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भारतीय समाज

आर्थिक एवं सामरिक क्षेत्र में महिलाएँ

  • 12 Sep 2020
  • 12 min read

स्त्री शक्ति राष्ट्र शक्ति का अभिन्न अंग होती है जिसे सशक्त और शामिल किये बिना कोई भी राष्ट्र शक्तिशाली नहीं हो सकता।

महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता देने के क्रम में वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा महिलाओं को पुरुषों के बराबर अवसर प्रदान करने का प्रयास किया है जो सुरक्षा के पाँच पहलुओं पर आधारित एक व्यापक मिशन है। ये पाँच पहलू है- माँ एवं शिशु की स्वास्थ्य सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय सुरक्षा, शैक्षणिक एवं वित्तीय कार्यक्रमों के माध्यम से भविष्य की सुरक्षा तथा महिलाओं की सलामती। इस प्रकार हम पाते हैं कि जब भी राष्ट्र को सशक्त करने की बात आती है तो महिला सशक्तीकरण के पहलू को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

किसी संस्कृति को अगर समझना है तो सबसे आसान तरीका है कि उस संस्कृति में नारी के हालात को समझने की कोशिश की जाए। किसी भी देश के विकास संबंधी सूचकांक को निर्धारित करने हेतु उद्योग, व्यापार, खाद्यान्न उपलब्धता, शिक्षा इत्यादि के स्तर के साथ ही इस देश की महिलाओं की स्थिति का भी अध्ययन किया जाता है। नारी की सुदृढ़ एवं सम्मानजनक स्थिति एक उन्नत, समृद्ध तथा मज़बूत समाज की द्योतक है।

वर्तमान में नारियाँ प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं। शिक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता ने महिलाओं में नवीन चेतना भर दी है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका में वृद्धि हो रही है। आज महिलाएँ राजनीति, बिज़नेस, कला तथा खेल सहित रक्षा क्षेत्र में भी नए आयाम गढ रही हैं। सेना जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी महिलाएँ अपनी भूमिका का पुरुषों के साथ कदम मिलाकर निवर्हन कर रही हैं। हाल ही में अवनी चतुर्वेदी सहित तीन लड़कियों को वायुसेना में फाइटर प्लेन उड़ाने की अनुमति प्रदान की गई है।

यह उनकी कार्यक्षमता का द्योतक है, क्योंकि प्राय: कमज़ोर समझी जाने वाली महिलाएँ आज कठिन माने जाने वाले क्षेत्रों में भी अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर रही हैं। गांधी जी ने कहा था कि ‘‘महिलाएँ पुरुषों से बेहतर सैनिक साबित हो सकती हैं। बस उनको मौका देने की ज़रूरत है।’’ कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, टेंसी थॉमस, अवनी चतुर्वेदी जैसी अनेक नारियाँ आज समाज में महिलाओं की मज़बूत छवि प्रस्तुत कर रही हैं। अग्नि-V मिसाइल के विकास में प्रमुख भूमिका निभाने वाली टेंसी थॉमस को ‘मिसाइल वुमेन’ के नाम से जाना जाता है।

शीर्ष क्षेत्र में भी महिलाओं ने अपनी सफलता की कहानी दुनिया के सामने रखी है। आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है। देश के कई आर्थिक संस्थानों के शीर्ष पदों पर महिलाएँ कार्यभार संभाल रही हैं तथा देश के विकास में अपना योगदान दे रही हैं। अरुंधति महाचार्य, शिखा शर्मा, नैनालाल किदवई, सावित्री जिंदल आदि आर्थिक क्षेत्र में शीर्ष पदों पर काबिज हैं।

भारत के संबंध में कई बार वर्ल्ड बैंक ग्रुप आदि ने कहा है कि अगर यहाँ पर महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में वृद्धि की जाए तो भारत की विकास दर में तीव्र वृद्धि हो सकती है। गौरतलब है कि 1994 से 2012 के मध्य कई लाख भारतीय गरीबी रेखा से बाहर निकल चुके हैं। इन आँकड़ों में और बढ़ोतरी होती अगर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में और इज़ाफा होता। 2012 में सिर्फ 27% वयस्क भारतीय महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत थीं। चिंता की बात यह है कि भारत के तीव्र शहरीकरण ने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में कोई वृद्धि नहीं की है।

कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत की रैंकिंग विभिन्न देशों के मध्य निम्न है परंतु लिंग आधारित हिंसा की दर के मामले में यह काफी उच्च है। देश के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 2016 के 37% से नीचे गिरकर 2019 में 18% रह गई है एवं जेंडर गैप के मामले में 23% पर आ गई है। यह माना जाता है कि कार्यबल में महिलाओं के प्रवेश को सुनिश्चित करने और उनकी भागीदारी बढ़ाने में जेंडर सेंसेटिव इंफ्रास्ट्रक्चर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जेंडर सेंसेटिव इंफ्रास्ट्रक्चर के तहत बच्चों हेतु पूर्वकालिक शिशुगृह, कार्यशील महिलाओं हेतु वहनीय एवं सुरक्षित हॉस्टल एवं आधारभूत सार्वजनिक सुविधाएँ शामिल हैं।

