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रणनीति

मुख्य परीक्षा

मुख्य परीक्षा में उत्तर कैसे लिखें?

  • 07 Sep 2018
  • 38 min read

सिविल सेवा परीक्षा में आपकी मेहनत और सफलता के बीच कोई अनिवार्य तथा समानुपातिक कारण-कार्य संबंध नहीं है। अर्थात्  यह ज़रूरी नहीं कि अधिक मेहनत करने वाला अभ्यर्थी सफल हो ही जाएगा और कम मेहनत करने वाला अभ्यर्थी सफल नहीं होगा। सफलता मेहनत के साथ-साथ कई अन्य कारकों पर निर्भर करती है जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है आपकी उत्तर-लेखन शैली। 

  • उत्तर-पुस्तिका की जाँच करने वाले परीक्षक को इस बात की बिल्कुल जानकारी नहीं होती कि उत्तर-पुस्तिका किस उम्मीदवार की है, उसने कितनी गंभीरता से पढ़ाई की है या उसकी परिस्थितियाँ कैसी हैं इत्यादि। 
  • परीक्षक के पास अभ्यर्थी के मूल्यांकन का एक ही आधार होता है और वह यह कि अभ्यर्थी ने अपनी उत्तर-पुस्तिका में किस स्तर के उत्तर लिखे हैं? अगर आपके उत्तर प्रभावी होंगे तो परीक्षक अच्छे अंक देने के लिये मजबूर हो जाएगा और यदि उत्तरों में दम नहीं है तो फिर आपने चाहे जितनी भी मेहनत की हो, उसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलेगा। 
  • आपकी सफलता या विफलता में तैयारी की भूमिका 50% से अधिक नहीं है। शेष 50% भूमिका इस बात की है कि परीक्षा के तीन घंटों में आपका निष्पादन कैसा रहा? आपने कितने प्रश्नों के उत्तर लिखे? किस क्रम में लिखे, बिंदुओं में लिखे या पैरा बनाकर लिखे, रेखाचित्रों की सहायता से लिखे या उनके बिना लिखे, साफ-सुथरी हैंडराइटिंग में लिखे या अस्पष्ट हैंडराइटिंग में, उत्तरों में तथ्यों और विश्लेषण का समुचित अनुपात रखा या नहीं- ये सभी वे प्रश्न हैं जो आपकी सफलता या विफलता में कम से कम 50% भूमिका निभाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि अधिकांश उम्मीदवार इतने महत्त्वपूर्ण पक्ष के प्रति प्रायः लापरवाही बरतते हैं और उनमें से कई तो अपने कॉलेज के बाद के जीवन का पहला उत्तर मुख्य परीक्षा में ही लिखते हैं।
  • यूपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है जिसमें प्रश्नों के उत्तर को  निर्धारित शब्दों (सामान्यत:100 से 300 शब्द) में उत्तर-पुस्तिका में लिखना होता है, अत: ऐसे प्रश्नों के उत्तर लिखते समय लेखन शैली एवं तारतम्यता के साथ-साथ समय प्रबंधन आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। 
  • लेखन शैली एवं तारतम्यता का विकास सही दिशा में निरंतर अभ्यास से संभव है, जिसके लिये अभ्यर्थियों को विषय की व्यापक समझ के साथ-साथ कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का भी ध्यान रखना चाहिये। 
  • हमारा उद्देश्य यही समझाना है कि उम्मीदवारों को शुरू से ही उत्तर-लेखन शैली के विकास के लिये क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिये? 

उत्तर-लेखन के विभिन्न चरण: 

उत्तर-लेखन की संपूर्ण प्रक्रिया को नीचे दिये गए चार चरणों में विभाजित करके समझा जा सकता है-
1. प्रश्न को समझना तथा सुविधा के लिए उसे कई टुकड़ो में बाँटना
2. उत्तर की रूपरेखा तैयार करना
3. उत्तर लिखना
4. उत्तर के प्रस्तुतीकरण को आकर्षक बनाना। 

प्रश्न को समझना तथा टुकड़ो में बाँटना

उत्तर-लेखन प्रक्रिया का सबसे पहला चरण यही है कि उम्मीदवार प्रश्न को कितने सटीक तरीके से समझता है तथा उसमें छिपे विभिन्न उप-प्रश्नों तथा उनके पारस्परिक संबंधों को कैसे परिभाषित करता है? सच तो यह है कि आधे से अधिक अभ्यर्थी इस पहले चरण में ही गंभीर गलतियाँ कर बैठते हैं।

