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डेली न्यूज़

  • 08 May, 2020
  • 55 min read
शासन व्यवस्था

उत्तर प्रदेश में उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट

प्रीलिम्स के लिये

भारत में प्रचलित विभिन्न श्रम कानून

मेन्स के लिये

श्रम कानूनों का महत्त्व और उनके क्रियान्वयन में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने कोरोनोवायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र राज्य की औद्योगिक गतिविधियों को पुनः पटरी पर लाने के एक उपाय के रूप में आगामी तीन वर्षों के लिये सभी व्यवसायों और उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट देने वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि COVID-19 के प्रकोप के फलस्वरूप राज्य में आर्थिक गतिविधियाँ काफी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं और आगामी समय में इसका और अधिक प्रभाव दिख सकता है।
    • इसका प्रमुख कारण यह है कि महामारी को देखते हुए लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण राज्य के सभी उद्योग और व्यवसाय रुक गए हैं।
  • राज्य सरकार द्वारा इस संदर्भ में जारी अधिसूचना के अनुसार, सरकार द्वारा लागू किये गए अध्यादेश के माध्यम से सभी प्रतिष्ठानों, कारखानों और व्यवसायों पर लागू होने वाले श्रम कानूनों से उन्हें छूट प्रदान की गई है।
  • हालाँकि इस अवधि में भी राज्य में भवन तथा अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996; कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923; बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976; और मज़दूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 5 लागू होंगे।
    • मज़दूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 5 में समय पर मज़दूरी प्राप्त करने के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त श्रम कानूनों में बच्चों और महिलाओं से संबंधित प्रावधान अभी जारी रहेंगे।
  • राज्य सरकार के अध्यादेश के अनुसार, तीन वर्षीय अवधि में अन्य सभी श्रम कानून निष्प्रभावी हो जाएंगे, जिसमें औद्योगिक विवादों को निपटाने, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, ट्रेड यूनियन, अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी मज़दूरों से संबंधित कानून शामिल हैं।
  • यह अध्यादेश राज्य में मौजूदा व्यवसायों तथा उद्योगों और राज्य में स्थापित होने वाले नए कारखानों दोनों पर लागू होगा।
  • इस अध्यादेश को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास उनकी मंज़ूरी के लिये भेजा गया है।

महत्त्व

  • इस अध्यादेश का प्रमुख उद्देश्य व्यवसायों और उद्योगों को कुछ लचीलापन प्रदान करना है, ताकि उद्योगों और व्यवसायों में कार्य करने वाले श्रमिकों के रोज़गार की रक्षा की जा सके और COVID-19 महामारी के कारण राज्य में वापस आ रहे लोगों को रोज़गार प्रदान किया जा सके।
    • उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कई प्रवासी श्रमिक केरल, दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से वापस लौट रहे हैं और इन्हें रोज़गार उपलब्ध कराना राज्य सरकारों के समक्ष एक बड़ी चुनौती बन गया है।
  • राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के पश्चात् सभी व्यावसायिक गतिविधियों के पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से बंद होने के कारण राज्य सरकारों के राजस्व में भारी कमी देखी जा रही है, जिसके कारण राज्य की अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा है और इससे उबरने के लिये राज्य को काफी अधिक समय की आवश्यकता है। 
    • इसके अतिरिक्त राजस्व में कमी के कारण सरकार के पास स्वास्थ्य सुविधाओं पर अधिक-से-अधिक खर्च करने हेतु भी संसाधन की कमी है।
  • इस संबंध में सरकार द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, राज्य में नए निवेश को प्रोत्साहित करने और नए औद्योगिक बुनियादी ढाँचे की स्थापना करने तथा मौजूदा उद्योगों और कारखानों को लाभ पहुँचाने के लिये यह आवश्यक है कि उन्हें राज्य में मौजूदा श्रम कानूनों से अस्थायी छूट प्रदान की जाए।

भारतीय संविधान और श्रम कानून

  • भारतीय संविधान ने देश के श्रम कानूनों में बदलाव और उनके विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। भारतीय संविधान के भाग III को श्रमिक कानूनों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को समाहित किया गया है, जिसमें कानून के समक्ष समानता, अस्पृश्यता का उन्मूलन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कारखानों में बच्चों के रोज़गार पर प्रतिबंध जैसे विषय शामिल हैं। 
  • भारतीय संविधान का भाग IV, जिसे ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व’ के रूप में भी जाना जाता है, का उद्देश्य अपने नागरिकों के कल्याण की दिशा में कार्य करना है। उल्लेखनीय है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों को कानून के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है, किंतु यह भारत में श्रम कानूनों को बेहतर बनाने के लिये विधायिका को एक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • विदित हो कि चूँकि श्रम भारतीय संविधान के तहत एक समवर्ती सूची का विषय है, इसलिये राज्य अपने स्वयं के कानूनों को लागू तो कर सकते हैं, किंतु उन्हें केंद्र सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। 

