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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

द बिग पिक्चर: समुद्री सुरक्षा की चुनौतियांँ

  • 25 Jun 2021
  • 15 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने 8वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक ( ASEAN Defence Ministers Meeting- ADMM) प्लस को संबोधित किया।

प्रमुख बिंदु: 

  • इस बैठक में भारत द्वारा समुद्री सुरक्षा पर चिंता जताई गई तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था का आह्वान किया गया।
    • भारत ने दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में स्वतंत्र नौवहन का मुद्दा भी उठाया।
  • दक्षिण चीन सागर (South China Sea) के महत्त्वपूर्ण समुद्री गलियारों में चीन का प्रतिगामी व्यवहार (Regressive Behavior) संपूर्ण समुद्री सुरक्षा के समक्ष चुनौती बना है।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र की शांति, स्थिरता, समृद्धि और विकास हेतु समुद्री संचार का शांतिपूर्ण उपयोग महत्त्वपूर्ण है।
  • इस बैठक में आतंकवाद को वैश्विक शांति के समक्ष सबसे बड़ा खतरा बताया गया है।

आसियान, भारत और चीन

  • स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र: भारत द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय प्रभुत्ता एवं सम्मान के लिये एक खुली और समावेशी व्‍यवस्‍था कायम करने, देशों की अखंडता, बातचीत के माध्यम से विवादों का शांतिपूर्ण समाधान और अंतर्राष्ट्रीय नियमों और कानूनों के  पालन पर ज़ोर दिया गया।
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों में नौवहन, स्वतंत्र अबाधित वाणिज्य उड़ानों का समर्थन करता है।
    • भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने साझा दृष्टिकोण के कार्यान्वयन हेतु महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म के रूप में आसियान के नेतृत्व वाले तंत्र के उपयोग का भी समर्थन करता है।
  • चीन और आसियान: चीन संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) में इस दक्षिण चीन सागर पर अपने दावे से संबंधित मामले को हार चुका है, उसने UNCLOS में एक और मामला दर्ज़ किया है तथा पाँच अन्य देशों और चीन के मध्य आचार संहिता (Code of Conduct Negotiations) पर बातचीत चल रही है।
  • चीन और भारत: लद्दाख सीमा पर भारत के साथ चल रहे संघर्ष के कारण दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर भारत की राय को लेकर चीन बहुत अधिक चिंतित नहीं है। भारत द्वारा समुद्री मुद्दों पर चीन पर दबाव बनाए जाने की उम्मीद है।
    • इसके अलावा भारत द्वारा अभी तक दक्षिण चीन सागर में अपने व्यापरिक हितों का विस्तार नहीं किया गया है, इसलिये यह भारत के लिये अमेरिका, जापान या ऑस्ट्रेलिया के समान किसी बड़े खतरे की बात नहीं है।
    • हालाँकि  चीन भारत और अन्य शक्तियों जैसे क्वाड राष्ट्रों (QUAD Nations) के साथ समन्वय में रुचि रखता है क्योंकि इन देशों के मध्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये समावेशी नीतियों को शुरू करने के बारे में बातचीत चल रही है।
  • चीन की परमाणु नीति: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute- SIPRI) के अनुसार,  चीन की निर्धारित परमाणु नीति के तहत चीन के पास लगभग 8-10 परमाणु पन्दुब्बियांँ  हैं जो 10,000  किमी की दूरी तक मिसाइलों को दागने में सक्षम हैं।
    • चीन जवाबी हमले की स्थिति में  ‘फायर ऑन वार्निंग’ (Fire on Warning) नामक एक प्रणाली भी विकसित कर रहा है।
  • दक्षिण चीन सागर का महत्त्व: अपनी भौगलिक स्थिति के कारण दक्षिण चीन सागर रणनीतिक तौर पर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाली एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।
    • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) के अनुसार, वैश्विक नौवहन का एक-तिहाई हिस्सा इससे होकर गुज़रता है, जिससे अरबों का व्यापार होता है जो इसे एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक जल निकाय बनाता है।
    • यह खनिज, हाइड्रोकार्बन, तेल और गैस से भी समृद्ध क्षेत्र है।
  • चीन की रणनीति: चीन हिंद-प्रशांत महासागर को एक ही क्षेत्र के रूप में मान्यता नहीं देता है, लेकिन वह दोनों महासागरों को अपने हितों के प्रमुख क्षेत्रों के रूप में मानता है। हिंद और प्रशांत महासागर हेतु चीन द्वारा दो अलग-अलग रणनीतियांँ अपनाई जाती हैं।
    • पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुख्य हित इसकी एक पूर्ण स्पेक्ट्रम प्रभुत्व रणनीति (Full Spectrum Dominance Strategy) द्वारा संचालित है।
      • यह वह क्षेत्र है जहाँ चीन अपनी भौगलिक सीमा का विस्तार करने हेतु  अधिग्रहण जैसे शब्दों का उपयोग ग्रेज़ोन संचालन (Grayzone Operations) के द्वारा करता है।
    • हालाँकि हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और लाभ को धीरे-धीरे बढ़ाने के लिये चीन हितधारक शब्द का उपयोग करता है।
    • चीन न केवल सैन्य बल से बल्कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) के ज़रिये भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
    • हालाँकि भारत के संवेदनशील क्षेत्रों से चीन खुद को दूर रख रहा है, क्योंकि वह भारत को कोई भी ऐसा मौका नहीं देना चाहता है जिस पर भारत द्वारा आपत्ति उठाई जाए और यदि अगर ऐसा होता भी है  तो चीन चाहता है कि आक्रामक रुख भारत द्वारा ही अपनाया जाए न कि चीन द्वारा।

