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पीआरएस 2021

विविध

सितंबर 2021

  • 01 Oct 2021
  • 37 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

कोविड-19

कॉर्बेवैक्‍स का नैदानिक ​​परीक्षण

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने वयस्कों में चरण III के नैदानिक परीक्षण और बच्चों एवं किशोरों (पाँच वर्ष और उससे अधिक आयु के) में चरण II/III के बाल चिकित्सा के लिये कॉर्बेवैक्‍स को मंज़ूरी दे दी है। कॉर्बेवैक्‍स को बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहयोग से बायोलॉजिकल ई लिमिटेड ने कोविड-19 वैक्सीन के तौर पर विकसित किया है। 

अब तक भारत में कोविड-19 के छह टीकों को इमरजेंसी यूज़ ऑथराइज़ेशन मिल चुका है। ये हैं:
(i) कोविशील्ड। 
(ii) कोवैक्सीन। 
(iii) स्पूतनिक-वी। 
(iv) mRNA-1273 (मॉडर्ना वैक्सीन)।
(v) जैनसेन।
(vi) जायकोव-डी। 

ये वैक्सीन 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी लोगों को लगाई जा सकती हैं। जायकोव-डी को 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी लोगों को लगाया जा सकता है। मई 2021 में दो से 18 वर्ष की आयु के बच्चों में बाल चिकित्सा परीक्षणों के लिये कोवैक्सीन को मंज़ूरी दी गई है।  


संचार

दूरसंचार क्षेत्र में सुधार

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दूरसंचार क्षेत्र में कई संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधारों को मंज़ूरी दी है।

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समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

GDP के 0.9% पर चालू खाता अधिशेष

वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में भारत के चालू खाते में 6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 0.9%) का अधिशेष दर्ज किया गया, जबकि वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 19.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 3.7%) का अधिशेष हुआ था। ऐसा वार्षिक आधार पर व्यापक व्यापार घाटे के कारण हुआ था। वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में चालू खाता संतुलन में 8.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 1%) का घाटा दर्ज किया गया था। पूंजी खाते में ऐसे लेन-देन को दर्शाया जाता है जो भारत की कंपनियों के एसेट/लायबिलिटीज़ की स्थिति को बदलते हैं। पूंजी खाते में शुद्ध प्रवाह (अंतर्वाह घटा बहिर्वाह) पिछले वर्ष 2020-21 की इसी अवधि के मुकाबले बढ़कर 25.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था। पिछले वर्ष का शुद्ध प्रवाह 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। इसका कारण यह है कि वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में विदेशी निवेश के रूप में 0.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह हुआ, जबकि वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में यह बढ़कर 12.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडार में 31.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई, जबकि पिछले वर्ष इसी तिमाही में इसमें 19.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी।


वित्त 

IT प्रणाली में सुधार 

GST परिषद ने GST दरों को युक्तिसंगत बनाने और प्रणालीगत सुधार के लिये दो मंत्री समूह (Groups of Ministers- GoM)) बनाए। GoM के संदर्भ की शर्तें और संयोजन इस प्रकार है:

  • दरों को युक्तिसंगत बनाना: GST परिषद ने कहा कि GST दरों को युक्तिसंगत बनाने की ज़रूरत है जिसमें इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्टर में संशोधन भी शामिल है। इनपुट्स की टैक्स दरों की तुलना में आउटपुट टैक्स दरों के कम होने से इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की  स्थिति उत्पन्न होती है। दरों को युक्तिसंगत बनाने से दर संरचना सरल होगी, वस्तुओं और सेवाओं के वर्गीकरण से संबंधित विवाद कम होंगे और राजस्व बढ़ेगा। GoM को निम्नलिखित करने चाहिये: 
    (i) GST से छूट प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति की समीक्षा करनी चाहिये ताकि इनपुट टैक्स क्रेडिट की उपलब्धता में रुकावट न आए।
    (ii) जहाँ तक संभव हो, इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को समाप्त करने के लिये उपयुक्त दरों का सुझाव देना। 
    (iii) अपेक्षित संसाधन हासिल करने के लिये टैक्स स्लैब दरों में बदलाव का सुझाव देना।
    (iv) विशेष दर सहित स्लैब स्ट्रक्चर की दर की समीक्षा करना और सरल दर संरचना के लिये ज़रूरी उपायों का सुझाव देना।

