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डेली न्यूज़

  • 05 Aug, 2019
  • 55 min read
सामाजिक न्याय

हर 20 सालों में दोगुनी हो जाएगी कैंसर की दर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में टाटा मेडिकल सेंटर द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में आने वाले 10-20 वर्षों में काफी बड़ी संख्या में कैंसर के मामले सामने आएंगे।

प्रमुख बिंदु

  • कैंसर पर आधारित यह अध्ययन मोहनदास के. मल्लथ (टाटा मेडिकल सेंटर, कोलकाता) और रॉबर्ट स्मिथ (किंग्स कॉलेज, लंदन के छात्र) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  • अध्ययन के अनुसार, इन राज्यों में पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग और पूर्ति में काफी बड़ा अंतर है। यदि इसके समाधान के लिये तत्काल कुछ बड़े कदम नहीं उठाए गए तो इन राज्यों को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • अध्ययन के प्रमुख शोधकर्त्ता के. मल्लथ के अनुसार, इस अध्ययन को करने के पीछे एक बड़ा कारण यह था कि वे इस गलतफहमी में थे कि भारत में कैंसर की महामारी का प्रमुख कारण पश्चिमी जीवन शैली अर्थात् आधुनिक जीवन शैली है और वे इस समस्या की तह तक जाना चाहते थे।
  • इस अध्ययन के लिये दोनों शोधकर्त्ताओं ने लंदन के दो पुस्तकालयों (ब्रिटिश लाइब्रेरी और वेलकम कलेक्शन लाइब्रेरी) में बीते दो दशकों में कैंसर पर प्रकाशित सभी अध्ययनों की जाँच की थी।
  • अध्ययन के अनुसार, जैसे-जैसे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे कैंसर के मामलों में भी वृद्धि हो रही है। यह संख्या यदि इसी तरह बढ़ती रही तो हर बीस साल में कैंसर के मामलों दोगुने होते जाएंगे।
  • उदाहरण के लिये, यदि तम्बाकू को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाए, तो भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 10 वर्ष और बढ़ जाएगी, जिससे देश में कैंसर के मामलों में भी वृद्धि होगी।
  • स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसे महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर (Epidemiological Transition Levels- ETL) कहते हैं। भारत के कई राज्य ETL के अलग-अलग चरण में हैं, जैसे- केरल में ETL का स्तर सबसे अधिक है और उत्तर प्रदेश में ETL का स्तर सबसे कम। ज्ञातव्य है कि उच्च ETL वाले राज्यों में विकास सूचकांक काफी अच्छा होता है और कैंसर की दर भी।
  • हालाँकि उच्च ETL वाले राज्यों में कैंसर की दर अधिक होती है, परंतु इन राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण कैंसर से होने वाली मृत्यु दर आनुपातिक रूप से कम है।

इससे लड़ने के लिये क्या कर सकते हैं?

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, सरकार को जल्द-से-जल्द कैंसर से संघर्ष करने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। यदि इस संदर्भ में केंद्र और राज्य अपने दायित्वों को लेकर भ्रमित होंगे तो इससे रोगियों को ही कष्ट सहना पड़ेगा।
  • सरकार को कैंसर के रोकथाम और देखभाल संबंधी कार्यक्रमों को चलने के लिये निजी अस्पतालों पर निर्भर नहीं रहना चाहिये, क्योंकि एक आम आदमी के लिये निजी अस्पतालों में इलाज करना काफी खर्चीला होता है।
  • आरंभिक तौर पर केंद्र सरकार को कैंसर पर भोरे कमेटी और मुदलियार कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू करना चाहिये।
  • दोनों ही कमेटियों की सिफारिशों में सभी मेडिकल कॉलेजों में एक बहु-विषयक कैंसर उपचार इकाई (Multidisciplinary Cancer Treatment Unit) का निर्माण और सभी राज्यों में केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थापित क्षेत्रीय कैंसर केंद्र जैसे एक अलग कैंसर अस्पताल की स्थापना करना शामिल है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारतीय विरासत और संस्कृति

ओडिशा में प्राचीन बस्ती की खोज

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) को ओडिशा के कटक ज़िले के जालारपुर गाँव में लगभग 3,600 साल पहले की ग्रामीण बस्ती का पता चला।

