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सुरक्षा

देश देशांतर - भारत और आतंकवाद

  • 01 Dec 2018
  • 19 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि


26 नवंबर, 2008 की रात एकाएक मुंबई गोलियों की आवाज़ से दहल उठी। हमलावरों ने मुंबई के दो पाँच सितारा होटलों, रेलवे स्टेशन और एक यहूदी केंद्र को अपना निशाना बनाया। शुरू में किसी को अंदाज़ा तक नहीं था कि यह हमला इतना बड़ा है लेकिन धीरे-धीरे इस हमले का अंदाज़ा लगाया गया।

  • 24 नवंबर, 2008 की रात में ही आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे समेत मुंबई पुलिस और एनएसजी के कमांडो सहित उच्चाधिकारियों ने मोर्चा संभाला और इस हमले में कई अधिकारियों ने अपनी जान गवाई।
  • पोल कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से शुरू हुआ आतंक का यह तांडव ताजमहल होटल पर जाकर ख़त्म हुआ।
  • इस बीच सुरक्षा-कर्मियों को इस पर काबू पाने या ख़त्म करने में 60 से भी ज़्यादा घंटे लगे। इस पूरे ऑपरेशन में 164 लोगों ने अपनी जान गवाई।

भारत में आतंकवाद कहाँ से, कब और क्यों पनपा?

  • 1979 में पाकिस्तान ने एक नीति अपनाई कि वह कश्मीर में आतंकवाद का सहारा लेगा और उसकी राजनीतिक भाषा थी blitze india अर्थात् भारत के टुकड़े करो।
  • इसके लिये पाकिस्तान ने दो आतंकवादी संस्थाएँ बनाई आईएसआई ट्रेंड और आइएसआई कंट्रोल। इन्हें इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस भी कहते हैं।
  • इंटर सर्विसेज़ इंटेलीजेंट एक संस्था थी लश्कर-ए-तैयबा जो अभी भी है और दूसरी जो संस्था बनाई गई थी उसका नाम है जैश-ए-मोहम्मद।
  • इन दोनों संस्थाओं को कश्मीर में और कश्मीर के बाहर आतंकवाद फ़ैलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई और साथ ही उन्हें सभी तरह की मदद दी गई।
  • इसमें धर्म का सहारा लिया गया और जो दिशा-निर्देश दिये गए उसे ‘terrorism is a duty and assassination is sunna’ कहा गया। सुन्ना का अर्थ ‘the way of profit’ है। इस प्रकार आतंकवाद को धर्म का जामा पहनाया गया।
  • उधर अफगानिस्तान में रशियन ताकतें प्रभावी हो गई थीं। 1980 में अमेरिका को रूस को नियंत्रित करना था, पाकिस्तान उसका सहयोगी देश था और वे नहीं चाहते थे कि रूस आगे बढ़े। वहाँ उनके संगठन CIA ने रेडिकल इस्लामिक ग्रुप की मदद ली। तथा वहाँ भी दो संस्थाएँ बनाई। एक का नाम था अलकायदा और दूसरे का नाम था तालिबान।
  • 26/11 की घटना को इस बात से समझना होगा कि ये चारों संस्थाएँ जिसमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के समूह भी शामिल थे, एक-दूसरे से मिले हुए थे। उनका मकसद आतंकवाद का सहारा लेकर इस्लाम को बढ़ाना था।
    · इसलिये उन्होंने सबसे पहले सांस्कृतिक केंद्रों पर हमला शुरू किया और मार्च 2001 में बामियान बुद्धा का नाश किया।
  • इनका दूसरा मकसद था अर्थव्यवस्था पर हमला जो 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और फिर पेंटागन पर हमले के रूप में दिखाई दिया।
  • तीसरी घटना 2001 में भारतीय संसद पर हमले के रूप में दिखाई दी। इसप्रकार इनका मकसद व्यापार, वाणिज्य, इनोवेशन, सांस्कृतिक संस्थानों, सिम्बल्स तथा लोकतंत्र पर हमला करना बन गया।
  • मुंबई में आतंकवादी हमले का मकसद भारत की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करना था क्योंकि मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है।

अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय क्या है?

