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डेली न्यूज़

  • 11 Jan, 2023
  • 32 min read
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शासन व्यवस्था

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी, मौलिक अधिकार, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि परिवार बनाने हेतु व्यक्तिगत पसंद एक मौलिक अधिकार है और इसके लिये ऊपरी आयु सीमा तय करना प्रतिबंध जैसा है, अतः इस पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।

संबंधित मुद्दा: 

  • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी [Assisted Reproductive Technology- ART] (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत महिलाओं के लिये 50 वर्ष और पुरुषों हेतु 55 वर्ष की आयु सीमा को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा करते हुए न्यायालय ने निर्देश पारित किया है।
    • याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, ART अधिनियम की धारा 21 (G) के तहत ऊपरी आयु सीमा का निर्धारण तर्कहीन, मनमाना, अनुचित और प्रजनन के उनके अधिकार का उल्लंघन है क्योंकि इसे मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है।
    • याचिकाकर्त्ताओं ने इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।
  • उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी एवं सरोगेसी बोर्ड को केंद्र सरकार को सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिये निर्धारित ऊपरी आयु सीमा पर फिर से विचार करने की आवश्यकता के बारे में सचेत करने का निर्देश दिया है।
  • इसके अलावा याचिकाकर्त्ताओं ने उस प्रावधान को भी चुनौती दी है जिसमें चिकित्सकों को भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के दायरे में लाया गया है और अपराधों को संज्ञेय बनाया गया है।
    • ये प्रावधान देश भर में IVF चिकित्सकों को डरा रहे हैं, उन्हें मुकदमा चलाए जाने के डर से अपने पेशेवर दायित्वों को पूरा करने से हतोत्साहित कर रहे हैं।

ART (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रावधान: 

  • कानूनी प्रावधान:
    • नेशनल असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी एंड सरोगेसी बोर्ड की स्थापना वर्ष 2021 के ART (विनियमन) अधिनियम द्वारा सरोगेसी कानून को लागू करने की एक विधि के रूप में की गई थी
    • इस अधिनियम के उद्देश्यों में ART क्लीनिक और बैंकों का विनियमन एवं निरीक्षण, दुरुपयोग की रोकथाम तथा ART सेवाओं से संबंधित सुरक्षित और नैतिक प्रावधान शामिल हैं।
  • ART: 
    • इस अधिनियम के अनुसार, ART से तात्पर्य उस विधि से है जिसमें गर्भावस्था के लिये किसी महिला के प्रजनन तंत्र में युग्मकों (Gamets) को स्थानांतरित किया जाता है। इनमें जेस्टेशनल सरोगेसी, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF) और युग्मक दान (शुक्राणु या अंडे का) शामिल हैं। 