प्रमुख बिंदु

  • ASI को पिछले साल ओडिशा के कटक ज़िले के जालारपुर गाँव में भारती हुदा (Bharati Huda) में खुदाई के दौरान प्राचीन कलाकृतियों, चारकोल एवं अनाज का पता चला था।
  • आयु का अनुमान लगाने के लिये नई दिल्ली में अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (Inter University Accelerator Centre-IUAC) द्वारा एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (Accelerator Mass Spectrometry-AMS) का उपयोग करके साइट पर पाए जाने वाले चारकोल के नमूनों की रेडियो-कार्बन डेटिंग (Radio Carbon Dating) की गई।
  • विभिन्न स्तरों पर की गई खुदाई के दौरान पाए गए चारकोल के नमूने के तीसरे स्तर में 1072 ईसा पूर्व, चौथे स्तर में 1099 ईसा पूर्व, पाँचवें स्तर में 1269 ईसा पूर्व तथा सातवें स्तर में 1404 ईसा पूर्व के होने के प्रमाण मिले हैं।
  • इस उत्खनन की पुष्टि से चाल्कोलिथिक/ताम्रपाषाण सभ्यता के परिपक्व चरण के दौरान भारती हुदा में ग्रामीण निवासियों के संपर्क में जातीय समूह का एक नया वर्ग आ सकता है।
  • चॉकलेट स्लिपड पॉटरी (Chocolate-slipped Pottery) जिसमें सूर्य का चित्र उकेरा गया है, से पता चलता है कि यह प्रकृति की पूजा से संबंधित धार्मिक विश्वास था। इस साक्ष्य को 1099 ईसा पूर्व का मानते हुए प्राची घाटी (Prachi Valley) में सूर्य पूजा की प्राचीनता को भी स्पष्ट किया जा सकता है।
  • खुदाई में मिले अवशेष घाटी में ताम्रपाषाण सभ्यता के अस्तित्व का संकेत देते हैं जिससे कीचड़ (Mud) में संरचनात्मक अवशेषों की उपस्थिति, मिट्टी के बर्तनों के ढेर, पॉलिश किये गए पत्थर के औज़ार, हड्डियों से बने औज़ार, अर्द्ध-कीमती पत्थरों की माला, टेराकोटा की वस्तुओं, जले हुए अनाज तथा भारी मात्रा में जीव-जंतुओं की मौजूदगी आदि का पता चलता है।
  • इस खुदाई वाले स्थान से लगभग 30 किलोमीटर दूर कोणार्क का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है जो 13वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था।
  • सूर्य पूजा की परंपरा इस क्षेत्र में मानव बस्तियों के साथ विकसित हुई है।

रेडियो कार्बन डेटिंग

Radio Carbon Dating

  • रेडियो कार्बन डेटिंग जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों की आयु निर्धारण करने की विधि है। इस कार्य के लिये कार्बन-14 का प्रयोग किया जाता है। यह तत्त्व सभी सजीवों में पाया जाता है।
  • कार्बन-14, कार्बन का एक रेडियोधर्मी आइसोटोप है, जिसकी अर्द्ध-आयु लगभग 5,730 वर्ष मानी जाती है।
  • आयु निर्धारण करने की इस तकनीक का आविष्कार वर्ष 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय (अमेरिका) के विलियर्ड लिबी ने किया था।

एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री

Accelerator Mass Spectrometry- AMS

  • एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (Accelerator Mass Spectrometry- AMS) परमाणुओं की गिनती की एक अत्यधिक संवेदनशील विधि है।
  • इसके साथ अध्ययन करने में कार्बन-14 (C-14) को व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसका उपयोग रेडियोन्यूक्लाइड्स और स्थिर न्यूक्लाइड्स (Radionuclides and Stable Nuclides) के प्राकृतिक आइसोटोपिक बहुतायत की बहुत कम सांद्रता का पता लगाने के लिये किया जाता है।

अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र

Inter University Accelerator Centre

  • अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र वर्ष 1984 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा स्थापित किया जाने वाला पहला अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र था।
  • इसे पहले परमाणु विज्ञान केंद्र के रूप में जाना जाता था।
  • केंद्र का प्राथमिक उद्देश्य विश्वविद्यालय प्रणाली के भीतर त्वरक आधारित अनुसंधान के लिये विश्व स्तरीय सुविधाएँ स्थापित करना है।
  • इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों, आईआईटी और अन्य अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान एवं विकास के आम अनुसंधान कार्यक्रमों को तैयार करना है।
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।

साइट (जालारपुर गाँव) की विशेषता

  • इस साइट की भौतिक संस्कृति सांस्कृतिक विशेषताओं की निरंतरता में बड़े बदलाव के बिना धीरे-धीरे विकसित हुई प्रतीत होती है।
  • यह कृषि आधारित बस्ती से पूर्ण कृषि समाज तक संस्कृति के प्रवाह की तरह प्रदर्शित होती है।
  • इस साइट में गोलबाई सासन (Golabai Sasan), सुआबरेई (Suabarei) और अन्य उत्खनित स्थानों तथा महानदी डेल्टा में खोजे गए स्थानों में सांस्कृतिक समानता पाई गई है, जबकि मध्य महानदी घाटी तथा मध्य एवं पूर्वी भारत के स्थलों के चाल्कोलिथिक साइटों के साथ इसकी आंशिक समानता है।
  • पुरातत्त्वविदों के अनुसार, यहाँ के निवासियों ने कृषि और पशुपालन का अभ्यास किया होगा जो कि चावल एवं जूट की घरेलू विविधता के निष्कर्षों से प्रमाणित होता है
  • यहाँ पशुपालकों के बीच पालतू मवेशियों के साक्ष्य के साथ-साथ बैल की टेराकोटा आकृति भी पाई गई है।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण

Archaeological Survey of India- ASI

  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण राष्‍ट्र की सांस्‍कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्‍ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्‍मारकों तथा पुरातत्त्वीय स्‍थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है ।
  • इसके अतिरिक्‍त प्राचीन संस्‍मारक तथा पुरातत्त्वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, यह देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है।
  • यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण संस्‍कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

IIT दिल्ली में हुई ‘TechEx’ की शुरुआत

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने IIT दिल्ली में ‘TechEx’ नामक एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।

TechEx का उद्देश्य:

  • इस प्रदर्शनी का आयोजन मानव संसाधन विकास मंत्रालय की दो महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं (इम्पैक्टिंग रिसर्च, इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी-IMPRINT, उच्चतर आविष्कार योजना-UAY) के तहत विकसित उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिये किया जा रहा है।
  • TechEx एक अनूठा प्रयास है जो अनुसंधानकर्त्ताओं को उनका कार्य प्रदर्शित करने के लिये एक शानदार मंच प्रदान कराता है और उन्हें उनके संबंधित क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने के लिये प्रेरित करता है।

क्या-क्या है TechEx में?