GoM में कर्नाटक (संयोजक के रूप में), बिहार, गोवा, केरल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि शामिल होंगे। GoM को दो महीने में अपनी रिपोर्ट देनी होगी तथा अल्पावधि व मध्यम अवधि में संशोधनों को लागू करने का रोडमैप तैयार करना होगा। वह किसी भी तत्काल और ज़रूरी बदलाव के लिये अंतरिम रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर सकता है। 

  • GST प्रणाली में सुधार: परिषद ने कहा कि कर चोरी को कम करने और अनुपालन को बढ़ाने के लिये GST आईटी प्रणाली में सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सुधार, नियंत्रण और संतुलन को शामिल करने की ज़रूरत है। GoM निम्नलिखित का सुझाव देगा:
    (i) कर अधिकारियों के पास उपलब्ध IT उपकरणों की समीक्षा करते हुए राजस्व लीकेज को रोकने  के लिये बिज़नेस प्रक्रियाओं और IT प्रणाली में परिवर्तन। 
    (ii)  बेहतर अनुपालन और राजस्व बढ़ाने के लिये डेटा एनालिसिस का उपयोग। 
    (iii) केंद्र और राज्य कर प्रशासन के बीच बेहतर समन्वय की व्यवस्था, साथ ही सुझाए गए सभी परिवर्तनों के लिये समय सीमाएँ। 

GoM में महराष्ट्र (संयोजक के रूप में), आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, ओडिशा और तमिलनाडु के प्रतिनिधि शामिल होंगे। GoM परिषद को समय-समय पर सुझाव देगा और सुधारों के कार्यान्वयन की समीक्षा करेगा।

व्यापार ऋण बीमा 

भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने व्यापार ऋण बीमा (Trade Credit Insurance) के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं। 

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नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स’ की पुनर्प्राप्ति के लिये ‘नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड’ (NARCL) द्वारा जारी ‘सिक्योरिटी रिसीप्ट्स’ को वापस करने के लिये 30,600 करोड़ रुपए की गारंटी को मंज़ूरी दी है।

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मानक परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारतीय रिज़र्व बैंक (मानक आस्तियों का प्रतिभूतिकरण) निर्देश, 2021 जारी किया। प्रतिभूतिकरण ऐसे लेन-देन होते हैं जिनमें परिसंपत्तियों में क्रेडिट जोखिम को ट्रेडेबल सिक्योरिटीज़ में रीपैकेज करके पुनर्वितरित किया जाता है। इन प्रतिभूतियों में अलग-अलग रिस्क प्रोफाइल होते हैं जिनका अलग-अलग श्रेणियों के निवेशकों द्वारा मूल्यांकन किया जा सकता है। निर्देशों में निम्नलिखित से संबंधित प्रतिभूतिकरण लेन-देन को विनियमित करने का प्रयास किया गया है: 
(i) अधिसूचित वाणिज्यिक बैंक 
(ii) भारत के प्रमुख वित्तीय संस्थान
(iii) लघु वित्त बैंक
(iv) सभी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान। 

मानक आस्तियों के प्रतिभूतिकरण संबंधी दिशा-निर्देश, 2006 को निरस्त कर दिया गया है। वर्ष 2021 के निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • अपात्र संपत्तियाँ: ऋणदाता कुछ प्रकार की संपत्तियों में प्रतिभूतिकरण नहीं कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    (i) पुन: प्रतिभूतिकरण एक्सपोज़र।
    (ii) संरचनाएँ जहाँ लंबी अवधि की संपत्ति पर अल्पकालिक इंस्ट्रूमेंट्स जारी किये जाते हैं
    (iii) पुनर्गठित ऋण और अग्रिम। 
  • इश्यूएंस और लिस्टिंग: प्रतिभूतिकरण नोट्स के इश्यूएंस के लिये न्यूनतम टिकट साइज एक करोड़ रुपए होगा। किसी इश्यूएंस में कम-से-कम 50 लोगों को प्रतिभूतिकरण नोट्स वाले ऑफर के लिये सूचीबद्ध होना आवश्यक है।    
  • मिनिमम रीटेंशन रिक्वायरमेंट (MRR): MRR का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रतिभूतिकृत परिसंपत्तियों के प्रदर्शन में में मूल ऋणदाताओं का हिस्सा बरकरार रहे।  
  • पेमेंट की प्राथमिकताएँ: हर परिस्थिति में सभी लायबिलिटीज़ के लिये पेमेंट की प्राथमिकताएँ प्रतिभूतिकरण के समय स्पष्ट होनी चाहिये। इसके अतिरिक्त उन्हें लागू होने के लिये उपयुक्त कानूनी सुविधा दी जानी चाहिये।

