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डेली न्यूज़

  • 02 May, 2025
  • 29 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

सेवा क्षेत्र के उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

सेवा क्षेत्र, डिजिटल इंडिया, AI, ML, स्किल इंडिया डिजिटल, PMKVY 4.0, वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC), डिजिटल साक्षरता

मेन्स के लिये:

भारत में निगमित सेवा क्षेत्र के उद्यमों की स्थिति, उनका योगदान, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सेवा क्षेत्र उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण पर एक पायलट अध्ययन के निष्कर्ष जारी किये, जिसका उद्देश्य भारत के निगमित सेवा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण डेटा अंतराल को कम करना है, जो कि असंगठित क्षेत्र उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण जैसे मौजूदा सर्वेक्षणों द्वारा कवर नहीं किया गया है। 

  • इसमें उन सेवा क्षेत्र के उद्यमों को शामिल किया गया है जो कंपनी अधिनियम और सीमित देयता भागीदारी अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं।
  • इसमें पाया गया कि 82.4% उद्यम निजी लिमिटेड कंपनियाँ थीं, इसके बाद सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियाँ (8%) और LLP (8%) थीं।

भारत के लिये सेवा क्षेत्र के उद्यमों का क्या महत्त्व है?

  • सकल घरेलू उत्पाद में योगदान: वित्त वर्ष 2024-25 में, सेवा क्षेत्र ने भारत के सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में लगभग 55% का योगदान दिया, जो वित्त वर्ष 14 में 50.6% था।
    • वित्त वर्ष 24 में इसने 7.6% की मज़बूत वृद्धि कायम रखी, जो वैश्विक चुनौतियों के बीच इसके लचीलेपन को दर्शाता है।
  • रोज़गार सृजन: यह क्षेत्र भारत के लगभग 30% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पर्यटन और खुदरा जैसे उद्योग शामिल हैं।
  • वैश्विक व्यापार: अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान भारत का सेवा निर्यात 280.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाओं में, भारत वैश्विक निर्यात का 10.2% हिस्सा रखता है, जो इस श्रेणी में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): अप्रैल 2000 से दिसंबर 2024 तक, सेवा क्षेत्र ने 116.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI आकर्षित किया, जो इस अवधि के दौरान भारत के कुल FDI प्रवाह का लगभग 16% है।
  • अन्य क्षेत्रों के साथ एकीकरण: उद्योगों में 'सर्विसीफिकेशन' (यानी डिज़ाइन, लॉजिस्टिक्स, और आफ्टर-सेल्स सपोर्ट जैसी सेवाओं का निर्माण प्रक्रियाओं में समावेश) ने उत्पादकता बढ़ाने और औद्योगिक क्षेत्र में मूल्य संवर्द्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • शहरीकरण और डिजिटल इंडिया के लिये महत्त्वपूर्ण: फिनटेक (FinTech) और डिजिटल भुगतान का विस्तार डिजिटल इंडिया की सफलता के लिये अत्यंत आवश्यक है।

भारत में सेवा क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • कौशल अंतराल और कार्यबल तत्परता: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 से संकेत मिलता है कि भारत के केवल 51.25% युवा ही रोज़गार योग्य माने जाते हैं, जिनके पास उद्योग की तेजी से विकसित हो रही मांगों को पूरा करने के लिये आवश्यक कौशल हैं।
    • विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, भारत के कार्यबल का केवल 5%, जो विश्व में सबसे युवा और सबसे बड़ा है, औपचारिक रूप से कुशल माना जाता है।
  • अनौपचारिक रोज़गार प्रभुत्व: 2017-18 में सेवा क्षेत्र की लगभग 78% नौकरियाँ अनौपचारिक थीं।
    • गिग वर्कर्स (स्विगी, ओला, उबर) के पास स्वास्थ्य बीमा, सेवानिवृत्ति निधि या सवेतन अवकाश जैसी सामाजिक सुरक्षा का अभाव होता है। 
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और संरक्षणवाद: सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के समक्ष वीज़ा प्रतिबंध (जैसे, अमेरिका द्वारा H-1B की अस्वीकृति), प्रतिस्पर्द्धी केंद्रों के उदय {जैसे, फिलीपींस (BPO), वियतनाम (IT)} और लागत लाभ में कमी (जैसे, भारतीय IT क्षेत्र के वेतन में औसतन वार्षिक 8-10% की वृद्धि) जैसी चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव: बड़ी इकाइयों ने अभी भी AI और ML का पूर्ण रूप से अंगीकार नहीं किया है, जो कनेक्टिविटी और ग्राहक सहभागिता बढ़ाने की दृष्टि से आवश्यक हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं, SC-ST और अन्य उपांतिकीकृत  समूहों द्वारा संचालित अधिकांश MSME इकाइयों के पास बुनियादी डिजिटल टूल का अभाव है।
  • महामारी के बाद की सुभेद्यताएँ: भारत में विदेशी पर्यटकों का आगमन अभी भी महामारी से प्रभावित है, जहाँ वर्ष 2024 की पहली छमाही में विदेशी पर्यटकों का आगमन वर्ष 2019 की पहली छमाही का लगभग 90% था।

