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उत्तर प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 11 Dec 2025
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उत्तर प्रदेश में व्यय की प्रवृत्ति

चर्चा में क्यों?

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये उत्तर प्रदेश में मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) संबंधी सर्वेक्षण किया।

मुख्य बिंदु 

  • शीर्ष शहरी व्यय: 
    • गौतम बुद्ध नगर जिसमें नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा भी शामिल हैं, शहरी क्षेत्रों में सर्वाधिक व्यय वाला ज़िला रहा, जहाँ औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय 9,705 रुपए था।
    • लखनऊ से 100 किलोमीटर दूर स्थित पूर्वी उत्तर प्रदेश का ज़िला गोंडा, 8,122 रुपए के MPCE के साथ दूसरे स्थान पर रहा, जो कई प्रमुख शहरी केंद्रों से अधिक है।
  • अन्य शीर्ष क्षेत्र:
    • अन्य शीर्ष शहरों में बागपत, लखनऊ और मुज़फ्फरनगर क्रमशः 6,995 रुपये, 6,622 रुपये तथा 6,081 रुपये के MPCE के साथ प्रमुख ज़िलों के रूप में सामने आए।
  • ग्रामीण व्यय: 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में, राज्य के आठ आकांक्षी ज़िलों में से एक, श्रावस्ती, 4,462 रुपये के MPCE के साथ शीर्ष पर रहा, जो जीबी नगर के शहरी व्यय से अधिक है।
  • शहरी-ग्रामीण तुलना
    • सामान्यतः शहरी व्यय अधिक रहा, यद्यपि श्रावस्ती, अमरोहा और बलिया जैसे ज़िलों में ग्रामीण व्यय शहरी व्यय से अधिक पाया गया।
  • न्यूनतम व्यय वाले क्षेत्र:
    • बलिया में शहरी क्षेत्रों में सबसे कम MPCE 2,581 रुपये था, जबकि इसकी ग्रामीण आबादी ने 2,753 रुपये खर्च किये। सोनभद्र में ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे कम MPCE 2,357 रुपये था। 
  • क्षेत्रीय अंतर
    • पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िलों में पूर्वी ज़िलों की तुलना में अधिक खर्च देखा गया, जो राज्य में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं को उजागर करता है।
  • समग्र व्यय: 
    • उत्तर प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में औसत मासिक व्यय 4,418 रुपए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 3,246 रुपए रहा। दोनों में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गई, हालाँकि कुल व्यय अब भी राष्ट्रीय औसत से कम है।

मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) सर्वेक्षण

  • सर्वेक्षण वर्ष: वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये संपादित यह सर्वेक्षण उत्तर प्रदेश में घरेलू मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) का आकलन करता है। यह रिपोर्ट राज्य में उपभोग प्रवृत्तियों और व्यय क्षमता को रेखांकित करने के लिये प्रतिवर्ष जारी की जाती है।
  • कार्यप्रणाली: विशेषज्ञों ने राज्य के 75 ज़िलों के उपभोग आँकड़ों के विश्लेषण हेतु लघु-क्षेत्र अनुमान विधियों का उपयोग किया। इसमें विशेष रूप से फे-हेरियट (Fay–Herriot) मॉडल का प्रयोग किया गया, जो अलग-अलग आर्थिक परिस्थितियों और संरचनात्मक विविधताओं को समायोजित करने में सक्षम माना जाता है।
  • उद्देश्य: इस विश्लेषणात्मक मॉडल का प्रमुख उद्देश्य सामान्य चरों (Common Variables) के प्रभाव को निष्प्रभावी कर विभिन्न ज़िलों के आपेक्षिक विकास स्तर, उपभोग पैटर्न तथा आर्थिक अंतर को अधिक विश्वसनीय रूप से समझना था। इससे राज्य तथा केंद्र सरकार को साक्ष्य-आधारित योजना निर्माण में सहायता प्राप्त होती है।
  • क्षेत्र: सर्वेक्षण मुख्य रूप से व्यय की चार प्रमुख श्रेणियों पर केंद्रित था: खाद्य पदार्थ, उपभोग्य वस्तुएँ, सतत वस्तुएँ और जनसांख्यिकीय विवरण।

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उत्तर प्रदेश और IIT-रुड़की ने कार्बन क्रेडिट मॉडल लॉन्च किया

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने IIT रुड़की के सहयोग से एक कार्बन क्रेडिट मॉडल लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य किसानों को उनके कृषि क्षेत्रों में कार्बन संरक्षण करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित करने में सहायता प्रदान करना है।