म्यूचुअल फंड के लिये जोखिम प्रबंधन ढाँचा

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने म्यूचुअल फंड्स के लिये जोखिम प्रबंधन ढाँचा (RMF) जारी किया। म्यूचुअल फंड निवेशकों से स्टॉक और बॉण्ड जैसी वित्तीय संपत्तियों में निवेश करने के लिये फंड जुटाते हैं। ढाँचे में कुछ पद्धतियाँ और प्रक्रियाएँ शामिल हैं जिनका पालन जोखिम प्रबंधन के लिये सभी म्यूचुअल फंडों को करना चाहिये। इससे पहले वर्ष 2002 में म्यूचुअल फंड्स के जोखिम प्रबंधन पर एक सर्कुलर जारी किया गया था। वर्ष 2021 का सर्कुलर उसका स्थान लेता है। प्रत्येक एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) को 1 जनवरी, 2022 तक इस सर्कुलर का पालन करना होगा। फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • जोखिम प्रबंधन: AMC को अपने म्यूचुअल फंड व्यवसाय के लिये एक RMF स्थापित करना चाहिये जिसमें कुछ विशेषताएँ होनी चाहिये, जैसे कि: 
    (i) अच्छी संरचना वाला, कुशल और समयोचित। 
    (ii) म्यूचुअल फंड के गवर्नेंस के ढाँचे का एक अभिन्न अंग। 
    (iii) AMC और योजना के रिस्क प्रोफाइल दोनों के अनुकूल। 

प्रत्येक AMC को निरंतर RMF के भीतर कवर किये जाने वाले विशिष्ट जोखिमों की पहचान करनी चाहिये।

RMF के ऑडिट के लिये AMC स्तर पर एक समर्पित आंतरिक  लेखापरीक्षक होना चाहिये। आंतरिक ऑडिटर को योजना स्तर के जोखिम (निवेश जोखिम, ऋण जोखिम) और कंपनी स्तर के जोखिम (परिचालन एवं आउटसोर्सिंग) दोनों का ऑडिट करना चाहिये।

  • गवर्नेंस: निवेश जोखिम और अनुपालन जोखिम जैसे प्रमुख जोखिमों के लिये समर्पित जोखिम अधिकारी होने चाहिये। इसके अतिरिक्त AMC में एक मुख्य जोखिम अधिकारी होना चाहिये जो म्यूचुअल फंड संचालन के समग्र जोखिम प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार होगा। एएमसी और उसके ट्रस्टियों के पास अनिवार्य रूप से अलग जोखिम प्रबंधन समितियाँ होनी चाहिये जो कंपनी और योजना दोनों स्तरों पर RMF की वार्षिक समीक्षा करेंगी।

सोशल स्टॉक एक्सचेंज

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सामाजिक उद्यमों द्वारा धन जुटाने के लिये सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के निर्माण को मंज़ूरी दी। SSE मौजूदा स्टॉक एक्सचेंज के लिये अलग सेगमेंट होगा। SSE में भाग लेने वाली संस्थाओं में गैर-लाभकारी संगठन और लाभकारी सामाजिक उद्यम शामिल हैं जिनका प्राथमिक लक्ष्य सोशल इंटेंट और इंपैक्ट है। पात्र गैर-लाभकारी संगठन SSE के साथ पंजीकरण के बाद इक्विटी, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, सोशल इंपैक्ट फंड और डेवलपमेंट इंपैक्ट बॉण्ड के ज़रिये धन जुटा सकते हैं। सोशल इंपैक्ट का ऑडिट SSE पर पंजीकृत/फंड जुटाने वाले सामाजिक उद्यमों के लिये अनिवार्य होगा।


