शासन व्यवस्था
तीसरी कक्षा से AI और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग (CT) पर पाठ्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, निष्ठा
मेन्स के लिये: शिक्षा सुधार, शिक्षा में प्रौद्योगिकी की भूमिका और डिजिटल समावेशन तथा उभरती प्रौद्योगिकियों को सीखने और रोज़गार पर प्रभाव।
चर्चा में क्यों?
शिक्षा मंत्रालय वर्ष 2026–27 शैक्षणिक वर्ष से तीसरी कक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग (CT) को प्रारंभ करने की योजना बना रहा है। यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप राष्ट्रीय स्कूल शिक्षा पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-SE) 2023 के तहत की जा रही है, ताकि छात्रों को AI-चालित भविष्य के लिये तैयार किया जा सके।
- केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने प्रोफेसर कार्तिक रमन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की है, जो पाठ्यक्रम तैयार करेगी। यह समिति “द वर्ल्ड अराउंड अस (The World Around Us)” की अवधारणा से प्रेरित होगी, ताकि AI सीखने को वास्तविक जीवन की प्रासंगिकता से जोड़ा जा सके।
AI और CT पाठ्यक्रम क्या है?
- परिचय: AI और CT पाठ्यक्रम का उद्देश्य AI शिक्षा को एक सार्वभौमिक कौशल बनाना है, जो पढ़ने या गणितीय ज्ञान के समान आवश्यक है।
- यह NEP 2020 और NCF-SE 2023 के अनुरूप है तथा रटने की शिक्षा से आगे बढ़कर समस्या-समाधान, रचनात्मकता एवं प्रौद्योगिकी के नैतिक उपयोग पर केंद्रित है। इसका लक्ष्य छात्रों में आलोचनात्मक सोच, तार्किक तर्कशक्ति और ज़िम्मेदार नवाचार को प्रोत्साहित करना है।
- विद्यालयी शिक्षा में प्रारंभिक एकीकरण: AI और CT को तीसरी कक्षा से ही शुरू किया जाएगा।
- इसका विचार यह है कि प्रारंभिक स्तर से ही AI से जुड़ा शिक्षण स्वाभाविक रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा बने, ताकि बच्चे यह समझ सकें कि तकनीक उनके जीवन और समाज को कैसे प्रभावित करती है।
- यह दृष्टिकोण ‘जनहित के लिये एआई (AI for Public Good)’ की अवधारणा को बढ़ावा देता है, जो प्रौद्योगिकी के नैतिक और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार उपयोग पर बल देता है।
- संस्थाएँ/निकाय शामिल:
- केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE)
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)
- केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS)
- नवोदय विद्यालय समिति (NVS)
- राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा बोर्ड (State/UT Education Boards)
- ये सभी संस्थाएँ स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (DoSE&L) के मार्गदर्शन में मिलकर AI एवं CT पाठ्यक्रम विकसित करने हेतु सहयोगात्मक रूप से कार्य करेंगी।
- क्रियान्वयन और संसाधन: इस पहल का आधार शिक्षक प्रशिक्षण होगा, जिसे निष्ठा (NISHTHA) प्रशिक्षण मॉड्यूल और वीडियो-आधारित शिक्षण संसाधनों के माध्यम से संचालित किया जाएगा।
- व्यापक महत्त्व: यह पहल तकनीकी रूप से साक्षर और नैतिक रूप से जागरूक नागरिकों के निर्माण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- यह भारत की दीर्घकालिक दृष्टि AI-आधारित ज्ञान अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाती है और शिक्षा को भविष्य-उन्मुख, समावेशी तथा दक्षता-आधारित प्रणाली की ओर अग्रसर करती है।
नोट: NCF-SE 2023 ने विद्यालयी शिक्षा के प्रारंभिक चरण में “द वर्ल्ड अराउंड अस” (TWAU) को एक मुख्य पाठ्यक्रम क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया है।
TWAU एक बहुविषयी पाठ्यक्रम है, जो छात्रों को सक्रिय शिक्षण के माध्यम से प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरणों का अन्वेषण करने में सहायता करता है। यह पाठ्यक्रम विज्ञान, सामाजिक अध्ययन और पर्यावरण शिक्षा की अवधारणाओं को एकीकृत करते हुए सीखने को व्यावहारिक जीवन अनुभवों से जोड़ता है।
शिक्षा में AI और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग (CT) की भूमिका क्या है?