  • प्रश्न को समझने का अर्थ यह है कि प्रश्नकर्त्ता हमसे क्या पूछना चाहता है? कई बार प्रश्न की भाषा ऐसी होती है कि हम संदेह में रहते हैं कि क्या लिखें और क्या छोड़ें? इस समस्या का निराकरण करने के लिये प्रश्न को समझने की क्षमता का विकास करना आवश्यक है।
  • प्रश्न को ठीक से समझने के लिये मुख्यतः दो बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिये-
    1. प्रश्न के अंत में किस शब्द का प्रयोग किया गया है। 
    2. प्रश्न के कथन में कितने तार्किक हिस्से विद्यमान हैं और उन सभी में आपसी संबंध क्या हैं?
  • प्रश्न के अंत में दिये गए शब्दों से आशय उन शब्दों से है जो बताते हैं कि प्रश्न के संबंध में अभ्यर्थी को क्या करना है? ऐसे शब्दों में विवेचन कीजिये, विश्लेषण कीजिये, प्रकाश डालिये, व्याख्या कीजिये, मूल्यांकन कीजिये, आलोचनात्मक मूल्यांकन, परीक्षण, निरीक्षण, समीक्षा, आलोचना, समालोचना, वर्णन/विवरण एवं स्पष्ट कीजिये/स्पष्टीकरण दीजिये इत्यादि शामिल हैं।
  • इन शब्दों के आधार पर तय होता है कि परीक्षक अभ्यर्थी से उत्तर में क्या उम्मीद कर रहा है? यह सही है कि बहुत से परीक्षक खुद ही इन शब्दों के प्रति हमेशा चौकस नहीं रहते, किंतु अभ्यर्थियों को यही मान कर चलना चाहिये कि परीक्षक इन्हीं शब्दों को आधार बनाकर ही उत्तर का मूल्यांकन करते हैं। 
  • इसको ध्यान में रखते हुए हमने कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों को विभिन्न वर्गों में बाँटकर उसके सही आशय को स्पष्ट किया है जिससे आपके उत्तर को एक सही दिशा मिल सके। 

व्याख्या/वर्णन/विवरण/स्पष्ट कीजिये/ स्पष्टीकरण दीजिये/प्रकाश डालिये: 

  • इन सभी शब्दों से प्रायः समान आशय व्यक्त होते हैं।
  • ऐसे प्रश्नों में अभ्यर्थी से सिर्फ इतनी अपेक्षा होती है कि वह पूछे गए प्रश्न से संबंधित जानकारियाँ सरल भाषा में व्यक्त कर दे।
  • वर्णन और विवरण वाले प्रश्नों में तथ्यों की गुंजाइश ज़्यादा होती है जबकि ‘व्याख्या कीजिये’, ‘प्रकाश डालिये’ या ‘स्पष्टीकरण दीजिये’ वाले प्रश्नों में पूछे गए विषय को सरल भाषा में समझाते हुए लिखने की अपेक्षा  होती है।

आलोचना/समीक्षा/समालोचना/परीक्षा/परीक्षण/निरीक्षण/गुण-दोष विवेचनः 

  • इन सभी प्रश्नों को एक वर्ग में रखा जा सकता है।
  • ऐसे प्रश्न उम्मीदवार से किसी तथ्य या कथन की अच्छाइयों और बुराइयों की गहरी समझ की अपेक्षा करते हैं।
  • आलोचना शब्द से यह भाव ज़रूर निकलता है कि अभ्यर्थी को इसमें पूछे गए विषय से जुड़ी नकारात्मक बातें लिखनी हैं किंतु सच यह है कि आलोचना का सही अर्थ गुण और दोष दोनों पक्षों पर ध्यान देना है। 
  • मोटे तौर पर अनुपात यह रखा जा सकता है कि समीक्षा/समालोचना/परीक्षा/परीक्षण/निरीक्षण जैसे प्रश्नों में अच्छे और बुरे पक्षों का अनुपात लगभग बराबर रखा जाए जबकि आलोचना वाले प्रश्नों में नकारात्मक पक्षों का अनुपात कुछ बढ़ा दिया जाए अर्थात् 70-75% तक कर दिया जाए।

मूल्यांकन/आलोचनात्मक मूल्यांकनः

  • मूल्यांकन का अर्थ है किसी कथन या वस्तु के मूल्य का अंकन या निर्धारण करना।
  • ऐसे प्रश्नों में अभ्यर्थी से अपेक्षा होती है कि वह पूछे गए विषय का सार्वकालिक या वर्तमान महत्त्व रेखांकित करे, उसकी कमियाँ भी बताए और अंत में स्पष्ट करे कि उस कथन या वस्तु की समग्र उपयोगिता कितनी है?
  • मूल्यांकन से पहले आलोचनात्मक लिखा हो या नहीं, तार्किक रूप से दोनों बातों को एक ही समझना चाहिये। 
  • मूल्यांकन की कोई भी गंभीर प्रक्रिया तभी पूरी हो सकती है जब उसके मूल में आलोचनात्मक पक्ष का ध्यान रखा गया हो। 
  • सार यह है कि आलोचनात्मक मूल्यांकन वाले प्रश्नों में अभ्यर्थी को पहले गुण और दोष बताने चाहियें और अंत में उन दोनों की तुलना के आधार पर यह स्पष्ट करना चाहिये कि उस कथन या वस्तु का क्या और कितना महत्त्व है?