मुख्य बिंदु 

  • भारत में पहला: यह भारत का पहला बड़े स्तर का कार्बन क्रेडिट मॉडल है, जिसका पायलट प्रोग्राम सहारनपुर मंडल में शुरू होगा और धीरे-धीरे पूरे राज्य में विस्तारित होगा।
  • किसानों के लिये कार्बन क्रेडिट: किसान ऐसे पेड़ लगाकर कार्बन क्रेडिट अर्जित करेंगे जो प्रकाश संश्लेषण के लिये कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है और वायु गुणवत्ता में सुधार होता है। संगृहीत प्रत्येक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के लिये एक कार्बन क्रेडिट मिलेगा, जिसे किसानों को भुगतान के रूप में दिया जाएगा।
  • राजस्व वितरण: कार्बन क्रेडिट बाज़ार में बेचे जाने के बाद, 50% राजस्व सीधे किसानों को दिया जाएगा। अर्जित आय मृदा की गुणवत्ता और संगृहीत कार्बन की मात्रा पर निर्भर करेगी।
  • सतत कृषि पद्धतियाँ: किसानों को मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ाने के लिये सतत कृषि तकनीकें अपनानी होंगी, जिसमें कृषि अपशिष्ट का जलाने के बजाय उपयोग, जुताई को कम करना और जैव उर्वरक का प्रयोग शामिल है।
  • आय और मृदा स्वास्थ्य: यह पहल किसानों को दीर्घकालिक आय का स्रोत प्रदान करेगी। इसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य बहाल करना, कृषि लागत कम करना और जल धारण क्षमता बढ़ाना है, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार तथा खेती की लागत में कमी आएगी।
  • वैज्ञानिक निगरानी: IIT रुड़की मृदा नमूनों का वैज्ञानिक परीक्षण करेगा और रिमोट सेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम की निगरानी सुनिश्चित करेगा। यह ढाँचा कार्बन भंडारण के मापन, सत्यापन तथा मौद्रिकरण को प्रमाणित करता है।
  • राजस्व आवंटन: कार्बन क्रेडिट की बिक्री से प्राप्त राजस्व का आधा हिस्सा किसानों को वितरित किया जाएगा, जबकि शेष आधा हिस्सा भूमि पंजीकरण, रखरखाव, निगरानी और परिचालन प्रक्रियाओं के लिये उपयोग किया जाएगा।
  • वैश्विक और स्थानीय प्रभाव : यह कार्यक्रम नेट ज़ीरो प्रतिबद्धताओं का समर्थन करता है, वैश्विक बाजारों में उच्च गुणवत्ता वाले कार्बन क्रेडिट की बिक्री को सुगम बनाता है, और पुनर्योजी कृषि का समर्थन करके ग्रामीण आजीविका को लाभ पहुँचाता है।
  • दीर्घकालिक लाभ : समय के साथ, इस कार्यक्रम से मृदा की उर्वरता, जल धारण क्षमता और फसल उपज में सुधार होने की संभावना है, जिससे किसानों के लिये आय के नए स्रोत सृजित होंगे तथा साथ ही भारत के जलवायु लक्ष्यों में भी योगदान मिलेगा।

कार्बन क्रेडिट 

  • कार्बन क्रेडिट, जिसे कार्बन ऑफसेट भी कहा जाता है, कार्बन उत्सर्जन में कमी या उसे अवशोषित करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसे कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (tCO₂e) के टन में मापा जाता है।
  • कार्बन क्रेडिट की अवधारणा को वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल में प्रस्तुत किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2015 के पेरिस समझौते द्वारा और अधिक मज़बूती प्रदान की गई। इसका उद्देश्य कार्बन व्यापार के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना है।
  • प्रत्येक कार्बन क्रेडिट एक टन CO₂ या उसके समतुल्य उत्सर्जन की अनुमति प्रदान करता है।
  • ये क्रेडिट उन परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं जो कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित या कम करती हैं और जिन्हें वेरिफाइड कार्बन स्टैंडर्ड (VCS) तथा गोल्ड स्टैंडर्ड जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा प्रमाणित किया जाता है। 

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भारत का पहला स्वदेशी हाइड्रोजन ईंधन सेल पोत

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्री सरबानंदा सोनोवाल ने वाराणसी में भारत के पहले स्वदेशी हाइड्रोजन ईंधन सेल पोत को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया, जो देश के सतत अंतर्देशीय जल परिवहन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