आलोचना

  • आलोचकों का मत है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह निर्णय काफी चौंकाने वाला है और इससे राज्य श्रम कानूनों के मामले में तकरीबन 100 वर्ष पीछे चला जाएगा। 
  • उत्तर प्रदेश सरकार का यह अध्यादेश राज्य में श्रमिकों के लिये गुलाम जैसी परिस्थितियों को जन्म देगा, जो कि स्पष्ट रूप से श्रमिकों के मानवाधिकार का उल्लंघन है।
  • राज्य सरकार का यह अध्यादेश राज्य में कारखानों और उद्योगों मालिकों को आवश्यक सुरक्षा तथा स्वास्थ्य मापदंडों का पालन न करने के लिये प्रेरित करेगा, जिससे श्रमिकों के लिये कार्य की स्थिति और अधिक बद्दतर हो जाएगी।
  • उत्तर प्रदेश के विभिन्न ट्रेड यूनियनों ने राज्य सरकार के इस निर्णय को ‘श्रमिक वर्ग पर गुलामी की स्थिति लागू करने के लिये एक क्रूर कदम’ करार दिया है।
  • ट्रेड यूनियनों के अनुसार, इसके पश्चात् अन्य राज्य सरकारें भी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का तर्क देते हुए राज्य में विकास और अधिक निवेश आकर्षित करने के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार का अनुसरण करेंगी, जिससे देश भर में श्रमिकों के लिये कार्य की स्थिति काफी बद्दतर हो जाएगी।

आगे की राह

  • श्रम न केवल उत्पादन में, बल्कि अन्य सभी आर्थिक गतिविधियों में भी एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। डेविड रिकार्डो और कार्ल मार्क्स जैसे क्लासिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के मुख्य स्रोत के रूप में श्रम को प्रमुख स्थान दिया। 
  • इस प्रकार श्रमिक किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अतः श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना राज्य और केंद्र सरकार का प्रमुख दायित्त्व बन जाता है। 
  • यदि श्रम कानूनों में बाज़ार और श्रमिकों के ज़रुरी हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो ऐसे में उद्योगों का विकास काफी सीमित हो जाता है।
  • अतः आवश्यक है कि मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसे उपाय करे, जिनसे अधिक-से-अधिक विकास किया जा सके और श्रमिकों के अधिकारों का हनन भी न हो।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान की नई मुद्रा

प्रीलिम्स के लिये:  

तोमान,रियाल  

मेन्स के लिये: 

ईरान परमाणु कार्यक्रम 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान संसद द्वारा एक विधेयक पारित किया गया है, जिसके अनुसार ईरानी मुद्रा रियाल (Rial) में चार स्लैब अर्थात चार शून्य तक की कटौती की जाएगी। 

प्रमुख बिंदु : 

  • ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते ईरानी मुद्रा रियाल के मूल्य में बड़ी गिरावट आई है।  
  • रियाल में गिरावट के कारण मुद्रास्फीति की स्थिति अर्थात महँगाई की स्थिति ईरान में बनी हुई है।
  • पारित विधेयक के अनुसार, ईरान की वर्तमान मुद्रा रियाल को बदलकर तोमान (Toman) किया जाएगा। 
  • पारित विधेयक के अनुसार, एक तोमान की कीमत 10,000 रियाल के बराबर की गई है। 
  • हालाँकि इस विधेयक को मंज़ूरी मिलने से पहले इसे ईरान के शीर्ष आध्यात्मिक नेता की नियुक्ति करने वाली लिपिक निकाय (Clerical Body) के अनुमोदन की आवश्यकता है। 

Irani-currency

पृष्ठभूमि:

  • ईरानी मुद्रा से चार शून्य हटाने की बात वर्ष 2008 से चल रही थी। 
  • वर्ष 2018 में इस दिशा में प्रयास ओर तब तीव्र हो गए जब अमेरिका द्वारा ईरान को वर्ष 2015 में किये गए ‘परमाणु समझौते’ (Nuclear Deal) से बाहर निकालने का निर्णय लिया गया। 
  • इसके बाद अमेरिका द्वारा ईरान पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध आरोपित किये गए। 
  • इन प्रतिबंधों के चलते डॉलर के मुकाबले ईरानी मुद्रा रियाल में 60% की गिरावट देखी गई। 
  • ईरान की कमज़ोर मुद्रा तथा बढ़ती महँगाई के कारण वर्ष 2017 में लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन भी किये गए। 

ईरानी परमाणु कार्यक्रम:

  • जुलाई 2015 में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (United Nations Security Counci) के सदस्य देश - अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और ब्रिटेन तथा जर्मनी और European Union (EU) ने ईरान के साथ एक परमाणु समझौता किया।
  • इसमें सुरक्षा परिषद् के पाँच स्थायी सदस्य तथा जर्मनी को सम्मिलित रूप से FIVE+ONE COUNTRY कहा जाता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्‍येता योजना में संशोधन

प्रीलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्‍येता योजना

मेन्स के लिये:

भारत में शोधकार्य को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development-MHRD) द्वारा ‘प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्‍येता योजना’ (Prime Minister Research Fellows- PMRF) में संशोधन किया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • ध्यातव्य है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा देश में शोध कार्य को बढ़ावा देने हेतु ‘प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्‍येता योजना’ की शुरुआत की गई थी।
  • उल्लेखनीय है कि ‘प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्‍येता योजना’ में संशोधन के पश्चात् किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान/ विश्वविद्यालय (आईआईएससी/ आईआईटी/ एनआईटी/ आईआईएसईआर/ आईआईआईटी के अलावा) के छात्र इस योजना के लिये पात्र होंगे, साथ ही पात्रता हेतु गेट (Graduate Aptitude Test in Engineering- GATE) परीक्षा में प्राप्त स्कोर को 750 से घटाकर 650 अंक कर दिया गया है।
  • ‘नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क’ (National Institutional Ranking Framework- NIRF) द्वारा जारी रैंकिंग में शीर्ष 25 संस्थानों में शामिल NITs भी PMRF के अंतर्गत शामिल किये जाएंगे।
  • उल्लेखनीय है कि देश में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय में ‘रिसर्च एंड इनोवेशन डिवीज़न’ (Research And Innovation Division) नामक एक विभाग तैयार किया जा रहा है। इस विभाग के अध्यक्ष द्वारा MHRD के तहत आने वाले विभिन्न संस्थानों के अनुसंधान कार्य का समन्वय किया जाएगा।
  • PMRF योजना हेतु पात्रता को निम्नलिखित 2 भागों में विभाजित किया गया है:
    • डायरेक्ट एंट्री चैनल (Direct Entry Channel) 
    • लेटरल एंट्री चैनल (Lateral Entry Channel)