विवेचन/मीमांसाः 

  • मीमांसा का अर्थ होता है किसी विषय को व्यवस्थित तथा संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना। 
  • ऐसे प्रश्नों का उत्तर लिखना कठिन नहीं होता। उस प्रश्न से संबंधित सभी संभव पक्षों को मिलाकर लिख देना पर्याप्त होता है। 
  • विवेचन वाले प्रश्नों में भी मूल अपेक्षा यही होती है।अंतर सिर्फ इतना होता है कि इसमें किसी कथन या तथ्य की चर्चा करते हुए तार्किक व्याख्या की ज़्यादा अपेक्षा होती है।

विश्लेषणः 

  • विश्लेषण तथा संश्लेषण परस्पर विरोधी शब्द हैं। जहाँ संश्लेषण का अर्थ बिखरी हुई चीज़ों को जोड़कर एक करना होता है, वहीं विश्लेषण का अर्थ होता है- किसी एक विचार या कथन को सरल से सरल हिस्सों में विभाजित करना। 
  • किसी कथन का विश्लेषण करते हुए अभ्यर्थी को अपने मन में क्या, क्यों, कैसे, कब, कहाँ, कितना जैसे संदर्भों को आधार बनाना चाहिये।

वीडिओ देखें : पुछल्ले शब्दों (Tailender words) के बारें में विस्तार से समझने के लिये क्लिक करें 

प्रश्नों का तार्किक विखंडन:

  • सरल भाषा में कहें तो तार्किक विखंडन का अर्थ है जटिल वाक्य को कुछ सरल वाक्यों में तोड़कर उसमें अंतर्निहित उप-प्रश्नों की पहचान करना।  
  • सरल कथनों में तो यह समस्या सामने नहीं आती किंतु जैसे ही जटिल वाक्य-संयोजन वाले प्रश्न उपस्थित होते हैं, अभ्यर्थी के समक्ष उनकी व्याख्या और अर्थ-बोध से जुड़ी कठिनाइयाँ प्रकट होने लगती हैं।
  • ऐसी स्थिति में अभ्यर्थी को मुख्य रूप से उन मात्रा-सूचक या तीव्रता-सूचक शब्दों पर ध्यान देना चाहिये जो प्रश्न का फोकस निर्धारित करते हैं। 
  • उदाहरण के लिये, यदि प्रश्न है कि "1975 में घोषित राष्ट्रीय आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद समयों में से एक के रूप में देखा जाता है।’ मूल्यांकन कीजिये।"  तो इसमें ‘सबसे विवादास्पद समयों में से एक’ वाक्यांश पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। इसमें निहित है कि आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का अकेला विवादास्पद समय नहीं रहा है बल्कि कई विवादास्पद समयों में से एक है। इसके साथ-साथ, इसमें यह भी निहित है कि इस प्रश्न में अभ्यर्थी को हर विवादास्पद समय पर टिप्पणी नहीं करनी है बल्कि उन गिने-चुने विवादास्पद समयों पर चर्चा करनी है जिनकी तुलना में शेष विवादास्पद समय कम तीव्रता वाले रहे हैं।
  • इस प्रश्न में अभ्यर्थी को दिये गए कथन का विखंडन कई उप-प्रश्नों में करना होगा, जैसे- 1975 का आपातकाल अत्यंत विवादास्पद काल क्यों माना जाता है, स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे अधिक विवादास्पद काल कौन-कौन से माने जा सकते हैं, तथा सर्वाधिक विवादास्पद कालों की तुलना में 1975 के आपातकाल की क्या स्थिति रही है?

