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16 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस-27: भारत में ग्रामीण असमानता को कम करने और समावेशी कृषि विकास को बढ़ावा देने में भूमि सुधारों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। हाल की नीतियाँ और तकनीकी हस्तक्षेप इस उद्देश्य में किस हद तक सफल रहे हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- ग्रामीण समता और कृषि विकास को बढ़ावा देने में भूमि सुधारों के महत्त्व की व्याख्या कीजिये।
- ग्रामीण असमानता को कम करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में भूमि सुधारों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये, तत्पश्चात हाल के हस्तक्षेपों का मूल्यांकन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
भूमिका:
भूमि सुधार भारत में ग्रामीण असमानता को दूर करने और समावेशी कृषि विकास को बढ़ावा देने में केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं। डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) के तहत वर्ष 2024 तक 95% ग्रामीण भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण के साथ, सरकार ने भूमि प्रशासन, पारदर्शिता और किसानों के लिये कानूनी एवं वित्तीय संसाधनों तक अभिगम में उल्लेखनीय सुधार किया है।
मुख्य भाग:
भूमि सुधार और पुनर्वितरण:
- भूमि पुनर्वितरण: भूमि हदबंदी कानूनों और बिचौलियों की भूमिका के उन्मूलन सहित भूमि सुधारों का उद्देश्य बड़े भू-स्वामियों से सीमांत एवं भूमिहीन किसानों को भूमि का पुनर्वितरण करना था।
- इन उपायों ने भूमि स्वामित्व के संकेंद्रण को कम किया है और सीमांत वर्ग के लोगों को उत्पादक संसाधनों तक पहुँच प्रदान की है।
- काश्तकारी सुधार: काश्तकारी संरक्षण कानूनों ने काश्तकारों के अधिकारों को सुरक्षित किया, शोषणकारी प्रथाओं को कम किया और भूमि सुधारों में निवेश को प्रोत्साहित किया।
- सुरक्षित भूमि स्वामित्व ने किसानों को ऋण, सब्सिडी और फसल बीमा तक बेहतर अभिगम प्रदान की है, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
तकनीकी और नीतिगत हस्तक्षेप:
- DILRMP और डिजिटलीकरण: DILRMP ने 6.26 लाख से अधिक गाँवों में भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण किया है, जिससे भूमि विवाद कम हुए हैं और पारदर्शिता बढ़ी है।
- इससे किसानों को कानूनी सेवाओं और संस्थागत ऋण तक अधिक कुशलता से पहुँच बनाने में सहायता मिली है।
- ULPIN और भूमि स्वामित्व: विशिष्ट भू-खंड पहचान संख्या (ULPIN) या भू-आधार की शुरुआत भूमि के खंडों के लिये 14 अंकों की जियोटैग्ड आईडी प्रदान करती है, जिससे स्वामित्व सुरक्षा सुनिश्चित होती है तथा संपत्ति संबंधी विवादों में कमी आती है।
- यह उपाय जलवायु-अनुकूल भूमि नियोजन का भी समर्थन करता है।
- ई-गवर्नेंस और विधिक अभिगम: 26 राज्यों में ई-न्यायालय के एकीकरण से भूमि विवादों के समाधान में तीव्रता आई है, जबकि 18 राज्यों द्वारा अपनाई गई राष्ट्रीय जेनेरिक दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS) ऑनलाइन संपत्ति पंजीकरण को सक्षम बनाती है, जिससे भूमि लेन-देन सुव्यवस्थित होते हैं।
- समावेशी भूमि अभिलेख: भूमि अभिलेखों का 22 संवैधानिक भाषाओं में लिप्यंतरण ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों के लिये बेहतर अभिगम सुनिश्चित करता है, जिससे उन्हें अपने कानूनी भूमि अधिकारों का दावा करने और औपचारिक अर्थव्यवस्था में अधिक प्रभावी ढंग से भाग लेने का अधिकार मिलता है।
कृषि में निवेश को बढ़ावा:
- सुरक्षित डिजिटल भूमि अधिकार और किसान लाभ: सुरक्षित डिजिटल भूमि अधिकारों के साथ, किसान अब भूमि सुधार में निवेश करने और प्रौद्योगिकी-प्रधान कृषि पद्धतियों को अपनाने में सक्षम हैं।
- वे वित्तीय सहायता के लिये PM-KISAN और फसल बीमा के लिये फसल बीमा योजना जैसी सरकारी योजनाओं में भी भाग ले सकते हैं।
- SVAMITVA और मॉडल काश्तकारी अधिनियम जैसी नीतियाँ: SVAMITVA योजना, ड्रोन तकनीक का उपयोग करके ग्रामीण भूमि-धारकों को स्वामित्व अधिकार जारी कर रही है, जबकि मॉडल काश्तकारी अधिनियम (2021) का उद्देश्य भूमि पट्टे के लिये एक संतुलित प्रणाली बनाना है, जिससे जमींदारों एवं काश्तकारों दोनों को लाभ हो।
चुनौतियाँ:
- विखंडन और कार्यान्वयन में अंतराल: प्रगति के बावजूद, भूमि विखंडन, पुनर्वितरण का प्रतिरोध और राज्य स्तर पर अपूर्ण कार्यान्वयन ने भूमि सुधारों की सफलता को सीमित कर दिया है।
- बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ये समस्याएँ बनी हुई हैं, जहाँ बड़े भूस्वामियों का भूमि पर असमान नियंत्रण बना हुआ है।
निष्कर्ष:
तकनीकी हस्तक्षेपों और नीतियों द्वारा समर्थित भूमि सुधारों ने ग्रामीण असमानता को कम करने तथा समावेशी विकास को बढ़ावा देने में योगदान दिया है। हालाँकि, यह सुनिश्चित करने के लिये कि भूमि सुधार अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करे और सतत् एवं समतामूलक कृषि विकास को बढ़ावा दें, एकसमान कार्यान्वयन, क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी के विस्तृत अंगीकरण अभी भी आवश्यक है।