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राज्यसभा

विशेष/इन-डेप्थ: तेरा पानी या मेरा पानी...कहाँ गया पानी?

  • 28 Mar 2018
  • 21 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लोगों के बीच जल का महत्त्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष विश्व जल दिवस के रूप में मनाने के लिये इस अभियान की घोषणा की गई थी। 2018 के लिये विश्व जल दिवस का विषय 'जल के लिये प्रकृति (Nature for Water)' है। अर्थात् 21वीं शताब्दी में पैदा होने वाली जल संबंधी चुनौतियों के लिये प्रकृति-आधारित समाधान ढू़ंढना। 

पानी है क्या?
दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से मिलकर बना अणु H2O अर्थात् पानी या जल समस्त प्राणियों का जीवन आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्रयोग द्रव अवस्था के लिये उपयोग में लाया जाता है, पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-सहयोगी सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

आज हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि दुनिया के कई शहरों में पानी की राशनिंग करनी पड़ रही है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर के अलावा कई और शहरों में डे-ज़ीरो लागू किया जाने लगा है। दुनियाभर में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है तथा अनुमान है कि आने वाले समय में यह संकट और विकराल हो जाएगा। 2032 तक पृथ्वी की आधी से ज़्यादा आबादी को पीने के लिये पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। 

ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर पानी गया कहाँ?...क्यों पानी का रंग लाल होने लगा है?...क्यों दुनिया वाले तेरा पानी-मेरा पानी के चक्कर में दिन-रात एक किये हैं?...और सबसे बड़ा सवाल यह कि यदि तीसरा विश्व-युद्ध हुआ तो क्या वह सचमुच पानी के लिये ही होगा? 

पानी को लेकर होगा तीसरा विश्व-युद्ध 

  • लंबे समय से हम सुनते आ रहे हैं कि अगला विश्व-युद्ध यदि हुआ तो विचारधारा, उग्र राष्ट्रवाद या किसी अन्य वजह से नहीं, बल्कि जल स्रोतों पर अधिकार को लेकर लड़ा जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने लगभग तीन दशक पहले ही बेहद गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ कहा था कि यदि कभी तीसरा विश्व-युद्ध लड़ा गया तो पानी के लिये लड़ा जाएगा। 
  • 1995 में विश्व बैंक के तत्कालीन उपाध्यक्ष इस्माइल सेराग्लेडिन ने कहा था कि इस शताब्दी की लड़ाई तेल के लिये लड़ी गई है, लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिये लड़ी जाएगी।
  • पानी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है और अक्सर यह कहा जाता है कि भारत को पाकिस्तान की ओर जो नदियाँ बहती हैं उनका पानी रोक लेना चाहिये।

(टीम दृष्टि इनपुट)

केपटाउन में पानी नहीं

  • दक्षिण अफ्रीका के लगभग 37 लाख आबादी वाले शहर केपटाउन में पानी की भयंकर कमी हो गई है। 
  • शहर में लगातार तीन साल से चले आ रहे सूखे के कारण यह स्थिति बनी है।
  • शहर को पानी सप्लाई करने वाले छहों बांधों का पानी लगभग समाप्त होने के कगार पर है।
  • इस कारण शहर के लोगों को पर्याप्‍त पानी नहीं मिल पा रहा और पूरे शहर में सार्वजनिक नलों पर पानी के लिये लंबी-लंबी कतारें लगी हैं। 
  • पानी की किल्‍लत से पिछले पाँच सालों में यहाँ सिंचाई का काम लगभग नहीं हो रहा। 
  • बढ़ते जल संकट के मद्देनजर अधिकारी समुद्र के पानी को पीने लायक बनाने के प्रयास में लगे हैं। 
  • नालियों में बहने वाले पानी को भी इस्‍तेमाल के लायक बनाने के लिये उसके पुनर्चक्रण की योजना बनाई जा रही है। 
  • पानी की किल्‍लत को देखते हुए ही केपटाउन प्रशासन ने तय किया है कि जल्‍द ही शहर में डे-ज़ीरो लागू कर दिया जाएगा।

क्या है डे-ज़ीरो?