    • ART सेवाएँ निम्नलिखित माध्यम से प्रदान की जाएंगी: (i) ART से संबंधित उपचार और प्रक्रियाएँ प्रदान करने वाले ART क्लीनिक और (ii) ART बैंक, जो युग्मक (Gamets) का संग्रह, जाँच और भंडारण करते हैं। 
  • दाताओं के लिये पात्रता संबंधी शर्तें: 
    • सीमेन प्रदान करने वाले पुरुष की आयु 21 से 55 वर्ष तथा अंडाणु दान करने वाली महिला की आयु 23-35 वर्ष के बीच होनी चाहिये। महिला द्वारा अपने जीवनकाल में केवल एक बार अंडाणु दान किया जाएगा तथा दान किये जाने वाले अंडाणुओं की अधिकतम संख्या 7 होगी। कोई बैंक एकल दाता के युग्मक को एक से अधिक कमीशनिंग पार्टी (युगल अथवा आकांक्षी एकल महिला) को नहीं दे सकता है।
  • संबद्ध शर्तें: 
    • केवल कमीशनिंग पार्टियों (वह व्यक्ति जो नैदानिक परीक्षण शुरू करने, निर्देशित करने या वित्तपोषण करने का प्रभारी होता है) और दाता की लिखित स्वीकृति के बाद ही ART उपचार किया जा सकता है। दाताओं की सुरक्षा (किसी भी नुकसान, क्षति या मृत्यु की स्थिति) के लिये कमीशनिंग पार्टी को बीमा संबंधी प्रबंधन करना आवश्यक होता है । 
  • ART से पैदा हुए बच्चे के अधिकार: 
    • ART से पैदा हुए बच्चे को दंपत्ति के जैविक बच्चे के रूप में माना जाएगा और प्राकृतिक रूप से पैदा हुए बच्चे के समान सभी अधिकारों एवं विशेषाधिकारों के लिये पात्र माना जाएगा। दाता (Donor) का बच्चे पर कोई अधिकार नहीं होगा।
  • कमियाँ:
    • अविवाहित और विषमलैंगिक(Heterosexual) जोड़ों का बहिष्कार:
      • यह अधिनियम अविवाहित, तलाशुदा और विधुर पुरुषों, अविवाहित रूप से सहवास करने वाले विषमलैंगिक जोड़ों, ट्रांस व्यक्तियों और समलैंगिक जोड़ों (चाहे विवाहित या साथ रहने वाले) को ART सेवाओं का लाभ लेने से वंचित करता है।
      • यह बहिष्करण प्रासंगिक है क्योंकि सरोगेसी अधिनियम उपरोक्त व्यक्तियों को प्रजनन की एक विधि के रूप में सरोगेसी का सहारा लेने से भी मना करता है।
    • प्रजनन विकल्पों को कम करना:
      • यह अधिनियम उन कमीशनिंग (Commissioning) जोड़ों तक भी सीमित है जो बाँझ हैं- जो असुरक्षित सहवास के एक वर्ष के बाद गर्भ धारण करने में असमर्थ हैं। इस प्रकार यह उपयोग हेतु सीमित है और बाहरी लोगों के प्रजनन विकल्पों को काफी कम कर देता है।
    • अनियंत्रित कीमतें:
      • सेवाओं की कीमतें विनियमित नहीं हैं, इस समस्या को निश्चित रूप से सरल निर्देशों के साथ दूर किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • अनिवार्य परामर्श स्वतंत्र संगठनों द्वारा प्रदान किया जाना चाहिये, न कि क्लिनिक नैतिकता समितियों द्वारा।
  • सभी ART निकायों के लिये राष्ट्रीय हित, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के मामले में केंद्र एवं राज्य सरकारों के निर्देश बाध्यकारी होने चाहिये।
  • लाखों लोगों को प्रभावित करने से पहले उठाए गए सभी संवैधानिक, चिकित्सा-कानूनी, नैतिक और नियामक चिंताओं की पूरी तरह से समीक्षा की जानी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच गतिरोध

