-
16 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस-27: भारत की इथेनॉल नीति चीनी मिलों को जैव ईंधन केंद्रों में परिवर्तित कर रही है। विश्लेषण कीजिये कि यह बदलाव चीनी क्षेत्र में पारंपरिक आपूर्ति शृंखलाओं और कृषि-औद्योगिक संबंधों को किस प्रकार बदल रहा है। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण: - भारत की इथेनॉल मिश्रण नीति और उसके परिवर्तनकारी उद्देश्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- चीनी क्षेत्र में पारंपरिक आपूर्ति शृंखलाओं और कृषि-औद्योगिक संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत की इथेनॉल मिश्रण नीति (Ethanol Blending Programme: EBP) का उद्देश्य जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को घटाना तथा ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य समय से पहले प्राप्त कर लिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि गन्ना आधारित पारंपरिक चीनी उद्योग अब तीव्र गति से 'जैव ईंधन' केंद्रों में रूपांतरित हो रहा है।
मुख्य भाग:
- गन्ने से इथेनॉल की ओर तीव्र संक्रमण: सत्र 2024-25 में अनुमानित 35 लाख टन गन्ने को इथेनॉल उत्पादन के लिये परिवर्तित किया गया है, जिससे परंपरागत खाद्य-उपयोग आधारित आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित हो रही हैं।
- मिलों का जैव ईंधन केंद्रों में रूपांतरण: वर्ष 2023 तक ₹40,000 करोड़ के निवेश और 1,380 करोड़ लीटर की उत्पादन क्षमता के साथ, चीनी मिलें अब केवल चीनी नहीं बल्कि इथेनॉल, बिजली और औद्योगिक उप-उत्पादों की इकाइयों में बदल चुकी हैं।
- कृषि-औद्योगिक संबंधों का पुनर्गठन: पहले जहाँ गन्ना पेराई–चीनी उत्पादन–खुदरा विक्रय की पारंपरिक शृंखला थी, अब वह फीडस्टॉक–इथेनॉल–ईंधन आपूर्ति की शृंखला में बदल रही है, जिसमें डिस्टिलरी, तेल कंपनियाँ और नई लॉजिस्टिक प्रणालियाँ शामिल हैं।
- बहु-फीडस्टॉक डिस्टिलरी का विस्तार: विशेषकर उत्तर प्रदेश में, डिस्टिलरी अब गन्ना, धान और मक्का का प्रसंस्करण कर रही हैं, जिससे पूरे वर्ष संचालन संभव हो पा रहा है और उद्योग का दायरा केवल चीनी तक ही सीमित नहीं रह गया है।
- अनाज-आधारित इथेनॉल और संबद्ध क्षेत्र पर प्रभाव: इथेनॉल के लिये मक्का के बढ़ते उपयोग ने आयात (अप्रैल-जून 2025 में ₹103 मिलियन) बढ़ा दिया है, जिससे पोल्ट्री, पशुधन और स्टार्च क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है, जो घरेलू मक्का पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- जल और स्थायित्व के बीच समझौता: गन्ने से 1,000 करोड़ लीटर इथेनॉल का 50% उत्पादन करने के लिये 400 बिलियन लीटर जल की आवश्यकता होती है, जिससे खाद्य फसलों की सिंचाई प्रभावित हो सकती है और कृषि पारिस्थितिकी पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- अंगीकरण में क्षेत्रीय असमानताएँ: उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इथेनॉल अभियान में अग्रणी हैं, जबकि तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल (ENA) और शराब उत्पादन को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिसका कारण राजनीतिक अर्थव्यवस्था और बाज़ार संबंधी कारक हैं।
- नीति-प्रेरित बाज़ार पुनर्संरेखण: इथेनॉल पर दीर्घकालिक संचालन और रखरखाव अनुबंध (OMC) एवं GST रियायतों ने नए इनपुट-आउटपुट बाज़ारों को औपचारिक रूप दिया है, जिससे ईंधन, खाद्य व कृषि-प्रसंस्करण क्षेत्रों में प्रोत्साहनों का पुनर्गठन हुआ है।
- खाद्य बनाम ईंधन बहस: गन्ने और मक्के की बढ़ती कीमतें उपभोग आवश्यकताओं एवं ऊर्जा लक्ष्यों के बीच तनाव को दर्शाती हैं, जिसके लिये एक सावधानीपूर्वक संसाधन आवंटन रणनीति की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
भारत की इथेनॉल नीति ने पारंपरिक चीनी उद्योग को एक गतिशील जैव-औद्योगिक तंत्र में रूपांतरित कर दिया है, जो ऊर्जा सुरक्षा, ग्रामीण विकास और स्वच्छ ईंधन लक्ष्यों को प्रोत्साहित करता है। हालाँकि, दीर्घकालिक स्थायित्व और संतुलन सुनिश्चित करने के लिये खाद्य–ईंधन–जल के अंतर्विरोधों का समाधान तथा द्वितीय एवं तृतीय पीढ़ी के इथेनॉल का प्रोत्साहन आवश्यक होगा।