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विविध

शहरी बाढ़

  • 28 Dec 2018
  • 6 min read

क्या है शहरी बाढ़?

  • जलग्रहण क्षेत्र में प्रसार और उसमें कंकड़-पत्थरों के जमाव के चलते पानी की अंतःस्रावण दर में कमी आती है, जिससे आगे चलकर शहरी क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति पैदा होती है।
  • शहरों में अपेक्षाकृत कम समय तक रहने वाला, लेकिन बहुत तेज़ व अचानक ही जल का ऐसा परिदृश्य खड़ा हो जाता है, जिसे ‘शहरी बाढ़’ कहा जाता है।
  • शहरी बाढ़ से संबद्ध समस्याओं का दायरा अपेक्षाकृत स्थानीय स्तर से लेकर बड़े स्तर की घटनाओं तक फैला होता है, जिसके अंतर्गत लोगों का अल्पकालीन स्थानांतरण, नागरिक सुविधाओं की क्षति, जल की गुणवत्ता में कमी और महामारी के खतरे जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • इसके अलावा, चूँकि शहरी क्षेत्र बहुत ही सघन बसावट वाले होते हैं। अतः शहरी बाढ़ के परिणामस्वरूप होने वाली सामाजिक और आर्थिक क्षतियाँ बहुत बड़ी हो सकती हैं।
  • भारत में आई शहरी बाढ़ों में से सबसे अधिक ध्यान देने योग्य घटनाओं में 2001 में अहमदाबाद की बाढ़, 2005 में मुंबई की बाढ़, 2008 में जमशेदपुर की बाढ़, 2015 की चेन्नई व कश्मीर की बाढ़ तथा 2016 में आई गुरुग्राम व दिल्ली की बाढ़ है।

भारत में शहरी बाढ़ के कारण

  • अत्यधिक स्थलीय बहाव, नदी के तट, बाढ़ के मैदान व नदी के निम्न स्थलों (रिवरबेड) का अतिक्रमण, भू-जल को ग्रहण करने में आर्द्रभूमियों की बढ़ती अक्षमता आदि के रूप में भारत में शहरी बाढ़ के कुछ कारणों को समझा जा सकता है।
  • नदी में ठोस अपशिष्ट डालना, नालियों की अनुपयुक्त व्यवस्था तथा भारी बरसात के पानी का खराब प्रबंधन आदि नागरिकों द्वारा उत्पन्न की गई स्थितियाँ शहरी बाढ़ के कारण हैं।
  • भारी और गैर-मौसमी बरसात (जो कि हिमनद के पिघलने के कारण और भी बढ़ गई है), समुद्र तटीय शहरों व नगरों के आस-पास समुद्र का बढ़ता जल-स्तर व तूफानों के कारण उठने वाली बड़ी-बड़ी लहरें आदि जैसे जलवायु संबंधी कारण भी शहरी बाढ़ को प्रभावित करते हैं।
  • प्राकृतिक आर्द्रभूमियों का भी ह्रास इसका एक प्रमुख कारण रहा है।

शहरी बाढ़ संबंधी मुद्दे

  • भारी बरसात के जल की निकासी व्यवस्था में बहुत सालों से कोई सुधार नहीं किया गया, खराब रख-रखाव के कारण नालियाँ अधिकतर जल-निकासी में असफल साबित होती हैं।
  • निर्माण के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला कचरा और ठोस अपशिष्ट जल निकासी की नालियों में जमा होता जाता है, जिससे उनकी जलग्रहण क्षमता में प्रभावी कमी आ जाती है।
  • शहरों व नगरों में नदियों व जलधाराओं के किनारे लोगों की बसावट के कारण बढ़ता हुआ अतिक्रमण भी बहुत बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से प्राकृतिक जल निकासी में संकुचन हुआ है और बाढ़ की समस्या बढ़ी है।
  • शहरों में बाढ़ आने के कारण स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी हो जाती है और इसके चलते महामारियाँ फैलती हैं, फलस्वरूप डायरिया (जिसमें पेचिश व हैजा भी शामिल है), साँस की बीमारियाँ, हेपेटाइटिस और, टायफाइड बुखार तथा रोगवाहकजन्य बीमारियों का प्रसार होता है।
  • बाढ़ के कारण अवसंरचनात्मक विध्वंस होता है, बिजली आपूर्ति बाधित हो जाती है और आवागमन की समस्याएँ भी बढ़ जाती हैं।
  • बाढ़ के कारण गरीब व पिछड़े आर्थिक-सामाजिक स्थितियों में रह रहे लोगों के लिये समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं, क्योंकि भोजन व सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के बाधित होने के कारण, विशेषकर बच्चों, महिलाओं और वृद्धों के समक्ष कुपोषण की समस्या उपस्थित हो जाती है।

समाधान

  • अवसंरचनात्मक तैयारी- नियोजित शहरी विकास, शहरी क्षेत्रों में हरित कवर व हरित पट्टी को बढ़ाना, भारी वर्षा के जल की निकासी व्यवस्था में सुधार करना आदि कुछ निवारक उपाय हैं, जिन्हें अपनाना चाहिये।
  • संस्थागत मुस्तैदी- इस संबंध में कुछ संस्थागत तैयारियाँ इस प्रकार हैं- जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना, वैक्सीन व दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना और बचाव के लिये मानसून पूर्व तैयारियाँ करना, नागरिकों को बचाव का प्रशिक्षण देना आदि।
  • अतीत की घटनाओं से सीखना और उसके आधार पर सुरक्षा के समुचित कदम उठाना, निजी क्षेत्र को इससे संबद्ध करना, लोगों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करना, शहरी लोगों के रहन-सहन की आदतें व उनकी जीवनशैली में सुधार संबंधी मानकों को अपनाना आदि।
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