प्रिलिम्स के लिये:

आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014, सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र सरकार की भूमिका।

मेन्स के लिये:

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच गतिरोध, अंतर्राज्यीय विवाद।

चर्चा में क्यों

हाल ही में आंध्र प्रदेश ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत संपत्ति और देनदारियों के "न्यायसंगत, उचित एवं समान विभाजन" की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की है। 

पृष्ठभूमि: 

  • 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से को अलग कर तेलंगाना के रूप में 29वें राज्य का गठन किया गया।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम (1956) के माध्यम से हैदराबाद राज्य के तेलुगू भाषी क्षेत्रों को आंध्र प्रदेश राज्य के साथ विलय कर विस्तृत आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण किया गया।
  • आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (2014) ने आंध्र प्रदेश को दो अलग-अलग राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विभाजित किया।
  • अविभाजित आंध्र प्रदेश के विभाजन के आठ वर्ष से अधिक समय के बाद भी दोनों राज्यों के बीच संपत्ति और दायित्त्वों का आवंटन अस्पष्ट बना हुआ है क्योंकि प्रत्येक राज्य आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के प्रावधानों की व्यक्तिगत व्याख्या लागू करता है।

संबंधित मुद्दे:

  • 12 संस्थानों का अधिनियम में उल्लेख नहीं किया गया है:
    • इस निर्गम में 245 संस्थान शामिल हैं जिनकी कुल स्थायी संपत्ति का मूल्य 1.42 लाख करोड़ रुपए है। 
    • अधिनियम की अनुसूची IX के अंतर्गत 91 संस्थान और अनुसूची X के अंतर्गत 142 संस्थान हैं।  
    • अधिनियम में उल्लिखित अन्य 12 संस्थाओं का विभाजन भी राज्यों के बीच विवादास्पद बना हुआ है। 
  • संपत्ति और देनदारियों के विभाजन में देरी:
    • आंध्र प्रदेश ने खेद व्यक्त किया कि तेलंगाना सरकार ने शीला भिडे की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा दी गई सिफारिशों को चुनिंदा रूप से स्वीकार कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप संपत्ति और देनदारियों के विभाजन में देरी हुई थी।
      • समिति ने अनुसूची IX के 91 संस्थानों में से 89 के विभाजन के संबंध में सिफारिशें की हैं।  
    • आंध्र प्रदेश का तर्क है कि विभाजन की प्रक्रिया में तेज़ी लाने और इन संस्थानों के विभाजन को अंतिम रूप देने के लिये सिफारिशों को जल्दबाज़ी में स्वीकार कर लिया गया।
  • संपत्ति के बँटवारे को लेकर विवाद:
    • मुख्यालय की संपत्तियों का हिस्सा न बनने वाली संपत्तियों के विभाजन को लेकर  विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों की तेलंगाना सरकार ने आलोचना करते हुए कहा कि यह पुनर्गठन अधिनियम की भावना के खिलाफ है।  

केंद्र की भूमिका:

  • गृह मंत्रालय (MHA) ने वर्ष 2017 में मुख्यालय परिसंपत्तियों के बारे में स्पष्टता प्रदान की।
  • एक एकल व्यापक राज्य उपक्रम (जिसमें मुख्यालय और परिचालन इकाइयाँ शामिल हैं) जो विशेष रूप से एक स्थानीय क्षेत्र में स्थित है या इसका संचालन एक स्थानीय क्षेत्र में सीमित है, के मामले में गृह मंत्रालय का कहना है कि इसे पुनर्गठन अधिनियम की धारा 53 की उप-धारा (1) के अनुसार स्थान के आधार पर विभाजित किया जाएगा।
  • अधिनियम केंद्र सरकार को आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है।

नोट:  

  • सर्वोच्च न्यायालय अपने मूल अधिकार क्षेत्र में राज्यों के बीच विवादों का निर्णय करता है।  
    • संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या भारत सरकार और किसी भी राज्य के बीच या दो या दो से अधिक राज्यों के बीच कोई  भी विवाद सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र है।
  • संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर्राज्यीय परिषद से विवादों पर पूछताछ और सलाह देने, सभी राज्यों के सामान्य विषयों पर चर्चा करने और बेहतर नीति समन्वय हेतु सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।

अंतर्राज्यीय विवादों को सुलझाने हेतु पहल:

  • संविधान द्वारा अंतर्राज्यीय परिषद को प्रदान उत्तरदायित्त्वों (अंतर्राज्यीय विवादों के समाधान के संदर्भ में) को केवल कागज़ों में नहीं बल्कि वास्तविकता में पूरा करने की आवश्यकता है।  
    • इसी तरह सामाजिक और आर्थिक योजना, सीमा विवाद, अंतर-राज्य परिवहन आदि से संबंधित प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों की चुनौतियों के संदर्भ में चर्चा करने हेतु क्षेत्रीय परिषदों को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • भारत विविधता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र एवं राज्य सरकारों दोनों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का फैसला करने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति किसके अंतर्गत है? (2014)

(a) सलाहकार क्षेत्राधिकार
(b) अपीलीय क्षेत्राधिकार
(c) मूल अधिकार क्षेत्र
(d) रिट क्षेत्राधिकार

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

केंद्र बनाम संघ

प्रिलिम्स के लिये:

आठवीं अनुसूची, भारतीय संविधान, संघवाद, राष्ट्रपति, केंद्रीकरण और सत्ता का विकेंद्रीकरण। 

मेन्स के लिये:

केंद्र बनाम संघ, इसकी संवैधानिकता और केंद्र सरकार के साथ मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?