  • प्रदर्शनी के दौरान कुल 142 पोस्टरों के अतिरिक्त IMPRINT के तहत विकसित 50 उत्पादों एवं UAY के तहत विकसित 26 उत्पादों का प्रदर्शन किया जाएगा।
  • इनमें से कई उत्पादों का वाणिज्यिक उत्पादन शीघ्र शुरू होने वाला है।

क्या है IMPRINT परियोजना?

  • तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 5 नवंबर, 2015 को ‘इंप्रिंट इंडिया’ का शुभारंभ किया गया था।
  • ‘इंप्रिंट इंडिया’ भारत के लिये महत्त्वपूर्ण दस प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में बड़ी इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी चुनौतियों के समाधान हेतु अनुसंधान के लिये एक खाका विकसित करने से संबंधित देश भर के IIT एवं IISC की संयुक्त पहल है।
  • यह पहल उच्चतर शिक्षा के भारतीय संस्थानों को उनकी क्षमता को महसूस कराने में सक्षम बनाती है एवं विश्व-स्तरीय संस्थानों के रूप में उभरने में मदद करती है।

दस मुख्य विषयों पर फोकस:

  • ‘इंप्रिंट इंडिया’ के अंतर्गत दस विषय-वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • इसके अंतर्गत शामिल दस विषय हैं- स्वास्थ्य देखभाल, कंप्यूटर साइंस एवं आईसीटी, एडवांस मैटिरियल्स, जल संसाधन एवं नदी प्रणाली, सतत् शहरी डिज़ाइन, प्रतिरक्षा, विनिर्माण, नैनो-टेक्नोलॉजी हॉर्डवेयर, पर्यावरण विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन तथा ऊर्जा सुरक्षा।

नोट: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) के सहयोग से यह परियोजना, एक पृथक कार्य-योजना के रूप में संचालित की जा रही है।

क्या है UAY योजना?

UAY योजना का उद्देश्‍य IIT संस्‍थानों में नए आविष्‍कारों को बढ़ावा देना है ताकि विनिर्माण उद्योगों की समस्‍याओं को हल किया जा सके, आविष्‍कार करने वाली मानसिकता को प्रोत्‍साहन मिले, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच समन्‍वय लाया जा सके तथा प्रयोगशालाओं और अनुसंधान सुविधाओं को सुदृढ़ किया जा सके।

  • इस परियोजना की शुरुआत 6 अक्तूबर, 2015 को की गई थी।
  • UAY के तहत 388.86 करोड़ रुपए की कुल लागत से कुल 142 परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया था जिनमें 83 पहले चरण में एवं 59 दूसरे चरण में थी।
  • UAY परियोजनाओं का वित्तपोषण संयुक्त रूप से मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रतिभागी मंत्रालयों एवं उद्योग द्वारा 50:25:25 के अनुपात में किया गया है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय विरासत और संस्कृति

चित्र शब्द विधि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित एक शोध-पत्र में यह दावा किया गया है कि सिंधु सभ्यता के शिलालेखों की तुलना आधुनिक काल के टिकटों, कूपन, टोकन और मुद्रा सिक्कों पर संरचित संदेशों से की जा सकती है।

  • द्विभाषी ग्रंथों की अनुपस्थिति, शिलालेखों की अत्यधिक संक्षिप्तता और सिंधु शिलालेखों की भाषा के बारे में अज्ञानता के कारण अभी तक इन शिलालेखों को पढ़ा नहीं जा सका है।

Indus Script

परिणाम

  • हाल ही में पालग्रेव कम्युनिकेशंस (Palgrave Communications) नामक एक जर्नल में प्रकाशित शोध-पत्र में यह दावा किया गया कि सिंधु घाटी के अधिकांश शिलालेखों को रेखांकन (शब्द चिह्नों का उपयोग करके) प्रतीक चिह्नों द्वारा लिखा गया था, न कि फोनोग्राम्स (भाषण ध्वनि इकाइयों) का उपयोग करके।
  • शोध पत्र मुख्य रूप से इस बात पर केंद्रित है कि सिंधु शिलालेख ने किस अर्थ को व्यक्त किया, बजाय इसके कि उन्होंने क्या संदेश दिया।
  • कुछ प्रशासनिक क्रियाकलापों में उत्कीर्ण मुहरों और तख्तों/पटियों (tablets) का उपयोग किया गया था जो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के वाणिज्यिक लेन-देन को नियंत्रित करते थे।
  • शोध पत्र के अनुसार, हालाँकि कई प्राचीन लिपियाँ नए शब्दों को उत्पन्न करने के लिये चित्र शब्द विधि का उपयोग करती हैं, सिंधु मुहरों और तख्तों/पटियों (tablets) पर पाए गए शिलालेखों में किसी शब्द के अर्थ को व्यक्त करने के लिये चित्र शब्द विधि का उपयोग नहीं किया गया है।
  • शोध में उन लोकप्रिय परिकल्पना को भी खारिज कर दिया गया जिसमें कहा गया है कि मुहरों को उनके मालिकों के प्रोटो-द्रविड़ियन (Proto-Dravidian) या प्रोटो-इंडो-यूरोपीय (Proto-Indo-European) नामों के साथ अंकित किया गया था।

