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  • 09 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    दिवस 21: प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक (PGI) शिक्षा में साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण की दिशा में एक कदम है। राज्यों में शिक्षण और शासन संबंधी अंतरालों की पहचान करने और उन्हें न्यूनतम करने में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नीति मूल्यांकन उपकरण के रूप में प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक (PGI) के संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये। 
    • मुख्य भाग में विवेचना कीजिये कि PGI किस प्रकार शिक्षा परिणामों और प्रशासन में अंतरालों का अभिनिर्धारण करने तथा उन्हें कम करने में मदद करता है। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

    शिक्षा मंत्रालय द्वारा विकसित प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक (PGI) भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा का मूल्यांकन करता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप, PGI साक्ष्य -आधारित नीति-निर्माण को बढ़ावा देने, शैक्षिक परिणामों में सुधार लाने और शासन सुधारों को बढ़ावा देने के लिये व्यापक संकेतकों का उपयोग करता है तथा लक्षित हस्तक्षेपों के लिये कमियों का अभिनिर्धारण करता है।

    मुख्य भाग:

    • PGI का मूल्यांकन ढांचा: PGI 2.0 73 संकेतकों के माध्यम से स्कूली शिक्षा के प्रदर्शन का आकलन करता है, जिन्हें दो व्यापक क्षेत्रों— परिणाम और शासन एवं प्रबंधन के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। 
      • इन्हें आगे छह क्षेत्रों में बांटा गया है— अधिगम के परिणाम, अभिगम, बुनियादी अवसंरचना, समानता, शासन प्रक्रियाएँ और शिक्षक प्रशिक्षण। 
      • यह संरचना राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता का व्यापक, बहुआयामी मूल्यांकन करने में सहयता करती है।
    • राज्यों में अंतर की पहचान: PGI स्कोर 0 से 1,000 तक होता है और राज्यों को उनके प्रदर्शन के आधार पर ग्रेड दिये जाते हैं। चंडीगढ़ को 703 अंकों के साथ प्रचेस्टा-1 का सर्वोच्च ग्रेड मिला, जबकि मेघालय को केवल 417.9 अंकों के साथ सबसे निचला स्थान मिला।
      • ये क्षेत्रीय असमानताएँ बुनियादी अवसंरचना, शासन और संसाधन आवंटन में गंभीर अंतराल को इंगित करती हैं, जिससे नीति निर्माताओं को विशिष्ट समस्या क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है।
    • अधिगम के अंतराल को कम करना: PGI 2.0 साक्षरता, संख्यात्मकता और शैक्षिक समानता जैसे आधारभूत क्षेत्रों में कमज़ोरियों को उजागर करता है। 
      • मेघालय और बिहार जैसे राज्य, जिनका PGI स्कोर कम है, प्रणालीगत सुधारों के एक भाग के रूप में बुनियादी शिक्षण परिणामों को लक्ष्य बना सकते हैं।
      • यह सूचकांक राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (वर्ष 2021) और शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE+) डेटा पर आधारित है, जो इसे नीतियों के साथ छात्र प्रदर्शन को सह-संबंधित करने के लिये एक प्रभावी उपकरण बनाता है।
    • विशिष्ट डोमेन में शक्तियों और कमज़ोरियों पर प्रकाश डालता है: PGI राज्यों को डोमेन-विशिष्ट अंतरालों का पता लगाने में सहायता प्रदान करता है, जैसे ग्रामीण/आदिवासी क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना या शहरी मलिन बस्तियों में अधिगम के न्यून परिणाम।
      • PM SHRI और ULLAS जैसी पहलों को इन स्थानीय चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये तैयार किया जा सकता है।
    • शासन और प्रबंधन में सुधार: शासन डोमेन शिक्षक प्रशिक्षण, स्कूल बुनियादी अवसंरचना और समावेशिता जैसे क्षेत्रों का मूल्यांकन करता है। 
      • कम प्रदर्शन करने वाले राज्य ऐसे सुधारों को प्राथमिकता दे सकते हैं जो शिक्षक की गुणवत्ता में सुधार करें और सीमांत शिक्षार्थियों को सहायता प्रदान करें।
    • साक्ष्य-आधारित नीति हस्तक्षेप को बढ़ावा देना: डेटा-संचालित दृष्टिकोण प्रदान करके, PGI 2.0 लक्षित हस्तक्षेपों का समर्थन करता है। 
      • उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु, जो आकांक्षी-1 श्रेणी में स्कोर करते हैं, शिक्षक प्रशिक्षण व प्रशासनिक दक्षता को बढ़ा सकते हैं, जिससे परिणामों एवं रैंकिंग में सुधार हो सकता है।

    निष्कर्ष:

    प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक (PGI) भारत में विद्यालयी शिक्षा का मूल्यांकन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करता है। यह अधिगम की गुणवत्ता तथा शासन से जुड़ी कमियों के संबंध में आँकड़ों पर आधारित सूचनाएँ प्रदान करता है, जिससे राज्यों को लक्षित हस्तक्षेपों की योजना बनाने में सहायता मिलती है। जैसे-जैसे PGI का ढाँचा विकसित होता जायेगा, यह शिक्षा से जुड़ी विषमताओं को कम करने में सहायक होगा तथा इससे भारत की शिक्षा प्रणाली में निरंतर सुधार को बढ़ावा मिलेगा।

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