सेवा क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है?  

  • कौशल उन्नयन: AI, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा में श्रमिकों को प्रमाणित करने के लिये स्किल इंडिया डिजिटल का विस्तार करने और PMKVY 4.0 के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • रोज़गार क्षमता बढ़ाने तथा शैक्षिक ज्ञान और उद्योग आवश्यकताओं के बीच अंतराल को कम करने के लिये प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (PMIS) का और अधिक सुदृढ़ता से कार्यान्वन  करने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता का सुदृढ़ीकरण: वीज़ा प्रतिबंधों को कम करने के लिये यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर वार्ता की जानी चाहिये।
    • सूचना प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास तथा वित्त जैसे विभिन्न कार्यों को समर्थन देने के लिये भारत के विशाल प्रतिभा पूल का लाभ उठाने हेतु वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल अवसंरचना और साइबर सुरक्षा: सुदृढ़ ढाँचे में निवेश करके, सुरक्षित क्लाउड अपनाने को बढ़ावा देकर, विशेष रूप से वित्तीय संस्थानों में, और सुरक्षित और प्रभावी तकनीक उपयोग के लिये डिजिटल साक्षरता को बढ़ाकर साइबर सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण करना चाहिये।
  • टियर-2 और टियर-3 शहरों में विकास को बढ़ावा देना: नीति आयोग द्वारा बुनियादी ढाँचे और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में सेवा क्षेत्र के विकास को विकेंद्रित करने की पहल निर्णायक है।

निष्कर्ष

सेवा क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है जिसका सकल घरेलू उत्पाद, रोज़गार और वैश्विक व्यापार में प्रमुख योगदान है। हालाँकि, कौशल अंतराल, अनौपचारिक रोज़गार और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा जैसी चुनौतियाँ विकास में बाधाक हैं। अपस्किलिंग, बुनियादी ढाँचे के विकास एवं छोटे शहरों में विकास को बढ़ावा देने के माध्यम से इन मुद्दों को हल करने से इस क्षेत्र में अनुकूलन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिल सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: आर्थिक क्षेत्र में निर्णायक होने के बावजूद, भारत के सेवा क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ कौन सी हैं तथा इसे और अधिक समावेशी एवं लचीला किस प्रकार बनाया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: b 


मेन्स:

प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


सामाजिक न्याय

जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार के एक भाग के रूप में डिजिटल पहुँच

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, अपने ग्राहक को जानें, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये:

डिजिटल युग में अनुच्छेद 21 की संवैधानिक व्याख्या, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 और डिजिटल पहुँच

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अमर जैन बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2025 मामले में निर्णय दिया कि ई-गवर्नेंस और कल्याणकारी प्रणालियों तक समावेशी डिजिटल पहुँच, जीवन एवं स्वतंत्रता के मूल अधिकार का एक अभिन्न अंग है। इसके साथ ही इसमें दिव्यांगजनों (PwDs) के लिये अपने ग्राहक को जानो (KYC) प्रक्रिया को और अधिक सुलभ बनाने के निर्देश दिये गए।

  • यह निर्णय उन व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं की प्रतिक्रिया में आया है, जिनके समक्ष दिव्यांगता के कारण डिजिटल  KYC प्रक्रिया को पूरा करने में चुनौतियाँ आती हैं।

दिव्यांगजनों हेतु डिजिटल पहुँच पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 