चित्र शब्द विधि

Rebus Method

  • कुछ विद्वानों के बीच एक आम धारणा यह है कि सिंधु लिपि logo-syllabic अर्थात् प्रतीक चिन्हों पर आधारित शब्दांश है, जहाँ एक प्रतीक को एक समय में शब्द संकेत के रूप में और दूसरे समय में शब्दांश-संकेत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • इस विधि में, जहाँ एक शब्द-प्रतीक को भी कभी-कभी केवल अपने ध्वनि मूल्य के लिये उपयोग किया जाता है, को चित्र शब्द विधि सिद्धांत कहा जाता है।
    • "विश्वास" (मधुमक्खी+पत्ती) शब्द को दर्शाने के लिये एक मधुमक्खी के चित्र को एक पत्ती के साथ जोड़ा जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

कैनाइन डिस्टेंपर वायरस

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा कि देश में बाघों की संख्या बढ़ी है, देश के लिये एक अच्छी खबर हो सकती है। लेकिन आवासीय स्थान की हानि, शिकार और अवैध शिकार में वृद्धि अभी भी बाघों के अस्तित्व के लिये खतरा बनी हुई है। इसके साथ ही एक ताकतवर वायरस-कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (Canine Distemper Virus-CDV), जो कि वन्यजीव अभयारण्यों और उनके आसपास रहने वाले CDV से संक्रमित कुत्तों से प्रसारित हो सकता है, वन्यजीव जीव वैज्ञानिकों के बीच चिंता का विषय बन गया है।

प्रमुख बिंदु

  • पिछले वर्ष गिर के जंगल में 20 से अधिक शेर वायरल संक्रमण का शिकार हुए थे। यही कारण है कि जंगली जानवरों में इस वायरस के चलते होने वाली बीमारी को फैलने से रोकने के लिये राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) द्वारा कुछ दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।

कैनाइन डिस्टेंपर वायरस

Canine Distemper Virus-CDV

  • कैनाइन डिस्टेंपर वायरस मुख्य रूप से कुत्तों में श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, श्वसन तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ-साथ आँखों में गंभीर संक्रमण का कारण बनता है।
  • CDV भेड़िये, लोमड़ी, रेकून, लाल पांडा, फेरेट, हाइना, बाघ और शेरों जैसे जंगली माँसाहारियों को भी प्रभावित कर सकता है।
  • भारत के वन्यजीवन में इस वायरस का प्रसार तथा इसकी विविधता का पर्याप्त रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
  • शेर एक बार में पूरे शिकार को नहीं खाते हैं। कुत्ते उस शिकार का उपभोग करते हुए उसे CDV से संक्रमित कर देते हैं। शेर अपने शिकार को खत्म करने के लिये वापस लौटता है और इस घातक बीमारी की चपेट में आ जाता है।

रोग हस्तांतरण का खतरा

  • हाल ही में थ्रेटेड टैक्स (Threatened Taxa) में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि राजस्थान के रणथंभौर नेशनल उद्यान (Ranthambhore National Park) के समीप 86% कुत्तों का परीक्षण किये जाने के बाद इनके रक्तप्रवाह में CDV एंटीबॉडीज़ के होने की पुष्टि की गई है।
  • इसका अर्थ है कि ये कुत्ते या तो वर्तमान में CDV से संक्रमित हैं या अपने जीवन में कभी-न-कभी संक्रमित हुए हैं और उन्होंने इस बीमारी पर काबू पा लिया है।
  • इस अध्ययन में यह इंगित किया गया है कि उद्यान में रहने वाले बाघों और तेंदुओं में कुत्तों से इस बीमारी के हस्तांतरण का खतरा बढ़ रहा है।

निवारक उपाय

  • सर्वप्रथम राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास के क्षेत्र में मुक्त घुमने वाले और घरेलू कुत्तों का टीकाकरण किया जाना चाहिये।
  • इस बीमारी को पहचानने तथा इसके संबंध में आवश्यक अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है। जहाँ कहीं भी मांसाहारी वन्यजीवों में CDV के लक्षणों का पता चलता है वहाँ संबंधित जानकारियों का एक आधारभूत डेटा तैयार किया जाना चाहिये ताकि भविष्य में ज़रूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जा सकें।
  • नियंत्रण उपायों पर विचार करने के क्रम में स्थानीय CDV अभ्यारण्यों में घरेलू पशुओं की भूमिका को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिये तथा इस संबंध में उपयोगी अध्ययन किये जाने चाहिये।

इस समस्या का सबसे आसान तरीका है- इस रोग की रोकथाम। वन्यजीवों की आबादी में किसी भी बीमारी का प्रबंधन करना बेहद मुश्किल होता है। सरकार को देश में वन्यजीव अभयारण्यों के समीप कुत्तों के टीकाकरण के लिये पहल शुरू करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

साहित्यिक चोरी रोकने के लिये ‘उरकुंड’ का प्रयोग

चर्चा में क्यों?

