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गुजरात का स्थापत्य

  • 24 Dec 2018
  • 2 min read
  • गुजरात के स्थापत्य को सोलंकी उपशैली, चालुक्य उपशैली या मंडोवार उपशैली भी कहा जाता है।
  • इसके तहत हिन्दू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ।
  • अर्द्ध-गोलाकार पीठ और ‘मंडोवार’ गुजरात उपशैली की पहचान विशेषता हैं।
  • वह अर्द्ध-गोलाकार संरचना जिसकी वजह से छत-शिखर अलग-अलग दिखता है, उसे मंडोवार कहते हैं।
  • माउंट आबू का आदिनाथ मंदिर, तेजपाल मंदिर, पालिताना के सैकड़ों मंदिर, सोमनाथ मंदिर, मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर आदि इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • माउंट आबू पर बने कई मंदिरों में संगमरमर के दो मंदिर हैं- दिलवाड़ा का जैन मंदिर तथा तेजपाल मंदिर (अर्बुदगिरी के बगल में)।
  • कुंभरिया के पार्श्वनाथ मंदिर में भी राजस्थान के मकरान से उपलब्ध काले और सपेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है।
  • माउंट आबू के मंदिरों का निर्माण सोलंकी शासक भीम सिंह प्रथम के मंत्री दंडनायक विमल ने करवाया था, इसी कारण इसे विमलबसाही मंदिर भी कहते हैं।
  • सोमनाथ मंदिर को सोलंकी शासकों की देन न मानकर गुर्जर-प्रतिहारों की देन माना जाता है।
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