- वैश्विक रुझान और कार्यबल की तैयारी: चीन, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ब्रिटेन (UK) जैसे देश पहले से ही स्कूल शिक्षा में AI को शामिल कर रहे हैं। AI से प्रारंभिक स्तर पर परिचय छात्रों में डेटा साइंस, रोबोटिक्स और AI जैसे क्षेत्रों के लिये मज़बूत आधार तैयार करता है, जो डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत आवश्यक हैं।
- AI जागरूकता के अंतर को कम करना: AI साक्षरता छात्रों को उस तकनीक को समझने में सहायता करती है, जिससे वे पहले से जुड़े हैं (जैसे AI-संचालित चैटबॉट्स, रिकमेंडेशन इंजन आदि)।
- यूथ की आवाज़ (Youth Ki Awaaz) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 88% छात्र पहले से ही अध्ययन में AI का उपयोग करते हैं, औपचारिक शिक्षा उन्हें AI के सुरक्षित और नैतिक उपयोग की दिशा में मार्गदर्शन दे सकती है।
- व्यक्तिगत और अनुकूलनीय शिक्षण: AI उपकरण प्रत्येक छात्र की गति और शैली के अनुसार सामग्री को अनुकूलित कर सकते हैं, जिससे सीखने में कमी को दूर करने में सहायता मिलती है, विशेष रूप से कम प्रदर्शन वाले क्षेत्रों में।
- यह परियोजना-आधारित शिक्षण, आलोचनात्मक चिंतन और वास्तविक जीवन की समस्याओं के समाधान को बढ़ावा देता है।
- क्रमिक और आयु-उपयुक्त कार्यान्वयन योजना: तीसरी कक्षा से AI साक्षरता (मूलभूत अवधारणाएँ और नैतिकता) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जबकि 11–12 कक्षा में AI कौशल (जैसे कोडिंग, NLP) को शामिल किया जाएगा। मध्य विद्यालय तक ज़ोर मौलिक सीखने पर रहेगा।
- परिणामस्वरूप, छात्र तकनीक को समझने, उसका समालोचनात्मक मूल्यांकन करने और ऐसे मेटा-स्किल्स विकसित करने में सक्षम होंगे, जो आज के डिजिटल युग में पढ़ाई-लिखाई तथा गणना कौशल जितने ही आवश्यक हैं।
शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटेशनल थिंकिंग के एकीकरण की चुनौतियाँ क्या हैं?
- डिजिटल विभाजन और अवसंरचना की कमी: लगभग 50% भारतीय स्कूलों में बिजली, इंटरनेट और कंप्यूटर जैसी बुनियादी डिजिटल अवसंरचना की कमी है।
- डिजिटल अंतर को कम किये बिना AI को लागू करने से शैक्षिक असमानताएँ और बढ़ सकती हैं।
- शिक्षक क्षमता और प्रशिक्षण अंतर: अधिकांश शिक्षक AI शिक्षाशास्त्र (Pedagogy) या नैतिक उपयोग (Ethical Usage) में प्रशिक्षित नहीं हैं।
- कुछ स्कूलों में एक शिक्षक कई कक्षाओं को सॅंभालता है, ऐसे तकनीकी-गहन विषय को बड़े पैमाने पर पढ़ाना गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
- शिक्षा में अवनति और निर्भरता का जोखिम: AI उपकरण सीखने की प्रेरणा को कमज़ोर कर सकते हैं, छात्र बिना समझे उत्तर बनाने के लिये चैटबॉट का उपयोग कर सकते हैं। इससे पीढ़ी दर पीढ़ी सीखने और आलोचनात्मक सोच (Critical Reasoning) में कमी आ सकती है।
- पाठ्यक्रम की कठोरता और तेज़ी से तकनीकी बदलाव: AI बहुत तेज़ी से विकसित हो रहा है और कौशल जैसे प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग कुछ वर्षों में अप्रचलित हो सकती है।
- स्थिर पाठ्यक्रम पुराना और अप्रासंगिक हो सकता है, जिससे सीखने के परिणाम सतही या असंगत हो सकते हैं।
- गोपनीयता, मानसिक और नैतिक जोखिम: बच्चे बिना निगरानी के AI उपकरणों के साथ बातचीत कर रहे हैं। इससे अत्यधिक निर्भरता, डेटा का दुरुपयोग तथा असंग्रहीत या पक्षपाती सामग्री के संपर्क जैसे जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं, खासकर जब मज़बूत नियामक ढाँचे की कमी हो।
शिक्षा में AI और CT पाठ्यक्रम को लागू करने हेतु संतुलित दृष्टिकोण क्या हो सकता है?