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission-UGC) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, भारत के सभी विश्वविद्यालयों को 1 सितंबर, 2019 से स्वीडिश साहित्यिक चोरी रोधी (Anti-Plagiarism) सॉफ्टवेयर 'उरकुंड' (Urkund) की सदस्यता मिलेगी।

प्रमुख बिंदु:

  • इस सॉफ्टवेयर का चुनाव वैश्विक टेंडर प्रक्रिया (Global Tender Process) के माध्यम से किया गया है।
  • हालाँकि वैश्विक संस्थानों द्वारा ‘टर्नटिन’ (अमेरिकी साहित्यिक चोरी रोधी सॉफ़्टवेयर) का प्रयोग किया जाता है, परंतु इसे बिना किसी अतिरिक्त सुविधा के भी 10 गुना महँगा पाया गया।
  • साहित्यिक चोरी को रोकने के लिये केंद्र सरकार दोहरा रुख अख्तियार कर रही है:
    • इस प्रक्रिया के पहले हिस्से के रूप में आने वाले वर्षों में यह सॉफ्टवेयर सभी 900 विश्वविद्यालयों में मुफ्त उपलब्ध होगा, जिसमें शिक्षक, छात्र और शोधकर्त्ता आदि शामिल हैं।
    • दूसरे चरण में केंद्र ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (उच्च शैक्षणिक संस्थानों में शैक्षणिक अखंडता और साहित्यिक चोरी के रोकथाम) अधिनियम, 2018 को साहित्यिक चोरी के लिये वर्गीकृत सज़ा को निर्धारित करने के लिये अधिसूचित किया है।

नोट: साहित्यिक चोरी का आशय किसी और के साहित्यिक विचारों को खुद के साहित्यिक कार्य के रूप में प्रस्तुत करने से है।

शोध संस्कृति में सुधार के लिये गठित यूजीसी पैनल:

  • पी. बालाराम की अध्यक्षता में शोध संस्कृति में सुधार के लिये गठित यूजीसी पैनल ने उल्लेख किया था कि भारतीय शिक्षाविदों ने वर्ष 2010 और वर्ष 2014 के बीच लगभग 11,000 फर्जी पत्रिकाओं में प्रकाशित सभी लेखों में 35% का योगदान दिया था।
  • पैनल ने अपने शोध में यह पाया कि उपरोक्त अधिकांश लेख फर्जी इंजीनियरिंग पत्रिकाओं में थे, इसके बाद जैव-चिकित्सा/बायोमेडिसिन और सामाजिक विज्ञान की फर्जी पत्रिकाओं का स्थान था।
  • पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, शैक्षिक अनुसंधान के उच्च मानकों को सुनिश्चित करने के लिये प्राथमिक ज़िम्मेदारी स्वयं संस्थानों को लेनी होगी।
  • केंद्र के नियम और कानून मात्र संस्थाओं के नियमों में इज़ाफा कर सकते हैं।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

(University Grants Commission- UGC)

  • 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने औपचारिक तौर पर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की नींव रखी थी।
  • विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग विश्‍वविद्यालयी शिक्षा के मापदंडों के समन्‍वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु वर्ष 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्‍थापित एक स्‍वायत्‍त संगठन है।
  • पात्र विश्‍वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्‍त, आयोग केंद्र और राज्‍य सरकारों को उच्‍चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्‍यक उपायों पर सुझाव भी देता है।
  • इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में अवस्थित है। इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू में हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

वेतन संहिता विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्‍य सभा में विचार-विमर्श और बहस के पश्चात् वेतन संहिता विधेयक, 2019 को पारित किया गया। उल्लेखनीय है कि लोकसभा में यह विधेयक कुछ दिन पहले ही पारित हो चुका है, राष्‍ट्रपति की स्‍वीकृति के पश्चात् यह विधेयक कानून बन जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • चार संहिताओं में यह पहली संहिता है, जो अधिनियम बनने जा रही है। ये चार संहिताएँ हैं :
    • वेतन संहिता,
    • औद्योगिक संबंध संहिता
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता तथा पेशागत सुरक्षा
    • स्‍वास्‍थ्‍य व कार्य शर्त संहिता
  • इन संहिताओं को श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने तैयार किया है। श्रम पर गठित दूसरे राष्‍ट्रीय आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप मंत्रालय ने विभिन्‍न श्रम कानूनों का इन चार श्रम संहिताओं में समावेश किया है।
  • पेशागत सुरक्षा स्‍वास्‍थ्‍य व कार्य-शर्त संहिता को लोकसभा में पेश किया जा चुका है।
  • वेतन संहिता एक ऐतिहासिक विधेयक है जो संगठित व असंगठित क्षेत्र के 50 करोड़ श्रमिकों को न्‍यूनतम वेतन तथा समय पर भुगतान सुनिश्चित करने की वैधानिक सुरक्षा प्रदान करेगा।
  • वेतन संहिता एक मील का पत्‍थर है जो देश के प्रत्‍येक श्रमिक को एक सम्‍मानजनक जीवन प्रदान करेगा।
  • वेतन के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्‍त करने के लिये एक त्रिपक्षीय समिति समान वेतन का निर्धारण करेगी।
  • इस समिति में मज़दूर यूनियनों, रोज़गार प्रदान करने वाले संगठनों तथा राज्‍य सरकार के प्रतिनिधि शामिल होंगे। आवश्‍यकता पड़ने पर समिति द्वारा एक तकनीकी समिति का भी गठन किया जा सकता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु

    • वर्तमान में 17 श्रम कानून 50 से वर्ष से अधिक पुराने हैं तथा इनमें से कुछ तो स्वतंत्रता से पहले के दौर के हैं।
    • वेतन विधेयक में शामिल किये गए चार अधिनियमों में से वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 स्वतंत्रता से पहले का है तथा न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 भी 71 साल पुराना है। इसके अलावा बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 भी इसमें शामिल किया जा रहा है।
  • वेतन विधेयक को 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया था और वहां से इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था, जिसने 18 दिसंबर, 2018 को अपनी सिफारिशें दे दी थीं।
  • स्थायी समिति की 24 सिफारिशों में 17 को सरकार ने स्वीकार कर लिया था।