वीडिओ देखें : कठिन प्रश्नों को समझने तथा हल करने के लिये किन बातों का रखें ध्यान; क्लिक करें।

उत्तर की रूपरेखा तैयार करना

  • उत्तर-लेखन प्रक्रिया के दूसरे चरण के अंतर्गत उत्तर की एक संक्षिप्त रूपरेखा बनाई जा सकती है। 
  • कई अभ्यर्थी इस प्रक्रिया का प्रयोग करने से बचते हैं और समय बचाने के लिये सीधे उत्तर लिखने की शुरुआत कर देते हैं। अगर उनकी लेखन क्षमता बहुत सधी हुई न हो तो तय मानकर चलिये कि उनके उत्तर में अव्यवस्था तथा बिखराव का आना स्वाभाविक है। बेहतर यही है कि अभ्यर्थी दस मिनट की जगह आठ मिनट में ही उत्तर लिखे किंतु उसका उत्तर बिल्कुल सधा हुआ हो। 
  • बहुत अच्छी लेखन क्षमता वाले कुछ अभ्यर्थियों का स्तर तो इतना ऊँचा होता है कि वे प्रश्न को पढ़ते ही मन-ही-मन उत्तर की रूपरेखा तैयार कर लेते हैं और सीधे उत्तर-लेखन की शुरुआत कर देते हैं। पर यह क्षमता अर्जित करना एक लंबी और श्रमसाध्य प्रक्रिया है जिसे हर अभ्यर्थी में नहीं पाया जा सकता।
  • नए अभ्यर्थियों के लिये यही बेहतर है कि वे उत्तर की शुरुआत करने से पहले थोड़ा सा समय रूपरेखा या ‘सिनोप्सिज़’ (Synopsis) बनाने पर खर्च करें।
  • रूपरेखा बनाने का अर्थ यह है कि उत्तर से संबंधित जो बिंदु अभ्यर्थी के दिमाग में हैं, उन्हें किसी रफ कागज़ पर लिखकर व्यवस्थित कर लिया जाए। ज़रूरी नहीं है कि हर बिंदु को लिखा ही जाए, यह भी हो सकता है कि अभ्यर्थी रेखाचित्र जैसे किसी फॉर्मेट में उसे तैयार कर ले। 
  • उदाहरण के लिये, यदि प्रश्न है कि "एक कुशल नेतृत्व की वज़ह से एक दुरूह संभावना को यथार्थ में परिवर्तित किया जा सका। भारतीय रियासतों के एकीकरण के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये।" तो इसकी संभावित रूपरेखा कुछ इस प्रकार बनाई जानी चाहिये-
    1. भूमिकाः पटेल और बिस्मार्क की तुलना।
    2. दुरूह संभावनाः 1947 की स्थिति, अंग्रेज़ों की योजना, कई रियासतों/राजाओं की स्वतंत्र रहने की इच्छा आदि।
    3. कुशल नेतृत्वः पटेल की कार्य-क्षमता व कार्य-शैली का संक्षिप्त वर्णन।
    4. निष्कर्षः पटेल की भूमिका को बिस्मार्क तथा गैरीबाल्डी आदि की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध करना।
  • शुरू में अभ्यर्थी इसी फॉर्मेट पर रूपरेखा बनाते हैं। धीरे-धीरे वे इस प्रक्रिया के अभ्यस्त हो जाते हैं और सिर्फ कुछ टूटे-फूटे शब्द लिखने से भी उनका काम चल जाता है। 
  • आपको मुख्य परीक्षा में बैठने से पहले रूपरेखा निर्माण का इतना अभ्यास कर लेना चाहिये कि परीक्षा भवन में केवल कुछ आधे-अधूरे संकेतों से ही रूपरेखा संबंधी कार्य पूरा हो सके।
  • परीक्षा भवन में समय के दबाव को देखते हुए यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक उत्तर को लिखने से पहले अभ्यर्थी उत्तर की रूपरेखा नहीं बना पाता। अगर आपके साथ भी गति का ऐसा संकट हो तो बेहतर होगा कि 20 में से शुरुआती 7-8 प्रश्नों का उत्तर आप संक्षिप्त रूपरेखाओं के आधार पर लिखें और बाद के प्रश्नों के उत्तर सीधे लिख दें।

    उत्तर लिखना

    • एक अच्छा उत्तर वह है जो प्रश्न का उत्तर है।  
    • प्रश्न की रूपरेखा तैयार हो जाने के बाद अभ्यर्थी को वास्तविक उत्तर-लेखन करना चाहिये।
    • एक अच्छे उत्तर की मुख्यत: दो विशेषताएँ होती हैं- प्रामाणिकता तथा प्रवाह। 
    • प्रामाणिकता का अर्थ है कि उत्तर में ऐसे ठोस तथ्य और तर्क विद्यमान होने चाहियें जिनसे प्रश्न की वास्तविक मांग पूरी होती हो अर्थात् परीक्षक को उत्तर पढ़कर यह महसूस होना चाहिये कि अभ्यर्थी ने विषय का गंभीर अध्ययन किया है। 
    • प्रवाह का अर्थ है कि उत्तर के पहले शब्द से अंतिम शब्द तक ऐसी क्रमबद्धता होनी चाहिये कि परीक्षक को उत्तर पढ़ते समय बीच में कहीं भी रुकना न पड़े।
    • एक अच्छे उत्तर-लेखन के संबंध में प्रायः प्रत्येक अभ्यर्थी के मन में कुछ जिज्ञासाएँ अनिवार्य रूप से होती हैं जिनका समाधान करने का प्रयास किया गया है।