- क्रमिक और मॉड्यूलर कार्यान्वयन: विशेषज्ञ AI शिक्षा को क्रमिक और मॉड्यूलर तरीके से लागू करने की सिफारिश करते हैं।
- कक्षाएँ 3–5 में वास्तविक जीवन के उदाहरणों के माध्यम से AI साक्षरता (AI Literacy) से शुरुआत करना, इसके बाद कक्षाएँ 6–8 में व्यावहारिक समझ और ज़िम्मेदार उपयोग (Responsible Use) सिखाना और अंततः कक्षाएँ 9–12 में तकनीकी कौशल जैसे पायथन प्रोग्रामिंग, डेटा विश्लेषण एवं AI मॉडल निर्माण (AI Model Building) में प्रगति करना।
- कम अवसंरचना वाले स्कूलों के लिये ऑफ़लाइन सीखना (Unplugged Learning): ऐसी ऑफ़लाइन गतिविधियाँ और सरल खेल तैयार करना जो तर्क (Logic), विश्लेषणात्मक सोच (Reasoning) और नैतिक निर्णय लेना (Ethical Decision-Making), ताकि छात्र मूल AI अवधारणाएँ डिजिटल उपकरणों की आवश्यकता के बिना सीख सकें, विशेष रूप से सीमित संसाधनों वाले स्कूलों में।
- नैतिकता, आलोचनात्मक सोच और आजीवन सीखने पर ध्यान देना: पाठ्यक्रम में AI नैतिकता, डेटा गोपनीयता और पक्षपात पहचान (Bias Detection) को शामिल करें।
- अनुकूलन क्षमता (Adaptability), जिज्ञासा (Curiosity) और निरंतर सीखने की क्षमता (Lifelong Learning) पर जोउर देना, केवल रोज़गार-केंद्रित कौशलों तक सीमित न रहें।
- शिक्षक विकास और समर्थन: प्रभावी कार्यान्वयन के लिये NISHTHA के तहत शिक्षक प्रशिक्षण और NCERT–CBSE के मज़बूत समन्वय को महत्त्वपूर्ण माना जाएगा।
- नीति निर्माता को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार से पहले अवसंरचना की तत्परता, शिक्षक समर्थन और नैतिक सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने चाहिये।
निष्कर्ष
AI को प्रारंभिक स्तर पर प्रस्तुत करने से छात्रों को डिजिटल रूप से आत्मविश्वासी एवं भविष्य के लिये तैयार बनाने में मदद मिल सकती है, लेकिन यह केवल तभी संभव है जब इसे धीरे-धीरे, समावेशी तथा ज़िम्मेदारीपूर्ण तरीके से लागू किया जाए। उचित तैयारी के बिना, यह मौजूदा असमानताओं को कम करने के बजाय और बढ़ा सकता है।
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दृष्टि मेंस प्रश्न: प्रश्न. भारत में प्रारंभिक कक्षाओं से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटेशनल थिंकिंग को शामिल करने के लाभ और चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. AI और CT पाठ्यक्रम क्या है?
इसका उद्देश्य AI शिक्षा को एक सार्वभौमिक कौशल बनाना है और NEP 2020 तथा NCF SE 2023 के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटेशनल थिंकिंग को स्कूल शिक्षा में एकीकृत करना है।
2. स्कूलों में AI को लागू करने में मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
मुख्य चुनौतियों में डिजिटल विभाजन, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, पुरानी अवसंरचना और नैतिक जोखिम जैसे डेटा का दुरुपयोग और AI उपकरणों पर अत्यधिक निर्भरता शामिल हैं।
3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 क्या है?
NEP 2020 भारत की एक व्यापक शिक्षा सुधार नीति है, जो 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप है। यह पुराने 10+2 प्रणाली को बदलकर नई 5+3+3+4 संरचना प्रस्तुत करती है, जिसमें स्कूलिंग के मूलभूत, प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक स्तर शामिल हैं।
4. नेशनल इनीशिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट’ अर्थात् निष्ठा क्या है?