  • डे-ज़ीरो का अर्थ है कि इस दिन शहर के 75% घरों की पानी की सप्लाई कट सकती है।
  • शहर के लगभग 10 लाख से अधिक घरों को पानी नहीं मिल पाएगा। 
  • पानी की किल्‍लत से निबटने के लिये पूरे शहर में लगभग 200 वॉटर कलेक्शन पॉइंट बनाए गए हैं, जहाँ से लोगों को हर दिन 25 लीटर पानी मिलेगा। 
  • किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिये प्रत्येक वाटर कलेक्शन सेंटर पर पुलिस और सेना के जवानों को तैनात किया जाएगा। 
  • केपटाउन में आने वाले दिनों में वर्षा नहीं हुई तो यहाँ के बांधों का जलस्तर  21 अप्रैल तक 13.5% से नीचे चला जाएगा और इसके बाद घरों में पानी की सप्लाई बंद कर दी जाएगी। 
  • तब शहर को लोगों को पीने का पानी लेने के लिये इन सेंटरों पर लाइन में लगना होगा। 
  • इससे पहले केपटाउन में फरवरी में हर रोज पानी के इस्तेमाल की सीमा प्रति व्यक्ति 87 से घटाकर 50 लीटर कर दी गई थी। 
  • इसके अलावा, पानी बचाने के लिये लोगों से टॉयलेट में फ्लश करने के लिये टंकी का इस्तेमाल न करने और कम पानी बहाने को कहा गया है। 
  • लोगों को यह भी सलाह दी गई है कि सप्ताह में दो बार से अधिक न नहाएँ। केवल हॉस्पिटलों और स्कूलों को ही पानी की नियमित सप्लाई की जा रही है। 

मानवाधिकार है पेयजल

  • 28 जुलाई, 2010 को संयुक्त राष्ट्र ने पानी को 'मानवाधिकार' घोषित किया था, लेकिन स्वच्छ पेयजल के अभाव और दूषित जल के सेवन से दुनियाभर में प्रतिदिन 2300 लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर में 86% से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित और दूषित पेयजल है।
  • संयुक्त राष्ट्र एजेंडा 2030 के 17 सतत विकास लक्ष्यों के छठे लक्ष्य में 'सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करने' की बात कही गई है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

वैश्विक है जल संकट 

  • केपटाउन के अलावा बीजिंग, मैक्सिको सिटी, यमन की राजधानी सना, नैरोबी, इस्तांबुल, बंगलुरु, कराची, काबुल, साओ पालो और ब्यूनस आयर्स जैसे दुनिया कई बड़े शहर पानी के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जलवायु संकट के बाद विश्व में पानी की कमी इस शताब्दी का सबसे बड़ा संकट है। 
  • इस समय दुनिया की 20% से अधिक आबादी पानी के संकट से जूझ रही है। 
  • अनुमान है कि 2050 तक दुनियाभर के शहरी क्षेत्रों में पानी की मांग में 80% तक इज़ाफा हो सकता है।
  • इस अवधि के दौरान विश्व के 36 शहरों में पीने का पानी नहीं बचेगा अर्थात् हम बेहद तेज़ गति से एक खतरनाक संकट की ओर बढ़ रहे हैं।

भारत में क्या है स्थिति
बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती मांग के चलते भारत में भी पानी का संकट गंभीरतम स्तर पर है, जिस पर यदि तत्काल ध्यान न दिया गया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। 

  • भारत में विश्व की 18% से अधिक आबादी है, लेकिन  विश्व का केवल 4% नवीकरणीय जल संसाधन और विश्व के भूक्षेत्र का 2.4%  भूक्षेत्र है। 
  • देश के लगभग 55% कुएँ पूरी तरह सूख चुके हैं, विगत 10 वर्षों में भूजल स्तर में औसतन 54% की कमी दर्ज की गई है, जलाशय सूख रहे हैं और नदियों में पानी के बहाव में निरंतर कमी आ रही है। 
  • यह स्थिति तब है जबकि देश में प्रतिवर्ष 1170 मिमी. औसतन वर्षा होती है, जो पश्चिम अमेरिका से 6 गुना अधिक है। 
  • भारत के शहरी क्षेत्रों में 970 लाख लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में 70% लोग प्रदूषित पानी पीने को विवश हैं। 
  • 33 करोड़ लोग ऐसी जगह रहने को मजबूर हैं जहाँ हर साल सूखा पड़ता है। 
  • भारत में 85% पानी कृषि, 10% उद्योगों और 5% घरेलू इस्तेमाल में प्रयोग होता है। 
  • देश में पानी की मांग 2030 तक दोगुना हो जाने की संभावना है। 
  • देश में वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घनमीटर थी, जो वर्ष 2000 में 2300 घनमीटर रह गई तथा वर्ष 2025 तक इसके और घटकर 1600 घनमीटर रह जाने का अनुमान है। 
  • देश में होने वाली कुल वर्षा का 5% भी यदि संचित कर लिया जाए तो लगभग 100 करोड़ लोगों की सालभर की पानी की आवश्यकता पूरी की जा सकती है। 