    शब्द सीमा का पालनः 

    • प्रायः अभ्यर्थियों के मन में जिज्ञासा होती है कि उन्हें दी गई शब्द-सीमा के अंदर ही उत्तर लिखना है या इसमें थोड़ी बहुत छूट ली जा सकती है? अगर हाँ, तो कितनी?
    • इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले यह समझ लेना चाहिये कि लोक सेवा आयोग के लिये व्यावहारिक तौर पर यह संभव नहीं है कि वह हर अभ्यर्थी के उत्तरों की शब्द संख्या को गिनने की व्यवस्था कर सके। अतः अभ्यर्थियों को सबसे पहले इस दबाव से मुक्त हो जाना चाहिये कि उनके एक-एक शब्द की गणना की जाती है।
    • इस संबंध में एक सच यह भी है कि भले ही आयोग शब्दों की गणना न करता हो, पर परीक्षक अपने अनुभवों के आधार पर उत्तर-पुस्तिका देखते ही यह अनुमान लगा लेता है कि उत्तर में शब्दों की संख्या लगभग कितनी है। 
    • शब्दों की संख्या बहुत अधिक या बहुत कम होने पर ही परीक्षक का ध्यान उस ओर जाता है। ऐसी स्थिति में उसके पास यह विवेकाधीन शक्ति होती है कि वह अभ्यर्थी को इस गलती के लिये दंडित करे या नहीं? 
    • सार यह है कि शब्दों की सीमा का थोड़ा-बहुत उल्लंघन करने में समस्या नहीं है किंतु यह उल्लंघन 10-20% से अधिक नहीं होना चाहिये।
    • कुछ अभ्यर्थी इस बात को लेकर भी परेशान रहते हैं कि शब्दों की गणना में ‘है’, ‘था’, ‘चाहिये’ आदि शब्दों की गणना की जाती है या नहीं? उनमें से कुछ यह दावा भी करते हैं कि इन्हें उत्तर की शब्द-सीमा में शामिल नहीं किया जाता। वस्तुतः यह एक भ्रांति है। शब्दों की गणना में सभी प्रकार के शब्द शामिल होते हैं, चाहे वे योजक शब्द हों या अन्य शब्द। हाँ, यह ज़रूर है कि कोष्ठक में लिखे गए शब्दों को प्रायः शामिल नहीं किया जाता। इसी प्रकार, अगर कहीं समास भाषा का प्रयोग किया जाता है तो समास में आने वाले दोनों शब्दों को हाइफन की वज़ह से प्रायः एक शब्द ही मान लिया जाता है। 

    वीडिओ देखें : शब्द-सीमा के संबंध में अधिक स्पष्टता एवं विस्तार से समझने के लिये क्लिक करें

    बिंदुओं में लिखें या पैराग्राफ में? 

    • यह भी अधिकांश उम्मीदवारों की एक सामान्य जिज्ञासा है कि उन्हें उत्तर-लेखन के अंतर्गत बिंदुओं का प्रयोग करना चाहिये या नहीं? वस्तुतः इस प्रश्न का उत्तर हाँ या नहीं में देना संभव नहीं है। यह निर्णय इस बात पर निर्भर करता है कि प्रश्न की प्रकृति क्या है?
    • अगर प्रश्न की प्रकृति ऐसी है कि उसके उत्तर में विभिन्न तथ्यों या बिंदुओं को सूचीबद्ध किये जाने की आवश्यकता है तो निस्संदेह उसमें बिंदुओं का प्रयोग किया जाना चाहिये। किंतु अगर प्रश्न की प्रकृति शुद्ध विश्लेषणात्मक है तो बिंदुओं के प्रयोग से बचना आवश्यक है। ऐसा उत्तर पैराग्राफ पद्धति के अनुसार लिखना ही ठीक रहता है।
    • उदाहरण के तौर पर, अगर यह प्रश्न पूछ लिया जाए कि ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान घटने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण पाँच घटनाएँ कौन सी थीं?’  तो इसके उत्तर में बिंदुओं का प्रयोग किया जाना चाहिये। एक छोटी-सी भूमिका लिखने के बाद अभ्यर्थी को सीधे 1-5 तक बिंदु बनाकर एक-एक तथ्य प्रस्तुत करते जाना चाहिये।
    • अगर यह प्रश्न पूछ लिया जाए कि "जहाँ महात्मा गांधी जाति व्यवस्था की कुरीतियों पर कोई गंभीर चोट नहीं कर सके, वहीं डॉ. अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था के मूल पर प्रहार किया। स्पष्ट कीजिये"। इस प्रश्न की स्पष्ट अपेक्षा है कि उत्तर का पहला पैरा महात्मा गांधी के संबंध में और दूसरा पैरा डॉ. अम्बेडकर के संबंध में लिखा जाना चाहिये और दोनों ही पैराग्राफों में सिर्फ एक-एक बिंदु की व्याख्या किये जाने की ज़रूरत है। (स्पष्ट है कि ऐसे उत्तरों में बिंदुओं या शीर्षकों की भूमिका नहीं होती। यदि हम अनावश्यक बिंदुओं का प्रयोग करेंगे तो निस्संदेह नुकसान में ही रहेंगे)।

