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भूगोल

वाकर संचरण

  • 13 Aug 2020
  • 8 min read

पृथ्वी पर वायुमंडल में ऊष्मा का संचरण मुख्यत: वायुमंडलीय परिसंचरण द्वारा होता है। सामान्यत: वायुमंडलीय परिसंचरण का एक निश्चित प्रतिरूप होता है, परंतु स्थानीय स्तर पर सामान्य वायुमंडलीय परिसंचरण यथा- व्यापारिक, पछुवा एवं ध्रुवीय पवन संचरण तथा त्रि-कोशिकीय देशांतरीय संचरण में निरंतरता का अभाव पाया जाता है।

  • वस्तुत: सामान्य वायुमंडलीय परिसंचरण में निरंतरता के अभाव का एक उदाहरण है वाकर संचरण।

क्या है वाकर संचरण?

  • वाकर संचरण (Walker Circulation) को ‘वाकर कोशिका (Walker Cell) भी कहते हैं। वस्तुत वायु संचरण का ‘वाकर संचरण’ नाम जी.टी. वाकर के नाम पर पड़ा जिन्होंने इसका पता लगया था।
  • वाकर संचरण उष्णकटिबंधीय क्षेत्राें में क्षोभमंडलीय वायु संचरण है। इस क्षेत्र में विभिन्न अक्षांशों के मध्य चलने वाली हेडली कोशिका से भिन्न वाकर कोशिका विषुवत रेखा के निकट विशेष अक्षांशों का अनुसरण करती है।
  • हेडली और ध्रुवीय कोशिका जैसे उत्तर-दक्षिण वायुमंडलीय परिसंचरण के अतिरिक्त मौसम को प्रभावित करने में सक्षम अन्य कमजोर पूर्व-पश्चिम संचलन भी होते हैं। भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अनुदैर्ध्य (पूर्व-पश्चिम) परिसंचरण को वाकर परिसंचरण के रूप में जाना जाता है।

वाकर परिसंचरण की क्रियाविधि

  • वाकर परिसंचरण (संचरण) की उत्पत्ति दक्षिणी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में पूर्व से पश्चिम की ओर होती है।
  • वस्तुत: वाकर कोशिका संवहनीय संचरण है जो मुख्यत: उष्णकटिबंधीय दक्षिणी प्रशांत महासागर पर भूमध्य रेखा के सहारे पूर्व से पश्चिम दिशा में दाब प्रवणता के कारण विकसित होती है।
  • सागरीय एवं स्थलीय सतह के तापमान में अंतर होना इसका मुख्य कारण है।
    • वाकर परिसंचरण पश्चिमी और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के ऊपर सतही दाब और तापमान में अंतर का परिणाम है।
    • प्राय: उष्णकटिबंधीय पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र निम्न दाब प्रणाली युक्त एक उष्ण और आर्द्र क्षेत्र है, जबकि ठंडा और शुष्क पूर्वी प्रशांत क्षेत्र उच्च दाब प्रणाली के तहत होता है।
    • यह पूर्व से पश्चिम की ओर एक दाब प्रवणता बनाता है जिससे सतही पवनों का पूर्वी प्रशांत क्षेत्र के उच्च दाब क्षेत्र से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के निम्न दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाह होता है।
    • ऊपरी वायुमंडल में हवाओं का पश्चिम से पूर्वी प्रवाह परिसंचरण को पूरा करता हैं।यह वाकर कोशिका की सामान्य दशा कहलाती है।
  • पूर्वी एशिया में पश्चिमी प्रशांत महासागर का गर्म पानी इसके ऊपर की हवा को गर्म करता है और इसे आर्द्रता की आपूर्ति करता है।
    • यह हवा ऊपर उठकर बादलों का निर्माण करती है और फिर प्रशांत क्षेत्र में पूर्व की ओर बहती है और वर्षा होती है। यह हवा दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर आकर पश्चिमी प्रशांत महासागर में वापस समुद्र की सतह के साथ पश्चिम में लौट जाती है।

