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पेपर 3

कृषि

कार्बन फार्मिंग

  • 20 Oct 2021
  • 10 min read

परिचय

कार्बन:

  • कार्बन को कृषि सहित सभी जैविक प्रणालियों के लिये ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • कृषि उत्पादन पौधों के प्रकाश संश्लेषण पर निर्भर करता है, इसके ज़रिये पौधे वातावरण से CO2 प्राप्त कर विभिन्न कृषि उत्पादों भोजन, वनस्पति, ईंधन या फाइबर में परिवर्तित करते हैं। 

कृषि और कार्बन उत्सर्जन:

  • पृथ्वी की आधे से अधिक स्थलीय सतह पर कृषि की जाती है और वैश्विक GHG (ग्रीन हाउस गैस) उत्सर्जन में इसका लगभग एक-तिहाई योगदान है।
  • भारत में कृषि उत्सर्जन मुख्य रूप से पशुधन क्षेत्र (54.6%) और नाइट्रोजन उर्वरकों (19%) के उपयोग के कारण होता है।

कार्बन फार्मिंग:

  • कार्बन फार्मिंग जिसे कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन के रूप में भी जाना जाता है, कृषि प्रबंधन की एक प्रणाली है जो भूमि में अधिक कार्बन जमा करने में मदद करती है और वातावरण में उत्सर्जित होने वाली GHG की मात्रा को कम करती है।
  • इसमें ऐसी कृषि पद्धतियाँ शामिल हैं जो वातावरण में कार्बन उत्सर्जन की दर में कमी कर उसे मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देती है।
  • कार्बन फार्मिंग तब सफल होती है जब भूमि प्रबंधन या संरक्षण पद्धतियों को अपनाने से कार्बन लाभ कार्बन हानि से अधिक हो।

कार्बन फार्मिंग के तरीके

  • वन प्रबंधन: एक सुविकसित वन अन्य स्रोतों से उत्पन्न CO2 उत्सर्जन को अवशोषित और धारण करते हैं। कार्बन उत्सर्जन को निम्न तरीकों से कम किया जा सकता है:
    • वनों की कटाई को रोकना 
    • स्थायी भूमि संरक्षण
    • वनरोपण और पुनर्रोपण गतिविधियाँ
    • बेहतर वन प्रबंधन
  • घास के मैदानों का संरक्षण: इसमें स्थायी भूमि संरक्षण के माध्यम से देशी पौधों के जीवन को बनाए रखना और व्यावसायिक विकास या गहन कृषि के लिये घास के मैदानों को बंजर होने से बचाना शामिल है।
  • मिश्रित खेती: पशुधन और फसलों की एक साथ वृद्धि के लिये जलवायु के अनुकूल कृषि रणनीति।
    • निश्चित समयावधि में चरागाहों में पशुओं के घास चरने से मिट्टी में कार्बन पुनः मिल जाती है।
  • कवर फसलों का उपयोग: इन फसलों को कटाई के उद्देश्य के बजाय मिट्टी को आच्छादित करने के लिए लगाया जाता है। इन्हें मुख्य फसल की कटाई के बाद बोया  जाता है। ज्ञातव्य है कि कवर फसल तेज़ी से बढ़ते हैं।
    • ये फसलें मिट्टी को अधिक कार्बन प्रदान करती हैं और मिट्टी के माइक्रोब्स को बनाए रखती हैं जो कार्बन भंडारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • मिट्टी की जुताई में कमी: जुताई आमतौर पर मिट्टी को ढीला करने और शुरुआती खरपतवारों को हटाने के लिये किया जाता है।
    • हालाँकि जुताई से कार्बन खनिजीकरण (कार्बनिक पदार्थों में रासायनिक यौगिकों का अपघटन) बढ़ जाता है, जिससे मिट्टी से CO2 का उत्सर्जन होता है।
    • मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों की रक्षा के लिये मृदा को हानि पहुँचाने वाले तत्त्वों को कम करना एक उपयोगी उपकरण है।
  • आर्द्रभूमि की बहाली: आर्द्रभूमि की मिट्टी एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक कार्बन पूल या सिंक है क्योंकि आर्द्रभूमि दुनिया में मिट्टी में पाए जाने वाली कार्बन का लगभग 14.5% हिस्से को संरक्षित करती है।