    रेखाचित्रों का प्रयोग करें या नहीं?

    • अभ्यर्थियों के मन में एक दुविधा इस बात को लेकर भी रहती है कि उन्हें किसी उत्तर में रेखाचित्र (जैसे पाई डायग्राम, वेन डायग्राम, तालिका, फ्लो-चार्ट) आदि का प्रयोग करना चाहिये या नहीं?
    • इस प्रश्न का उत्तर यह है कि निबंध तथा विश्लेषणात्मक प्रश्नों में प्रायः इस प्रवृत्ति से बचना ही अच्छा रहता है। किंतु यदि प्रश्न की प्रकृति ही ऐसी हो कि उसमें विभिन्न वस्तुओं का आपसी संबंध या वर्गीकरण आदि दिखाए जाने की ज़रूरत हो तो रेखाचित्र का प्रयोग सहायक भी हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, अगर एथिक्स के प्रश्नपत्र में पूछ लिया जाए कि "अपराध और पाप की धारणाओं में अंतर स्पष्ट करें। क्या यह ज़रूरी है कि हर अपराध पाप हो और हर पाप अपराध?"  तो इस प्रश्न के उत्तर में दो अवधारणाओं का संबंध स्पष्ट करने के लिये वेन डाइग्राम का प्रयोग कर लेना चाहिये। कई जटिल अवधारणाओें में अंतर जितनी आसानी से किसी डायग्राम के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है, उतनी आसानी से लिखित शब्दों के माध्यम से नहीं।
    • सार यह है कि जहाँ विभिन्न धारणाओं के पारस्परिक संबंधों या वर्गीकरण आदि को स्पष्ट करना हो, वहाँ रेखाचित्र शैली का प्रयोग करना हमेशा फायदेमंद होता है किंतु शुद्ध विश्लेषणात्मक प्रश्नों में ऐसे प्रयोगों से बचना चाहिये।

    कैसी शब्दावली का प्रयोग करें? 

    • उत्तर लिखने में भाषा-शैली की सरलता एवं सहजता बनाए रखना चाहिये। शब्दों के चयन में इतनी सावधानी बरतना अनिवार्य है कि उत्तर की गरिमा से समझौता न हो।
    • उर्दू, फारसी परंपरा के शब्दों का प्रयोग निबंध में तो कुछ मात्रा में किया जा सकता है किंतु सामान्य अध्ययन के प्रश्नपत्रों में ऐसी भाषा के प्रयोग से बचना चाहिये। 
    • अंग्रेज़ी की शब्दावली का प्रयोग करने में समस्याएँ कम हैं। जहाँ भी कोई जटिल, तकनीकी शब्द पहली बार आए, वहाँ आपको कोष्ठक में अंग्रेज़ी का शब्द भी लिख देना चाहिये। कोष्ठक में लिखते समय आप रोमन लिपि का प्रयोग कर सकते हैं। अगर आप अंग्रेज़ी के किसी तकनीकी शब्द का प्रयोग देवनागरी लिपि में करते हैं तो उसके लिये कोष्ठक की ज़रूरत नहीं है। किंतु ध्यान रखें कि इस सुविधा का प्रयोग केवल बहुत ज़रूरी शब्दों के लिये ही किया जाना चाहिये। अगर अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग सामान्य अनुपात से अधिक मात्रा में हुआ तो परीक्षक के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
    • परीक्षा में सामान्यतः उस शब्दावली को अधिक महत्त्व दें जो संस्कृत मूल की अर्थात् तत्सम् है। ऐसी शब्दावली प्रायः अधिक औपचारिक मानी जाती है और परीक्षा के अनुशासन को देखते हुए परीक्षक इसे उचित समझते हैं। उदाहरण के लिये, ‘प्रधानमंत्री जी अस्वस्थ्य  है’  कहने में जो औपचारिकता है, वह यह कहने में नहीं है कि ‘वज़ीरे आज़म साहब की तबीयत नासाज़ है।’  इसलिये जहाँ तक संभव हो, अपनी शब्दावली को सरल, सहज किंतु तत्समी बनाए रखने का प्रयास करें।

    भूमिका आदि लिखें या नहीं? 