  • भारत वैश्विक आतंकवाद का मुकाबला करने के प्रयासों के प्रति वचनबद्ध है और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के प्रति 'ज़ीरोरो टॉलरेंस' की नीति का लगातार समर्थन करता रहा है।
  • इस संदर्भ में भारत ने 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में "अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक अभिसमय" (The Comprehensive Convention on International Terrorism-CCIT) को स्वीकार किये जाने का प्रस्ताव रखा था।
  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र के आयोजन में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) की मांग को दोहराया।
  • भारत सीमापार आतंकवाद से पीड़ित रहा है। इसलिये भारत ने प्रमुख वैश्विक शक्तियों से पहले वैश्विक शांति और सुरक्षा के मामले को संज्ञान में लिया।
  • CCIT एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है जो आतंकवादी समूहों को धन और सुरक्षित आश्रय नहीं देने के लिये सभी हस्ताक्षरकर्त्ता देशों को बाध्यकारी बनाता है।
  • 15 दिसंबर, 1997 को आतंकवादी बम विस्फोटों के दमन के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय को अपनाया गया। 9 दिसंबर, 1999 को आतंकवाद के वित्तपोषण के खात्मे के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय को अपनाया गया तथा परमाणु आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों के दमन के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय को 13 अप्रैल, 2005 को अपनाया गया।
  • वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के मुकाबले के लिये तथा कानूनी पहलुओं पर आम सहमति बनाने हेतु 6 तदर्थ समितियों का गठन किया गया है जिनके बीच अभी भी इस विषय पर विचार-विमर्श चल रहा है।
  • अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आम राय नहीं बन पाई है जिसमें आतंकवाद की परिभाषा पर आम सहमति न बन पाना भी एक मुख्य मुद्दा है।
  • आतंकवाद की परिभाषा तय करना कभी भी आसान नहीं रहा है।1937 में यूरोप में आतंकवादी हमले और एक लीडर की हत्या के बाद लीग ऑफ़ नेशन ने कन्वेंशन ऑन टेररिज्म पर एक ट्रीटी को अडॉप्ट किया।
  • लेकिन इस ट्रीटी को देशों का अनुसमर्थन नहीं मिल सका तथा न ही यह लागू हो सकी। अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय तो है लेकिन आतंकवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।

CCIT के उद्देश्य

  • आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा के लिये यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली (UNGA) के सभी 193 सदस्य इस आपराधिक कानून को अपनाएंगे।
  • सभी आतंकवादी समूहों पर प्रतिबंध लगाना और आतंकवादी शिविरों को बंद करना।
  • विशेष कानूनों के तहत सभी आतंकवादियों पर मुकदमा चलाना।
  • वैश्विक स्तर पर सीमापार आतंकवाद को प्रत्यर्पण योग्य अपराध घोषित करना।

अभिसमय के अनुसार आतंकवाद की परिभाषा


इस अभिसमय के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जिसके द्वारा किये जाने वाले अपराध का उद्देश्य लोगों को डराना या सरकार या अंतर्राष्ट्रीय संगठन को किसी भी कार्य को करने से रोकना या ऐसा कार्य करने के लिये मजबूर करना हो, जिसके कारण-

  1. किसी भी व्यक्ति की मौत या गंभीर शारीरिक चोट, या
  2. सार्वजनिक उपयोग की जगह, कोई सरकारी सुविधा, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, अवसंरचना या पर्यावरण सहित सार्वजनिक या निजी संपत्ति की क्षति, या
  3. संपत्ति, स्थान, सुविधाओं या प्रणालियों को नुकसान पहुँचता हो जिसके परिणामस्वरूप बड़ा आर्थिक नुकसान हो, को आतंकवाद की परिभाषा के तहत माना जाएगा।

