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वर्तमान परिदृश्य में मानसिक स्वास्थ्य

  • 04 Sep 2020
  • 20 min read

चर्चा में क्यों-

कुछ समय पूर्व बॉलीवुड के लोकप्रिय एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने मुंबई स्थित अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या के कारण तो स्पष्ट नहीं थे परंतु उन परिस्थितियों की खोज की जा रही है जिन्होंने सुशांत सिंह को मानसिक तौर पर विवश कर आत्महत्या करने को मजबूर किया। यह समय कोरोना एपीडेमिक का भी था जब दुनिया के कई लोग अवसादग्रस्त हो रहे थे। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करना लाज़िमी हो जाता है जिसके वशीभूत होकर इंसान आत्महत्या करने की सोचने लगता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करने से पहले हम जानेंगे कि मानसिक स्वास्थ्य होता क्या है और कौन-कौन से कारक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। साथ ही इस संबंध में डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी भारत की नीतियों एवं योजनाओं पर भी चर्चा की जाएगी।

मानसिक स्वास्थ्य क्या होता है?

स्वास्थ्य का ‘अर्थ मात्र रोग की अनुपस्थिति’ अथवा ‘शारीरिक स्वस्थता’ नहीं होता। इसे पूर्णरूपेण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित करना अधिक उचित होगा। स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिकता की संपूर्ण स्थिति है। स्वास्थ्य की देखभाल हेतु मानसिक स्वस्थता अत्यंत आवश्यक है। मानसिक स्वास्थ्य का आशय भावनात्मक मानसिक तथा सामाजिक संपन्नता से लिया जाता है। यह मनुष्य के सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है। मानसिक विकार में अवसाद दुनिया भर में सबसे बड़ी समस्या है। यह कई सामाजिक समस्याओं जैसे- बेरोज़गारी, गरीबी और नशाखोरी आदि को जन्म देती है।

मानसिक रोगों के विभिन्न प्रकारों के तहत अल्जाइमर रोग, डिमेंशिया, चिंता, ऑटिज़्म, डिस्लेक्सिया, डिप्रेशन, नशे की लत, कमज़ोर याददाश्त, भूलने की बीमारी एवं भ्रम आदि आते हैं। इसके लक्षण भावनाओं, विचारों और व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उदास महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी, दोस्तों और अन्य गतिविधियों से अलग होना, थकान एवं निद्रा की समस्या आदि इसके लक्षणों के अंतर्गत आते हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति-

भारत में अगर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी आँकड़ों की बात की जाए तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 7.5 फीसदी आबादी किसी-न-किसी मानसिक समस्या से जूझ रही है। विश्व में मानसिक और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की समस्या से जूझ रहे लोगों में भारत का करीब 15 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। साथ ही भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को फंड का आवंटन भी अन्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम है। भारत में हर दस लाख आबादी पर केवल तीन मनोचिकित्सक हैं। कॉमनवेल्थ देशों के नियम के मुताबिक हर एक लाख की आबादी पर कम-से-कम 5-6 मनोचिकित्सक होने चाहिये। WHO के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक रोगों से पीड़ित हो जाएगी मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद अब तक भारत में इसे एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है। इसे यहाँ आज भी काल्पनिक माना जाता है और मानसिक स्वास्थ्य की पूर्णत: उपेक्षा की जाती है। लेकिन सच्चाई यह है कि शारीरिक रोगों की तरह मानसिक रोग भी हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2020 तक दुनिया भर में अवसाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या होगी।

आँकड़ों के अनुसार, भारत में 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, भारत में तकरीबन 1.5 मिलियन लोगों में बौद्धिक अक्षमता और तकरीबन 722,826 लोगों में मनोसामाजिक विकलांगता मौजूद है। इसके बावजूद भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर किया जाने वाला व्यय कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का मात्र 1.3 प्रतिशत है। 2011 की जनगणना के अनुसार मानसिक रोगों से ग्रस्त करीब 78.62 फीसदी लोग बेरोज़गार हैं। भारत में मानसिक रूप से बीमार लोगों के पास या तो देखभाल की आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं और यदि सुविधाएँ हैं भी तो उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है।

वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति-

विश्व स्तर पर अगर मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करें तो हम पाते हैं कि मानसिक विकार विश्व में रुग्ण-स्वास्थ्य और विकलांगता उत्पन्न करने वाला प्रमुख कारण है। WHO के अनुसार, 450 मिलियन लोग वैश्विक स्तर पर मानसिक विकार से पीड़ित हैं। विश्व में चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति जीवन के किसी मोड़ पर मानसिक विकार या तंत्रिका संबंधी विकारों से प्रभावित है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित 10-19 वर्ष की उम्र के व्यक्तियों की वैश्विक रोगभार में 16% की हिस्सेदारी है। ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवसविश्व में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य के सहयोगात्मक प्रयासों को संगठित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 अक्तूबर को मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य संघ ने विश्व के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को यथार्थवादी बनाने के लिये वर्ष 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की स्थापना की थी।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक-

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में कई कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कारकों में समाज और परिवार की भी अहम भूमिका होती है।

व्यक्ति के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कई कारण होते हैं जिनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं। कई बार आर्थिक एवं नैतिक पहलू इन कारकों के आर्विभाव में उत्तरदायी परिस्थितियों का निर्माण करते हैं-

  • आनुवंशिकता
  • गर्भावस्था संबंधित पहलू
  • मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन
  • मनोवैज्ञानिक कारण
  • पारिवारिक विवाद
  • मानसिक आघात
  • सामाजिक कारण

मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन में सहयोग हेतु राष्ट्रीय गतिविधियाँ-

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम
    • भारत सरकार ने ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा सबके लिये न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता और पहुँच सुनिश्चित कराने हेतु वर्ष 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एमएमएचपी) की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को एकीकृत करते हुए सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर अग्रसर होना था।
    • इस कार्यक्रम के मुख्यत: 3 घटक हैं:
      • मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति का इलाज
      • पुनर्वास
      • मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन और रोकथाम
    • 10 अक्तूबर, 2014 को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गई तथा भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 लाया गया। इसने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 का स्थान लिया।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत किशोरावास्था प्रजनन और यौन स्वास्थ्य कार्यक्रम वयस्कों से संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करता है।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017

(Mental Healthcare Act, 2017)

  • वर्ष 2017 में लागू किये गए इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मानसिक रोगों से ग्रसित लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा और सेवाएँ प्रदान करना है। साथ ही यह अधिनियम मानसिक रोगियों के गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है।

परिभाषा

इस अधिनियम के अनुसार, ‘मानसिक रोग’ से अभिप्राय विचार, मनोदशा, अनुभूति और याददाश्त आदि से संबंधित विकारों से होता है, जो हमारे जीवन के सामान्य कार्यों जैसे- निर्णय लेने और यथार्थ की पहचान करने आदि में कठिनाई उत्पन्न करते हैं।

मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के अधिकार

  • अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार होगा।
  • अधिनियम में गरीबी रेखा से नीचे के सभी लोगों को मुफ्त इलाज का भी अधिकार दिया गया है।
  • अधिनियम के अनुसार, मानसिक रूप से बीमार प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार होगा और लिंग, धर्म, संस्कृति, जाति, सामाजिक या राजनीतिक मान्यताओं, वर्ग या विकलांगता सहित किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को अपने मानसिक स्वास्थ्य, उपचार और शारीरिक स्वास्थ्य सेवा के संबंध में गोपनीयता बनाए रखने का अधिकार होगा।
  • मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति की सहमति के बिना उससे संबंधित तस्वीर या कोई अन्य जानकारी सार्वजानिक नहीं की जा सकती है।

अग्रिम निर्देश

मानसिक रोगों से ग्रसित व्यक्ति को यह बताते हुए अग्रिम निर्देश देने का अधिकार होगा कि उसकी बीमारी का इलाज किस प्रकार किया जाए तथा किस प्रकार नहीं और इस संदर्भ में उसका नामित प्रतिनिधि कौन होगा।

आत्महत्या अपराध नहीं है

आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को मानसिक बीमारी से पीड़ित माना जाएगा एवं उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इस अधिनियम ने भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में संशोधन किया, जो पहले आत्महत्या को अपराध मानती थी।

पुराने अधिनियम में परिवर्तन के उपरांत आए नए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 को मील का पत्थर कहा जा सकता है परंतु इसमें भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई प्रश्नों का जवाब नहीं है, यथा-

  • नए कानून में कुछ मानसिक बीमारियों की परिभाषा से संबंधित विवाद के कारण यह कानून कई समस्याओं को अधूरा छोड़ देता है।
  • पुराने एक्ट में किये गए बदलाव अमेरिकी मनोवैज्ञानिक एसोसिएशन द्वारा तय मानकों के अनुरूप नहीं हैं । गौरतलब है कि इन मानकों को वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है एवं इन्हें DSH-5 मैन्युअल के नाम से जाना जाता है।
  • नए कानून में एडवांस्ड डायरेक्टिव का प्रावधान है जो मरीज़ों को अपने प्रतिनिधि के माध्यम से इलाज के तरीके चुनने की आजादी देता है। लेकिन भारत में पागलपन संबंधी जो अवधारणाएँ है उनके कारण यहाँ मरीज़ अपनी मानसिक अवस्था को लेकर खुद ही इनकार कर देते हैं, तब ऐसी स्थिति में कोई भी एडवांस्ड डायरेक्टिव उनके खिलाफ हो जाएगा।

 Suicides

2018 के दौरान आत्महत्या से संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के आँकड़े

मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में WHO की भूमिका-

डब्ल्यूएचओ मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत करने और उसे बढ़ावा देने की दिशा में विभिन्न देशों की सरकारों को समर्थन और सहयोग प्रदान करता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन की दिशा में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कई साक्ष्यों का मूल्यांकन किया गया है। WHO इस जानकारी को सरकारों को प्रसारित करने एवं नीतियों और योजनाओं के संबंध में प्रभावी रणनीतियों के एकीकरण की दिशा में कार्य कर रहा है। 2013 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने ‘‘2013-2020 के लिये व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्ययोजना’’ को मंज़ूरी दी थी। इस योजना द्वारा WHO के सभी सदस्य देशों ने मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने और वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रतिबद्धता दर्शाई गई है।

इस कार्ययोजना का संपूर्ण लक्ष्य मानसिक कल्याण को बढ़ावा देना, मानसिक विकारों को रोकना, देखभाल प्रदान करना, रिकवरी में वृद्धि करना, मानव अधिकारों को बढ़ावा देना और मानसिक विकार वाले व्यक्तियों के संबंध में मृत्यु दर, रुग्णता और विकलांगता में कमी लाना है। यह मुख्यत: 4 उद्देश्यों पर केंद्रित है-

  • मानसिक स्वास्थ्य हेतु प्रभावी नेतृत्व और शासन को मज़बूत करना।
  • समुदाय-आधारित व्यवस्थाओं में व्यापक, एकीकृत और उत्तरदायी मानसिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक देखभाल सेवाएँ प्रदान करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य के संवर्द्धन और मानसिक विकारों की रोकथाम हेतु रणनीतियों को लागू करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य हेतु सूचना प्रणाली, साक्ष्यों एवं शोधतंत्र को मजबूती प्रदान करना।
  • कोविड-19 के दौरान मानसिक स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक कदम-

पहली नज़र में कोविड-19 एक शारीरिक स्वास्थ्य संकट के समान प्रतीत होता है परंतु अगर सही कदम न उठाए गए तो यह एक प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य संकट के रूप में उभर कर सामने आएगा। समाज की गतिविधियों के सुचारु रूप से संचालन हेतु एक अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का होना बहुत ज़रूरी है। कोविड-19 पैनडेमिक से रिकवरी प्राप्त करने और उसका मुकाबला करने हेतु यह प्रत्येक देश की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त हेतु आवश्यक कदम उठाए। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणामों में कमी लाने हेतु इस महामारी के संबंध में की गई तीन सिफारिशों पर विचार करना आवश्यक है-

  • मानसिक स्वास्थ्य के संवर्द्धन, संरक्षण एवं देखभाल हेतु एक पूर्ण-सामाजिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता।
  • आपातकालीन मानसिक स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक सहयोग की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • भविष्य हेतु मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के निर्माण द्वारा Covid-19 से रिकवरी के लिये सहयोग प्रदान करना।

कोविड-19 के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभाव से व्यक्तियों एवं समाज को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने हेतु ज़रूरी है कि उपर्युक्त सिफारिशों पर तुरंत कार्रवाई की जाए और उसे अमल में लाया जाए।

आगे की राह

  • वैश्विक महामारीCOVID-19 के दौर में देश में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। ऐसे में आवश्यक है कि इससे निपटने के लिये उपर्युक्त क्षमताओं का विकास किया जाए और संसाधनों में वृद्धि की जाए। 
  • यदि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया ऐसे मानसिक रोगग्रस्त लोगों की समस्याओं को संवेदनशील ढंग से उठाएँ तो निश्चय ही समाज का उपेक्षावादी रवैया कमजोर होगा और संवेदनशीलता में वृद्धि होगी।
  • स्वास्थ्य देखभाल राज्य सूची का विषय है और इसलिये इसकी चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य और केंद्र के मध्य उचित समन्वय की आवश्यकता है।
  • बजटीय आवंटन की चिंताजनक स्थिति भी मानसिक स्वास्थ्य सुधारों में एक बड़ी बाधा है, ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान तथा अन्य एजेंसियों द्वारा मानसिक समस्याओं से ग्रसित लोगों की पहचान करते हुए मानसिक रोगों के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील तबके के लिये एक निश्चित आय की व्यवस्था की जाए।
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