    • अभ्यर्थियों को इस प्रश्न पर भी पर्याप्त संदेह रहता है कि उन्हें अपने उत्तर की शुरुआत में भूमिका लिखनी चाहिये अथवा नहीं? इसी प्रकार, उत्तर के अंत में निष्कर्ष की आवश्यकता को लेकर भी संदेह बना रहता है।
    • आजकल सामान्य अध्ययन और वैकल्पिक विषयों में 200-250 शब्दों से अधिक शब्द-सीमा वाले उत्तर नहीं पूछे जाते हैं। इसलिये, आजकल यह मानकर चलना ठीक है कि बिना किसी औपचारिक भूमिका के आप सीधे अपने उत्तर की शुरुआत कर सकते हैं।
    • उत्तर का पहला एकाध वाक्य ऐसा रखना चाहिये जो भूमिका की ज़रूरत को पूरा कर दे। अगर प्रश्न किसी विवाद पर आधारित है तो एक-दो पंक्तियों का निष्कर्ष भी दिया जाना चाहिये किंतु सामान्य तथ्यात्मक प्रश्नों में निष्कर्ष की कोई आवश्यकता नहीं है।
    • उदाहरण के लिये, अगर प्रश्न है कि ‘स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर के तुलनात्मक योगदान पर चर्चा करें’  तो उसकी संक्षिप्त भूमिका और निष्कर्ष क्रमशः इस प्रकार हो सकते हैं-
    • भूमिकाः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मुख्यधारा का नेतृत्व यदि महात्मा गांधी कर रहे थे तो उसी समय डॉ. अम्बेडकर सदियों से वंचित दलित व आदिवासी समुदाय को मुख्यधारा में जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। इन दोनों महान नेताओं के बीच तुलना के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-
    • निष्कर्षः सार यह है कि यदि महात्मा गांधी की बड़ी भूमिका भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने में थी तो डॉ. अंबेडकर की भूमिका हमें रूढ़ियों और शोषण से आज़ाद कराने में थी।

    उत्तर के प्रस्तुतीकरण को आकर्षक बनाना

    उत्तर-लेखन का अंतिम पक्ष यह है कि हम अपने उत्तर को ज़्यादा सुंदर व प्रभावशाली कैसे बना सकते हैं? इसके कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार हैं-

    • उत्तर के सबसे महत्त्वपूर्ण शब्दों तथा वाक्यों को रेखांकित करना न भूलें, पर यह ध्यान रखें कि रेखांकन का प्रयोग जितनी कम मात्रा में करेंगे, उसका प्रभाव उतना ही अधिक होगा। कई विद्यार्थी लगभग हर पंक्ति को ही रेखांकित कर देते हैं जिसका कोई लाभ नहीं मिलता।
    • अभ्यर्थी को चाहिये कि वह काले और नीले दो रंगों के पेन का प्रयोग करे। जैसे वह नीले पेन से उत्तर लिख सकता है और काले पेन से महत्त्वपूर्ण हिस्सों को रेखांकित कर सकता है। पर यह ध्यान रखें कि इन दोनों रंगों के अलावा अन्य किसी भी रंग के पेन का प्रयोग करना नियम के विरुद्ध है। 
    • आपकी लिखावट (हैंडराइटिंग) जितनी साफ-सुथरी होगी, आपको अधिक अंक मिलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। 
    • अच्छी हैंडराइटिंग से एक मनोवैज्ञानिक लाभ मिल जाता है जो अंततः अंकों के लाभ में परिणत होता है। अगर आपकी हैंडराइटिंग साफ नहीं है तो नुकसान होना तय है। इसलिये, अभी से कोशिश कीजिये कि हैंडराइटिंग कम से कम ऐसी ज़रूर हो जाए कि उसे पढ़ते हुए परीक्षक को तनाव या सिर-दर्द न हो।
    • अपने शब्दों तथा पंक्तियों के मध्य खाली स्थान इस तरह से छोड़ें कि आपकी उत्तर-पुस्तिका आकर्षक नज़र आए। दो पंक्तियों के बीच में जितना गैप छोड़ते हैं, दो पैराग्राफ के बीच में उससे कुछ ज़्यादा गैप छोड़ें ताकि दूर से देखकर ही यह समझ आ जाए कि कहाँ से नया पैराग्राफ शुरू हो रहा है। 
    • इसी प्रकार, हर नया पैराग्राफ लगभग एक ही स्केल से शुरू करें। बाईं तरफ, जहाँ से लिखने का स्थान शुरू होता है, वहाँ से लगभग दो शब्दों का खाली स्थान छोड़कर पैराग्राफ शुरू करना चाहिये और सभी पैराग्राफ उसी बिंदु से शुरू किये जाने चाहियें। 

