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Mains Marathon

  • 11 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस 23: खनिज सुरक्षा वित्त नेटवर्क (MSFN) में भारत की भागीदारी के भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन कीजिये। इस सहयोग से जुड़े संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • खनिज सुरक्षा वित्त नेटवर्क (MSFN) का संक्षिप्त परिचय दीजिये तथा इसकी प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिये।
    • यह विश्लेषण कीजिये कि भारत की भागीदारी उसकी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को किस प्रकार प्रभावित करती है।
    • इसके रणनीतिक महत्त्व पर एक भविष्यमुखी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    भारत की हालिया भागीदारी मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप फाइनेंस नेटवर्क में इसके रणनीतिक दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाती है, जिसका उद्देश्य महत्त्वपूर्ण खनिजों (क्रिटिकल मिनरल्स) की विविध और मज़बूत आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करना है। स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों और इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण की वैश्विक माँग में वृद्धि के साथ, इस अमेरिका-नेतृत्व वाली बहुपक्षीय पहल में भारत की भागीदारी चीन पर निर्भरता को कम करने तथा अपनी ऊर्जा रूपांतरण व आर्थिक सुरक्षा प्राथमिकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास है।

    मुख्य भाग:

    भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों पर प्रभाव:

    • MSFN EV, सौर पैनलों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये आवश्यक लिथियम, कोबाल्ट, निकल एवं दुर्लभ पृथ्वी जैसे खनिजों की खोज़, प्रसंस्करण व पुनर्चक्रण में निवेश की सुविधा प्रदान करता है।
    • यह घरेलू स्वच्छ प्रौद्योगिकी उत्पादन के लिये कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करके राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन, PLI योजनाओं और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत भारत के लक्ष्यों को समर्थन प्रदान करता है।
    • भारत की भागीदारी से चीन पर निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी, जो वर्तमान में वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी प्रसंस्करण के 70% से अधिक को नियंत्रित करता है तथा लिथियम और कोबाल्ट मूल्य शृंखला पर हावी है।
    • यह भारत को वैश्विक स्तर पर परियोजनाओं का सह-विकास करने में सक्षम बनाता है, जिसमें विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में खनिज प्रसंस्करण इकाइयाँ एवं निष्कर्षण कार्य शामिल हैं।
    • MSFN के अंतर्गत विकास वित्त संस्थानों (DFI) और निर्यात ऋण एजेंसियों (ECA) के साथ सहयोग से घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय खनन निवेश के लिये पूंजी की उपलब्धता आसान हो जाएगी।
    • भागीदारी से वैश्विक खनिज कूटनीति में भारत की भूमिका बढ़ेगी, जिससे लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और हिंद-प्रशांत क्षेत्रों में सहयोगी परियोजनाओं तक पहुँच संभव होगी।
    • भारत के विस्तारित इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर क्षेत्र को परिशुद्ध विनिर्माण के लिये आवश्यक दुर्लभ मृदा तत्त्वों की विश्वसनीय आपूर्ति से बहुत लाभ होगा।
    • चीन द्वारा दुर्लभ मृदा प्रसंस्करण के 85% से अधिक भाग पर नियंत्रण तथा भारत में निष्कर्षण योग्य भारी दुर्लभ मृदा तत्त्वों (HREE) की सीमित मात्रा होने के कारण, MSFN स्रोतों में विविधता लाने तथा रणनीतिक भंडार बनाने में सहायता करता है।

    सहयोग के संभावित लाभ:

    • महत्त्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं के लिये उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से निजी पूंजी संग्रह और प्रौद्योगिकी अंतरण।
    • साझा मानकों, समुचित परिश्रम मानदंडों और पर्यावरण सुरक्षा उपायों के माध्यम से निवेश माहौल में सुधार।
    • महत्त्वपूर्ण खनिजों में चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिये पुनर्चक्रण और शहरी खनन क्षमताओं को सुदृढ़ करने का अवसर।
    • विदेशों में खनिज संपत्तियों के अधिग्रहण हेतु भारत की KABIL पहल को MSFN के साथ बेहतर रूप में समन्वित किया जा सकता है।

    आगामी चुनौतियाँ:

    • भारत वैश्विक लिथियम मूल्य शृंखला में देर से शामिल हुआ है, अतः  इसे निवेश और तकनीकी दक्षता निर्माण की आवश्यकता है।
    • HREE के सीमित घरेलू भंडार के कारण निकट भविष्य में बाह्य निर्भरता अपरिहार्य है।
    • कुछ खनिजों के लिये अपर्याप्त घरेलू भंडार और प्रसंस्करण अवसंरचना आपूर्ति संबंधी कमज़ोरियाँ उत्पन्न करती हैं।
    • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ और विनियामक विलंब नई खनिज परियोजनाओं के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
    • क्वाड और MSP जैसे रणनीतिक गुटों के साथ वार्ता करते समय भू-राजनीतिक संवेदनशीलताओं का प्रबंधन करने के लिये संतुलित कूटनीति की आवश्यकता हो सकती है।
    • खंडित पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र और कम निजी निवेश घरेलू क्षमता निर्माण एवं नवाचार को सीमित करते हैं। 

    निष्कर्ष: 

    भारत की MSFN में सहभागिता उसकी स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में प्रतिबद्धता तथा आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित करने की दिशा में एक समयोचित एवं रणनीतिक पहल है। हालाँकि, इस पहल की पूर्ण संभावनाओं को साकार करने के लिये भारत को क्षमता निर्माण, परियोजना क्रियान्वयन और भू-राजनीतिक संतुलन के साथ-साथ पर्यावरणीय सुरक्षा एवं सतत् प्रथाओं को अपनी खनिज नीति में एकीकृत करने की आवश्यकता है।

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