चीन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया:

  • नाटो:  उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) के देश चीन द्वारा ग्लोबल कॉमन्स (Global Commons) को स्थापित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता के उल्लंघन से नाखुश हैं।
    • हाल ही में पहली बार आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन में चीन को स्पष्ट रूप से सुरक्षा के संदर्भ में एक जोखिम के रूप में वर्णित किया है।
  • क्वाड: चीन ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है। कई जापानी उद्योगों के चीन में अपने विनिर्माण आधार स्थापित हैं। बहुत सारे अमेरिकी उद्योग चीनी कच्चे माल और आपूर्ति शृंखलाओं से भी जुड़े हुए हैं।
    • इसके बावजूद QUAD के सदस्य ऑस्ट्रेलिया और जापान ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि चीन उनके लिये एक खतरा है क्योंकि चीन ने ऑस्ट्रेलिया को मिसाइल हमले की धमकी दी है।
      • ऑस्ट्रेलिया अब चीन को अपने उत्तरी हिस्से, डार्विन बेस से हटाने की कोशिश कर रहा है।
  • यूरोपीय संघ और ब्रिटेन: यूरोपीय संघ के देशों (EU countries) और यूनाइटेड किंगडम के चीन के साथ पुराने मैत्रीपूर्ण संबंध होने के बावज़ूद वे चीन को वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिये खतरा मानते हैं।
  • G7 देश: G7 राष्ट्र (G7 Nations) जिस समस्या का सामना कर रहे हैं, उसके दो पहलू हैं:
    • पहला, दक्षिण चीन सागर और ताइवान (Taiwan) के संबंध में चीनी सैन्य आक्रमण।
      • ताइवान के हवाई क्षेत्र में चीन के विमान और लड़ाकू विमानों की घुसपैठ हो चुकी है। चीन अपने पुनः एकीकरण या ताइवान पर ज़बरन कब्ज़ा करने हेतु दबाव बना रहा है।
    • दूसरा, वैश्विक सुधार का मुद्दा है। वैश्विक मंदी जिससे केवल चीन ने ही वापसी की है, के कारण संघर्षों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया है।
      • बड़े देश चीन को टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं। G7 देशों की बिल्ड बैक बेटर (Build Back Better) पहल का उद्देश्य चीन के ट्रिलियन-डॉलर के बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर पहल को प्रतिसंतुलित करना है।
    • रूस मध्य एशिया में चीन के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव से भी चिंतित है क्योंकि यह इस क्षेत्र में रूस के मज़बूत प्रभाव को प्रभावित करेगा।