डायरेक्ट एंट्री चैनल (Direct Entry Channel) हेतु पात्रता :

  • उम्मीदवार इस योजना हेतु पात्र होगा यदि उसने मान्यता प्राप्त किसी भी भारतीय संस्थान/विश्वविद्यालय से विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में पूर्ववर्ती तीन वर्षों में स्नातक या परास्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली हो या अंतिम वर्ष में अध्ययनरत हो। इसके साथ ही स्नातक या परास्नातक में CGPA अंक 8.0 या उससे अधिक तथा GATE स्कोर 650 अंक या उससे अधिक होना चाहिये।
    • ऐसा उम्मीदवार जो GATE परीक्षा उत्तीर्ण कर PMRF के तहत आने वाले संस्थानों से M.Tech./MS में अध्ययनरत या पढ़ाई पूरी कर चुके हैं, के प्रथम समेस्टर के कम-से-कम चार विषयों में CGPA अंक 8.0 या उससे अधिक होना चाहिये। 
  • उम्मीदवार इस योजना हेतु पात्र होगा यदि वह PMRF के तहत आने वाले किसी एक संस्थान में Ph.D हेतु चयनित हो।
  • इसके साथ ही यदि PMRF के तहत आने वाले संस्थानों द्वारा Ph.D हेतु चयनित (साक्षात्कार के माध्यम से) विद्यार्थियों की सिफारिश की जाती है तो उस स्थिति में भी पात्रता मानी जाएगी। ऐसे उम्मीदवारों को वरीयता दी जाएगी जिनके शोधकार्य किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित किये जा चुके हों या जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक प्रतियोगिताओं में भागीदारी की हो। 

लेटरल एंट्री चैनल (Lateral Entry Channel) हेतु पात्रता :

  • ऐसे उम्मीदवार जो परास्नातक के बाद Ph.D में 12 महीनों से अध्ययनरत हों या  स्नातक के बाद Ph.D में 24 महीनों से अध्ययनरत हों, लेटरल एंट्री के लिये पात्र होंगे। इसके साथ-साथ Ph.D कार्यक्रम में कम-से-कम चार पाठ्यक्रमों में CGPA अंक 8.5 या इससे अधिक होनी चाहिये।
  • PMRF के तहत आने वाले संस्थानों द्वारा उम्मीदवारों की सिफारिश की गई हो।
  • ऐसे उम्मीदवारों को वरीयता दी जाएगी जिनके शोधकार्य किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित किये जा चुके हों।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

खाद्य बनाम ईंधन

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा तथा जैव ईंधन नीति 

चर्चा में क्यों?

'केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री' (Union Minister of Petroleum and Natural Gas) की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति' (National Biofuel Coordination Committee- NBCC) ने 'भारतीय खाद्य निगम' (Food Corporation of India- FCI) के पास उपलब्ध 'अधिशेष' चावल का इथेनॉल निर्माण में उपयोग करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह निर्णय अल्कोहल-आधारित हैंड-सेनिटाइज़र बनाने और पेट्रोल के साथ इथेनॉल के सम्मिश्रण को बढ़ावा देने को दृष्टिगत रखकर लिया गया है।  
  • हालाँकि इस निर्णय से लोगों की खाद्य सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।

'राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति'

(National Biofuel Coordination Committee- NBCC): 

  • NBCC में 'केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री'; जो समिति की अध्यक्षता करता है, के अलावा 14 अन्य मंत्रालयों एवं विभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।  
  • समिति 'जैव ईंधन कार्यक्रम' के कार्यान्वयन एवं प्रभावी निगरानी की दिशा में समन्वय तथा आवश्यक निर्णय लेने का कार्य करती है।

जैव ईंधन नीति और खाद्य सुरक्षा:

  • भारत के नीति निर्माता जैव ईंधन के उत्पादन में खाद्य अनाज के उपयोग से उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों के बारे प्रारंभ से ही चिंतित थे।
  • 'जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति' (National Policy on Biofuels), 2009 में खाद्य बनाम ईंधन के बीच संभावित संघर्ष से बचने के लिये केवल गैर-खाद्य संसाधनों का जैव ईंधन सामग्री के रूप में उपयोग करने का प्रावधान किया।
  • वर्ष 2018 में सरकार ने वर्ष 2009 की जैव ईंधन नीति को संशोधित किया। ‘जैव ईंधन पर नई राष्ट्रीय नीति’ में वर्ष 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल का 20% तथा डीज़ल में 5% के सम्मिश्रण का लक्ष्य रखा गया।
  • इसमें दूसरी पीढ़ी की जैव-रिफाइनरियों के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने तथा जैव ईंधन सामग्री के रूप में अवशिष्ट खाद्य पदार्थों के उपभोग की अनुमति प्रदान की गई।
  • नवीन जैव ईंधन नीति के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा समर्थन दिये जाने पर अतिरिक्त खाद्यान उत्पादन का उपयोग एथनॉल उत्पादन किया जा सकता है।

 भारत में खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ: 

