इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट्स की जिस्ट


भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्यात तैयारी सूचकांक 2022

  • 11 Sep 2023
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नीति आयोग, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना, भौगोलिक संकेतक

मेन्स के लिये:

निर्यात तैयारी सूचकांक 2022 पर नीति आयोग की रिपोर्ट 

हाल ही में नीति आयोग ने निर्यात तैयारी सूचकांक 2022 (Export Preparedness Index 2022) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

निर्यात तैयारी सूचकांक 2022:

EPI 2022 भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की उनकी निर्यात तैयारी आधारित रैंकिंग है। यह एक समग्र सूचकांक है जो 4 स्तंभों और 10 उप-स्तंभों के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन को मापता है:

  • मुख्य स्तंभ:
    • नीति: 
      • निर्यात-आयात के लिये रणनीतिक दिशा प्रदान करने वाली एक व्यापक व्यापार नीति।
    • व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र: 
      • राज्यों को निवेश आकर्षित करने और व्यक्तियों के लिये स्टार्ट-अप शुरू करने हेतु एक सक्षम बुनियादी ढाँचा तैयार करने में मदद के लिये कुशल व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र।
    • निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र: 
      • निर्यात के लिये विशिष्ट कारोबारी माहौल का आकलन।
    • निर्यात प्रदर्शन: 
      • यह एकमात्र आउटपुट-आधारित पैरामीटर है जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात फुटप्रिंट की पहुँच की जाँच करता है।
  • उप-स्तंभ:
    • निर्यात प्रोत्साहन नीति: 
      • राज्य की निर्यात प्रोत्साहन नीति की गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता।
    • संस्थागत ढाँचा: 
      • व्यापार और निर्यात के लिये राज्य के संस्थागत ढाँचे की ताकत और प्रभावशीलता।
    • कारोबारी माहौल: 
      • राज्य में व्यापार करने में सुलभता और निर्यातकों के लिये सहायता सेवाओं की उपलब्धता।
    • अवसंरचना: 
      • निर्यात के लिये आवश्यक सड़क, पत्तन और हवाई अड्डों जैसे भौतिक बुनियादी अवसंरचनाओं की उपलब्धता।
    • परिवहन कनेक्टिविटी: 
      • प्रमुख निर्यात बाज़ारों से राज्य की कनेक्टिविटी।
    • निर्यात अवसंरचना: 
      • निर्यात के लिये आवश्यक विशेष बुनियादी अवसंरचनाओं की उपलब्धता, जैसे गोदाम और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ।
    • व्यापार समर्थन: 
      • व्यापार वित्त, बीमा और अन्य व्यापार-संबंधी सेवाओं की उपलब्धता।
    • अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना: 
      • नए निर्यात उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने में मदद हेतु अनुसंधान और विकास सुविधाओं की उपलब्धता।
    • निर्यात विविधीकरण: 
      • विभिन्न क्षेत्रों और बाज़ारों में राज्य की निर्यात विविधता।
    • विकास उन्मुखीकरण: 
      • निर्यात-आधारित विकास के लिये राज्य की प्रतिबद्धता।

EPI 2022 की मुख्य विशेषताएँ:

राज्यों का प्रदर्शन:

  • शीर्ष प्रदर्शक राज्य:
    • EPI 2022 में तमिलनाडु शीर्ष पर है, उसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान है।
      • EPI 2021 (2022 में जारी) में गुजरात शीर्ष स्थान पर था, किंतु EPI 2022 में तीन अंक नीचे अर्थात् चौथे स्थान पर चला गया है।
    • निर्यात मूल्य, केंद्रित निर्यात और वैश्विक बाज़ार फुटप्रिंट सहित निर्यात प्रदर्शन संकेतकों के संदर्भ में बेहतरीन प्रदर्शन के चलते तमिलनाडु ने शीर्ष रैंकिंग हासिल की।
      • तमिलनाडु ऑटोमोटिव, चर्म, वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे क्षेत्रों में लगातार अग्रणी रहा है।
  • पहाड़ी/हिमालयी राज्य:
    • EPI 2022 में पहाड़ी/हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड ने शीर्ष स्थान हासिल किया है। इसके बाद हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम का स्थान है।

  • स्थलरुद्ध क्षेत्र:
    • EPI 2022 में भूमि से घिरे क्षेत्रों में हरियाणा शीर्ष पर है, यह निर्यात क्षेत्र में उसकी तैयारियों को प्रदर्शित करता है।
    • इसके बाद तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है। 

  • केंद्रशासित प्रदेश/छोटे राज्य:
    • केंद्रशासित प्रदेशों तथा छोटे राज्यों में गोवा EPI 2022 में पहले स्थान पर है।
      • जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लद्दाख ने क्रमशः दूसरा, तीसरा, चौथा एवं पाँचवाँ स्थान हासिल किया।