NISHTHA एक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम है, जो शिक्षकों को प्रभावी पाठ्यक्रम संचालन के लिये तैयार करेगा और इसमें डिजिटल तथा वीडियो आधारित मॉड्यूल्स का उपयोग किया जाएगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रीलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
- शिक्षा का अधिकार (आर.टी.ई.) अधिनियम के अनुसार किसी राज्य में शिक्षक के रूप में नियुक्त होने हेतु अर्ह होने के लिये किसी व्यक्ति में संबंधित राज्य अध्यापक शिक्षा परिषद् द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता का होना आवश्यक है।
- आर.टी.ई. अधिनियम के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण हेतु किसी अभ्यर्थी के लिये राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के दिशा-निर्देशों के अनुरूप लिये गए अध्यापक अर्हता परीक्षण में उत्तीर्ण होना आवश्यक है।
- भारत में 90% से अधिक अध्यापक शिक्षा संस्थान प्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकारों के अधीन हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 धारणीय विकास लक्ष्य-4 (2030) के साथ अनुरूपता में है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनःसंरचना और पुनःस्थापना है। इस कथन का समालोचनात्मक निरीक्षण कीजिये। (2020)

अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका ने परमाणु हथियार परीक्षण पुनः शुरू करने का आदेश दिया
प्रिलिम्स के लिये: परमाणु हथियार, व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT), परमाणु अप्रसार संधि (NPT), नो फर्स्ट यूज़ नीति, न्यू START, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG)।
मेंस के लिये: अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने के परिणाम और परमाणु शांति बनाए रखने तथा परमाणु वृद्धि को रोकने के लिये आवश्यक कदम। परमाणु हथियारों के उपयोग के संबंध में भारत का रुख।
चर्चा में क्यों?
- अमेरिकी राष्ट्रपति ने 33 वर्ष (1992 के बाद) के अंतराल के बाद अमेरिकी परमाणु हथियार परीक्षण फिर से शुरू करने का आदेश दिया है, जो वैश्विक परमाणु नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।
वैश्विक परमाणु हथियार परीक्षण सुविधा की स्थिति क्या है?
- शुरुआत: परमाणु युग की शुरुआत वर्ष 1945 में अमेरिका द्वारा एटमिक परीक्षणों और हिरोशिमा तथा नागासाकी पर बमबारी के साथ हुई, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ, जबकि सोवियत संघ का 1949 का परीक्षण जल्दी ही शीत युद्ध के तनाव को बढ़ा गया।
- परमाणु परीक्षण की आवृत्ति: वर्ष 1945 से 1996 तक, विश्व भर में 2,000 से अधिक परमाणु परीक्षण किये गए, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने 1998 में दो बार परीक्षण किया और उत्तर कोरिया ने वर्ष 2006–2017 के बीच छह बार परीक्षण किया।
- अमेरिका ने अंतिम बार 1992 में चीन और फ्राँस ने वर्ष 1996 में और सोवियत संघ ने 1990 में परीक्षण किया था। रूस, जिसने सोवियत संघ के हथियार भंडार को विरासत में लिया, ने कभी भी परीक्षण नहीं किया।
- परमाणु परीक्षण रोकने के कारण: सोवियत संघ द्वारा कज़ाखस्तान और आर्कटिक में तथा पश्चिमी देशों द्वारा प्रशांत द्वीपों में किये गए परमाणु परीक्षणों से विकिरण का संपर्क, भूमि का प्रदूषण और स्थायी स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय नुकसान हुआ।
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT- 1996) सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है ताकि तनाव को कम किया जा सके। रूस ने इसे वर्ष 2000 में अनुमोदित किया, लेकिन वर्ष 2023 में इसे रद्द कर दिया, जबकि अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर तो किये, लेकिन अनुमोदित नहीं किया।
- परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने के कारण: मौजूदा और नए हथियारों की प्रभावकारिता की पुष्टि करने और प्रतिद्वंद्वी देशों को रणनीतिक संदेश देने के लिये परमाणु परीक्षण फिर से शुरू किया जा सकता है।
अमेरिका द्वारा परमाणु हथियार परीक्षण पुनः शुरू करने के क्या प्रभाव हो सकते हैं?