  • भारत उन देशों में शामिल है जहाँ तीव्र गरीबी, भुखमरी और कुपोषण की स्थिति है।  'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' (Global Hunger Index)- 2019 के अनुसार, 117 देशों में भारत 102 वें स्थान पर रहा है। 
  • 'राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण' (National Family Health Survey- 4 NFHS-4) के अनुसार, पाँच वर्ष से कम उम्र के 38.4% फीसदी बच्चें 'बौने' (Stunted- उम्र के अनुसार लंबाई कम), जबकि  21% बच्चे 'वेस्टेड’ (Wasted: लंबाई के अनुसार कम वजन) हैं। वास्तव में 'वेस्टेड’ दर NFHS-3 में 19.8% से बढ़कर NFHS-4 में 21% हो गई है।

संभावित चुनौतियाँ:

  • सरकार द्वारा अतिरिक्त खाद्यान उत्पादन का जैव ईंधन सामग्री के रूप में उपयोग करने का निर्णय मौसम विभाग द्वारा इस वर्ष ‘सामान्य मानसून रहने के पूर्वानुमान’ को दृष्टिगत रखकर लिय गया है। परंतु यदि मानसून पूर्वानुमान गलत साबित होता है तो इसके खाद्य सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि प्रतिवर्ष FCI बफर स्टॉक का बहुत बड़ा भाग खराब हो जाता है, तथा इसे जैव ईंधन सामग्री के रूप में प्रयोग करने के लिये जैव ईंधन नीति- 2018, में अवशिष्ट अन्न संबंधी प्रावधान जोड़ा गया था परंतु वास्तविकता कुछ अलग है। 
  • पिछले पाँच वर्षों में FCI द्वारा जारी कुल अनाज में केवल 0.01% से 0.04% अनाज खराब हुआ है। इतनी कम मात्रा में क्षतिग्रस्त अनाज से शायद ही कोई इथेनॉल बनाया जा सके।

आगे की राह:

  • जब COVID- 19 महामारी के चलते राष्ट्रीय आय में भारी गिरावट, बेरोज़गारी में वृद्धि, और आपूर्ति श्रंखला में बाधा उत्पन्न होने से खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि होने की संभावना है ऐसे समय में खाद्य सुरक्षा और खाद्य मूल्य स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • इथेनॉल का उत्पादन अन्य सामग्रियों जैसे गन्ना उत्पादों से किया जाना चाहिये तथा अतिरिक्त अनाज को राहत पैकेज के रूम में प्रवासी श्रमिकों को उपलब्ध कराना चाहिये।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नैनोमैटिरियल्स आधारित सुपरकैपसिटर

प्रीलिम्स के लिये:

नैनोमैटिरियल्स आधारित सुपरकैपसिटर, 

मेन्स के लिये:

नैनोमैटिरियल्स आधारित सुपरकैपसिटर से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों:

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-वाराणसी (Indian Institute of Technology-Varanasi) के शोधकर्त्ताओं (INSPIRE पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता भी शामिल) ने नैनोमैटिरियल्स आधारित सुपरकैपसिटर (Nanomaterials Based Supercapacitor) विकसित किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • यह शोधकार्य ‘मैटेरियल्स रिसर्च एक्सप्रेस’ (Materials Research Express) में प्रकाशित किया गया है।
  • गौरतलब है कि नैनोमैटिरियल्स आधारित सुपरकैपेसिटर की मदद से उच्च ऊर्जा घनत्व और उच्च शक्ति घनत्व को प्राप्त किया जा सकता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने 100°C पर उच्च संधारित क्षमता वाले ‘रिडूसड ग्राफेन ऑक्साइड’ (Reduced Graphene Oxide rGO) को विकसित किया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने लौह-आधारित नैनोकैटलिस्ट के संश्लेषण हेतु एक नया दृष्टिकोण भी विकसित किया है, जिसका उपयोग कैबोन नैनोट्यूब के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये किया जा सकता है।

महत्त्व:

  • तकनीकी प्रगति और बढ़ती आबादी से ऊर्जा की मांग में निरंतर बढ़ोतरी मानव समाज के सामने एक गंभीर चुनौती है।
  • उच्च ऊर्जा घनत्व वाले सुपरकैपसिटर से अत्यधिक समय तक बिना चार्ज किये एक सामान विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है।
  • सुपरकैपसिटर की मदद से वाहनों की बैटरी को बिना चार्ज किये लंबी दूरी का सफर तय किया जा सकता है।

अन्य शोधकार्य:

  • शोधकर्त्ताओं का एक समूह नैनोमैटेरियल्स के ऑप्टोइलेक्ट्रोनिक अनुप्रयोग पर भी कार्य कर रहा है।
    • ‘ऑप्टोइलेक्ट्रोनिक’ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और प्रणालियों का अध्ययन है जिसमे प्रकाश के स्रोत का पता लगाना और नियंत्रित करना शामिल है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘फोटोडिटेक्शन’ (Photodetection) और ‘सरफेस एनहांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ (Surface-Enhanced Raman Spectroscopy) के लिये कार्बन तथा धातु डाइकैल्कोजेनाइड्स अर्द्धचालक (Metal Dichalcogenides Semiconductors) के नैनोस्ट्रक्चर को भी विकसित किया जा रहा है।
    • ट्रांज़ीशन मेटल डाइकैल्कोजेनाइड्स: यह मोनोलेयर्स MX2 के पतले अर्द्धचालक के अणु के रूप में होते हैं जिसमे M एक ट्रांज़ीशन मेटल अणु (Mo, W, इत्यादि) और X एक चाल्कोज़न (Chalcogen) अणु (S, Se, इत्यादि) है।
    • फोटोडिटेक्शन: ‘फोटोडिटेक्शन’ एक ऑप्टिकल सिग्नल को दूसरे सिग्नल के रूप में परिवर्तित करता है। अधिकांश फोटोडिटेक्शन ऑप्टिकल सिग्नल को विद्युत सिग्नल में परिवर्तित करते हैं जिन्हें आगे संसाधित या संग्रहीत किया जा सकता है।
  • इस शोधकार्य के माध्यम से उन्होंने दृश्यमान प्रकाश (Visible Light) का पता लगाने हेतु नैनोस्केल MoS2 के विभिन्न आर्किटेक्चर के उत्कृष्ट फोटोडिटेक्शन के व्यवहार का भी पता लगाया है। 
  • सिग्नल कार्य हेतु ‘अल्ट्राफास्ट डिटेक्टर’ को विकसित करने हेतु यह शोधकार्य मददगार साबित हो सकता है।
  • यह शोधकार्य ‘फिज़िकल केमिस्ट्री लेटर्स’ (Physical Chemistry Letters) में प्रकाशित किया गया है।
  • ‘सरफेस एनहांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ पानी में मौजूद न्यूनतम सांद्रता वाले हानिकारक अणुओं का पता लगाने में मदद कर सकता है।

इनोवेशन इन साइंस परसूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च (INSPIRE):

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology-DST) द्वारा शुरू किये गए INSPIRE कार्यक्रम के तहत विज्ञान में प्रतिभावान छात्रों को अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।
  • इस कार्यक्रम की शुरुआत 13 दिसंबर, 2008 को की गई थी।
  • INSPIRE कार्यक्रम के तीन घटक हैं - 
    • विज्ञान में प्रतिभा के शुरूआती आकर्षण हेतु योजना
    • उच्‍च शिक्षा के लिये छात्रवृत्‍ति
    • शोध कार्य हेतु अवसर

Inspire-Scheme

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में रासायनिक आपदा और सुरक्षा उपाय

प्रीलिम्स के लिये:

स्टाइरीन, सार्वजनिक दायित्त्व बीमा अधिनियम, राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम

मेन्स के लिये:

रासायनिक आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित 'एलजी पॉलिमर कारखाने' में ‘स्टाइरीन गैस’ (Styrene Gas) का रिसाव होने से कम-से-कम 11 लोगों की मौत हो गई।

प्रमुख बिंदु:

  • इस कारखाने की स्थापना वर्ष 1961 में की गई, जिसमें पॉलीस्टीरेन (Polystyrene) तथा प्लास्टिक यौगिकों का निर्माण किया जाता है।
  • इस दुर्घटना से कारखाने के आसपास के पाँच गाँवों के लगभग 2,000 से अधिक निवासी प्रभावित हुए हैं।

स्टाइरीन (Styrene):

  • यह एक ज्वलनशील तरल है, जिसका उपयोग पॉलीस्टीरिन प्लास्टिक, फाइबरग्लास, रबर और लैटेक्स के निर्माण में किया जाता है। 
  • ‘यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन’ द्वारा चलाई गई वेबसाइट ‘टॉक्स टाउन’ के अनुसार, स्टाइरीन वाहन तथा सिगरेट के धुएँ तथा फलों एवं सब्जियों जैसे प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में भी पाया जाता है।

स्टाइरीन के संपर्क में आने पर प्रभाव:

  • स्टाइलिन के अल्पकालिक संपर्क से श्वसन संबंधी समस्या, आंखों में जलन, श्लेष्मा झिल्ली में जलन और जठरांत्र संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
  • जबकि दीर्घकालिक संपर्क होने पर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है तथा कुछ मामलों में कैंसर भी हो सकता है।

प्रमुख लक्षण:

  • स्टाइरीन से उत्पन्न होने वाले लक्षणों में सिरदर्द होना, सुनने में कमी आना, थकान महसूस करना, कमज़ोरी महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई आदि शामिल हैं।

रासायनिक आपदा (Chemical Disaster):

  • रासायनिक आपदा से तात्पर्य उन दुर्घटनाओं से है जब मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले खतरनाक रासायनिक पदार्थ का वातावरण में मुक्त हो जाए।

 रासायनिक आपदाओं के संभावित कारण:

  • प्रक्रिया और सुरक्षा प्रणालियों की विफलता;
    • मानवीय त्रुटियाँ
    • तकनीकी त्रुटियाँ 
    • प्रबंधन संबंधी त्रुटियाँ 
  • प्राकृतिक आपदा जनित दुर्घटना;
  • खतरनाक अपशिष्टों के परिवहन वाहनों का दुर्घटनाग्रस्त होना;
  • लोगों की अशांति के दौरान कारखानों में तोड़-फोड़; 

भोपाल गैस त्रासदी तक रासायनिक आपदा संबंधी कानून:

  • भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के समय तक 'भारतीय दंड संहिता' (Indian Penal Code- IPC) रासायनिक घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार लोगों की आपराधिक देयता को निर्दिष्ट करने वाला एकमात्र प्रासंगिक कानून था। रासायनिक आपदा संबंधित प्रावधानों को धारा 304A में शामिल किया गया।
    • यह धारा लापरवाही के कारण लोगों की मौत से संबंधित है तथा इस धारा के तहत अपराधी को अधिकतम दो वर्ष की सजा और जुर्माना लगाया जाता है।
  • वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के बाद भोपाल गैस त्रासदी के आरोपों को पुन: निर्धारित किया गया। निर्णय के अनुसार, इस प्रकार बात के कोई प्रमाण नहीं है जो यह दिखा सके कि आरोपी को दुर्घटना का पूर्वानुमान था कि गैस रिसाव होगी।