  • डिजिटल  KYC संशोधन: सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांगजनों (विशेष रूप से दृष्टि दोष और चेहरे की विकृति वाले व्यक्तियों, जैसे एसिड अटैक सर्वाइवर्स) को समायोजित करने के लिये डिजिटल KYC मानदंडों में संशोधन का निर्देश दिया।
  • इसने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं को KYC प्रक्रियाओं में पहुँच सुनिश्चित करने का निर्देश दिया और अनिवार्य किया कि सभी विनियमित संस्थाएँ (सार्वजनिक और निजी) पहुँच मानकों का पालन करें। 
  • इसने निर्देश दिया कि विभागों को अनुपालन के लिये नोडल अधिकारी नियुक्त करने होंगे, प्रमाणित पेशेवरों द्वारा नियमित ऑडिट कराना होगा तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म के डिज़ाइन चरण में दृष्टिबाधित लोगों को भी शामिल करना होगा।
  • डिजिटल डिवाइड: न्यायालय ने मौजूदा डिजिटल डिवाइड पर भी प्रकाश डाला, जिससे न केवल दिव्यांगजन बल्कि ग्रामीण समुदाय, वरिष्ठ नागरिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग भी प्रभावित होते हैं।
    • न्यायालय ने यह माना कि अनुच्छेद 21 (गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव से संरक्षण), और अनुच्छेद 38 (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों) के अंतर्गत, कमज़ोर वर्गों के लिये सार्वभौमिक डिजिटल पहुँच सुनिश्चित करना केवल एक नीतिगत विकल्प नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व है, जो सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी के लिये आवश्यक है।

डिजिटल सशक्तीकरण से संबंधित अन्य प्रमुख निर्णय क्या हैं?

  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 21 के तहत किसी मौलिक अधिकार पर लगाई जाने वाली कोई भी प्रक्रिया न्यायसंगत, उचित और तार्किक होनी चाहिये— वह मनमानी या दमनकारी नहीं हो सकती। इस निर्णय ने समावेशी डिजिटल अधिकारों की न्यायशास्त्र के लिये आधार तैयार किया।
  • फहीमा शिरीन आर.के. बनाम केरल राज्य (2019) के मामले में केरल उच्च न्यायालय भारत का पहला ऐसा न्यायालय बना, जिसने अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा के अधिकार के हिस्से के रूप में इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मान्यता प्रदान की।
    • न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि छात्रावासों में छात्रों को इंटरनेट की सुविधा से वंचित करना उनके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संरक्षित है, और अनुच्छेद 19(1)(छ) के अंतर्गत ऑनलाइन व्यापार और व्यवसाय करने का अधिकार सुरक्षित है।
    • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इन अधिकारों पर लगाए जाने वाले किसी भी प्रतिबंध को युक्तिसंगतता और अनुपातिकता पर खरा उतरना आवश्यक है।

भारत में दिव्यांगजनों के डिजिटल सशक्तीकरण के समक्ष प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?

  • डिजिटल साक्षरता में विभाजन और बहिष्कार: डिजिटल साक्षरता में महत्त्वपूर्ण खामियों के कारण अनेक दिव्यांगजन आवश्यक सेवाओं और आर्थिक अवसरों तक पहुँच से वंचित रह जाते हैं।
    • PMGDISHA (प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान) जैसी योजनाओं के बावजूद, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों में दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व अनुपातहीन रूप से कम है।
  • सुगम्यता संबंधी दिशा-निर्देशों के प्रवर्तन में कमी: हालाँकि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) के तहत डिजिटल सुलभता को अनिवार्य किया गया है, लेकिन इसका क्रियान्वयन विभिन्न क्षेत्रों में असंगत और अपर्याप्त है।
  • वर्ष 2023 में इस दिशा में अनुपालन को मज़बूत करने के लिये संशोधन किये गए, फिर भी सरकारी और निजी क्षेत्रों में प्रवर्तन अभी भी विखंडित और असंगठित है।
  • सुगम्य भारत अभियान जैसी पहलें शिक्षा सहित डिजिटल सेवाओं को सुगम्य बनाने का प्रयास करती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनका क्रियान्वयन उचित नही है।
  • सुलभ सहायक तकनीकों (Assistive Technologies - AT) की कमी: दिव्यांगजनों की आवश्यकताओं के अनुसार सहायक तकनीकों की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन भारत में किफायती और ज़रूरत आधारित AT समाधानों की भारी कमी है।
    • एसिड अटैक सर्वाइवर्स को पलक झपकाने या चेहरा संरेखित करने जैसे चेहरे की पहचान करने वाले कार्यों में संघर्ष करना पड़ता है, जबकि दृष्टिबाधित उपयोगकर्त्ताओं को सेल्फी और दस्तावेज़ सत्यापन जैसे कार्यों में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे डिजिटल  KYC (KYC) बहिष्कृत और भेदभावपूर्ण हो जाता है।
      • यह कमी दिव्यांगजनों की डिजिटल प्लेटफार्मों तक प्रभावी पहुँच और लाभ उठाने की क्षमता को सीमित करती है, जिससे उनका डिजिटल बहिष्कार और गहरा होता है।