चूँकि तमिलनाडु सरकार ने अपने आधिकारिक संचार में 'केंद्र सरकार' शब्द के स्थान पर 'संघ सरकार' शब्द  के प्रयोग का फैसला किया है, फलतः इसने संघ बनाम केंद्र को लेकर बहस छेड़ दी है। 

  • इसे भारतीय संविधान की चेतना को पुनः प्राप्त करने की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा गया है।  

संघ/केंद्र शब्द की संवैधानिकता: 

  • भारत के संविधान में 'केंद्र सरकार' शब्द का कोई उल्लेख नहीं है क्योंकि संविधान सभा ने मूल संविधान में 22 भागों और आठ अनुसूचियों के अपने सभी 395 अनुच्छेदों में 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग नहीं किया था।  
  • 'संघ' और 'राज्यों' का संदर्भ केवल उनसे है, जिनके पास संघ की कार्यकारी शक्तियाँ हैं, जो राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं। 
  • भले ही संविधान में 'केंद्र सरकार' का कोई संदर्भ नहीं है, लेकिन सामान्य खंड अधिनियम, 1897 इसके लिये एक परिभाषा प्रदान करता है।  
    • 'केंद्र सरकार' के सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये संविधान प्रमुख राष्ट्रपति को माना जाता है। 

संविधान सभा की मंशा:

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है कि ‘इंडिया यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा’।
  • 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को इस संकल्प के साथ पेश किया कि भारत "स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य" में शामिल होने के इच्छुक क्षेत्रों का एक संघ होगा।
    • एक मज़बूत, एकजुट देश बनाने के लिये विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों के समेकन एवं संगम पर बल दिया गया था। 
  • वर्ष 1948 में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ बीआर अंबेडकर ने संविधान का मसौदा प्रस्तुत करते हुए कहा था कि समिति ने 'संघ' शब्द का इस्तेमाल किया है क्योंकि:
    • भारतीय संघ इकाइयों द्वारा एक समझौते का परिणाम नहीं है।
    • घटक इकाइयों को संघ से अलग होने की कोई स्वतंत्रता नहीं है।
  • संविधान सभा के सदस्य संविधान में 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग न करने के प्रति बहुत सतर्क थे क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को दूर रखना था।

संघ और केंद्र के बीच अंतर:

  • संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, शब्दों के प्रयोग की दृष्टि से 'केंद्र' एक वृत्त के मध्य में एक बिंदु को इंगित करता है, जबकि 'संघ' संपूर्ण वृत्त है।
    • भारत में संविधान के अनुसार तथाकथित 'केंद्र' और राज्यों के बीच का संबंध वास्तव में संपूर्ण एवं उसके भागों के बीच का संबंध है।
  • संघ और राज्य दोनों ही संविधान द्वारा बनाए गए हैं, दोनों संविधान से अपने संबंधित अधिकार प्राप्त करते हैं।
    • एक अपने क्षेत्र में दूसरे का अधीनस्थ नहीं है और एक का अधिकार दूसरे के साथ समन्वय करना है।
  • न्यायपालिका को संविधान में इस प्रकार अभिकल्पित किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय देश का शीर्ष न्यायालय तो है लेकिन उच्च न्यायालय इसकेअधीनस्थ नहीं है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के पास न केवल उच्च न्यायालयों पर बल्कि अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर भी अपीलीय क्षेत्राधिकार है, उन्हें इसके अधीनस्थ घोषित नहीं किया गया है।
    • वास्तव में उच्च न्यायालयों के पास ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति होने के बावजूद विशेषाधिकार रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
  • सामान्य शब्दों में ‘संघ’, संघीय भावना को इंगित करता है, जबकि ‘केंद्र’ एकात्मक सरकार की भावना को इंगित करता है।
    • किंतु व्यावहारिक रूप से दोनों शब्द भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में समान हैं।

केंद्र सरकार पद से संबद्ध मुद्दे:

  • संविधान सभा द्वारा खारिज़: संविधान में 'केंद्र' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है; संविधान निर्माताओं ने इसे विशेष रूप से खारिज़ कर दिया और इसके बजाय 'संघ' शब्द का इस्तेमाल किया।
  • औपनिवेशिक विरासत: 'केंद्र' औपनिवेशिक काल का अवशेष है और नौकरशाही केंद्रीय कानून, केंद्रीय विधायिका आदि शब्द का उपयोग करने की आदी हो गई है, इसलिये मीडिया सहित अन्य सभी ने इस शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया। 
  • संघवाद के विचार के साथ संघर्ष: भारत एक संघीय सरकार है। शासन करने की शक्ति पूरे देश के लिये एक सरकार के बीच विभाजित है, जो सामान्य राष्ट्रीय हित के विषयों और राज्यों हेतु ज़िम्मेदार है, जो राज्य के विस्तृत दिन-प्रतिदिन के शासन की देखभाल करती है।
    • सुभाष कश्यप के अनुसार, 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग करने का मतलब होगा कि राज्य सरकारें इसके अधीन हैं। 