मुख्य बिंदु

  • तकनीकी उपलब्धि: इस पोत का प्रक्षेपण स्वच्छ ऊर्जा के प्रति भारत की बढ़ती तकनीकी क्षमताओं और प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे देश हाइड्रोजन-संचालित पोतों को अपनाने वाले देशों जैसे चीन, जापान और नॉर्वे के समकक्ष हो जाता है।
  • सतत ऊर्जा: हाइड्रोजन से चलने वाले पोत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की दिशा में एक कदम है, जो लगभग शून्य उत्सर्जन के साथ स्वच्छ, सतत ऊर्जा प्रदान करते हैं, हालाँकि पूर्ण स्तर पर वाणिज्यिक उपयोग अभी भी अनुसंधान के अधीन है।
  • वाराणसी की भूमिका: नमो घाट पर इस परियोजना के शुभारंभ से वाराणसी भारत की हरित जलमार्ग पहल में अग्रणी स्थान पर आ गया है, जिससे आगंतुकों और तीर्थयात्रियों दोनों के लिये परिवहन अनुभव बेहतर होगा तथा पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान मिलेगा।
  • प्रधानमंत्री मोदी का विज़न: हाइड्रोजन पोत पहल प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अंतर्देशीय जलमार्गों का आधुनिकीकरण करना, स्वच्छ परिवहन को प्राथमिकता देना और कनेक्टिविटी तथा सार्वजनिक सुविधा को बढ़ाना है।
  • समुद्री भारत विज़न 2030: यह परियोजना समुद्री भारत विज़न 2030 और समुद्री अमृत काल विज़न 2047 के अनुरूप है, जो अंतर्देशीय जलमार्गों पर हरित परिवहन, स्मार्ट अवसंरचना तथा वैकल्पिक ईंधन पर ज़ोर देती है।
  • आर्थिक प्रभाव: हाइड्रोजन पोत और संबंधित परियोजनाओं का उद्देश्य सतत अवसंरचना को मज़बूत करके, लॉजिस्टिक लागत को कम करके तथा हरित परिवहन समाधानों को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक क्षमता को बढ़ाना है।
  • अन्य विकास परियोजनाएँ : उत्तर प्रदेश के जलमार्ग विकास में 300 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया है और आने वाले वर्षों में 2,200 करोड़ रुपये की योजनाओं को शुरू करने की योजना है, जिसमें हल्दिया से वाराणसी तक आधुनिक नौवहन गलियारा भी शामिल है।

राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English

सी. राजगोपालाचारी जयंती

चर्चा में क्यों? 

भारत के प्रधानमंत्री ने 10 दिसंबर, 2025 को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (राजाजी) की जयंती पर उन्हें नमन करते हुए भारत के स्वतंत्रता संग्राम, प्रशासनिक चिंतन तथा सामाजिक सशक्तीकरण में उनके बहुमूल्य और दूरदर्शी योगदान को स्मरण किया।