संहिता की मुख्‍य विशेषताएँ

  • वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिये क्षेत्र और वेतन सीमा पर ध्‍यान दिये बिना न्‍यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक बनाती है।
    • वर्तमान में न्‍यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोज़गारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान हैं।
    • इस विधेयक से हर कामगार के लिये भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और मौजूदा लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्‍यूनतम मजदूरी के विधायी संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
    • इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्‍यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्‍यवस्‍था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
    • न्‍यूनतम जीवन यापन की स्थितियों के आधार पर वेतन मिलने से देश में गुणवत्‍तापूर्ण जीवन स्‍तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे।
    • इस विधेयक में राज्‍यों द्वारा कामगारों को वेतन का भुगतान डिजिटल तरीकों से करने की परिकल्‍पना की गई है।
  • विभिन्‍न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएँ हैं, जिन्‍हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है।
    • इस परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और नियोक्‍ता के लिये इसका अनुपालन सरलता से किये जाने की उम्‍मीद है।
    • इससे प्रतिष्‍ठान भी लाभान्वित होंगे, क्‍योंकि रजिस्‍टरों की संख्‍या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्‍पना की गई है कि कानूनों के माध्‍यम से एक से अधिक नमूना (Specimen) निर्धारित नहीं किया जाएगा।
  • वर्तमान में अधिकांश राज्‍यों मेंअलग-अलग न्‍यूनतम वेतन हैं। वेतन संहिता के माध्‍यम से न्‍यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है।
    • रोज़गार के विभिन्‍न प्रकारों को अलग करके न्‍यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये एक ही मानदंड बनाया गया है।
    • न्‍यूनतम वेतन निर्धारण मुख्‍य रूप से स्‍थान और कौशल पर आधारित होगा।
    • इससे देश में मौजूद 2000 न्‍यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्‍यूनतम वेतन की दरों की संख्‍या कम होगी।
  • निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किये गए हैं। इनमें वेब आधारित रेंडम कम्‍प्‍यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्‍त निरीक्षण, निरीक्षण के लिये इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं।
    • इन सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी।
  • ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अब सीमा अवधि को बढ़ाकर तीन वर्ष किया गया है और न्‍यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है।
  • इसलिये यह कहा जा सकता है कि न्‍यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान होने के लिये यह एक ऐतिहासिक कदम है।

स्रोत: PIB


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीनोम इंडिया इनिशिएटिव

चर्चा में क्यों?

भारत अपनी पहली मानव जीनोम मैपिंग परियोजना (Human Genome Mapping Project) शुरू करने की योजना बना रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इस परियोजना में कैंसर जैसे रोगों के उपचार के लिये नैदानिक परीक्षणों और प्रभावी उपचारों हेतु (अगले पाँच वर्षों में) 20,000 भारतीय जीनोम की स्कैनिंग (Scanning) करने का विचार है।
  • इस परियोजना को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) द्वारा लागू किया जाना है।

जीनोम

Genome

  • आणविक जीव विज्ञान और आनुवंशिकी के अनुसार जीन जीवों का आनुवंशिक पदार्थ है, जिसके माध्यम से जीवों के गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचते हैं।
  • किसी भी जीव के डीएनए में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम जीनोम (Genome) कहलाता है।
  • मानव जीनोम में अनुमानतः 80,000-1,00,000 तक जीन होते हैं।
  • जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है।

जीनोम अनुक्रमण क्या होता है?

  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत डीएनए अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
  • DNA अनुक्रमण विधि से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका समय पर इलाज करना और साथ ही आने वाली पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव है।

Road to future

इस परियोजना को दो चरणों में लागू किया जाना है:

  • परियोजना के पहले चरण में 10,000 स्वस्थ भारतीयों के पूर्ण जीनोम का अनुक्रमण किया जाएगा।
  • दूसरे चरण में 10,000 रोगग्रस्त व्यक्तियों का जीनोम अनुक्रमण किया जाएगा।
  • जैविक डाटा संग्रहण, डेटा तक पहुँच और इसके साझाकरण की नीति में परिकल्पित राष्ट्रीय जैविक डेटा केंद्र (National Biological Data Centre) के माध्यम से मानव अनुक्रमण (Human Sequencing) पर तैयार डेटा शोधकर्त्ताओं के लिये सुलभ होगा।
  • नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज (National Centre for Cell Sciences) मानव आंत (Human gut) से माइक्रोबायोम (Microbiome) के नमूने एकत्र करेगा।

नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज

National Centre for Cell Science

  • यह सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय परिसर (महाराष्ट्र) में स्थित एक राष्ट्रीय स्तर का जैव प्रौद्योगिकी, टिसू/ऊतक इंजीनियरिंग (Tissue Engineering) और ऊतक बैंकिंग (Tissue Banking) अनुसंधान केंद्र है।
  • यह भारत के प्रमुख अनुसंधान केंद्रों में से एक है, जो सेल-कल्चर, सेल-रिपॉजिटरी (cell-repository), इम्यूनोलॉजी (immunology), क्रोमैटिन-रिमॉडलिंग (chromatin-remodelling) पर काम करता है।

जीनोम मैपिंग की आवश्यकता क्यों?

