झारखंड Switch to English
‘कला उत्सव 2025’ में सोहराय कला का प्रदर्शन
चर्चा में क्यों?
झारखंड के कलाकारों ने राष्ट्रपति भवन में कला उत्सव 2025 के दूसरे संस्करण 'आर्टिस्ट्स इन रेजिडेंस प्रोग्राम' में भाग लिया, जिसमें सोहराय कला की स्वदेशी भित्तिचित्र परंपरा का प्रदर्शन किया गया।
- 14 से 24 जुलाई 2025 तक आयोजित इस उत्सव में भारत के राष्ट्रपति की गरिमामयी उपस्थिति रही। यह उत्सव भारत की जीवंत कला परंपराओं का उत्सव था, जिसमें लोक, जनजातीय और परंपरागत कलाकारों को अपने कला-कार्य प्रदर्शित करने का मंच प्रदान किया गया।
मुख्य बिंदु
- सोहराय चित्रकला के बारे में:
- विशेषताएँ:
- यह चित्रकला फसल कटाई और त्योहारों के अवसरों पर बनाई जाती है। महिलाएँ प्राकृतिक मिट्टी के रंगों एवं बाँस की कूचियों का प्रयोग कर मिट्टी की दीवारों पर पशुओं, वनस्पतियों तथा ज्यामितीय आकृतियों का सजीव चित्रण करती हैं।
- इसे ‘फसल कला’ भी कहा जाता है क्योंकि यह कृषि और पशुपालन से गहराई से जुड़ी हुई है तथा जनजातीय जीवन की कृषि प्रधान संस्कृति को दर्शाती है।
- ‘सोह’ या ‘सोरों’ का अर्थ होता है दूर करना, जबकि ‘राय’ का अर्थ होता है लाठी। यह नाम सांस्कृतिक अनुष्ठानों के प्रमुख प्रतीकों को दर्शाता है।
- यह चित्रकला फसल कटाई और त्योहारों के अवसरों पर बनाई जाती है। महिलाएँ प्राकृतिक मिट्टी के रंगों एवं बाँस की कूचियों का प्रयोग कर मिट्टी की दीवारों पर पशुओं, वनस्पतियों तथा ज्यामितीय आकृतियों का सजीव चित्रण करती हैं।
- मान्यता:
- सोहराय चित्रकला को वर्ष 2020 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ है।