    वीडिओ देखें : बेहतर उत्तर लेखन के संबंध में और अधिक विस्तार से समझने के लिये क्लिक करें।

    परीक्षा में समय प्रबंधन

    मुख्य परीक्षा के प्रायः सभी प्रश्नपत्रों में एक बड़ी समस्या यह भी आती है कि तीन घंटों में सभी प्रश्नों का उत्तर कैसे लिखा जाए? प्रत्येक प्रश्न को कितना समय दिया जाए? सभी प्रश्न किये जाएँ या कुछ को छोड़ दिया जाए? आदि आदि। कुछ लोगों का मानना है कि परीक्षा में समय का विभाजन प्रत्येक प्रश्न के लिये बराबर होना चाहिये किंतु मनोवैज्ञानिक स्तर पर इस बात को सही नहीं माना जा सकता। 

    • शुरुआती उत्तरों का प्रभाव ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होता है और अंत तक उस प्रभाव के आधार पर लाभ या नुकसान होता रहता है। इसलिये, शुरुआती कुछ प्रश्नों पर तुलनात्मक रूप से अधिक समय दिया जाना चाहिये।
    • परीक्षा के अंतिम एक घंटे में अभ्यर्थी की सोचने और लिखने की गति अभूतपूर्व तरीके से बढ़ चुकी होती है। इसलिये, अंतिम कुछ प्रश्नों को तुलनात्मक रूप से कम समय मिले तो भी चिंता नहीं करनी चाहिये।
    • हो सकता है कि आप परीक्षा में समय प्रबंधन की इस रणनीति पर पूरी तरह न चल सकें और अंतिम समय में कई प्रश्न बचे रह जाएँ। जैसे मान लीजिये कि समय सिर्फ 20 मिनट रह गया हो और प्रश्न 5 या 6 बचे हुए हों। ऐसी स्थिति में भी कोशिश यही रहनी चाहिये कि कोई प्रश्न छूटे नहीं। अगर आप सभी प्रश्नों में सिर्फ फ्लो-चार्ट या डायग्राम के माध्यम से महत्त्वपूर्ण बिंदु भी लिख देंगे तो भी आपको ठीक-ठाक अंक मिलने की संभावना रहती है । 
    • उत्तर-पुस्तिका के अंतिम हिस्से तक पहुँचते- पहुँचते परीक्षक के मन में अभ्यर्थी के बारे में एक राय बन चुकी होती है और अंकों का निर्धारण प्रायः उस राय के आधार पर ही हो रहा होता है। 
    • अगर आपके बारे में पहले ही अच्छी राय बन गई है तो अंतिम कुछ प्रश्नों में डायग्राम या सिर्फ बिंदु देखकर भी परीक्षक अच्छे अंक दे देगा क्योंकि वह आपके पक्ष में सकारात्मक अभिवृत्ति बना चुका होता है।  
    • लेकिन अगर आप कुछ प्रश्न पूरी तरह छोड़ देंगे तो वह चाहकर भी आपको अंक नहीं दे सकेगा क्योंकि आपने उसे अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करने का मौका ही नहीं दिया। 
    • सार यह है कि कोशिश करनी चाहिये कि एक भी प्रश्न छूटे नहीं। हाँ, जो प्रश्न अभ्यर्थी को आता ही नहीं है, वह तो उसे छोड़ना ही होगा।
    • अगर आप उपरोक्त सभी बिन्दुओं को ध्यान रखते हुए उत्तर लिखते हैं तो निश्चित रुप से आपका उत्तर श्रेष्ठ होगा और आप अच्छे अंक प्राप्त कर सकेंगे, जिससे आपकी सफलता की संभावना बढ़ जाएगी।

    वीडिओ देखें : परीक्षा के दौरान बेहतर समय प्रबंधन के संबंध में और अधिक विस्तार से समझने के लिये क्लिक करें

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