इन सबके बावजूद सिक्के का एक अन्य पहलू यह भी है कि आज भी महिला कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा अन्याय एवं शोषण का शिकार होता है। भारत में आज भी कई कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन शोषण होता है। ‘मी टू’ अभियान यह सिद्ध करता है कि महिलाएँ किस प्रकार से कार्यस्थल पर प्रताड़ित की जाती हैं। परंतु सभी सामाजिक वजनाओं को तोड़ते हुए उन्होंने इसके खिलाफ अपनी आवाज भी बुलंद की है। महिलाओं को अपने स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण करने और उसे कायम रखने हेतु स्वावलंबी और आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। साथ ही जो समाज और रिवाज स्त्रियों के विकास को उचित नहीं समझता उसे बदल देना आवश्यक है।

वैश्वीकरण के इस अर्थप्रधान युग में एक ओर जहाँ स्त्रियाँ वर्जनाओं को तोड़ते हुए नित सफलता के नए सोपान पर चढ़ती जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें भोग की वस्तु के रूप में प्रचारित और प्रसारित भी किया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों के विज्ञापनों में इसकी झलक बड़ी आसानी से देखी जा सकती है। चाहे वह फिल्म इंडस्ट्री की शोषित कोई स्त्री कलाकार हो या विज्ञापनों में बड़े ही शर्मसार तरीके से चित्रित की गई कोई नारी हो। इसका यह नतीजा हुआ कि स्त्री आज भी उसी चौराहे पर खड़ी है और खुद से अनेक प्रश्न पूछती है कि क्या यही वह मंजिल है जिसे वह हासिल करना चाहती थी या फिर इस मुकाम तक पहुँच कर भी लोगों की मानसिकता में कोई परिवर्तन क्यों नहीं दिखता? अगर एक ऊंचे ओहदे पर स्थित स्त्री की हालत ऐसी है तो एक साधारण स्त्री की स्थिति क्या होगी? स्त्री को उसके देह से अलग एक स्त्री के रूप में देखने की आदत में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। किसी की मजबूरी को किसी का व्यवसाय बनने से रोकना होगा एवं नग्नता और शालीनता के मध्य की बारीक रेखा को समझना होगा जिसका निर्माता भी समाज होता है एवं जिसका विध्वंसक भी यही समाज होता है। उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय, विवेकपूर्ण-अविवेकपूर्ण, स्वाधीनता एवं उच्छृंखलता, दायित्व और दायित्वहीनता, शालीनता और अश्लीलता के मध्य विद्यमान धुँधलके को स्पष्ट करना होगा। स्त्री की आज़ादी पूर्ण तभी मानी जाएगी जब उसकी प्रतिभा को स्वीकार्यता मिले, न कि उसके दैहिक सौंदर्य को।

यह सत्य है कि वर्तमान में स्त्रियों की स्थिति में काफी बदलाव आया है। सामरिक क्षेत्र तक पहुँच उनकी क्षमता का द्योतक है, फिर भी स्त्रियाँ अनेक स्थानों पर पुरुष प्रधान मानसिकता से पीड़ित रहती है।

आर्थिक एवं सामरिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को सुदृढ़ बनाने हेतु आवश्यक कदम-

  • महिलाओं के विकास हेतु सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों का निर्माण।
  • पुरुषों के साथ महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक क्षेत्रों में वैधानिक एवं समान अवसर प्रदान करना।
  • देश के लिये महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की समान भागीदारी।
  • स्वास्थ्य, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, रोज़गार में समान पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा आदि तक समान पहुँच।
  • महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन का प्रयास।
  • सक्रिय भागीदारी द्वारा सामाजिक व्यवहार और कुप्रथाओं में परिवर्तन।
  • विकास प्रक्रिया में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना।
  • महिलाओं और बालिकाओं के प्रति सभी प्रकार की हिंसा का उन्मूलन।
  • नागरिक समाज विशेषकर महिला संगठनों के साथ भागीदारी का निर्माण एवं उन्हें सुदृढ़ करना।

हम पाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था एवं रक्षा क्षेत्र में महिलाएँ अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। अगर हाल- फिलहाल की भारत की आर्थिक स्थिति को छोड़ दें, जो कि कोविड-19 से प्रभावित है, तो भारत की विकास दर पिछले कुछ समय से उच्च बनी हुई है जिसका कारण बचत और पूंजी निर्माण की उच्च दर बताई जाती है। इन आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बचत, उपभोग-अभिवृत्ति और पुनर्चक्रण-प्रवृत्ति के मामले में भारत की अर्थव्यवस्था महिला केंद्रित मानी गई है। साथ ही हाल-फिलहाल में रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि कर सरकार महिलाओं को इस क्षेत्र में भी मुख्य भूमिका निभाने का मौका देना चाह रही है। अत: महिलाओं की असीमित क्षमता और योग्यता को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी है कि इन्हें आर्थिक एवं सामरिक क्षेत्र के केंद्र में रखा जाए ताकि देश विकास के नए आयाम स्थापित कर सके।

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