विधि एवं न्याय

अधिकरण (सेवा शर्तें) नियम, 2021

वित्त मंत्रालय ने अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के अंतर्गत अधिकरण (सेवा शर्तें) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। अधिनियम ने कई मौजूदा अपीलीय निकायों को समाप्त किया है और उनके कार्यों को मुख्य रूप से उच्च न्यायालयों को हस्तांतरित किया है। इसके अतिरिक्त उसने केंद्र सरकार को अधिकरण के सदस्यों की क्वालिफिकेशन और कुछ सेवा शर्तों (जैसे पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया, वेतन व भत्तों) के संबंध में नियम बनाने का अधिकार दिया है। अधिसूचित नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पुनर्नियुक्ति: नियमों में निर्दिष्ट किया गया है कि अधिकरण में नियुक्ति के लिये उम्मीदवारों का चयन करते समय ऐसे व्यक्तियों को अतिरिक्त वेटेज दिया जाना चाहिये जिनका उस अधिकरण में काम करने का अनुभव रहा है। पुनर्नियुक्ति पर फैसला लेते समय अधिकरण में उम्मीदवार के पिछले प्रदर्शन पर विचार किया जाएगा।
  • शिकायतों की जाँच: अधिकरण के चेयरपर्सन या सदस्यों के खिलाफ लिखित शिकायत मिलने पर केंद्र सरकार शुरुआती जाँच करेगी। इस जाँच के आधार पर सरकार उस शिकायत को संबंधित सर्च-कम-सलेक्शन समिति को भेज देगी। समिति शिकायत की जाँच के लिये एक व्यक्ति को नामित कर सकती है। वह व्यक्ति निम्नलिखित हो सकता है: 
    (i) सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (किसी चेयरपर्सन के खिलाफ जाँच के लिये)। 
    (ii) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (किसी सदस्य के खिलाफ जाँच के लिये)। 

उल्लेखनीय है कि अधिकरण सुधार अधिनियम उस अध्यादेश का स्थान लेता है जिसे ऐसे ही प्रावधानों के साथ अप्रैल 2021 में जारी किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस अध्यादेश की समीक्षा की और कुछ प्रावधानों (जैसे चार वर्ष का कार्यकाल) को निरस्त कर दिया, चूँकि वे सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसलों का पालन नहीं करते थे। उल्लेखनीय है कि अपने पहले के कई फैसलों में सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ दिशा-निर्देश दिये थे कि किस तरह कार्यपालिका से अधिकरण की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए। 

वर्तमान में 2021 के अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है क्योंकि इसमें अध्यादेश के वे प्रावधान भी शामिल हैं जिन्हें न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। 


स्वास्थ्य

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन 

केंद्र सरकार ने 27 सितंबर, 2021 को आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (Ayushman Bharat Digital Mission) की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत हर नागरिक को डिजिटल स्वास्थ्य आईडी दिया जाएगा। 

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परिवहन

वाहन स्क्रैपिंग के पंजीकरण और कार्यों के नियम 

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन (वाहन स्क्रैपिंग के पंजीकरण और कार्य) नियम, 2021 को अधिसूचित किया। इन नियमों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है। वर्ष 1988 का अधिनियम केंद्र सरकार को मोटर वाहनों के पुनर्चक्रण के नियम बनाने का अधिकार देता है। वर्ष 2021 के नियम एक पंजीकृत वाहन स्क्रैपिंग केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया प्रदान करते हैं, जो निराकरण और स्क्रैपिंग कार्यों को करने के लिये अधिकृत होगा। नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • वाहन स्क्रैपिंग का पंजीकरण: आवेदक (एक व्यक्ति, सोसायटी या कंपनी) संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की सरकार को स्क्रैपिंग के पंजीकरण के लिये आवेदन कर सकता है। प्रत्येक प्रस्तावित वाहन स्क्रैपिंग के लिये आवेदक को दस लाख रुपए बयाना राशि के रूप में जमा करना आवश्यक है। पंजीकरण अधिकारियों को आवेदन की तारीख से 60 दिनों के भीतर आवेदनों का निपटान करना होगा। पंजीकरण दस वर्ष के लिये वैध और अहस्तांतरणीय होगा।
  • स्क्रैपिंग मानदंड: स्क्रैपिंग के लिये योग्य वाहनों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पंजीकरण समाप्त होने वाले वाहन, (ii) बिना फिटनेस प्रमाणपत्र वाले वाहन, (iii) प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा छोड़े गए वाहन (iv) स्क्रैपिंग के लिये पेश किये गए वाहन जिन्हें केंद्र या राज्य सरकार के संगठनों ने अप्रचलित माना हो।