  • 2003 में मानव जीनोम को पहली बार अनुक्रमित किये जाने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच संबंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिखाई दे रही है।
  • अधिकांश गैर-संचारी रोग, जैसे- मानसिक मंदता (Mental Retardation), कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर तथा हीमोग्लोबिनोपैथी (Haemoglobinopathy) कार्यात्मक जीन में असामान्य DNA म्यूटेशन के कारण होते हैं। चूँकि जीन कुछ दवाओं के प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं, ऐसे में इन रोगों को आनुवंशिकी के दृष्टिकोण से समझने में सहायता मिल सकती है।

महत्त्व

  • स्वास्थ्य देखभाल: चिकित्सा विज्ञान में नई प्रगति (जैसे भविष्य कहनेवाला निदान और सटीक दवा, जीनोमिक जानकारी) और रोग प्रबंधन में जीनोम अनुक्रमण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • जीनोम अनुक्रमण पद्धति के माध्यम से शोधकर्त्ता और चिकित्सक आनुवांशिक विकार से संबंधित बीमारी का आसानी से पता लगा सकते हैं।
  • जेनेटिक स्क्रीनिंग (Genetic Screening): जीनोम परियोजना जन्म से पहले की बीमारियों के लिये जेनेटिक स्क्रीनिंग की उन्नत तकनीकों को जन्म देगी।
  • विकास की पहेली: जीनोम परियोजना मानव DNA की प्राइमेट (Primate) DNA के साथ तुलना करके मानव के विकास संबंधी प्रश्नों के जवाब दे सकती है।

लाभ

  • जीनोम मैपिंग के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं।
  • इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और यदि उनमें कोई समानता है तो वह क्या है।
  • इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है।
  • बीमारियों का पता समय रहते लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है।
  • इसके माध्यम से उपचारात्मक और एहतियाती (Curative & Precautionary) चिकित्सा के स्थान पर Predictive चिकित्सा की जा सकती है।
    • इसके माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी पहले से ही शुरू की जा सकती है। इसे ही Predictive चिकित्सा कहा गया है।
  • इसके अलावा बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जींस का पता भी लगाया जा सकता है और आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।

भारत में कैंसर की घटनाएँ

Cancer Incidence in India

  • अध्ययन के अनुसार, समय बढ़ने के साथ ही भारत में कैंसर के मामलों की संख्या प्रत्येक 20 वर्ष में दोगुनी हो जाएगी।
  • अगले 10-20 वर्षों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा ओडिशा पर कैंसर का बोझ सर्वाधिक होगा।
  • महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर अवधारणा (Epidemiological Transition Level) के अनुसार, भारतीयों की जीवन प्रत्याशा बढ़ने के साथ ही कैंसर के रोगियों की संख्या बढ़ने लगती है।
  • उच्च ETL वाले राज्यों का विकास सूचकांक बेहतर है तथा यहाँ कैंसर के मामलों की दर भी उच्च है।
  • ETL केरल में सर्वाधिक तथा उत्तर प्रदेश में सबसे कम है।
  • सरकार को भोरे समिति और मुदलियार समिति द्वारा कैंसर पर प्रस्तुत रिपोर्ट के सुझावों पर विचार करना चाहिये जिसमें सभी मेडिकल कॉलेजों में एक बहु-विषयक कैंसर उपचार इकाई का निर्माण और एक कैंसर ऐसे अस्पताल की स्थापना शामिल है जो केवल कैंसर विशिष्ट उपचार को समर्पित हो।

चिंताएँ

  • पक्षपात: जीनोटाइप (Genotype) पर आधारित पक्षपात जीनोम अनुक्रमण का एक संभावित परिणाम है। उदाहरण के लिये, नियोक्ता कर्मचारियों को काम पर रखने से पहले उनकी आनुवंशिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई कर्मचारी अवांछनीय कार्यबल के प्रति आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील पाया जाता है तो नियोक्ता द्वारा उसके जीनप्रारूप/जीनोटाइप (Genotype) के साथ पक्षपात किया जा सकता है।
  • स्वामित्व और नियंत्रण: गोपनीयता और गोपनीयता संबंधी मुद्दों के अलावा, आनुवंशिक जानकारी के स्वामित्व और नियंत्रण के प्रश्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आनुवंशिक डेटा का उचित उपयोग: बीमा, रोज़गार, आपराधिक न्याय, शिक्षा, आदि के लिये महत्त्वपूर्ण है।

पृठभूमि

  • वर्ष 1988 में अमेरिकी ऊर्जा विभाग तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने मिलकर मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project-HGP) पर काम शुरू किया था और इसकी औपचारिक शुरुआत वर्ष 1990 में हुई थी।
  • HGP एक बड़ा, अंतर्राष्ट्रीय और बहु-संस्थागत प्रयास है जिसमें जीन अनुक्रमण की रूपरेखा तैयार करने में 13 साल [1990-2003] लगे और इस प्रोजेक्ट पर 2.7 बिलियन डॉलर खर्च हुए।
  • भारत इस परियोजना में शामिल नहीं था, लेकिन इस परियोजना की सहायता से भारत में मानव जीनोम से संबंधित कार्यक्रम शुरू किये जा रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है।
  • HGP में 18 देशों की लगभग 250 प्रयोगशालाएँ सम्मिलित हैं।
  • इस परियोजना के प्रमुख लक्ष्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • मानव DNA के लगभग एक लाख जींस की पहचान करना।
    • मानव DNA बनाने वाले लगभग 3.20 अरब बेस पेयर्स का निर्धारण करना।
    • सूचनाओं को डेटाबेस में संचित करना।
    • अधिक तेज़ और कार्यक्षम अनुक्रमित प्रौद्योगिकी का विकास करना।
    • आँकड़ों के विश्लेषण के लिये संसाधन (Tools) विकसित करना।
    • परियोजना के नैतिक, विधिक व सामाजिक मुद्दों का निराकरण करना।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (05 August)