आगे की राह 

  • संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूल विशेषता है और इसे बदला नहीं जा सकता है, इस प्रकार सत्ता में रहने वाले हितधारक हमारे संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करना चाहते हैं।
  • भारत जैसे विविध और बड़े देश में संघवाद के स्तंभों, यानी राज्यों की स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकीकरण, केंद्रीकरण, विकेंद्रीकरण, राष्ट्रीयकरण तथा क्षेत्रीयकरण के बीच एक उचित संतुलन की आवश्यकता है।
    • अत्यधिक राजनीतिक केंद्रीकरण या अराजक राजनीतिक विकेंद्रीकरण दोनों ही भारतीय संघवाद को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • विकट समस्या का संतोषजनक और स्थायी समाधान विधान-पुस्तक में नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की अंतरात्मा में खोजना होगा।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी भारतीय संघवाद की विशेषता नहीं है? (2017)

(a) भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है। 
(b) शक्तियों को केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है।
(c) संघ की इकाइयों को राज्यसभा में असमान प्रतिनिधित्त्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध इकाइयों के बीच एक समझौते का परिणाम है।

उत्तर: (d)  


मेन्स: 

प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज़्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये।(2014) 

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

इंडियन फुटबॉल विज़न 2047

प्रिलिम्स के लिये:

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ, फीफा।

मेन्स के लिये:

इंडियन फुटबाल विज़न 2047

चर्चा में क्यों?

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने 'विज़न 2047' के साथ अपने रणनीतिक रोडमैप का अनावरण किया है और उम्मीद है कि देश की स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष में भारत एशियाई फुटबॉल के क्षेत्र में एक नई शक्ति के रूप में उभरेगा।

  • भारतीय फुटबॉल के सभी हितधारकों के साथ मिलकर विकसित इस रोडमैप में एशियाई फुटबॉल परिसंघ और फीफा (फेडरेशन इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसोसिएशन) से भी इनपुट मांगे गए हैं। 
  • AIFF ने 'विज़न 2047' को छह रणनीतिक चरणों में चार वर्ष के लिये विभाजित किया है। इनमें से पहला चरण वर्ष 2026 तक की अवधि को कवर करने की कोशिश करेगा। 

भारतीय फुटबॉल विज़न 2047: 