दिव्यांगजनों के सक्रिय डिजिटल सशक्तिकरण के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • समावेशी डिजिटल अवसंरचना: डिजिटल इंडिया के तहत, सरकार वेब सामग्री सुगमता दिशानिर्देशों का पालन करते हुए  स्क्रीन रीडर, वॉयस कमांड और वास्तविक समय सांकेतिक भाषा अनुवाद और ऑडियो विवरण के लिये AI-संचालित टूल जैसी सहायक प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दे सकती है।
    • इंटरफेस को चेहरे के संकेतों पर निर्भर होने से बचना चाहिये, वैकल्पिक ऑडियो की पेशकश करनी चाहिये, या चेहरे की विकृति वाले उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्पर्श नेविगेशन की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।
    • इन सुविधाओं को मौजूदा डिजिटल पोर्टलों में एकीकृत करने से दिव्यांग लोगों को डिजिटल सेवाओं का लाभ उठाने में सशक्तता मिलेगी।
  • दिव्यांगजनों के बीच डिजिटल साक्षरता में सुधार: राष्ट्रीय बहुदिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान (NIEPMD) गूगल या माइक्रोसॉफ्ट जैसे संगठनों के साथ सहयोग कर सकता है, ताकि दिव्यांगजनों को सहायक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने तथा डिजिटल और सरकारी सेवाओं तक पहुँच बनाने के लिये प्रशिक्षित करने हेतु विशेष पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जा सकें।
  • दिव्यांगता-संवेदनशील शहरी नियोजन: सार्वजनिक अवसंरचना में सहायक प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना, जैसे कि स्मार्ट सिटी पहल, जहाँ सार्वजनिक परिवहन, स्मार्ट स्ट्रीट लाइटिंग और शहरी स्थानों को दिव्यांगजनों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया हो।
    • सार्वजनिक स्थानों पर डिजिटल साइनेज़ स्थापित किया जाना चाहिये जो विभिन्न प्रारूपों में जानकारी प्रदान करें - जैसे ऑडियो, ब्रेल और सांकेतिक भाषा वीडियो - ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दिव्यांगजन आसानी से नेविगेट कर सकें।
  • दिव्यांगजन सशक्तिकरण के लिये समावेशी नवाचार प्रयोगशाला: दिव्यांगजनों के लिये अत्याधुनिक डिजिटल सुलभता समाधान विकसित करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से एक समावेशी नवाचार प्रयोगशाला का निर्माण करना।
    • यह केंद्र स्टार्टअप्स, प्रौद्योगिकी कंपनियों और गैर सरकारी संगठनों को एक साथ लाएगा, ताकि पहुँच में सुधार के लिये नवीन, स्केलेबल और किफायती प्रौद्योगिकियों का निर्माण किया जा सके।

अपने ग्राहक को जानो (Know Your Customer)

