उत्तर प्रदेश
घुमंतू और विमुक्त जनजातियों हेतु कल्याण बोर्ड
- 01 Sep 2025
- 28 min read
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में राज्य स्तरीय ‘विमुक्त जनजाति दिवस’ समारोह के दौरान विमुक्त जनजाति और घुमंतू जनजातियों के लिये एक समर्पित कल्याण बोर्ड बनाने की घोषणा की।
- अब 31 अगस्त को विमुक्त जनजाति दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस वर्ष 1952 में दमनकारी आपराधिक जनजाति अधिनियम के निरसन की स्मृति में मनाया जाता है, जिसने इन समुदायों को अन्यायपूर्ण तरीके से अपराधी घोषित कर उनके अधिकार छीन लिये थे।
मुख्य बिंदु
- कल्याण बोर्ड के बारे में:
- नव गठित बोर्ड से इन समुदायों के लिये आवास, भूमि पट्टे और मतदान के अधिकार प्रदान करने पर विशेष ध्यान दिये जाने की उम्मीद है।
- यह बोर्ड शामली और वनटांगिया मॉडल के समान लाभ प्रदान करने पर केंद्रित होगा, जिसमें भूमि पट्टे, आवासीय कॉलोनियाँ तथा विभिन्न सामाजिक सुरक्षा लाभ शामिल हैं।
- समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण को इस बोर्ड के गठन का कार्य सौंपा गया है।
- आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871:
- ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने वर्ष 1871 में आपराधिक जनजाति अधिनियम पारित किया था, जिसके अंतर्गत कुछ जनजातियों को “जन्म से अपराधी” घोषित किया गया और उन्हें निरंतर निगरानी व भेदभाव का शिकार बनाया गया।
- विमुक्त जनजातियाँ और घुमंतू जनजातियों में नट, बंजारा, बावरिया, सासी, कंजड़, कालबेलिया, सपेरा तथा जोगी जैसे समुदाय शामिल हैं, जिनका विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध प्रतिरोध का एक लंबा इतिहास रहा है।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से वर्ष 1952 में आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त करने के बाद इन समुदायों को औपचारिक रूप से अपराधी की परिभाषा से मुक्त किया गया।
- ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने वर्ष 1871 में आपराधिक जनजाति अधिनियम पारित किया था, जिसके अंतर्गत कुछ जनजातियों को “जन्म से अपराधी” घोषित किया गया और उन्हें निरंतर निगरानी व भेदभाव का शिकार बनाया गया।
विमुक्त जनजातियाँ (DNT), घुमंतू जनजातियाँ (NT) और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ (SNT)
- परिचय:
- विमुक्त जनजातियाँ' उन समुदायों को कहा जाता है, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के अंतर्गत अपराधी घोषित किया गया था।
- भारत सरकार ने वर्ष 1952 में इस अधिनियम को समाप्त कर इन्हें अपराधी की परिभाषा से मुक्त किया गया।
- इन समुदायों में से अनेक घुमंतू प्रकृति के थे।
- घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदाय वे हैं, जो स्थायी रूप से एक स्थान पर न रहकर लगातार भ्रमणशील जीवन जीते हैं।
- अधिकांश DNTs, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में शामिल हैं, किंतु कुछ DNTs किसी भी श्रेणी में सम्मिलित नहीं हैं।
- वितरण:
- विमुक्त जनजातियाँ विभिन्न प्रकार के समुदायों को शामिल करती हैं, जिनकी सांस्कृतिक प्रथाएँ, भाषाएँ और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ विशिष्ट हैं।
- इन समुदायों में कंजर, नट, पारधी और सपेरा प्रमुख हैं।
- दक्षिण एशिया को विश्व में सबसे बड़ी घुमंतू आबादी वाला क्षेत्र माना जाता है। भारत में लगभग 10% जनसंख्या NTs, SNTs और DNTs से मिलकर बनी है।
- भारत में लगभग 150 विमुक्त जनजातियाँ हैं, जबकि घुमंतू जनजातियों की आबादी में लगभग 500 अलग-अलग समुदाय शामिल हैं।
- प्रमुख समितियाँ/आयोग:
- आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 (संयुक्त प्रांत, वर्तमान उत्तर प्रदेश)।
- अनंतशयनम अय्यंगार समिति, 1949 – इसकी अनुशंसा पर आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त किया गया।
- काका कालेलकर आयोग, 1953 (प्रथम OBC आयोग)
- बी.पी. मंडल आयोग, 1980 – इसने NTs, SNTs और DNTs से संबंधित कुछ सिफारिशें दीं।
- संविधान के कार्यान्वयन की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग (NCRWC), 2002 – इसने माना कि DNTs को गलत रूप से अपराध-प्रवण करार दिया गया है तथा कानून-व्यवस्था और सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार तथा शोषण किया गया है।
- रेणके आयोग (2005): इस आयोग ने इनकी जनसंख्या का अनुमान उस समय लगभग 10 से 12 करोड़ लगाया था।