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Mains Marathon

  • 16 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस-27: "भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का स्थान मुख्यतः कृषि पैटर्न और बुनियादी अवसंरचना द्वारा निर्धारित होता है।" उनके स्थानिक वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिये और संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के बीच संबंध के साथ उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के स्थान को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिये और संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करने के उपाय प्रस्तावित कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    मुख्य भाग:

    खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के स्थानिक वितरण को प्रभावित करने वाले कारक:

    • कच्चे पदार्थों की निकटता: कृषि उत्पादों की उपलब्धता खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के स्थान‑निर्धारण का एक प्रमुख कारक है। 
      • पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसे राज्य गेहूँ, चावल, फल तथा सब्जियों सहित अपने समृद्ध कृषि आधार के कारण प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण केंद्र हैं।
      • ये क्षेत्र कच्चे माल की सतत् उपलब्धता प्रदान करते हैं जिससे खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ अधिक व्यावहारिक बनती हैं।
    • आधारभूत संरचना तथा संपर्क: पर्याप्त परिवहन नेटवर्क, जैसे: सड़क, रेलवे और बंदरगाह खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के स्थान को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिये मुंबई और कोलकाता बंदरगाहों तक पहुँच से लाभान्वित होते हैं, जिससे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का निर्यात सुगम होता है।
      • इसके अलावा, शीघ्र खराब होने वाले उत्पादों के लिये सुस्थापित कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क आवश्यक हैं।
    • ऊर्जा उपलब्धता: खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों, विशेष रूप से ऊर्जा-गहन प्रशीतन और शीतलन जैसे कार्यों के परिचालन के लिये बिजली एवं सतत् ऊर्जा की उपलब्धता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
      • गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने विश्वसनीय विद्युत अवसंरचना के कारण उद्योगों का विकास किया है।
    • सरकारी नीतियाँ और प्रोत्साहन: प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY), जिसका बजट ₹6,000 करोड़ है, और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLISFPI) जैसी सरकारी पहल, विशिष्ट क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करती हैं।
      • कृषि-समृद्ध क्षेत्रों में मेगा फूड पार्कों की स्थापना से प्लग-एंड-प्ले सेटअप की सुविधा मिलती है, जिससे उद्यमियों के लिये प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करना आसान हो जाता है। 
    • श्रम उपलब्धता: प्रचुर, कम लागत वाले श्रम वाले क्षेत्र श्रम-गहन खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को आकर्षित करते हैं। बिहार एवं उत्तर प्रदेश में कम लागत वाले ग्रामीण श्रम की उपलब्धता के कारण खाद्य प्रसंस्करण में वृद्धि देखी गई है।

    संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करना:

    • अविकसित क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना विकास: संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिये सरकार को अविकसित क्षेत्रों में कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स, सड़कों और बिजली आपूर्ति के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिससे खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ कम औद्योगिक क्षेत्रों की ओर आकर्षित हो सकें।
    • Policy Support and Subsidies: Extending PMKSY benefits to underdeveloped states with tailored incentives, subsidies, and easier access to credit facilities will ensure that food processing industries are not concentrated in a few states. नीतिगत समर्थन और सब्सिडी: PMKSY के लाभों को अविकसित राज्यों तक विशिष्ट प्रोत्साहनों, सब्सिडी और ऋण सुविधाओं तक आसान पहुँच के साथ विस्तारित करने से यह सुनिश्चित होगा कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कुछ ही राज्यों तक सीमित न रहें।
    • कृषि-आधारित क्लस्टर और क्षेत्रीय विशेषज्ञता: विशिष्ट क्षेत्रों में कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टरों को बढ़ावा देना, जो एक ज़िला, एक उत्पाद (ODOP) पर केंद्रित हैं, स्थानीय मूल्यवर्द्धन सुनिश्चित कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये केरल जैसे राज्य मसालों और नारियल पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जबकि मध्य प्रदेश कदन्न प्रसंस्करण में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय रोज़गार को बढ़ावा मिलेगा और असमानताएँ कम होंगी।
    • निजी क्षेत्र का निवेश: अनुकूल नीतियों के माध्यम से कम विकसित क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करने से तकनीकी अंगीकरण और संसाधनों के कुशल उपयोग में वृद्धि होगी, जिससे स्थायी खाद्य प्रसंस्करण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता मिलेगी।
    • कौशल विकास: कौशल विकास कार्यक्रमों जैसी सरकारी पहलों को ग्रामीण कार्यबल को आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण तकनीकों में प्रशिक्षित करने, स्थानीय उद्यमियों को अपने व्यवसाय का विस्तार करने तथा क्षेत्रीय उत्पादकता में सुधार करने में सहायता करने पर केंद्रित होना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कृषि पैटर्न, बुनियादी अवसंरचना और सरकारी नीतियों से प्रभावित होता है। संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिये, सरकार को बुनियादी अवसंरचना में सुधार, नीतिगत प्रोत्साहनों का विस्तार और क्षेत्रीय विशेषज्ञता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इन उपायों को अपनाकर, भारत समावेशी विकास प्राप्त कर सकता है और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानताओं को कम कर सकता है।

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