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था:
    • वर्ष 2021 में वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में कोविड-19 से उबरने के संकेत देखे गए। वस्तुओं की बढ़ती मांग, राजकोषीय नीतियाँ, वैक्सीन वितरण तथा प्रतिबंधों में ढील जैसे कारकों ने पिछले वर्ष की तुलना में माल व्यापार में 27% की वृद्धि एवं सेवा व्यापार में 16% की वृद्धि में योगदान दिया।
    • फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध ने रिकवरी/उगाही को धीमा कर दिया, जिससे अनाज, तेल तथा प्राकृतिक गैस जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए। 
    • वस्तुओं के व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई तथा सेवा व्यापार वर्ष 2021 की चौथी तिमाही तक महामारी से पूर्व के स्तर पर पहुँच गया।
  • भारत के निर्यात रुझान:
    • वैश्विक मंदी के बावजूद वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात अभूतपूर्व रूप से 675 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, जिसमें माल का व्यापार 420 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
    • वित्त वर्ष 2022 में माल निर्यात मूल्य 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, यह सरकार द्वारा निर्धारित एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य है, जो मार्च 2022 तक 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
      • इस प्रदर्शन के कई कारण थे। वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि तथा विकसित देशों की मांग में वृद्धि ने भारत के व्यापारिक निर्यात को बढ़ाने में मदद की।
  • तटीय राज्यों का प्रदर्शन:
    • तटीय राज्यों ने विभिन्न संकेतकों में बेहतर प्रदर्शन प्रदर्शित किया है, निर्यात सूचकांक में शीर्ष छह राज्य तटीय क्षेत्र से आते हैं।
    • तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा गुजरात सहित इन राज्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण प्रदर्शन किया है एवं अपने भौगोलिक लाभ के कारण राष्ट्रीय निर्यात में सकारात्मक योगदान दिया है।

  • स्थल-अवरुद्ध राज्य: 
    • उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा को छोड़कर, भूमि से घिरे राज्यों ने सामान्य रूप से संतोषजनक प्रदर्शन किया है, ये दोनों राज्य सकारात्मक बाहरी कारकों के कारण सामने आए हैं।
    • हालाँकि पंजाब और तेलंगाना ने संतोषजनक प्रदर्शन किया है, लेकिन हो सकता है कि उन्होंने अपने क्षेत्रीय लाभों का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया हो, जिसके परिणामस्वरूप समग्र प्रदर्शन औसत रहा है।
  • हिमालयी केंद्रशासित प्रदेश तथा अन्य छोटे राज्य: 
    • उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा तथा दिल्ली को छोड़कर हिमालयी केंद्रशासित प्रदेश तथा अन्य छोटे राज्यों ने निर्यात सूचकांक में असंतोषजनक प्रदर्शन किया है।
    • उनकी निर्यात तत्परता में सुधार के लिये संबंधित राज्य सरकारों द्वारा तत्काल सुधार की आवश्यकता के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।

  • नीति पारिस्थितिकी तंत्र एवं अवसंरचना:
    • कई राज्यों ने निर्यात-उन्मुख नीति उपायों को अपनाने के साथ निर्यात में वृद्धि के लिये आवश्यक कार्रवाइयाँ की हैं।
    • समर्पित-औद्योगिक क्षेत्रों, सिंगल-विंडो क्लीयरेंस तथा निर्यात बुनियादी ढाँचे की उपस्थिति ने सकारात्मक कारोबारी परिस्थिति निर्माण में योगदान दिया है।
    • देश के 29 राज्यों ने अपने महामारी-पूर्व स्तर से अधिक निर्यात में सकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की है, जो कि निर्यात में वृद्धि का प्रमाण है।
  • परिवहन कनेक्टिविटी: 
    • हवाई संपर्क की कमी के कारण विशेषकर भूमि से घिरे या भौगोलिक रूप से वंचित राज्यों में उत्पादों का प्रवाह बाधित होता है।
    • कुशल व्यापार के लिये परिवहन अवसंरचना को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
  • क्लस्टर शक्ति तथा नवप्रवर्तन: 
    • औद्योगिक क्लस्टरों के लिये एक पोषण वातावरण बनाने के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है, क्योंकि ऐसे वातावरण की कमी उत्पादकता में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
    • अनुसंधान एवं विकास (R&D) तथा निर्यात में नवप्रवर्तन पर कम फोकस को एक कमज़ोरी के रूप में देखा गया है।
  • विनिर्माण क्षेत्र एवं FDI प्रभाव: 
    • महामारी का निरंतर प्रभाव विनिर्माण क्षेत्र द्वारा कम सकल मूल्यवर्द्धन तथा कई राज्यों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के प्रवाह में कमी के रूप में प्रदर्शित हुआ है।
    • संघर्षरत उद्योगों को सरकारी सहायता की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • क्षमता निर्माण तथा ज्ञान प्रसार: 
    • वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये निर्यातकों हेतु उचित ज्ञान प्रसार चैनलों का होना  महत्त्वपूर्ण है। 
    • क्षमता-निर्माण कार्यशालाओं की अनुपस्थिति और सरकारी योजनाओं का सीमित उपयोग निर्यातकों का वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश करने की क्षमताओं में बाधा उत्पन्न करता है।
  • निर्यात संकेंद्रण तथा बाज़ार में प्रवेश: 
    • विविधीकरण तथा बाज़ार अनुसंधान की आवश्यकता कम संख्या में वस्तुओं एवं क्षेत्रों पर निर्यात की उच्च सांद्रता के साथ-साथ इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि निर्यात बहुत कम संख्या में होता है