कार्बन फार्मिंग का महत्त्व

  • बहुआयामी लाभ: विभिन्न तरीकों से मृदा ऑर्गेनिक कार्बन (Soil Organic Carbon) बढ़ाने से मृदा स्वास्थ्य, कृषि उपज, खाद्य सुरक्षा, पानी की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और रसायनों की आवश्यकता कम हो सकती है।
    • यह न केवल कार्बन शमन को संबोधित करेगा बल्कि ताज़ा पानी, जैव विविधता, भूमि उपयोग और नाइट्रोजन के उपयोग जैसे खतरे में भी सुधार करेगा।
  • ऑफसेट कार्बन उत्सर्जन: ‘4 per 1000’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय पहल से पता चला है कि दुनिया भर में मृदा कार्बन की केवल 0.4% वार्षिक वृद्धि से उस वर्ष जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित होने वाली CO2 उत्सर्जन को संतुलित किया जा सकता है।
    • वर्ष 2015 में COP21 पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन में फ्राँस सरकार द्वारा '4 per 1000' पहल शुरू की गई थी।
    • पहल का उद्देश्य यह प्रदर्शित करना है कि कृषि और विशेष रूप से कृषिजनित मृदा, खाद्य सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • एक मध्यवर्ती शमन रणनीति के रूप में: मृदा में कार्बन की वृद्धि से कई लाभ मिलते हैं, साथ ही अन्य तकनीकों से दुनिया को शून्य-कार्बन जीवनशैली में बदलने में मदद मिल सकती है।
  • कार्बन चक्र को बहाल करने में सहायक: दुनिया भर में वायुमंडल की तुलना में मिट्टी में कार्बन की मात्रा का लगभग 10 गुना होने का अनुमान है जो सामान्य वनस्पतियों की तुलना में कहीं अधिक है।
    • कार्बन फार्मिंग को कार्बन चक्र के भीतर संतुलन बनाने में मदद करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
    • यह मिट्टी को सूखे के प्रति लचीलापन अपनाने में भी मदद करती है और प्राकृतिक तरीके से कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है

संबंधित मुद्दे

  • बड़े स्तर पर भागीदारी की आवश्यकता: कार्बन फार्मिंग के समग्र ढाँचे को सफल बनाने के लिये ठोस नीतियों, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, सटीक परिमाणीकरण पद्धति और विचार को कुशलतापूर्वक लागू करने हेतु वित्तपोषण सहायता प्रदान करनी होगी।
  • सीमित लाभ: लंबे समय तक बढ़ने वाले मौसम, पर्याप्त वर्षा और पर्याप्त सिंचाई वाले क्षेत्र कार्बन फार्मिंग के लिये व्यवहार्य अवसर प्रदान करते हैं।
    • हालाँकि कार्बन फार्मिंग देश के गर्म और शुष्क क्षेत्रों में किसानों के लिये एक चुनौती के रूप में है।
    • इसके अलावा कई किसान बिना किसी वित्तीय सहायता के पर्यावरणीय रूप से लाभकारी उपायों को लागू करने की लागत वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

आगे की राह

  • किसानों को प्रत्यक्ष प्रोत्साहन: जलवायु तटस्थ अर्थव्यवस्था तक पहुँचने के लिये भूमि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह वातावरण से CO2 को कैप्चर कर सकता है।
    • हालाँकि कृषि और वानिकी क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिये जलवायु के अनुकूल प्रथाओं को अपनाकर प्रत्यक्ष प्रोत्साहन प्रदान करना आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान में कार्बन सिंक में वृद्धि और संरक्षण के लिए कोई लक्षित नीति उपकरण नहीं है।
  • कार्बन क्रेडिट और कार्बन बैंक: किसानों को विश्व स्तर पर व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट के माध्यम से पुरस्कृत किया जा सकता है और 'कार्बन बैंक' भी बनाए जा सकते हैं जो किसानों से कार्बन क्रेडिट की खरीद और उसकी बिक्री करेंगे।
    • कार्बन क्रेडिट को उन निगमों को बेचा जा सकता है, जिन्हें अपने उत्सर्जन की भरपाई करने की आवश्यकता है।
    • कार्बन रहित मिट्टी को तैयार करने हेतु किसानों को भुगतान करने से प्राकृतिक जलवायु समाधान और 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे ग्लोबल वार्मिंग को स्थिर करने का एक बड़ा अवसर प्राप्त हो सकता है।
  • कार्बनिक-कार्बन समृद्ध उर्वरक: व्यापक C:N (कार्बन: नाइट्रोजन) अनुपात वाले खाद और ठोस खाद जैसे उर्वरकों में अन्य सामग्रियों की तुलना में धीमा कार्बन टर्नओवर होगा। उन्हें कृषि प्रणाली का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
  • जीवाश्म ईंधन के स्थान पर जैव ईंधन को महत्त्व: लगभग सभी जैव ईंधन प्रणालियाँ (मुख्य रूप से बायोडीज़ल और बायोएथेनॉल) जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम GHG उत्सर्जन करते हैं।
    • जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में जैव ईंधन मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का उपयोग किसानों की आय में विविधता लाने, लागत कम करने और वैश्विक GHG उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकता है।
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