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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 10 Jul 2025
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उत्तराखंड भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से सतत् भू-तापीय संसाधनों की खोज और विकास के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु उत्तराखंड भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025 को मंज़ूरी दी।

नोट: 

  • मंत्रिमंडल ने राज्य स्तरीय खनिज ट्रस्टों के गठन को प्रोत्साहित करने के लिये उत्तराखंड राज्य खनिज अन्वेषण ट्रस्ट नियम, 2025 को मंज़ूरी दी।
  • इसने वर्ष 2017 के नियमों के स्थान पर उत्तराखंड ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट नियम, 2025 में संशोधन को भी मंज़ूरी दी।

मुख्य बिंदु

  • भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025 के बारे में:
    • नीति का उद्देश्य भूतापीय स्थलों का उपयोग बिजली उत्पादन, जल -भोजन और शीतलन, जल शोधन और सामुदायिक विकास के लिये करना है।
    • सरकार उत्तराखंड की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना और दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करना चाहती है।
    • ऊर्जा विभाग, उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (UREDA) और उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) के सहयोग से राज्य की सभी भू-तापीय परियोजनाओं में इस नीति को लागू करेगा।
  • परियोजना अवधि और आवंटन प्रक्रिया:
    • सरकार भू-तापीय परियोजनाओं को चालू होने की तिथि से अधिकतम 30 वर्षों के लिये आवंटित करेगी।
    • परियोजनाएँ प्रतिस्पर्द्धी बोली या अन्य निर्दिष्ट तरीकों के माध्यम से केंद्रीय या राज्य सार्वजनिक उपक्रमों या निजी डेवलपर्स को दी जा सकती हैं।
  • उत्तराखंड में भूतापीय ऊर्जा का भूवैज्ञानिक आधार:
    • हिमालयी क्षेत्र में गर्म झरने या भूतापीय स्रोत तब बनते हैं जब भूमिगत जल भूतापीय बिंदुओं तक पहुँचता है और तापीय छिद्रों के माध्यम से बाहर निकलता है।
    • ऊष्मा उत्पादन ज्वालामुखी गतिविधि, टेक्टोनिक हलचल और पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टान निर्माण के कारण होता है।
      • जब कोई जल स्रोत इन क्षेत्रों के पास से प्रवाहित होता है, तो वह ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है और तापीय छिद्रों के माध्यम से गर्म झरनों के रूप में बाहर निकलता है।
    • भूतापीय स्रोत मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट के पास स्थित होते हैं, जो एक भूवैज्ञानिक भ्रंश रेखा है, जहाँ भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से मिलती है।
  • उदाहरण के लिये, मणिकरण (हिमाचल प्रदेश), गौरीकुंड (उत्तराखंड)

भू-तापीय ऊर्जा

  • भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी के आंतरिक भाग से निकलने वाली ऊष्मा है, जो रेडियोधर्मी क्षय द्वारा उत्पन्न होती है। यह नवीकरणीय है जो 24/7 आधारभूत ऊर्जा प्रदान करती है, क्योंकि पृथ्वी निरंतर ऊष्मा उत्पन्न करती रहती है। 
  • भारत में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा 381 भूतापीय रूप से असामान्य स्थलों की पहचान की गई है, जिनमें 10,600 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है, जो 1 करोड़ घरों को बिजली देने के लिये पर्याप्त है। 
    • प्रमुख परियोजनाओं में मनुगुरु, तेलंगाना में 20 किलोवाट का पायलट प्लांट और पुगा घाटी, लद्दाख में ONGC की 1 मेगावाट की परियोजना शामिल हैं।
  • भारत ने भूतापीय ऊर्जा सहयोग के लिये आइसलैंड (2007), सऊदी अरब (2019) जैसे देशों के साथ समझौते किये हैं तथा अमेरिका (2023) के साथ नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी कार्रवाई मंच (RETAP) पर समझौते किये हैं।
  • भूतापीय विशेषताएँ:
    • गीजर (Geysers): ये भूतापीय संरचनाएँ हैं, जो भूमिगत तापन के कारण समय-समय पर पानी और भाप बाहर निकालती हैं। 
      • ज्वालामुखी क्षेत्रों में भूमिगत गुहाओं को भरने के लिये गीज़रों को भारी मात्रा में भूजल की आवश्यकता होती है। आस-पास के मैग्मा द्वारा गर्म होने पर, पानी भाप में बदल जाता है, जिससे गर्म पानी और भाप का विस्फोट होता है। 
      • उदाहरण: येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान (अमेरिका)
    • फ्यूमरोलेस (Fumaroles): ये पृथ्वी की सतह पर ऐसी दरारें होती हैं जहाँ से ज्वालामुखीय गैसें और भाप बाहर निकलती हैं।
      • फ्यूमरोलेस तब उत्पन्न होते हैं जब मैग्मा जल स्तर से होकर गुजरता है, जिससे पानी गर्म हो जाता है और भाप ऊपर उठती है तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) जैसी ज्वालामुखी गैसें सतह पर आ जाती हैं। 
      • यह संरचना अक्सर ऐसे क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ ज्वालामुखी निष्क्रिय हो रहा होता है।
  • उदाहरण: बैरन द्वीप (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) 
    • मडपॉट्स (Mudpots):ये मिट्टी के बुदबुदाते हुए तालाब हैं, जो भूतापीय क्षेत्रों में बनते हैं। 
      • यह तब बनता है जब सीमित भूतापीय जल कीचड़ और चिकनी मिट्टी के साथ मिल जाता है। 
  • उदाहरण: येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान (अमेरिका)


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