भोपाल गैस त्रासदी के बाद के प्रमुख कानून:

  • भोपाल गैस त्रासदी के तुरंत बाद सरकार ने पर्यावरण को विनियमित करने तथा सुरक्षा उपायों एवं दंडों को निर्दिष्ट करने संबंधी कई कानूनों को पारित किया। इनमें से कुछ निम्नलिखित थे: 
  • भोपाल गैस रिसाव (दावों का निपटान) अधिनियम (Bhopal Gas Leak (Processing of Claims) Act)- 1985:
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े या उससे जुड़े दावों को सुरक्षित रखने की शक्तियाँ प्रदान करता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत ऐसे दावों का तेज़ी तथा न्यायसंगत तरीके से निपटान करने का प्रावधान किया गया।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act)- 1986:
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को औद्योगिक इकाइयों के लिये पर्यावरण सुधार के उपाय अपनाने, मानकों को निर्धारित करने तथा निरीक्षण करने की शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • सार्वजनिक दायित्त्व बीमा अधिनियम (Public Liability Insurance Act)- 1991:
    • यह अधिनियम खतरनाक पदार्थों से निपटान के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने के लिये है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम (National Environment Appellate Authority Act)- 1997:
    • इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण (National Environment Appellate Authority- NEAA), पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अपनाए गए सुरक्षा उपायों के अधीन उन क्षेत्रों में औद्योगिक कार्यों के प्रतिबंधों के बारे में अपील सुन सकता है।
  • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) अधिनियम- 2010:
    • पर्यावरण संरक्षण और वनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये एक NGT की स्थापना की गई, जो औद्योगिक गतिविधियों के संबंध में भी आवश्यक निर्देश देने का कार्य करता है।

भारत में रासायनिक आपदा की स्थिति:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) के अनुसार, हाल के दिनों में देश में 130 से अधिक प्रमुख रासायनिक दुर्घटनाएँ हुई हैं, जिसमें 259 लोगों की मौतें हुई हैं तथा 560 से अधिक लोगों को बहुत अधिक शारीरिक नुकसान हुआ है।
  • देश के 301 ज़िलों में फैली 1861 से अधिक प्रमुख रासायनिक खतरों वाली इकाइयाँ हैं। इसके अलावा हजारों पंजीकृत एवं खतरनाक कारखाने तथा असंगठित क्षेत्र हैं।

निष्कर्ष:

  • NDMA द्वारा जारी दिशा-निर्देश रासायनिक आपदाओं से निपटने हेतु विभिन्न स्तरों के कार्मिकों से सक्रिय, भागीदारी, बहुविषयक एवं बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाने की माँग करते हैं। अत: इस दिशा में NDMA के साथ-साथ राज्य सरकारों तथा सभी हितधारकों को मिलकर रासायनिक आपदा प्रबंधन की दिशा में कार्य करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

राजकोषीय घाटा लक्ष्य और COVID- 19

प्रीलिम्स के लिये:

राजकोषीय घाटा लक्ष्य, FRBM अधिनियम, एस्केप क्लॉज़ 

मेन्स के लिये:

राजकोषीय प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही 'भारतीय रिज़र्व बैंक' (Reserve Bank of India- RBI) गवर्नर ने एक न्यूज़ एजेंसी को दिये इंटरव्यू में बताया कि सरकार, COVID- 19 महामारी के चलते वित्त वर्ष 2021 में अपने ‘राजकोषीय घाटा’ (Fiscal Deficit) लक्ष्य को पूरा करने में चूक कर सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • सरकार ने समाज से सुभेद्य वर्गों की आर्थिक सहायता के लिये राहत पैकेज की घोषणा की है तथा इसके लिये सकल घरेलू उत्पाद (Gross domestic product- GDP) का 0.8% खर्च करने के प्रति प्रतिबद्धता है।
  • सरकार ने व्यय को संतुलित रखने के लिये कर्मचारियों के महँगाई भत्ते पर रोक लगाई है परंतु फिर भी ‘राजकोषीय घाटा’ बजट में निर्धारित सीमा को पार कर सकता है।
  • सरकार ने वित्त वर्ष 2020 के लिये राजकोषीय घाटे को 3.8% (संशोधित अनुमान) और वित्त वर्ष 2021 के लिये इसे 3.5% (बजटीय अनुमान) निर्धारित किया है। 
  • केंद्रीय बजट में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (Fiscal Responsibility and Budget Management- FRBM) अधिनियम की धारा 4 (3) के अनुरूप, राजकोषीय लक्ष्यों से 50 आधार अंकों का विचलन निर्धारित किया है।

Trend-in-Deficit

‘राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन’ अधिनियम:

(Fiscal Responsibility and Budget Management- FRBM) 

