है।
    • पोषण अभियान का प्रमुख उद्देश्य आंँगनवाड़ी सेवाओं के उपयोग और गुणवत्ता में सुधार करके भारत के चिन्हित ज़िलों में स्टंटिंग को कम करना है। इसके अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं और प्रसव के बाद माताओं एवं उनके बच्चों हेतु समग्र विकास तथा पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करना है।

राष्ट्रीय पोषण मिशन 2022 के लक्ष्य:

  • जन्म के समय कम वज़न (Low Birth Weight) में वर्ष 2017 से 2022 तक प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की कमी लाना।
  • स्टंटिंग को वर्ष 2022 तक कम करके 25% के स्तर तक लाना । 
  • 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा 15-49 वर्ष की महिलाओं में विद्यमान एनीमिया के स्तर में वर्ष 2017 से 2022 तक 3 प्रतिशत की वार्षिक कमी लाना।
  • उपरोक्त प्रयासों के अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ जैसे वैश्विक संस्थान सतत् विकास लक्ष्य- 2030 के अंतर्गत कुपोषण एवं इससे संबंधित समस्याओं से निपटने के लिये अनेक कदम उठा रहे हैं। इसके तहत निम्नलिखित लक्ष्यों को शामिल किया गया है: 
    • जन्म के समय कम वज़न के प्रसार में वर्ष 2012 के स्तर से वर्ष 2030 तक 30% तथा चाइल्ड वेस्टिंग में वर्ष 2030 तक 3% की कमी लाना।
    • चाइल्ड स्टंटिंग को वर्ष 2012 के स्तर से वर्ष 2030 तक 50% कम करना। 
    • 5-49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया के स्तर को वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2030 तक 50% कम करना।
    • पहले 6 महीनों में अनन्य स्तनपान के प्रचलन को वर्ष 2030 तक 70% करना।

आगे की राह

  • रिपोर्ट के संदर्भ में नीति आयोग ने कहा कि केंद्र सरकार देश भर में कुपोषण को दूर करने के अपने प्रयासों को तेज़ कर रही है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों को भी कुपोषण के स्तर में कमी लाने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • रिपोर्ट में किये गए अध्ययन का निष्कर्ष बताता है कि राज्यों के बीच कुपोषण की स्थिति में व्यापक भिन्नता विद्यमान है। इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि कुपोषण में कमी की योजना ऐसे तरीके से बनाई जाए जो प्रत्येक राज्य के रुझान और संदर्भ के लिये उपयुक्त हो।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 September)