- भू-राजनैतिक प्रभाव: अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षण नए वैश्विक हथियार दौड़ को बढ़ावा दे सकता है, जिससे रूस, चीन और अन्य देश भी परीक्षण फिर से शुरू कर सकते हैं और प्रमुख शक्तियों के बीच सैन्य तनाव बढ़ सकता है।
- यह पाकिस्तान, उत्तर कोरिया या ईरान को अपने हथियार भंडार का विस्तार करने या परीक्षण करने के लिये भी प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता बाधित हो सकती है।
- इससे भारत पर अपने रणनीतिक सिद्धांत, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में, पर पुनर्विचार करने का दबाव पड़ सकता है।
- यह कंप्यूटर सिमुलेशन से परे, उन्नत वारहेड और प्रक्षेपण प्रणाली का वास्तविक दुनिया में परीक्षण करने की सुविधा प्रदान करता है।
- कूटनीतिक निहितार्थ: CTBT, भले ही लागू न हो, फिर भी एक प्रमुख वैश्विक मानदंड बना हुआ है, परमाणु परीक्षण पुनः शुरू करना इसे कमज़ोर करेगा, लंबे समय से चले आ रहे निषेध (अस्वीकृति) को तोड़ेगा और वैश्विक हथियार निष्कासन प्रयासों और अप्रसार संधि (NPT) के उद्देश्यों में विश्वास को कम करेगा।
- यह कूटनीतिक संवाद की तुलना में सैन्य प्रतिरोध (डिटरेंस) पर अमेरिका के ध्यान को बढ़ाता है और ट्रम्प के पहले के 'परमाणु त्रयी' या न्यूक्लियर ट्राइएड (Nuclear Triad) के आधुनिकीकरण प्रयासों के अनुरूप है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: परमाणु परीक्षण वायुमंडल में रेडियोधर्मी पदार्थ छोड़ सकते हैं, जिससे वायु, जल और मृदा सीज़ियम-137 और स्ट्रोंटियम-90 जैसे दीर्घायु समस्थानिकों से प्रदूषित हो जाते हैं।
- इससे आसपास की आबादी में कैंसर, आनुवंशिक उत्परिवर्तन (जेनेटिक म्यूटेशन) और जन्म दोषों के जोखिम में भारी वृद्धि होती है।
- वैश्विक निरस्त्रीकरण लक्ष्यों को कमज़ोर करना: यह वर्ष 2017 में अपनाई गई परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW) की भावना को कमज़ोर करता है और NPT तथा CTBT जैसी परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार संधियों के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को भी कमज़ोर कर सकता है।
- नैतिक चिंताएँ: यह असुरक्षित समुदायों को असमान रूप से नुकसान पहुँचाता है, वैश्विक शांति को कमज़ोर करता है और CTBT जैसी निरस्त्रीकरण संधियों की भावना का उल्लंघन करता है।
- विनाशकारी तरीकों से सुरक्षा प्राप्त करने का प्रयास, अहिंसा, न्याय और मानवता तथा प्रकृति के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी के सिद्धांतों के विपरीत है।
परमाणु हथियार नियंत्रण संधियाँ
- परमाणु हथियारों के अप्रसार की संधि (NPT), 1968: इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करना है। यह पाँच परमाणु हथियार संपन्न देशों — अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन — को मान्यता देती है। (भारत इसका सदस्य नहीं है)
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT), 1996: यह परीक्षण उद्देश्यों के लिये सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है, हालाँकि यह अभी तक लागू नहीं हुई है। (भारत ने CTBT पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं)
- परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW), 2017: अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत परमाणु हथियारों के उपयोग, स्वामित्व, परीक्षण और स्थानांतरण पर प्रतिबंध लगाती है।
भारत का परमाणु हथियारों के उपयोग पर दृष्टिकोण क्या है?