आतंकवाद की परिभाषा के अनुसमर्थन पर गतिरोध का कारण

  • अमेरिका शांतिकाल के दौरान राज्य की सैन्य ताकतों द्वारा किये गए कृत्यों को इससे बाहर रखने का मसौदा चाहता था। अमेरिका खासतौर पर अफगानिस्तान और इराक में किये गए हस्तक्षेपों के संबंध में अपने सैन्य बलों पर CCIT के अनुप्रयोग को लेकर चिंतित है।
  • इस्लामिक देशों का संगठन (OIC) राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों को CCIT के दायरे से बाहर रखना चाहता है। राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों से OIC का तात्पर्य खासकर इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से है।
  • यह तर्क दिया गया था कि स्वतंत्रता आंदोलनों तथा आतंकवाद के कृत्यों को अलग करने की आवश्यकता है ताकि वैध आंदोलनों को आतंकवाद के आपराधिक कृत्यों के रूप में वर्गीकृत न किया जा सके।
  • लातिन अमेरिकी देश ‘राज्य आतंकवाद (State Terrorism)’ को तथा राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के उल्लंघन को भी CCIT में शामिल करना चाहते थे।
  • आतंकवाद की यह परिभाषा विवादास्पद नहीं है। विवाद इस परिभाषा के अनुप्रयोग को लेकर है। क्या यह परिभाषा किसी राज्य के सशस्त्र बलों और स्वतंत्रता आंदोलनों पर भी लागू होगी?

भारत में आतंकवाद को रोकने के लिये क्या बड़े बदलाव किये गए हैं?

  • 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन किया गया है।
  • मुख्य रूप से राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA), राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID) के निर्माण के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) में व्यापक सुधार किया गया है।
  • केंद्र और राज्य स्तर पर खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के बीच करीबी और प्रभावी समन्वय बढ़ाया गया है।
  • खुफिया और सुरक्षा एजेंसियाँ ​​संभावित आईएसआईएस भर्ती की पहचान करने के लिये ऐसे मामलों पर अपनी निगाह बनाए हुए हैं और यदि आवश्यक हो तो आगे की कार्रवाई भी कर रहे हैं।
  • आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की शक्ति में बढ़ोतरी की है।
  • चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और हैदराबाद में एनएसजी हब स्थापित किये गए हैं।
  • किसी भी आपात स्थिति में NSG कर्मियों के लिये विमान मांगने की शक्ति डीजी, एनएसजी को दी गई है।
  • बढ़ते आप्रवासन को रोकने के लिये सरकार ने कड़े कदम उठाए हैं।
  • सीमा की घेराबंदी, फ्लड लाइट, आधुनिक और उच्च तकनीकी निगरानी उपकरणों की तैनाती की गई है।
  • इंटेलिजेंस सेटअप को अपग्रेड किया गया है तथा तटीय सुरक्षा को मज़बूत किया गया है।
  • 2008 और 2012 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन कर आतंकवाद से निपटने के लिये दंडात्मक प्रावधानों को और कठोर किया गया है।
  • सरकार ने नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) की स्थापना आतंकवाद और आंतरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये की है जिसका उद्देश्य खुफिया जानकारी एकत्र कर उसे डेटाबेस से जोड़ना है।
  • आतंकवाद के प्रति अपनी जीरो टॉलरेंस नीति के हिस्से के रूप में भारत ने विभिन्न बहुपक्षीय तथा द्विपक्षीय मंचों पर आतंकवाद के वित्तपोषण सहित क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद के मुद्दों को उठाया है।

क्या बड़े कदम उठाए जाने की ज़रूरत है?