  • दुनियाभर मे 21 सितंबर विश्व या अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम रखने के लिये प्रयास करना और अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों और विवादों पर विराम लगाना है। इस साल विश्व शांति दिवस की थीम Climate Action for Peace रखी गई है। इस थीम के ज़रिये दुनिया भर के लोगों को ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि शांति बनाए रखने के लिये जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करना बेहद ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1981 में विश्व शांति दिवस मनाने की घोषणा की थी। इसके बाद पहली बार वर्ष 1982 में विश्व शांति दिवस मनाया गया था। वर्ष 1982 से लेकर वर्ष 2001 तक सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया गया, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिये 21 सितंबर की तारीख निर्धारित कर दी गई।
  • 1 सितंबर से 30 सितंबर तक देशभर में राष्ट्रीय पोषण माह का आयोजन किया जा रहा है। देश में कुपोषण की चुनौतियों से निपटने और समग्र पोषण के महत्त्व के बारे में देशवासियों को संवेदनशील बनाने के लिहाज से पोषण अभियान के तहत सितंबर माह को पूरे देश में राष्ट्रीय पोषण माह के तौर पर मनाया जाता है। पोषण माह का उद्देश्य लोगों को पोषण की आवश्यकता के बारे में जागरूक करना और लोगों की पहुँच उन सरकारी सेवाओं तक बनाना है जो बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं के लिये पूरक आहार को बढ़ावा देती है। इस वर्ष राष्ट्रीय पोषण माह में पाँच सूत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इनमें शिशु के पहले 1000 दिन, एनीमिया, दस्त, हाथ धोना और स्वच्छता तथा पौष्टिक आहार (भोजन की विविधता के साथ पौष्टिक आहार) शामिल हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय पोषण मिशन के चेयरमैन डॉ. राजीव कुमार के अनुसार, चल रहे पोषण माह के दौरान सरकार देश के उन 250 ज़िलों पर विशेष ध्यान दे रही है जहाँ कुपोषण का स्तर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। विदित हो कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के सहयोग से वर्ष 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत करते समय वर्ष 2022 तक सभी बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है।
  • देश की सबसे बड़ी पावर कंपनी NTPC गुजरात के कच्छ में देश का सबसे बड़ा सोलर पार्क बनाने जा रही है। यह पार्क अगले 5 साल में बनकर तैयार हो जाएगा। 5 गीगावाट की क्षमता वाले इस सोलर पार्क करे बनाने में 25 हज़ार करोड़ रुपए लागत आने का अनुमान है। कंपनी पार्क में परियोजनाएँ स्थापित करने के लिये डेवलपर्स से बोलियाँ भी आमंत्रित कर सकती है। यह परियोजना NTPC की वर्ष 2032 तक 32 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता तैयार करने के उद्देश्य का हिस्सा है, जिसके ज़रिये NTPC अपने ऊर्जा मिश्रण में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 96% से घटाकर 70% करेगी। विदित हो कि भारत में सौर ऊर्जा हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • 19 सितंबर को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 55वाँ भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग दिवस मनाया गया। भारतीय उच्चायोग में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों ने भागीदारी की। तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के तहत वर्ष 2007 से चार हज़ार से अधिक बांग्लादेशी पेशेवरों ने लघु और मध्यम अवधि पाठ्यक्रमों में विशेषज्ञता प्राप्त की है। यह कार्यक्रम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय विज्ञान संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों में लघु और मध्यम अवधि के विशेष पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षण देता है। भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम 15 सितंबर, 1964 को भारत सरकार की सहायता के द्विपक्षीय कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था। प्रतिवर्ष 161 सहयोगी देशों को 10 हज़ार से अधिक प्रशिक्षण अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। लेखा, लेखा परीक्षण, प्रबंधन, लघु और मध्यम उद्यम, ग्रामीण विकास और संसदीय कार्य जैसे क्षेत्रों में भी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं।
  • सुपर-30 के संस्थापक और IIT प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने वाली कोचिंग संस्था सुपर 30 (Super 30) के संस्थापक और गणित के शिक्षक आनंद कुमार को अमेरिका में शिक्षण से जुड़े एक प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाज़ा गया है। यह पुरस्कार उन्हें ज़रूरतमंद विद्यार्थियों को शिक्षा मुहैया कराने में दिये गए उनके योगदान के लिये दिया गया। कैलिफोर्निया के सैन जोस में आनंद कुमार को फाउंडेशन फॉर एक्सीलेंस' (FEE) संगठन ने अपनी 25वीं सालगिरह के मौके पर द एजुकेशन एक्सीलेंस अवॉर्ड 2019 पुरस्कार से सम्मानित किया है। गौरतलब है कि आनंद कुमार पिछले 18 वर्षों से सुपर-30 प्रोग्राम चला रहे हैं, जिसमें हर साल 30 छात्र-छात्राओं को एक साल के लिये मुफ्त आवासीय कोचिंग दी जाती है। ये सभी विद्यार्थी देश में इंजीनियरिंग में आईआईटी की परीक्षा (आईआईटी-जेईई) की तैयारी करते हैं। सुपर 30 के विद्यार्थियों की सफलता की दर अभूतपूर्व रही है, जिसमें वंचित वर्गों के छात्रों को देश के शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश दिलाकर समाज में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है।
  • निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। दोनों राज्यों में एक चरण में 21 अक्तूबर को मतदान होगा तथा 24 अक्टूबर को परिणाम आएंगे। विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही दोनों राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई। हरियाणा में 1.28 करोड़ मतदाता हैं और वहाँ 1.3 लाख EVM का इस्तेमाल होगा। महाराष्ट्र 8.94 करोड़ मतदाता हैं और 1.8 लाख EVM का इस्तेमाल होगा। 21 अक्तूबर को ही अरुणाचल प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मेघालय, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना और केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी में 64 सीटों पर उपचुनाव होगा और इनके परिणाम भी 24 अक्तूबर को आएंगे।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow