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  • 09 Jul 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    हाल ही में संसद ने संविधान (103वाँ) संशोधन अधिनियम, 2019 पारित किया। इस अधिनियम से संबंधित प्रभाव और विभिन्न चिंताओं पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अधिनियम के बारे में बताइये।

    • इसके प्रभावों को लिखिये।

    • इसके कारण उत्पन्न होने वाले विभिन्न मुद्दों को लिखिये।

    • आगे की राह सुझाइये।

    परिचय:

    संविधान (103वाँ) संशोधन अधिनियम, 2019 अनारक्षित श्रेणी के तहत आने वाले नागरिकों के लिये सरकारी नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान करता है।

    प्रमुख बिंदु:

    • यह अधिनियम अनुच्छेद-15 में संशोधन के माध्यम से सरकार को ‘‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों’’ के उत्थान हेतु कार्य करने की अनुमति प्रदान करता है।
    • यह अधिनियम अनुच्छेद-16 में संशोधन के माध्यम से सरकार को ‘‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’’ के लिये सरकारी नौकरियों में 10% पदों को आरक्षित करने की अनुमति देता है।
    • यह 10% आरक्षण अधिकतम 50% आरक्षण की सीमा से अलग है। यह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षित पदों में केाई भी परिवर्तन नहीं करता है।

    चुनौतियाँ

    • यह अधिनियम इंदिरा साहनी वाद, 1922 में उच्चत्तम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय (जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50% निर्धारित किया गया है) का उल्लंघन करता है। इसके साथ ही आरक्षण का आधार केवल आर्थिक न हो कर सामाजिक पिछड़ापन है।
    • यह संशोधन अनुच्छेद-14 (विधि के समक्ष समानता) व अनुच्छेद-16 (सार्वजनिक रोज़गार में अवसर की समानता) पर विचार करने में विफल है।
    • आय की अधिकतम सीमा (8 लाख रुपए) गरीबी के मानक से बहुत अधिक है।
    • आर्थिक रूप से पिछड़ेपन का मानक निर्धारित करने के लिये अधिकृत आँकड़ों का अभाव है।
    • यह आरक्षण पहले से ही सीमित सरकारी संसाधनों पर और अधिक दबाव डाल सकता है।

    प्रभाव:

    • यह आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को शिक्षा व नौकरियों में प्रतिनिधित्व प्रदान कर देश में शैक्षणिक असमानता को समाप्त करने में सहायक होगा।
    • यह संशोधन सवर्ण जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को संवैधानिक पहचान प्रदान करता है।
    • यह अधिनियम आरक्षण की अधिकतम 50% सीमा से परे जाकर राज्य सरकारों को आरक्षण के प्रावधान करने के लिये प्रेरित करता है।
    • इस प्रावधान का दुरुपयोग राजनैतिक पार्टियों को आरक्षण की लोकलुभावन राजनीति करने हेतु प्रेरित कर सकता है।
    • समाज के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति के संबंध में आरक्षण के लाभों या प्रभावों का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता जो कि आरक्षण की मूल भावना के संगत नहीं है।

    निष्कर्ष:

    भारत जैसे विशाल राष्ट्र में आर्थिक आधार पर आरक्षण उपलब्ध कराना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। आर्थिक असमानता व निर्धनता को समाप्त करने के लिये रोज़गार के अवसरों में वृद्धि व शिक्षा के मूलभूत ढाँचे कोे मज़बूत करने की आवश्यकता है।

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