सुधार के प्रमुख क्षेत्र:

  • निर्यात विविधता: 
    • भारत के निर्यात पोर्टफोलियो में अभी भी रत्न तथा आभूषण, कपड़ा एवं इंजीनियरिंग उपकरण सहित कुछ उद्योगों का अनुपातहीन रूप से वर्चस्व है।
    • उत्पादकता में सुधार के लिये देशों से निवेश आकर्षित किया जा सकता है, साथ ही राज्य सरकारें निर्यातकों को इन बाज़ारों के बारे में जानकारी तक पहुँच की सुविधा प्रदान कर सकती हैं।
  • व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत बनाना: 
    • कई राज्यों में व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार की आवश्यकता है, जिसमें नियामक अनुपालन लागत को कम करना तथा वित्त तक पहुँच में सुधार करना शामिल है।
  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश:
    • भारत को निर्यात किये जा सकने वाले नए उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने के लिये अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।
    • प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (TIES) जैसी सरकारी योजनाओं का उपयोग निर्यात प्रोत्साहन क्षेत्र, अनुसंधान सुविधाएँ तथा परिवहन बुनियादी ढाँचा निर्मित करने के लिये किया जा सकता है, जिससे कमज़ोर अर्थव्यवस्थाएँ मज़बूत निर्यातक राज्यों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम हो सकेंगी।
  • विशिष्ट उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना: 
    • भारत को उन विशिष्ट उत्पादों को विकसित तथा निर्यात करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जिनका मूल्य वर्द्धित हैं, साथ ही जो वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति कम संवेदनशील हैं।

सुधार के लिये सिफारिशें:

  • क्षेत्रीय विषमताओं को संबोधित करना:
    • निर्यात वृद्धि के लिये अलग-अलग राज्यों की तैयारी और क्षमता का स्तर अलग-अलग है। 
      • हालाँकि नीति अपनाना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इन नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता अलग-अलग राज्यों में भिन्न हो सकती है।
    • उच्च प्रदर्शन करने वाले राज्यों तथा पिछड़े राज्यों के मध्य अंतर को समाप्त करने के लिये केंद्र सरकार को सबसे अधिक संघर्ष करने वाले राज्यों को सहायता प्रदान करनी चाहिये।
      • यह सहायता निर्यात के लिये आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने में सहायता के लिये वित्तपोषण, संसाधनों और विशेषज्ञता के रूप में की जा सकती है।
    • राज्यों को एक-दूसरे की सफलताओं से सीखने और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिये भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
      • उदाहरणस्वरूप हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड जैसे राज्य अन्य सफल हिमालयी राज्यों से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
  • भौगोलिक संकेत (GI) उत्पादों का उपयोग:
    • भौगोलिक संकेत (GI) उत्पाद भारत के विशिष्ट क्षेत्रों के लिये अद्वितीय हैं। राज्य बाज़ार में मज़बूत उपस्थिति स्थापित करने के लिये इन उत्पादों का लाभ उठा सकते हैं।
      • उदाहरण के लिये कांचीपुरम सिल्क जैसे उत्पाद केवल तमिलनाडु के लिये हैं, साथ ही इन्हें घरेलू प्रतिस्पर्द्धा के बिना निर्यात किया जा सकता है।
      • अपने विनिर्माण, गुणवत्ता में सुधार और वैश्विक बाज़ारों की पहचान करके राज्य अपना निर्यात बढ़ा सकते हैं।
  • विदेश व्यापार समझौतों (FTA) का लाभ उठाना:
    • भारत ने विभिन्न देशों के साथ FTA पर हस्ताक्षर किये हैं, जिससे अधिक अनुकूल व्यापारिक स्थितियाँ निर्मित हुई हैं।
      • राज्य अपने उत्पादों को साझेदार देशों की आवश्यकताओं के साथ जोड़कर तथा बाज़ार पहुँच को सुविधाजनक बनाकर इन समझौतों से लाभान्वित हो सकते हैं।
    • निर्यातक अपनी उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये साझेदार देशों से निवेश की मांग कर सकते हैं।
  • सटीक मूल्यांकन के लिये डेटा संग्रहण में सुधार:
    • निर्यात हेतु भारतीय राज्यों की तैयारियों के मूल्यांकन के लिये सटीक और व्यापक डेटा महत्त्वपूर्ण है।
      • डेटा संग्रहण, विशेष रूप से देश के निर्यात के संबंध में, संबंधी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिये।
      • स्पष्ट डेटा लक्षित नीति निर्माण से क्षेत्रीय व्यापार पैटर्न को समझने में सहायता मिलती है।
    • इसके अतिरिक्त राज्य स्तर पर सेवा निर्यात और निवेश पर सटीक डेटा प्राप्त करना उनके योगदान का सटीक आकलन करने के लिये आवश्यक है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2