राजस्थान
राजस्थान की पहली ट्रांसजेंडर वकील
- 20 Sep 2025
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चर्चा में क्यों?
रवीना सिंह राजस्थान बार काउंसिल में महिला के रूप में पंजीकरण कराने वाली पहली ट्रांसजेंडर वकील बन गईं।
मुख्य बिंदु
- राजस्थान के पाली ज़िले के एक रूढ़िवादी परिवार में जन्मी रवीना सिंह का नाम पहले रवींद्र सिंह था, जिन्होंने सामाजिक मानदंडों और पारिवारिक अपेक्षाओं को चुनौती देते हुए अपनी वास्तविक लैंगिक पहचान को अपनाया।
- उनकी उपलब्धि ने न केवल व्यक्तिगत जीत को चिह्नित किया, बल्कि व्यावसायिक क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल करने के लिये एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है।
- कानूनी पहल: रवीना ने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिये राजस्थान उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की थी, ताकि शिक्षा और रोज़गार प्रणाली में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की व्यापक पहचान तथा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार, ट्रांसजेंडर अथवा उभयलिंगी व्यक्ति वह होता है जिसकी लैंगिक पहचान जन्म के समय निर्धारित लिंग से सुमेलित नहीं होती है।
- जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ट्रांसजेंडर की जनसंख्या लगभग 4.88 लाख है।
- सबसे अधिक ट्रांसजेंडर जनसंख्या वाले शीर्ष 3 राज्य उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र हैं।
- इसमें इंटरसेक्स भिन्नता वाले ट्रांस-व्यक्ति, जेंडर-क्वीर और सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता वाले व्यक्ति जैसे किन्नर, हिजड़ा, आरावानी तथा जोगता शामिल हैं।
- LGBTQIA+ का हिस्सा: ट्रांसजेंडर व्यक्ति LGBTQIA+ समुदाय का हिस्सा हैं, जिन्हें संक्षिप्त नाम में "T" द्वारा दर्शाया गया है।
- LGBTQIA+ एक संक्षिप्ति (शब्दों के प्रथम अक्षरों से बना शब्द) है जो लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल का प्रतिनिधित्व करता है।
- "+" उन अनेक अन्य अस्मिताओं को दर्शाता है जिनकी पहचान प्रकिया और अवबोधन वर्तमान में जारी है।
- इस संक्षिप्ति में निरंतर परिवर्तन जारी है और इसमें नॉन-बाइनरी तथा पैनसेक्सुअल जैसे अन्य पद भी शामिल किये जा सकते हैं।
- ट्रांसजेंडर अधिकार सुधार में प्रमुख उपलब्धियाँ
- निर्वाचन आयोग का निर्देश (वर्ष 2009): पंजीकरण फॉर्म को अद्यतन कर उसमें "अन्य" विकल्प शामिल किया गया, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पुरुष या महिला पहचान से बचने में मदद मिली।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2014): राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामले, 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को "थर्ड जेंडर" के रूप में मान्यता दी, तथा इसे मानवाधिकार मुद्दा माना।
- विधायी प्रयास (वर्ष 2019): ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया गया।