  • FRBM अधिनियम को अगस्त 2003 में लागू किया गया तथा अधिनियम को लागू करने के नियमों को जुलाई 2004 में अधिसूचित किया गया था। 
  • FRBM का उद्देश्य केंद्र सरकार को राजकोषीय प्रबंधन तथा दीर्घकालिक वृहद-आर्थिक स्थिरता में अंतर-पीढ़ीगत समता (Inter-generational equity) सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार बनाना है।
  • अधिनियम केंद्र सरकार के ऋण तथा राजकोषीय घाटे की ऊपरी सीमा को निर्धारित करता है।
  • इसने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3% तक सीमित कर दिया।
  • वर्ष 2004 में 12 वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों के बाद राज्यों ने अपने स्वयं के 'वित्तीय उत्तरदायित्व विधान' (Financial Responsibility Legislation) को लागू किया है, जो राज्यों के ऊपर भी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP) के 3% बजटीय घाटे की सीमा निर्धारित करता है।
  • यह केंद्र सरकार के राजकोषीय कार्यों में अधिक पारदर्शिता लाने तथा मध्यम अवधि के ढाँचे (Medium-Term Framework) में राजकोषीय नीति के संचालन को भी अनिवार्य करता है।
    • केंद्र सरकार द्वारा बजट के साथ ‘मध्यम अवधि राजकोषीय नीति वक्तव्य’ (Medium Term Fiscal Policy Statement) पेश किया जाता है, जो तीन वर्ष के लिये वार्षिक राजस्व एवं राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को निर्दिष्ट करता है।

FRBM एक्ट के तहत छूट: 

एस्केप क्लॉज़ (Escape Clause) का प्रावधान:

  • FRBM अधिनियम की धारा 4 (2) के तहत, केंद्र सरकार कुछ आधारों का हवाला देते हुए वार्षिक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पार किया जा सकता है। 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा या युद्ध 
  • राष्ट्रीय आपदा 
  • कृषि के पतन 
  • संरचनात्मक सुधार 
  • किसी तिमाही की वास्तविक उत्पादन वृद्धि में गिरावट (पिछले चार तिमाहियों के औसत से कम से कम तीन प्रतिशत अंकों की कमी)

FRBM शर्तों में पूर्व में दी गई छूट: 

  • वर्ष 2008-09 में वैश्विक वित्तीय संकट से बचाव के लिये केंद्र सरकार द्वारा राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों का सहारा लिया। इसके चलते राजकोषीय घाटा 2.7% के अनुमानित लक्ष्य से बढ़कर 6.2% हो गया।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

FPIs के बहिर्वाह में गिरावट

प्रीलिम्स के लिये

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

मेन्स के लिये

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में विदेशी निवेशकों का योगदान

चर्चा में क्यों?

कोरोनावायरस महामारी और उसके आर्थिक प्रभावों के बीच अप्रैल, 2020 में 'विदेशी पोर्टफोलियो निवेश' (Foreign Portfolio Investment-FPI) के बहिर्वाह (Outflows) की गति में काफी कमी आई है, जो कि मार्च माह के 1,18,203 करोड़ रुपए से अप्रैल माह में 14,858 करोड़ रुपए पर पहुँच गया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि अप्रैल में पूंजी बाज़ार से 14,858 करोड़ रुपए का शुद्ध निधि बहिर्वाह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि मार्च माह में जब देश में कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत हुई थी और देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, तब पूंजी बाज़ार से शुद्ध निधि बहिर्वाह काफी अधिक था।
  • सेंट्रल डिपॉज़िटरी सर्विसेज़ लिमिटेड (Central Depository Services Limited-CDSL) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल माह में इक्विटी बाज़ार (Equities Market) से तकरीबन 6,883 करोड़ रुपए का बहिर्वाह हुआ, जो कि मार्च माह में 61,972 करोड़ रुपए था।
  • वहीं ऋण बाज़ार (Debt Market) से अप्रैल माह में तकरीबन 12,551 करोड़ रुपए का बहिर्वाह हुआ, जो कि मार्च माह में 60,375 करोड़ रुपए था।
  • FPIs के बहिर्वाह में तेज़ी से गिरावट के कारण इक्विटी बाज़ारों (Equity Markets) को काफी राहत प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त अप्रैल माह में सेंसेक्स (Sensex) में भी 14.4 प्रतिशत की तेज़ी देखी गई है।

इक्विटी बाज़ार और ऋण बाज़ार 

  • इक्विटी बाज़ार एक ऐसा बाज़ार होता है जहाँ कंपनियों के अंशों (Shares) और स्टॉक्स (Stocks) का कारोबार होता है। इक्विटी बाज़ार अथवा शेयर बाज़ार अर्थव्यवस्था के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, क्योंकि यह कंपनियों को पूंजी तक पहुँच प्रदान करता है और निवेशकों को लाभ प्राप्त करना का अवसर प्रदान करता है।
  • ऋण बाज़ार वह बाज़ार होता है, जहाँ ऋण विलेखों (Debt Instruments) का कारोबार होता है। ऋण विलेख वे परिसंपत्तियां होती हैं जिसमें धारक को एक निश्चित भुगतान की आवश्यकता होती है, सामान्यतः ब्याज के साथ।

कारण

  • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार ने ग्रीन और ऑरेंज (Green and Orange) ज़ोन्स में लॉकडाउन प्रतिबंधों में काफी हद तक ढील देने की घोषणा की है और साथ ही रेड ज़ोन (Red Zones) में कुछ व्यावसायिक गतिविधियों को भी अनुमति दी गई है, जिससे देश की आर्थिक गतिविधियों में कुछ तेज़ी आएगी। सरकार के इन निर्णयों का प्रभाव FPIs के बहिर्वाह पर भी देखने को मिला है।
  • भारत में कोरोनावायरस संक्रमण के मामले दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं और इसी के साथ आर्थिक अनिश्चितता भी बढ़ती जा रही है, हालाँकि दुनिया भर के अधिकांश देश COVID-19 के लिये वैक्सीन विकसित करने में लगे हुए हैं, जिसमें कुछ देशों को प्रगति भी मिली है, इसलिये निवेशकों के मध्य कुछ विश्वास पैदा हुआ है। 
  • अर्थव्यवस्था को पुनः मज़बूत करने के लिये सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा समय-समय पर घोषित किये गए उपायों ने भी निवेशकों के मध्य विश्वास पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