आगे की राह: 

  • विकसित लोकतांत्रिक राष्ट्रों की भूमिका: अमेरिका या रूस जैसे देशों को विश्व व्यवस्था में चीन को पीछे छोड़ना होगा जो कि एक सत्तावादी देश (Authoritarian country) है।
    •  शिनजियांग (Xinjiang), ताइवान, तिब्बत और दक्षिण चीन सागर के मुद्दे विश्व शांति के लिये एक बड़ा खतरा है।
  • भारत का बहुआयामी दृष्टिकोण: भारत को चीन का मुकाबला करने के लिये न केवल एक मज़बूत सैन्य रणनीति ज़रूरी है बल्कि  इसे बुनियादी ढांँचे के घटक, प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलू सहित एक बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाने की भी आवश्यकता है।
    • हिंद महासागर में भारत को अपनी प्रमुखता और मुखरता बनाए रखनी चाहिये तथा चीन को उन क्षेत्रों में काम करने से रोकना चाहिये जो भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत को प्रशांत क्षेत्र पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिये अपने सहयोगियों के साथ सहयोग करने तथा संबंधों को सुधरने की आवश्यकता है क्योंकि यह वह  स्थान है जहाँ चीन की स्थिति अत्यधिक अस्थिर और संवेदनशील है।
    • भारत की सामुद्रिक नीतियों का चीन की नीतियों के साथ तालमेल स्थापित करना होगा।
  • चीन के बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं के स्तर से तालमेल: अमेरिका के विरोध के बावज़ूद चीन इज़रायल में एक बंदरगाह बनाने की योजना बना रहा है।
    • चीन का एक बंदरगाह अफ्रीका के जिबूती (Djibouti) तथा एक पाकिस्तान के  ग्वादर (Gwadar) जो ईरान के भी करीब है, में स्थापित हैं तथा  बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के ज़रिये चीन की पहुँच यूरोप में भी है।
    • भारत की रणनीति को चीन के स्तर के उस प्रयास से मेल खाना होगा जो वह अफ्रीकी देशों में बुनियादी ढांँचे के निर्माण में कर रहा है।
  • सामूहिक रूप से आतंकवाद का मुकाबला: आतंकवादियों के मध्य नेटवर्किंग का स्तर अब काफी खतरनाक हो चुका है।
    • केवल सामूहिक सहयोग से ही आतंकी संगठन और उनके नेटवर्क पूरी तरह से बाधित हो सकते हैं तथा अपराधियों की पहचान करके उन्हें आतंकवादी घटनाओं के प्रति जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
    • आतंकवाद को बढ़ावा देने, समर्थन करने और वित्तपोषित करने तथा आतंकवादियों को पनाह देने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी का उन्नयन करना: रैनसमवेयर (Ransomware) वानाक्राई (Wannacry) हमलों तथा क्रिप्टोक्यूरेंसी की चोरी जैसे साइबर खतरों के मुद्दे एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण का आह्वान करते हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों द्वारा निर्देशित हो तथा एक शासन संरचना के साथ खुला और समावेशी हो, के साथ साइबरस्पेस के भविष्य को संचालित करे।
    • वर्तमान वैश्विक चुनौतियों का समाधान उन पुरानी प्रणालियों से नहीं किया जा सकता है जिन्हें अतीत की समस्याओं के समाधान के तौर पर डिज़ाइन किया गया था।

निष्कर्ष: 

  • हिंद-प्रशांत और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों से संबंधित प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ भारत और अन्य समान विचारधारा वाले देशों को समन्वित तरीके से कार्य करना होगा।
  • दक्षिण चीन सागर व्यापक चर्चा का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। हालाँकि भारत सहित कई देश अभी भी चीन से सीधे तौर पर भिड़ने के इच्छुक नहीं हैं।
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