ड्रोन सेक्टर हेतु प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में ड्रोन्स और ड्रोन कंपोनेंट्स की मैन्यूफैक्चरिंग के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को मंज़ूरी दी है। 

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भारी उद्योग

ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों के लिये पीएलआई योजना 

भारी उद्योग मंत्रालय ने ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को अधिसूचित किया है। इस योजना के अंतर्गत पात्र कंपनियों को घरेलू स्तर पर निर्मित उन्नत ऑटोमोटिव उत्पादों की बिक्री में वृद्धि पर इंसेंटिव मिलेगा। यह योजना वर्ष 2022-23 से शुरू होकर पाँच वर्षों में लागू की जाएगी। योजना की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • प्रयोज्यता: यह योजना निम्नलिखित के निर्माण के लिये लागू होगी: 
    (i) बैटरी, इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन तथा अन्य अधिसूचित उन्नत ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी वाहन
    (ii) उन्नत ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी घटक और वाहन समुच्चय। 

यह योजना दोपहिया, तिपहिया, यात्री वाहन, कमर्शियल वाहन, ट्रैक्टर और सैन्य उपयोग के सभी वाहन खंडों के लिये उपलब्ध होगी।

  • प्रोत्साहन: योजना के अंतर्गत कंपनियों को एक वर्ष में (आधार वर्ष के रूप में वर्ष 2019-20 से अधिक) घरेलू स्तर पर निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री पर प्रोत्साहन प्राप्त होगा। प्रोत्साहन निम्नलिखित दर पर दिया जाएगा: (i) वाहन निर्माण के लिये 13%-16% (ii) घटक निर्माण के लिये 8%-11%, जो कि बिक्री मूल्य की सीमा के आधार पर तय होगा। बैटरी, इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन घटकों के निर्माण के लिये 5% की दर से अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। इस योजना का कुल परिव्यय पाँच वर्षों में 25,938 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है।
  • पात्रता: कंपनियों की निम्नलिखित श्रेणियाँ इस योजना के लिये पात्र होंगी: 
    (i) ऑटोमोटिव वाहन निर्माण में मौजूदा कंपनियाँ, जिनका न्यूनतम वैश्विक समूह राजस्व 10,000 करोड़ रुपए और अचल संपत्तियों में 3,000 करोड़ रुपए का न्यूनतम वैश्विक निवेश है।
    (ii) 500 करोड़ रुपए के न्यूनतम वैश्विक समूह राजस्व और 150 करोड़ रुपए की अचल संपत्तियों में न्यूनतम वैश्विक निवेश के साथ ऑटो कंपोनेंट निर्माण में संग्लग्न मौजूदा कंपनियाँ। 
    (iii) गैर-ऑटोमोटिव कंपनियाँ जिनकी न्यूनतम वैश्विक निवल संपत्ति 1,000 करोड़ रुपए है।

इस योजना में यह भी अपेक्षित है कि चयनित कंपनी किसी वर्ष प्रोत्साहन का पात्र होने के लिये प्रतिवर्ष नए घरेलू निवेश करे (पाँच वर्षों में 250 करोड़-2,000 करोड़ रुपए के बीच)।


शिक्षा

राष्ट्रीय संचालन समिति 

शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनाने के लिये राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्कूली शिक्षा, प्रारंभिक बचपन की देखभाल एवं शिक्षा, शिक्षक शिक्षा और वयस्क शिक्षा के लिये क्रमशः राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के विकास को अनिवार्य करती है। समिति का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा तथा इसकी अध्यक्षता डॉ. के कस्तूरीरंगन (इसरो के पूर्व प्रमुख) करेंगे।