- परमाणु परीक्षण: भारत ने परमाणु परीक्षणों पर स्वैच्छिक रोक लागू कर रखी है, लेकिन इसे किसी कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि का हिस्सा नहीं बनाया है।
- नो फर्स्ट यूज पॉलिसी: भारत नो फर्स्ट यूज पॉलिसी का पालन करता है, जिसे वर्ष 2003 की परमाणु नीति में पुनः पुष्टि की गई थी। भारत विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध बनाए रखता है।
- अप्रसार के प्रति प्रतिबद्धता: हालाँकि भारत NPT का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, फिर भी वह परमाणु अप्रसार के उद्देश्यों के प्रति समर्पित है।
- शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग: भारत परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देता है — विशेषकर ऊर्जा उत्पादन, चिकित्सा एवं उद्योग के क्षेत्रों में ताकि एक सतत् और कम-कार्बन समाधान प्राप्त किया जा सके। भारत वर्ष 1994 के परमाणु सुरक्षा अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- नागरिक और रणनीतिक आवश्यकताओं में संतुलन: भारत अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और रणनीतिक हथियार भंडार के बीच संतुलन बनाए रखता है। उसका तीन-चरणीय थोरियम-आधारित कार्यक्रम परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
परमाणु शांति बनाए रखने और परमाणु तनाव को रोकने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- अप्रसार तंत्र को सुदृढ़ करना: न्यू स्टार्ट जैसी संधियों के माध्यम से सत्यापन योग्य हथियार सीमा समझौतों को नवीनीकृत किया जाना चाहिये और CTBT को लागू करके परमाणु परीक्षणों एवं हथियार प्रतिस्पर्द्धा पर नियंत्रण किया जाना चाहिये।
- निर्यात नियंत्रण और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) के दिशा-निर्देशों को और मज़बूत किया जाए, ताकि हथियार-स्तरीय सामग्री तथा संवेदनशील तकनीकों का प्रसार रोका जा सके।
- आकस्मिक या जल्दबाजी में उपयोग को रोकना: कमांड सिस्टम को अधिक सुरक्षित और साइबर सुरक्षा से सुदृढ़ बनाया जाए ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटनात्मक वृद्धि को रोका जा सके।
- परमाणु बलों को डी-अलर्ट (De-alert) किया जाए तथा निर्णय-प्रक्रिया की समय-सीमा बढ़ाई जाए ताकि तत्काल उपयोग के दबाव को कम किया जा सके और स्थिति का शांतिपूर्वक एवं विवेकपूर्ण मूल्यांकन किया जा सके।
- हथियार नियंत्रण वार्ताओं को पुनर्जीवित करना: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बीच संयुक्त राष्ट्र (UN) या G20 के ढाँचे के अंतर्गत रणनीतिक वार्ताएँ पुन: शुरू की जानी चाहिये ताकि पारदर्शिता और संयम सुनिश्चित किया जा सके।
- विश्वास निर्माण उपाय: पारस्परिक बल सूची और निरीक्षण की व्यवस्था लागू की जाए, ताकि वास्तविक हथियार स्तरों का सत्यापन किया जा सके। अस्थायी रूप से हथियार उन्नयन या आपूर्ति पर रोक लगाकर विश्वास बहाली के कदम उठाए जाएँ।
- निरंतर उच्च-स्तरीय कूटनीति: परमाणु जोखिम में कमी को वैश्विक प्राथमिकता बनाए रखनी चाहिये, संवाद और सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये ताकि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, बिना परमाणु प्रतिरोध पर निर्भरता के।
निष्कर्ष:
अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षणों को पुनः प्रारंभ करना हथियार नियंत्रण मानदंडों को कमज़ोर कर सकता है, नए हथियार प्रतिस्पर्द्धा का दौर प्रारंभ कर सकता है तथा पर्यावरण और जनस्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है। इसके साथ ही यह कदम वैश्विक अप्रसार प्रयासों को जटिल बना देगा, राजनयिक संबंधों पर दबाव डालेगा और आर्थिक लागतों में वृद्धि करेगा।
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दृष्टि मेंस प्रश्न: प्रश्न. किसी प्रमुख शक्ति द्वारा परमाणु परीक्षणों को पुनः प्रारंभ करने के वैश्विक हथियार नियंत्रण व्यवस्थाओं पर क्या प्रभाव पड़ेंगे, इसकी विवेचना कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT) क्या है?
CTBT (1996) सभी प्रकार के परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है। यह अब तक लागू नहीं हुई है क्योंकि प्रमुख हस्ताक्षरकर्त्ता देशों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका (US) ने इस पर हस्ताक्षर तो किये हैं, लेकिन इसे अनुमोदित नहीं किया है, जिससे इसकी प्रवर्तन क्षमता कमज़ोर हो गई है।
2. परमाणु हथियारों के परीक्षण से जुड़े प्रमुख पर्यावरणीय जोखिम क्या हैं?
परीक्षणों के दौरान सीज़ियम-137 (Caesium-137) जैसे दीर्घकालिक रेडियोधर्मी समस्थानिक उत्सर्जित होते हैं, जो वायु, मृदा और जल को व्यापक रूप से प्रदूषित करते हैं। इससे कैंसर और आनुवंशिक विकारों के खतरे बढ़ जाते हैं।
3. भारत की घोषित परमाणु नीति का प्रमुख स्तंभ क्या है?
भारत नो फर्स्ट यूज पॉलिसी का पालन करता है और विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध बनाए रखता है। यह अपनी नागरिक परमाणु योजनाओं और रणनीतिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करते हुए परमाणु अप्रसार के उद्देश्यों का समर्थन करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’’ के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)
(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले
उत्तर: (b)
मेंस
प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)