राजधानी की हालत: देश की राजधानी दिल्ली पानी की खपत के मामले में विश्व में सबसे आगे है, यहाँ प्रति व्यक्ति 272 लीटर पानी प्रतिदिन इस्तेमाल में लाया जाता है। पानी की बर्बादी और औद्योगिक खपत इसके सबसे बड़े कारणों में से हैं। अनुमान है कि दिल्ली में बोतलबंद पानी के 10 हज़ार से अधिक अवैध प्लांट काम कर रहे हैं, जबकि केवल 64 प्लांटों के पास पानी की पैकेजिंग का लाइसेंस है। दिल्ली में स्थित बहुराष्ट्रीय शीतल पेय कंपनियों के बॉटलिंग प्लांटों में भी लाखों गैलन पानी की रोज़ खपत होती है। इसके अलावा भूगर्भीय जल का अंधाधुंध दोहन करने में भी दिल्ली सबसे आगे है और पानी के प्रमुख स्रोत यमुना नदी को प्रदूषित करने में भी टॉप पर है। 

संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट-2018

  • संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल विकास रिपोर्ट-2018 में बताया गया है कि दुनियाभर में 3.6 अरब लोग यानी आधी वैश्विक आबादी ऐसी है, जिसे हर साल कम-से-कम एक महीने पानी की किल्लत झेलनी पड़ती है। 
  • यह संख्या 2050 तक 5.7 अरब तक पहुँच सकती है और ये लोग ऐसे क्षेत्र में रह रहे होंगे, जहाँ पानी की आपूर्ति बेहद खराब होगी। 
  • पिछली एक शताब्दी में पानी की खपत छह गुना बढ़ी है और वर्तमान में पानी के इस्तेमाल में प्रतिवर्ष लगभग एक प्रतिशत का इज़ाफा हो जाता है। 
  • जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विकास, उपभोग के तरीके में बदलाव से यह ज़रूरत आने वाले समय में और ज़्यादा बढ़ जाएगी। विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में यह मांग ज़्यादा होगी। 
  • जलवायु परिवर्तन से पानी के वैश्विक चक्र पर भी असर पड़ेगा। इससे वर्षा वाले क्षेत्रों में ज़्यादा पानी बरसेगा व सूखाग्रस्त इलाकों में और सूखा पड़ेगा। जलाशय, नहर, ट्रीटमेंट प्लांट इन नई चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। 
  • रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पानी के बेहतर प्रबंधन के लिये प्रकृति आधारिक उपायों, जैसे-जल संग्रहण, भूमि की नमी बढ़ाने, झीलों और भूजल स्तर बढ़ाने संबंधी प्रयासों पर ज़ोर देना चाहिये। बांध बनाने की अपेक्षा यह बेहतर विकल्प है। 
  • रिपोर्ट में प्रकृति आधारित समाधान के लिये चीन के वर्षा जलचक्रों, भारत में पुनः वनीकरण और यूक्रेन की कृत्रिम झीलों का उदाहरण दिया गया है।
  • देश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पेयजल से जुड़े संकट ने पलायन को बढ़ावा दिया है। 
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले कुछ वर्षों में पानी के संकट के कारण प्रमुखतः मध्य एशिया और अफ्रीका के देशों से विस्थापन करने वालों की तादाद बढ़ी है। 
  • विस्थापित परिवारों ने यूरोप के जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम, पुर्तगाल, इंग्लैण्ड फ्राँस, नीदरलैण्ड, डेनमार्क, इटली और स्विटज़रलैंड के नगरों की ओर रुख किया है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, न्यूयॉर्क शहर में पानी की समस्या से निपटने के लिये जलाशय की रक्षा, वन संरक्षण और वातावरण अनुकूल खेती पर ज़ोर दिया जा रहा है। 
  • इस समस्या से निपटने के लिये चीन स्पंज सिटी प्रोजेक्ट को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें ज़्यादा-से-ज़्यादा वर्षा जल जमीन के भीतर पहुँचाने की कोशिश की जाती है, ताकि भूजल स्तर में वृद्धि हो सके।