अधिक मज़बूत वाकर कोशिका

  • वस्तुत: महासागरीय सतह पर पूर्व से पश्चिम की ओर दाब प्रवणता के कारण इस क्षेत्र में व्यापारिक पवनों का पूर्व से पश्चिम की ओर संचरण होने लगता है। व्यापारिक पवनों के अधिक प्रभाव के कारण पूर्वी भाग से उष्ण जल का स्थानांतरण अधिक तेज़ी से होने लगता है। इसके परिणमस्वरूप जल का अधिक उद्वेलन (ऊपर की ओर आना) होता है जिसके कारण कूलिंग (शीतलन) एवं इसके प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि होती है।
  • वस्तुत: उपर्युक्त व्यापारिक पवनों के संचरण के कारण वाकर कोशिका और अधिक शक्तिशाली हो जाती है।

विपरीत/कमज़ोर वाकर कोशिका

  • 2-3 वर्षों के अंतराल पर सामान्य दशा के विपरीत, दाब प्रवणता पश्चिम से पूर्व की ओर हो जाती है।
    • अर्थात् पश्चिमी प्रशांत महासागर में निम्न ताप एवं उच्च् वायुदाब का विकास हो जाता है, जबकि पूर्वी प्रशांत महासागर में उच्च ताप एवं निम्न वायुदाब का विकास हो जाता है। इस प्रकार विपरीत वाकर कोशिका का विकास होता है।

 Walker-Circulation

वाकर कोशिका का क्या प्रभाव होता है?

सामान्य वाकर कोशिका का प्रभाव

  • पूर्वी प्रशांत महासागर का पूर्वी भाग ठंडा एवं शुष्क हो जाता है, वहीं पश्चिमी भाग गर्म एवं आर्द्र होता है।
  • पश्चिमी भाग में गर्म वायु के कारण वाष्पीकरण में वृद्धि होती है जिससे यह क्षेत्र संवहनीय वर्षा प्राप्त करता है जबकि पूर्वी भाग में अपेक्षाकृत ठंडे एवं महासागरीय जल के उद्वेलन के कारण प्लवकों अर्थात् प्लैंकटन्स में वृद्धि होती है जिससे मत्स्यन को बढ़ावा मिलता है।
  • पश्चिमी भाग में अधिक आर्द्र पवनों के कारण संलग्न क्षेत्र में चक्रवातों की तीव्रता एवं बारंबारता में वृद्धि होती है, जबकि पूर्वी भाग में पवनों के अवरोहण के कारण प्रतिचक्रवातीय दशाएँ उत्पन्न होती है।

विपरीत वाकर कोशिका का प्रभाव

  • पूर्वी भाग के गर्म होने से पेरू एवं इक्वाडोर से संलग्न प्रशांत महासागर में एलनीनो के समान परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया, पूर्वी अफ्रीका, उत्तर-पूर्वी दक्षिणी अमेरिका आदि क्षेत्रों में सूखे की स्थितियाँ बन जाती है।
  • मेक्सिको की खाड़ी में हरिकेन चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि होती है।
  • इक्वाडोर एवं पेरू के तटीय क्षेत्रों में मत्स्यन में कमी आती है।

मज़बूत वाकर कोशिका का प्रभाव

  • व्यापारिक पवनों की अथिक तीव्रता के कारण पश्चिमी भाग में वर्षा की तीव्रता में वृद्धि होती है।
  • दक्षिणी एशिया में मानसूनी पवनें अधिक प्रभावशाली होती है। भारतीय मानसून पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • पेरू एवं इक्वाडोर का तटीय मछली उद्योग और अधिक मज़बूत होता है।
  • दक्षिणी चीन सागर के टाइपून और अधिक शक्तिशाली होते है।
  • बंगाल की खाड़ी में चक्रवात और अधिक प्रभावी हो जाते हैं।

नोट:

  • सामान्य वाकर संचरण एवं विपरीत वाकर संचरण की क्रिया में दाब प्रवणता एवं पवन संचरण में उतार-चढ़ाव को जी.टी. वाकर ने दक्षिणी दोलन कहा।
  • वास्तव में पश्चिमी एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में तापमान एवं दाब के क्रमिक परिवर्तन की स्थिति ही दक्षिण-दोलन कहलाती है।
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