(Foreign Portfolio Investment- FPI)

  • FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है,  जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है।
  • FPI के तहत निवेशक शेयर के लाभांश या ऋण पर मिलने वाले ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त करते हैं। 
  • FPI में निवेशक ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ के विपरीत कंपनी के प्रबंधन (उत्पादन, विपणन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 मई, 2020

तरुण बजाज

केंद्र सरकार ने आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के केंद्रीय निदेशक मंडल में निदेशक के तौर पर नियुक्त किया है। तरुण बजाज 30 अप्रैल, 2020 को सेवानिवृत्त हुए अतनु चक्रवर्ती का स्थान लेंगे। रिज़र्व बैंक के अनुसार, तरुण बजाज का नामांकन 05 मई से अगले आदेश तक प्रभावी रहेगा। ध्यातव्य है कि तरुण बजाज वर्ष 1988 बैच के IAS अधिकारी हैं। आर्थिक मामलों के सचिव बनाए जाने से पहले वह प्रधानमंत्री कार्यालय में अतिरिक्त सचिव के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। इससे पूर्व तरुण बजाज वित्त मंत्रालय में ही आर्थिक मामलों के संयुक्त सचिव और वित्त सेवा विभाग के निदेशक एवं संयुक्त सचिव के तौर पर अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। तरुण बजाज को वित्त मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। उल्लेखनीय है कि तरुण बजाज ने ऐसे समय में प्रभार संभाला है, जब देश कोरोनावायरस महामारी का सामना कर रहा है, और केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें राजस्व की कमी का सामना कर रही हैं। कोरोनावायरस जनित लॉकडाउन के कारण देश में तमाम आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हुई हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में नीति निर्माण की प्रक्रिया काफी महत्त्वपूर्ण हो गई है।

भारतीय मौसम विभाग

भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department-IMD) के प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले क्षेत्रों को भी अपनी मौसम पूर्वानुमान सूची में शामिल कर लिया है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, अब विभाग ने गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) और मुज़फ्फराबाद (Muzaffarabad) के लिये भी पूर्वानुमान जारी करना प्रारंभ कर दिया है, जो अभी पाकिस्तान के कब्ज़े वाला क्षेत्र में आते हैं। IMD के अनुसार, PoK के ये शहर IMD की उत्तर-पश्चिम डिविज़न के तहत आते हैं। अभी तक गिलगित-बाल्टिस्तान एक स्वायत्त क्षेत्र है, जहाँ प्रादेशिक असेंबली के अतिरिक्त एक चुना हुआ मुख्यमंत्री भी है। इसका कुल क्षेत्रफल 72,971 वर्ग किमी. है और इसका प्रशासनिक केंद्र गिलगित शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ढाई लाख है। गिलगित-बाल्टिस्तान में कुल 7 ज़िले हैं, जिनमें से 5 गिलगित में और 2 बाल्टिस्तान में हैं तथा गिलगित और स्कर्दू से इनका प्रशासन चलाया जाता है।

‘आयुष कवच’ एप्लीकेशन 

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के आयुष विभाग द्वारा विकसित ‘आयुष कवच’ नामक एक मोबाइल एप्लीकेशन लॉन्च की है। यह एप्लीकेशन COVID-19 से लड़ने की प्रक्रिया में प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने हेतु स्वास्थ्य उपचार और उपाय प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है। यह एप्लीकेशन कुछ अवयवों (Ingredients) के औषधीय गुणों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह एप्लीकेशन उपयोगकर्त्ताओं को विशेषज्ञों से औषधि से संबंधित सलाह लेने में भी सक्षम बनाता है। एप्लिकेशन का मुख्य उद्देश्य उपयोगकर्त्ताओं को यह जानकारी प्रदान करना है कि COVID-19 का मुकाबला करने के लिये शरीर की प्रतिरक्षा में तुलसी, लौंग और दालचीनी जैसी आम रसोई सामग्रियों का क्या महत्त्व हो सकता है। ध्यातव्य है कि आयुष मंत्रालय ने COVID-19 से मुकाबला करने के लिये प्रतिरक्षा बढ़ाने हेतु कई उपायों और आयुर्वेदिक प्रथाओं की शुरुआत की है।

विश्व थैलेसीमिया दिवस

दुनिया भर में प्रतिवर्ष 08 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) के रूप मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य थैलेसीमिया, जो कि आनुवंशिक विकार है, के संदर्भ में जागरूकता फैलाना और इसकी रोकथाम के लिये आवश्यक कदम उठाना है। इस दिवस की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1994 में हुई थी और तब से थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन (Thalassaemia International Federation-TIF) इस दिवस पर कई गतिविधियों का आयोजन करता है, जिनका उद्देश्य आम जनता, रोगियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों, स्वास्थ्य पेशेवरों और उद्योग के प्रतिनिधियों को इस आनुवंशिक विकार के प्रति जागरूक करना है। थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार (Chronic Blood Disorder) है, जिसके कारण एक रोगी के लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells-RBC) में पर्याप्त हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) नहीं बन पाता है। इसके कारण एनीमिया हो जाता है और रोगियों को जीवित रहने के लिये हर दो से तीन सप्ताह बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। थैलेसीमिया माता-पिता के जींस के माध्यम से बच्चों को मिलने वाला एक आनुवंशिक विकार है।


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