  • राष्ट्रीय फुटबॉल दर्शन:
    • भारत का राष्ट्रीय फुटबॉल दर्शन स्काउटिंग से डेटा एकत्र करने, एक तकनीकी पाठ्यक्रम बनाने, कोच और खिलाड़ियों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने तथा राष्ट्रीय टीम के लिये एक प्रतिभा पूल में तब्दील होने की उम्मीद पर आधारित होगा।
      • एक राष्ट्रीय खेल दर्शन बनाने के लिये AIFF पारिस्थितिकी तंत्र के सभी स्तरों पर फुटबॉल की गुणवत्ता में सुधार हेतु कोच शिक्षा कार्यक्रम विकसित करेगा। 
      • AIFF ने 50,000 सक्रिय कोच बनाने का भी लक्ष्य रखा है, जिनमें से लगभग 4500 न्यूनतम AIFF C लाइसेंस से युक्त होने चाहिये। 
    • वर्ष 2026 तक डेटा एकत्र करने और स्काउटिंग सिस्टम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। हालाँकि फुटबॉल दर्शन खोजने के लिये समग्र दृष्टिकोण समान है।
  • जीवंत फुटबॉल पारितंत्र:
    • रोडमैप में भारत को एशिया में शीर्ष चार फुटबॉल देशों में शामिल होने, एशिया में शीर्ष लीगों में से एक की मेज़बानी करने और एक जीवंत फुटबॉल पारितंत्र बनाने की कल्पना की गई है।
  • ग्राम ग्रासरूट कार्यक्रम:
    • AIFF का उद्देश्य पूरे भारत में 100 गाँवों में 35 मिलियन बच्चों तक पहुँचने के लिये ग्रामीण ग्रासरूट कार्यक्रमों को लागू करना है और इसका लक्ष्य 1 मिलियन पंजीकृत खिलाड़ियों को पंजीकृत करना और 25 मिलियन बच्चों को फुटबॉल के स्कूलों के माध्यम से फुटबॉल शिक्षा प्रदान करना है।
    • उल्लेखनीय है कि ज़मीनी स्तर पर भागीदारी में भारी लैंगिक असमानता है।
  • महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि:
    • वर्ष 2026 तक महिला फुटबॉल के लिये एक चार-स्तरीय लीग टेबल पिरामिड बनाया जाएगा, जिसमें पिरामिड के शीर्ष पर भारतीय महिला लीग होगी जिसमें 10 टीमें शामिल होंगी, इसके बाद दूसरा डिवीज़न होगा जिसमें 8 टीमें शामिल होंगी। AIFF ने वर्ष 2027 तक नवीन महिला युवा संरचनाओं को लागू करने के लिये कम-से-कम 20 राज्यों को लक्षित किया है।
      • देश में महिला फुटबॉल का पारिस्थितिकी तंत्र कमज़ोर रहा है और भागीदारी एवं योग्यता बढ़ाने में मदद हेतु विशिष्ट समाधानों की आवश्यकता है, जिसमें न्यूनतम वेतन में सुधार की आवश्यकता भी शामिल है।
  • आधारभूत संरचना: 
    • AIFF नीतिगत हस्तक्षेपों को लागू करके बुनियादी ढाँचे का विकास करेगा जो सरकारी अधिकारियों, फुटबॉल टीमों/क्लबों, निगमों और निजी निवेशकों को बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।

भारत में फुटबॉल का परिदृश्य: 

  • परिचय: 
    • भारत में फुटबॉल विकासशील अवस्था में है। विश्व का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद फुटबॉल भारत में क्रिकेट और हॉकी जैसे अन्य खेलों की तरह लोकप्रिय नहीं है। 
  • चुनौतियाँ: 
    • निवेश और बुनियादी ढाँचे की कमी भारत में फुटबॉल के सामने मुख्य चुनौतियों में से एक है। देश में कई स्टेडियम और प्रशिक्षण सुविधाएँ खराब स्थिति में हैं तथा प्रशिक्षित प्रशिक्षकों की कमी है। इसकी वजह से खिलाड़ियों के लिये अपने कौशल का विकास करना एवं टीम हेतु उच्च स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
  • क्षमता: 
    • भारतीय राष्ट्रीय टीम ने कुछ प्रगति कर अपनी फीफा रैंकिंग में सुधार किया है। इंडियन सुपर लीग (Indian Super League- ISL) और I-लीग (यह भारत में संयुक्त प्रीमियर फुटबॉल लीग है) की लोकप्रियता एवं उपस्थिति में भी वृद्धि देखी गई है और विदेशी लीग्स में कुछ सफल भारतीय खिलाड़ी भी शामिल हो रहे हैं।
    • कुल मिलाकर भारत में फुटबॉल के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं, इसके बावजूद भविष्य में सकारात्मक विकास की संभावना मौजूद है।
    • AIFF द्वारा ज़मीनी स्तर पर सुधार, प्रशिक्षकों, रेफरी को बुनियादी ढाँचे का प्रशिक्षण और विकास तथा नए क्षेत्रों एवं स्कूलों में खेल को बढ़ावा देने के हालिया प्रयासों के परिणामस्वरूप अधिक लोगों को इस खेल की ओर आकर्षित करने व इसकी लोकप्रियता एवं सफलता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF): 

  • अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) भारत में फुटबॉल खेल के प्रबंधन से संबंधित संगठन है।
  • यह भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के संचालन का प्रबंधन करता है और कई अन्य प्रतियोगिताओं और टीमों के अलावा भारत की प्रमुख घरेलू क्लब प्रतियोगिता I-लीग को भी नियंत्रित करता है।
  • AIFF की स्थापना वर्ष 1937 में हुई थी और वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1948 में फीफा की संबद्धता प्राप्त की थी।
  • वर्तमान में इसका कार्यालय द्वारका, नई दिल्ली में है। भारत में यह वर्ष 1954 में एशियाई फुटबॉल परिसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


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