  • सभी सुरक्षा एजेंसियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करते हुए स्वतंत्र बनाए जाने की ज़रूरत है।
  • पूर्वोत्तर में आतंकी समस्याओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि हमारा ध्यान पाकिस्तान बॉर्डर को सुरक्षित रखने में ज़्यादा है। यहाँ पर सैटेलाइट तथा अन्य तकनीकी उपकरण तैनात किये गए हैं लेकिन पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं पर ध्यान नहीं दिया गया है।
  • बांग्लादेश का आतंकवादी संगठन जमातुल मुजाहिदीन पूर्वोत्तर में सक्रिय हो रहा है। असम, नगालैंड तथा मणिपुर का बॉर्डर अभी तक खुला हुआ है जहाँ से ड्रग्स की एंट्री तेज़ी के साथ हो रही है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • पूर्वोत्तर में समुद्री सीमा अधिक है। पंजाब के पठानकोट में जो आतंकवादी हमला हुआ था उसमें आतंकवादियों ने नदी मार्ग से भारत में प्रवेश किया था।
  • नदी के ऊपर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फेंसिंग तथा नदी के नीचे सेंसर लगाने का जो काम होना था वह अभी तक नहीं हो सका है जिस पर गौर किये जाने की ज़रूरत है।
  • फाइनेंसियल इंटेलिजेंस अर्थात् आतंकवाद के पोषण के लिये पैसे, इक्विपमेंट कहाँ से आते हैं, इस पर भी नज़र रखने की ज़रूरत है।
  • भारत के लैंड बॉर्डर का सर्किल 15,000 किलोमीटर है और कोस्टल सर्किल 7,500 किलोमीटर से अधिक है, ऐसी स्थिति में जब तक टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन नहीं होगा तब तक बॉर्डर सुरक्षित नहीं हो सकता।
  • मरीन पुलिस अभी भी काफी कमज़ोर है, न तो उनके पास नाव है और न ही मैनपावर या उपकरण।

नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर

  • गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने हाल ही में राज्यसभा में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सरकार को एकीकृत काउंटर आतंकवाद एजेंसी के रूप में एक नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (NCTC) के गठन पर तुरंत विचार करना चाहिये।
  • पैनल ने गृह मंत्रालय से इस मुद्दे पर सभी हितधारकों से सर्वसम्मति बनाने में मुख्य भूमिका निभाने के लिये भी कहा है।
  • इसमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA), राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID) के निर्माण के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) में सुधार को भी शामिल किया गया है।
  • एनसीटीसी मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के तहत एक खुफिया सूचनाएँ साझा करने वाला "फ्यूजन सेंटर" के कार्य करने प्रस्ताव था तथा इसके ऑपरेटरों को पूरे भारत में गिरफ्तारी करने की शक्ति देने की बात की गई थी।
  • लेकिन सुरक्षा डोमेन में संस्था निर्माण के भारत के निराशाजनक रिकॉर्ड के अनुरूप, NCTC 26/11 सुधार प्रक्रिया के बाद यह सबसे बड़ी निराशा रही है।
  • प्रस्तावित NCTC का उद्देश्य आतंकवादी हमलों को रोकना, जवाबी कार्यवाही करना था, पिछले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) शासन के दौरान केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर राजनीतिक कड़वाहट के कारण यह मूर्तरूप नहीं ले सका।
  • विशेष रूप से गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, बिहार, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के गैर-कॉन्ग्रेस शासित राज्यों ने कथिततौर पर प्रस्ताव का विरोध किया था। उनकी मुख्य आपत्ति संघवाद के सिद्धांत के संभावित उल्लंघन की आशंका को लेकर है क्योंकि उन्होंने तर्क दिया कि NCTC राज्यों की शक्तियों का अतिक्रमण करेगा।
  • भारत आतंकवाद, सीमापार के साथ-साथ स्थानीय रूप से कट्टरपंथी जिहादियों से लगातार खतरे का सामना कर रहा है।
  • लेकिन 26/11 की घटना के लगभग एक दशक बीत जाने के बाद NCTC पर केंद्र सरकार किसी खास नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है।

निष्कर्ष


पिछले कई दशकों से आतंकवाद पर काबू पाने के लिये अनेक कदम उठाए गए हैं तथा और भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी कई बार आतंकी गिरोह सुरक्षा बलों पर हमले कर अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं। यह सच है कि पिछले कुछ समय से खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान के मोर्चे पर अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल हुआ है और इसमें स्थानीय आबादी को भी सहयोग की भूमिका में लाने की कोशिश की गई है जिससे आतंकवाद की घटनाओं में कमी आई है। विडंबना यह भी है कि भारत की ओर से लगातार चेतावनी और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर फटकार के बावजूद पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाता।

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