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17 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 28: "उदारीकरण को प्रायः आर्थिक बंधनों के शिथिलीकरण के रूप में देखा जाता है।" वर्ष 1991 से प्रारंभ हुए उदारीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना को किस प्रकार परिवर्तित किया है, इसका समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उदारीकरण की परिभाषा से उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- 1991 के बाद हुए कुछ सकारात्मक संरचनात्मक परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये।
- कुछ सीमाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
वर्ष 1991 में शुरू हुए उदारीकरण ने भारत की आर्थिक नीति में एक क्रांतिकारी परिवर्तन को चिह्नित किया, जिसमें एक अत्यधिक विनियमित तथा अंतर्मुखी अर्थव्यवस्था से हटकर बाज़ारोन्मुखता और वैश्विक एकीकरण की दिशा में अग्रसर होने की प्रवृत्ति देखी गई। "आर्थिक बंधनों का शिथिलीकरण" दरअसल लाइसेंस-परमिट-कोटा राज की समाप्ति को दर्शाता है, जिससे निजी क्षेत्र और विदेशी भागीदारी को अधिक अवसर प्राप्त हुए। हालाँकि इन सुधारों ने आर्थिक संभावनाओं को मुक्त किया, परंतु उनका संरचनात्मक प्रभाव एक ओर जहाँ रूपांतरणकारी रहा, वहीं दूसरी ओर असमान भी।
मुख्य भाग:
वर्ष 1991 के बाद संरचनात्मक परिवर्तन
- GDP संरचना में क्षेत्रीय बदलाव:
- IT, दूरसंचार और वित्तीय सेवाओं के कारण सेवा क्षेत्र 1990-91 में GDP के 41% से बढ़कर सत्र 2022-23 में 54% से अधिक हो गया।
- उद्योग का हिस्सा लगभग 25-28% रहा, जबकि कृषि का हिस्सा घटकर लगभग 17% रह गया, जो प्राथमिक से तृतीयक अर्थव्यवस्था में बदलाव को दर्शाता है।
- व्यापार और निवेश उदारीकरण:
- वर्ष 1991 में निर्यात-से-GDP अनुपात 7% से बढ़कर वर्ष 2012 तक 20% से अधिक हो गया (विश्व बैंक)।
- वर्ष 1991 में FDI प्रवाह 74 मिलियन डॉलर से बढ़कर सत्र 2021-22 में 85 बिलियन डॉलर हो गया, जिससे ऑटोमोबाइल, फार्मा और बुनियादी अवसंरचना जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा मिला।
- निजी क्षेत्र का उदय:
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का प्रभुत्व कम हुआ; निजी कंपनियों ने दूरसंचार (जैसे: Jio), विमानन (IndiGo) और बैंकिंग (HDFC, ICICI) में प्रवेश किया।
- इंफोसिस, विप्रो और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ जैसी वैश्विक फर्मों का उदय।
- वित्तीय बाज़ार सुधार:
- SEBI और NSE की स्थापना, पूंजी बाज़ारों को मज़बूत करना।
- बैंकिंग सुधारों के कारण ब्याज दरें नियंत्रणमुक्त हुईं और वित्तीय समावेशन में सुधार हुआ (जैसे: 50 करोड़ से अधिक खातों वाली प्रधानमंत्री जन धन योजना)।
संरचनात्मक सीमाएँ और चुनौतियाँ
- रोज़गार विहीन विकास
- सेवाओं में वृद्धि ने आनुपातिक रोज़गार सृजन नहीं किया है। विनिर्माण, जो सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 16-17% पर स्थिर है, कृषि क्षेत्र से निकलने वाले अधिशेष श्रम का अपने भीतर समावेश करने में विफल रहा है।
- क्षेत्रीय और आय असमानता
- आर्थिक सर्वेक्षण (2021-22) ने ग्रामीण-शहरी विभाजन और अंतर-राज्यीय असमानताओं में वृद्धि का उल्लेख किया है।
- ऑक्सफैम रिपोर्ट (2023): शीर्ष 10% के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 77% से अधिक हिस्सा है, जो उदारीकरण से असमान लाभ को दर्शाता है।
- Agricultural Exclusion कृषि अपवर्जन
- कृषि में बड़े पैमाने पर सुधार नहीं किया गया, जिससे किसान संकट और ग्रामीण गतिरोध में योगदान मिला।
- पर्यावरणीय क्षरण
- पर्याप्त विनियमन के बिना तेज़ी से हो रहे औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण प्रदूषण में वृद्धि एवं संसाधनों का ह्रास हुआ है।
निष्कर्ष:
जैसा कि जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ ने सही कहा था, "बाज़ार, अपने आप में, प्रायः असमानता और अकुशलता को जन्म देते हैं, ऐसे में उनका संचालन किस प्रकार किया जाए, यह महत्त्वपूर्ण है।"
आगे की चुनौती यही है कि बाज़ार की दक्षता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित किया जाये, ताकि आर्थिक स्वतंत्रता का लाभ क्षेत्रों, क्षेत्रों तथा समुदायों के बीच समान रूप से साझा हो सके।