Birth Anniversary of C. Rajagopalachari

मुख्य बिंदु 

  • परिचय: सी. राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को मद्रास प्रांत (वर्तमान तमिलनाडु) के सलेम में हुआ था। वर्ष 1899 में उन्होंने विधि में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही सलेम में अपनी वकालत शुरू की।
  • राजनीतिक तथा सामाजिक सुधार: राजगोपालाचारी, लॉर्ड कर्ज़न द्वारा सांप्रदायिक आधार पर किये जाने वाले बंगाल विभाजन के निर्णय से प्रभावित होने के साथ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के पूर्ण स्वतंत्रता के आह्वान से प्रेरित हुए।
    • यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल हुए तथा उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया।
    • वर्ष 1917 में राजगोपालाचारी सलेम नगर पालिका के अध्यक्ष बने तथा उन्होंने पिछड़े वर्गों के सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया। वर्ष 1925 में उन्होंने सामाजिक उत्थान हेतु मद्रास प्रांत में एक आश्रम की स्थापना की।
      • इस आश्रम द्वारा दो पत्रिकाएँ प्रकाशित की गईं- विमोचनम (तमिल) और प्रोहिबिशन (अंग्रेज़ी)।
  • स्वतंत्रता संग्राम: रॉलेट एक्ट के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान राजाजी ने चेन्नई, तमिलनाडु में इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
    • वर्ष 1930 में दांडी मार्च के दौरान राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रांत में तिरुचि से वेदारण्यम तक नमक मार्च का नेतृत्व किया (जिसे वेदारण्यम सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है)। 
      • वेदारण्यम सत्याग्रह के दौरान उनकी गिरफ्तारी के साथ ही उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में एक नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।
    • भारत छोड़ो आंदोलन के बाद राजगोपालाचारी के पैम्फलेट "द वे आउट" में मुस्लिम लीग एवं कॉन्ग्रेस के बीच एक अलग मुस्लिम राज्य के संबंध में संवैधानिक गतिरोध को हल करने के क्रम में सी.आर. फार्मूले की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी।
  • मद्रास प्रांत के प्रधानमंत्री: वर्ष 1937 में राजगोपालाचारी मद्रास प्रांत के प्रधानमंत्री बने।
    • उन्होंने खादी को बढ़ावा देने के साथ जमींदारी उन्मूलन एवं स्कूलों में हिंदी की शुरुआत सहित अन्य सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों को लागू करने में भूमिका निभाई।
    • उन्होंने दलितों के जीवन स्तर को बेहतर करने एवं सामाजिक समानता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया।
  • स्वतंत्रता के बाद योगदान: राजगोपालाचारी को पश्चिम बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया तथा आगे चलकर वर्ष 1947 में वे स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल भी बने (वर्ष 1950 में इस पद को स्थायी रूप से समाप्त कर दिया गया)।
    • उन्होंने मुस्लिमों को मुख्यधारा में एकीकृत करने के साथ भारत के पंथनिरपेक्ष स्वरूप को बनाए रखने की दिशा में कार्य किया।
    • उन्होंने सरदार पटेल की मृत्यु के बाद केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में कार्य किया तथा प्रथम पंचवर्षीय योजना के साथ ही प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • वर्ष 1959 में राजगोपालाचारी ने बाज़ार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ ही सरकारी नियंत्रण को कम करने का समर्थन करने के क्रम में स्वतंत्र पार्टी का गठन किया।
    • वर्ष 1962 में राजाजी ने अमेरिका में गांधी पीस फाउंडेशन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया।
    • राजगोपालाचारी ने चक्रवर्ती थिरुमगन (जिसे वर्ष 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला) नाम से रामायण का तमिल में अनुवाद किया।
  • विरासत: सी. राजगोपालाचारी को वर्ष 1954 में 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। वे यह सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। 
  • 25 दिसंबर, 1972 को राजगोपालाचारी का निधन हुआ।

राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English

सुजलाम भारत ऐप

चर्चा में क्यों?

जल शक्ति मंत्रालय ने सुझलाम भारत ऐप लॉन्च किया है, जो जल जीवन मिशन (JJM) के अंतर्गत एक प्रमुख डिजिटल पहल है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण पेयजल आपूर्ति प्रणाली का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है।

मुख्य बिंदु 

  • परिचय: सुजल गाँव ID (डिजिटल पहचान) प्रत्येक बस्ती के लिये एक स्पष्ट डिजिटल प्रोफाइल प्रदान करेगी, जिसमें उसके पेयजल स्रोत, बुनियादी ढाँचे की स्थिति, आपूर्ति की विश्वसनीयता, जल की गुणवत्ता और संचालन एवं रखरखाव व्यवस्थाओं का विवरण होगा।
  • उद्देश्य: यह मंच ग्राम पंचायतों, ग्राम जल एवं स्वच्छता समितियों (VWSCs) और सेवा प्रदाताओं के प्रदर्शन में पारदर्शिता बढ़ाएगा, साथ ही सामुदायिक भागीदारी तथा निगरानी को प्रोत्साहित करेगा।
  • विकास: इसे भास्करचार्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुप्रयोग एवं भू-सूचना विज्ञान संस्थान (BISAG-N) के सहयोग से विकसित किया गया है।
  • एकीकरण: जल नेटवर्क, परिसंपत्ति सूची, जल गुणवत्ता डेटा और सामुदायिक प्रतिक्रिया के सटीक भू-स्थानिक मानचित्रण के लिये इसे PM गति शक्ति GIS के साथ एकीकृत किया गया है।
  • महत्त्व : इस ऐप को "ग्रामीण जल प्रणालियों के लिये आधार" के रूप में परिकल्पित किया गया है। यह ग्रामीण जल वितरण प्रणाली को पारदर्शी, जवाबदेह और नागरिक-केंद्रित बनाने में आधार का काम करेगा।

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