समिति के संदर्भ की शर्तों में शामिल हैं: 
(i) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा का विकास। 
(ii) राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम की रूरेखा के इनपुट्स की समीक्षा। 
(iii) राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के विभिन्न हितधारकों, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड, विषय से संबंधित विशेषज्ञों व शिक्षाविदों के साथ समन्वय स्थापित करना। 


सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण

दत्तक ग्रहण की सुविधा 

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने दत्तक ग्रहण विनियमन, 2017 में संशोधनों को अधिसूचित किया है। ये संशोधन किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत अधिसूचित किये गए हैं जो कि केंद्र सरकार को इंटर-कंट्री एडॉप्शंस को रेगुलेट करने की शक्ति देते हैं। 2017 के विनियम गैर- निवासी भारतीय (Non Resident Indian- NRI), ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (Overseas Citizen Of India- OCI) और हेग एडॉप्शन कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्त्ता देश में रहने वाले विदेशी एडॉप्टिव पेरेंट्स द्वारा भारतीय बच्चों के एडॉप्शन को निर्दिष्ट करते हैं।  हेग एडॉप्शन कन्वेंशन का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच समन्वय स्थापित करना है ताकि इंटर कंट्री चाइल्ड एडॉप्शन के लिये सुरक्षात्मक उपायों को लागू किया जा सके। 

वर्ष 2021 के संशोधनों में निम्नलिखित के अंतर्गत एडॉप्शन के सभी मामलों के लिये प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

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मिड डे मील योजना 

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने स्कूलों में मिड डे मील की राष्ट्रीय योजना का नाम बदलकर पीएम पोषण कर दिया है और इसे पाँच वर्ष (2021-22 से 2025-26) की शुरुआती अवधि के लिये लॉन्च किया गया है।

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वाणिज्य

बुनियादी सुविधाओं की वृद्धि 

वाणिज्य संबंधी स्थायी समिति ने 11 सितंबर, 2021 को ‘निर्यात को बढ़ावा देने के लिये बुनियादी सुविधाओं की वृद्धि’ विषय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने कहा कि विश्वव्यापी निर्यात में भारत का हिस्सा (2.15%) बहुत छोटा है। उसने यह भी कहा कि वर्ष 2019-20 से भारतीय निर्यात में संकुचन (2020 में 15.73% की गिरावट) आया है। समिति के मुख्य सुझावों और निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • लॉजिस्टिक्स: भारतीय उत्पादों को विश्वव्यापी बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये: 
    (i) राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति को अंतिम रूप देना। 
    (ii) भारतीय पैकेजिंग संस्थान की सलाह से कार्गो की अलग-अलग श्रेणियों के लिये पैकेजिंग दिशा-निर्देशों को मानकीकृत करना।
    (iii) यह सुनिश्चित करना कि अहमदाबाद और फरीदाबाद में निरीक्षण, परीक्षण व प्रमाणन प्रयोगशालाओं का निर्माण समय पर हो।
  • निर्यात संवर्द्धन पूंजी उत्पाद योजना में कस्ट्म्स ड्यूटी के बिना उन पूंजी उत्पादों (जैसे मशीनरी) का आयात किया जा सकता है, जिन्हें निर्माण से पहले, निर्माण और निर्माण के बाद इस्तेमाल किया जाता है। समिति ने कहा कि नई मशीनरी को इंस्टॉल करने और उसकी कमीशनिंग में एक वर्ष से ज़्यादा समय लग सकता है। आयात पूरा होने की तारीख से छह महीने के भीतर स्थापना प्रमाणपत्र (Installation Certificate) प्रस्तुत करने की आवश्यकता के कारण निर्यातकों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

समिति ने यह भी कहा कि निर्यातकों को अपनी निर्यात बाध्यता को पूरा करने में मुश्किलें आ रही हैं क्योंकि यह बाध्यता उस तारीख से लागु हो जाती है, जिस तारीख से पूंजी उत्पाद के लिये आयात का ऑथराइज़ेशन जारी किया गया था। समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये हैं: 
(i) निर्यात बाध्यता की अवधि की शुरुआत मशीनरी की कमीशनिंग की तारीख से मानी जाए। 
(ii) इंस्टॉलेशन सर्टिफिकेट सौंपने की समयावधि में रियायत दी जाए।

  • निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ: समिति ने कहा कि निर्यातकों को एडवांस ऑथराइज़ेशन स्कीम के अंतर्गत 15% अनिवार्य वैल्यू एडिशन को पूरा करने में दिक्कत आ रही है, इसलिये इन मानदंडों में रियायत दी जाए। योजना में ऐसे इनपुट्स के ड्यूटी फ्री आयात की अनुमति है जिन्हें निर्यात होने वाले उत्पादों में बाहर से लगाया जाता है या उसे बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। 

परिवहन और विपणन सहायता योजना 

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने निर्दिष्ट कृषि उत्पादों के लिये परिवहन और विपणन सहायता (TMA) योजना को संशोधित किया है।

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खनन

कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन हेतु टास्क फोर्स 

कोयला मंत्रालय ने कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन (ब्लैक हाइड्रोजन) हेतु रोडमैप तैयार करने के लिये एक टास्क फोर्स और विशेषज्ञ समिति का गठन किया।

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उर्जा

ज़िला स्तरीय समितियाँ

विद्युत मंत्रालय ने देश में विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार के लिये ज़िला स्तरीय समितियों के गठन का आदेश जारी किया है।

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शहरी विकास

शहरी नियोजन सुधार: नीति आयोग

नीति आयोग ने 'भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार' (Reforms in Urban Planning Capacity in India) शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है।

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टेक्सटाइल

उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना

कपड़ा मंत्रालय ने वस्त्र उद्योग हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ (PLI) योजना को मंज़ूरी दी है।

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सूचना प्रौद्योगिकी

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये PLI योजना 

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अप्रैल 2020 में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को अधिसूचित किया था। इस योजना के अंतर्गत पात्र कंपनियों को घरेलू स्तर पर निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष के रूप में 2019-20) पर प्रोत्साहन मिलता है। यह योजना मोबाइल फोन और सेमीकंडक्टर उपकरणों (ट्रांज़िस्टर एवं डायोड) तथा सेंसर सहित निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटकों के निर्माण के लिये लागू है। पहले इस योजना को वर्ष 2020-21 से 2024-25 के बीच पाँच वर्ष के लिये लागू किया जाना था। मंत्रालय ने योजना का कार्यकाल एक वर्ष यानी वर्ष 2025-26 तक बढ़ा दिया है। हालाँकि इस विस्तार के लिये कोई अतिरिक्त परिव्यय नहीं रखा गया है। पाँच वर्ष की अवधि के लिये स्वीकृत 38,601 करोड़ रुपए के परिव्यय को छह वर्ष की अवधि के लिये इस्तेमाल किया जाएगा।


मीडिया एवं ब्रॉडकास्ट

पत्रकार कल्याण योजना

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पत्रकार कल्याण योजना के दिशा-निर्देशों की समीक्षा के लिये एक समिति का गठन किया। यह योजना पत्रकारों और उनके परिवारों की आर्थिक तंगी की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह सहायता निम्नलिखित स्थितियों में प्रदान की जाती है: 
(i) पत्रकार की मृत्यु।
(ii) पत्रकार की विकलांगता के कारण जीविकोपर्जन में असमर्थता। 
(iii) बड़ी बीमारियों (जैसे कैंसर और लकवाग्रस्त होना) के इलाज की लागत। 
(iv) दुर्घटनाओं में गंभीर चोट जिस के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है।

मंत्रालय ने कहा कि निम्नलिखित कारणों से इसकी समीक्षा की ज़रूरत थी: 
(i) कोविड-19 के कारण बड़ी संख्या में पत्रकारों की मौत। 
(ii) कामकाजी पत्रकारों की परिभाषा का विस्तार ताकि उसमें परंपरागत और डिजिटल मीडिया के पत्रकारों को शामिल किया जा सके। 
(iii) योजना के तहत एक्रेडेशन प्राप्त और नॉन-एक्रेडेटेड पत्रकारों के बीच समानता पर विचार करने के लिये। साथ ही कमेटी को गठन की तारीख से दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।

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