  • केंद्र सरकार ने एक बेहद महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर से विवादास्पद अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला किया है| इस अनुच्छेद के खंड-ए को छोड़कर बाकी सभी खंडों को समाप्त कर दिया गया है। साथ ही इस सीमावर्ती राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील कर दिया गया है। इसके लिये सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो भागों में विभक्त करने वाले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 को 5 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया। इसमें लद्दाख को अलग कर केंद्रशासित क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव किया गया है, लेकिन चंडीगढ़ की तरह उसकी भी विधानसभा नहीं होगी, यह राज्यपाल के तहत काम करेगा। कश्मीर और जम्मू डिवीज़न विधानसभा के साथ एक अलग केंद्रशासित प्रदेश होगा, जहाँ दिल्ली और पुडुचेरी की तरह विधानसभा होगी। यानी अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा, जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश रहेगा। गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके तहत भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिये होती है। लेकिन अब इस अनुच्छेद के हटने के बाद न यहाँ का अलग संविधान होगा और न ही अलग झंडा। पहले यहां पर राज्यपाल शासन लगता था, लेकिन अब यहाँ पर राष्ट्रपति शासन लागू होगा।
  • भारत और अमेरिका दोनों देशों के रक्षा उद्योग एवं स्टार्टअप्स के बीच सहयोग स्थापित करने में सहायक नीति पर आगे बढ़ने के लिये सहमत हुए। हाल ही में भारत-अमेरिका रक्षा नीति समूह की वाशिंगटन में हुई 15वीं बैठक के दौरान इस संबंध में सहमति बनी। इस बैठक में हाल के वर्षों में रक्षा व्यापार, प्रौद्योगिकी, खरीद, उद्योग, शोध एवं विकास और दोनों देशों की सेनाओं के बीच संपर्क समेत रक्षा सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति की समीक्षा की गई। दोनों देशों के रक्षा उद्योग एवं उद्यमों के बीच सहयोग के महत्त्व को रेखांकित किया गया और इस संबंध में सहायक होने वाली नीति पर आगे बढ़ने के संबंध में सहमति जताई गई। ज्ञातव्य है कि भारत-अमेरिका रक्षा नीति समूह दोनों देशों के बीच रक्षा मुद्दों पर होने वाली शीर्ष अधिकारी स्तरीय बैठक है जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग के सभी पहलुओं की समग्र समीक्षा करती है और आगे का रास्ता तय करती है।
  • इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को वर्ष 2019 का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (Ramon Magsaysay Award) देने का ऐलान किया गया है। एशिया का नोबेल माना जाने वाला यह पुरस्कार एशिया में साहसिक और परिवर्तनकारी नेतृत्व के लिये दिया जाता है। रवीश कुमार को यह पुरस्कार देने के पीछे रेमन मैग्सेसे संस्थान ने तर्क यह दिया है कि वह अपनी पत्रकारिता के ज़रिये उनकी आवाज़ को मुख्यअनुच्छेद में ले आए, जिनकी हमेशा उपेक्षा की जाती है; अगर आप लोगों की आवाज़ बनते हैं तो आप पत्रकार हैं। रवीश कुमार के अलावा वर्ष 2019 का मैग्सेसे अवॉर्ड म्यांमार के को स्वे विन, थाईलैंड के अंगखाना नीलापाइजित, फिलिपीन्स के रेमुन्डो पुजांते और दक्षिण कोरिया के किम जोंग-की को भी मिला है। इससे पहले बेहतरीन पत्रकारिता के लिये भारत के अमिताभ चौधरी (1961), बी.जी. वर्गीज़ (1975), अरुण शौरी (1982), आर.के. लक्ष्मण (1984) तथा पी. साईनाथ (2007) को भी यह पुरस्कार मिल चुका है। यह पुरस्कार फिलिपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की स्मृति में दिया जाता है। रॉकफेलर ब्रदर्स फंड के ट्रस्टियों द्वारा यह पुरस्कार वर्ष 1957 में स्थापित किया गया था।
  • भारतीय डाक विभाग ने अपने इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (IPPB) को स्माल फाइनेंस बैंक (SFB) यानी लघु वित्त बैंक में तब्दील करने का फैसला किया है। इस निर्णय के बाद यह बैंक व्यक्तियों के अलावा लघु उद्योग चलाने वाले उद्यमियों को भी ऋण भी दे सकेगा। SFB से ऐसे लोगों को ऋण दिया जाएगा जिनकी आय बहुत ही कम है और जो आर्थिक बाधा की वजह से औद्योगिक वित्त संस्थानों तक नहीं पहुँच पाते। इसको ध्यान में रखते हुए डाक विभाग ने फैसला लिया है कि वह ऐसे व्यक्तियों एवं सूक्ष्म और लघु इकाइयों को ऋण उपलब्ध कराएगा। इसके अलावा भारतीय डाक विभाग अपने सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से नागरिकों को ऐसी कई ऐसी सुविधाएँ देने जा रहा है जिसके लिये उनको इधर-उधर भटकना पड़ता है। इनमें कई तरह के बिल और कर जमा करना आदि शामिल है। यह सुविधा पहले ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा छोटे शहरों में शुरू की जाएगी। डाक विभाग ग्रामीण क्षेत्रों में 190 पार्सल हब भी बनाएगा। इसके अलावा डाक विभाग ने 100 दिनों में एक करोड़ खाते खोलने का भी लक्ष्य रखा है।

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