  •  KYC:  KYC प्रक्रिया एक अनिवार्य पहचान सत्यापन प्रणाली है जिसका उपयोग वित्तीय और गैर-वित्तीय संस्थाओं द्वारा ग्राहकों द्वारा निवेश करने या खाता खोलने से पहले किया जाता है। 
    • इसमें विश्वसनीय दस्तावेज़ों अथवा डेटा का उपयोग करके ग्राहक की पहचान सत्यापित करना शामिल है, जैसे पहचान का प्रमाण, पता और हाल ही की तस्वीर। संयुक्त या अधिदेश धारकों के लिये भी इसी तरह के विवरण की आवश्यकता होती है।
  • डिजिटल KYC: यह कागज़-आधारित परंपरागत विधियों के स्थान पर ई-दस्तावेज़ों, बायोमेट्रिक डेटा अथवा आधार प्रमाणीकरण जैसे डिजिटल साधनों का उपयोग कर ग्राहक की पहचान सत्यापित करने की एक प्रक्रिया है।
  • सेंट्रल KYC रिकॉर्ड रजिस्ट्री (CKYCRR): CKYCRR एक केंद्रीकृत संग्रह है जिसमें KYC रिकॉर्ड संग्रहीत होते हैं, जिससे वित्तीय संस्थानों में इस डेटा का पुनः उपयोग संभव हो जाता है और बार-बार प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता कम हो जाती है। 
  • CERSAI: भारतीय प्रतिभूतिकरण, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण और प्रतिभूति स्वत्व की केंद्रीय रजिस्ट्री (CERSAI), कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत भारत सरकार की कंपनी है, जो नई दिल्ली से संचालित होती है और धन शोधन निवारण नियम, 2005 के तहत KYC रजिस्ट्री को बनाए रखने के लिये उत्तरदायी है। 

निष्कर्ष:

सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगजनों के लिये डिजिटल पहुँच का अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार के रूप में प्रतिज्ञान किया। हालाँकि, डिजिटल डिवाइड को कम करने के लिये समावेशी बुनियादी ढाँचे और लक्षित डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता है। भारत को सभी के लिये समान डिजिटल भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगजन अधिकार अभिसमय (CRPD), 2006 के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिये।

 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. ई-गवर्नेंस सेवाएँ प्राप्त करने में दिव्यांगजनों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों का समाधान करने हेतु आवश्यक विनियामक सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत लाखों दिव्यांगजनों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।   
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।   
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


रैपिड फायर

एजेंट ऑरेंज

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

30 अप्रैल 2025 को वियतनाम युद्ध (1954-75) अंत के 50 वर्ष पूरे हुए। युद्ध अंत के पश्चात् भी वियतनाम के असंख्य लाख अभी भी एजेंट ऑरेंज के चिरकालिक प्रभावों से पीड़ित हैं, जो युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा उपयोग में लाया गया एक विषैला रसायन है।

  • एजेंट ऑरेंज: यह शाकनाशियों (Herbicides) का मिश्रण है जिसका उपयोग वृक्षों और झाड़ियों को पत्र रहित करने के लिये किया जाता है, जिससे दुश्मन सैनिकों को छिपने की जगह नहीं मिलती। 
    • यह दो शाकनाशियों (2,4-D और 2,4,5-T) को मिलाकर बनाया गया था, जिसमें अत्यधिक विषैले संदूषक डाइऑक्सिन का मिश्रण था।
    • मानव शरीर में डाइऑक्सिन का अर्द्ध-आयु काल 20 वर्ष तक होता है तथा मृदा और जल  में यह 100 वर्षों तक बना रह सकता है, जिससे दीर्घकालिक संदूषण होता है।
      • रेडियोधर्मिता में, अर्द्ध-आयु वह काल है जो किसी रेडियोधर्मी प्रतिदर्श के आधे परमाणुओं के क्षय में लगता है।

प्रभाव:

  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे- जन्मदोष, कैंसर, मधुमेह और तंत्रिकीय विकार
  • जिन क्षेत्रों पर इस रसायन का छिड़काव किया गया वे वर्षों तक कृषि के लिये अनुपयुक्त रहे, जिससे वन्य जीवन, मृदा गुणवत्ता को गंभीर नुकसान पहुँचा, तथा आजीविका में बाधा उत्पन्न हुई, तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा।
  • वियतनाम युद्ध: यह हो ची मिन्ह के नेतृत्व वाली साम्यवादी उत्तरी वियतनाम (साइगॉन) और अमेरिका द्वारा समर्थित दक्षिण वियतनाम सरकार के बीच संघर्ष था। 
    • यह अमेरिका और सोवियत संघ के बीच व्यापक शीत युद्ध का हिस्सा था, जिसमें उत्तरी वियतनाम को साम्यवादी सहयोगियों (सोवियत संघ और चीन) का समर्थन प्राप्त था।

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और पढ़ें: शीत युद्ध


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