(टीम दृष्टि इनपुट)

जल संकट से बचने के प्रमुख उपाय 

  • हरित जल नीति की आवश्यकता 
  • जल, जंगल और ज़मीन का उचित प्रबंधन 
  • कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में पानी का कुशल उपयोग
  • रेन वाटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्यता 

वर्षा जल संग्रहण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) विभिन्न उपयोगों के लिये वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है। इसका उपयोग भूमिगत जलस्रोतों के पुनर्भरण के लिये भी किया जाता है। यह एक कम खर्चीला  पारिस्थितिकी अनुकूल तरीका है जिसके द्वारा जल संरक्षित करने के लिये वर्षा जल को नलकूपों, गड्‌ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल स्तर को और नीचे जाने से रोकता है, फ़्लोराइड और नाइट्रेट्‌स जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है तथा मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • प्रभावी जल संरक्षण नीति 
  • वर्षा जल संचयन की आवश्यकता 
  • नदियों और नालों पर चेक डैम 
  • तालाब और झीलों के पानी का उचित उपयोग
  • प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण 
  • अत्यधिक भूजल दोहन पर रोक
  • भूजल के कृत्रिम रिचार्ज के विभिन्न उपाय 
  • अनियोजित विकास को रोकना  
  • जल को प्रदूषण से मुक्त रखना 
  • सिंचाई के लिये ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणालियों का इस्तेमाल 
  • माइक्रो, अल्ट्रा और नैनो फिल्टर्स के माध्यम से जलशोधन 
  • नैनो तकनीक के ज़रिये भूजल और सतही जल का शोधन 
  • जल संरक्षण हेतु टिकाऊ एवं स्मार्ट प्रबंधन तकनीक का सटीक क्रियान्वयन
  • स्मार्ट प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से पानी की बर्बादी पर नियंत्रण 

मेरा पानी-तेरा पानी
क्या आपने कभी सोचा है कि अगर दुनिया में पानी खत्म हो गया तो क्या होगा? पहले पानी सामुदायिक इस्तेमाल की चीज़ होती थी और लोग पानी के स्रोत के पास जाकर पानी भरते थे, लेकिन अब पानी आपके पास आता है। लेकिन आज पानी की कमी एक वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है और दुनिया का लगभग हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। अमेरिका से लेकर मध्य-पूर्व और भारत से लेकर अफ्रीका के देशों में पानी की समस्या लगातार विकराल होती जा रही है। क्या आपने कभी सोचा है कि अगर दुनिया में पानी खत्म हो गया तो क्या होगा? भविष्य में पानी की कमी का मुद्दा संघर्ष का मुद्दा बन सकता है। अत: इस परिस्थिति से बचने के लिये आवश्यक है कि इस विषय में अभी से उपाय किये जाएँ।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: जल जीवन का आधार है। यह अर्थव्‍यवस्‍था, पारिस्थितिकी तथा मनुष्‍य के लिये अत्‍यंत आवश्‍यक है। आज पानी का मुद्दा जलवायु परिवर्तन और उससे संबंधित पर्यावरणीय चिंताओं के कारण और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। जल का बेहतर और अधिक प्रभावी इस्‍तेमाल भारतीय कृषि और उद्योग के लिये एक चुनौती है। आज शहरी भारत में हर वर्ष 40 अरब लीटर बेकार पानी निकलता है। यह अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण है कि इस पानी के विषाक्त तत्‍वों को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी अपनाई जाए और इसका इस्‍तेमाल सिंचाई और अन्‍य कार्यों के लिये किया जाए। यह किसी भी शहरी योजना कार्यक्रम का अनिवार्य हिस्‍सा होना चाहिये। जल प्रबंधन का ऐसा दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है जो स्‍थानीय लोगों के अनुकूल हो और गाँवों और पड़ोसी समुदायों में ऐसी क्षमता का नि‍र्माण करे कि वे अपने जल संसाधनों का प्रबंधन, उनका आवंटन और मूल्‍यांकन कर सकें। दरअसल, 21वीं सदी की किसी भी नीति में पानी के मूल्‍य की संकल्‍पना के तत्त्व को अनिवार्यतः शामिल किया जाना चाहिये। समय की मांग को देखते हुए जल संसाधनों के प्रबंधन में नए समाधान की ज़रूरत है ताकि जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी की सुरक्षा के लिये उभरती चुनौतियों का सामना किया जा सके।

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