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संसद टीवी संवाद

भारतीय राजव्यवस्था

राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण

  • 18 Feb 2020
  • 16 min read

संदर्भ:

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के संदर्भ में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने 14 फरवरी, 2020 को एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायालय ने सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की सूची दल की वेबसाइट के साथ सोशल मीडिया व अन्य सार्वजनिक मंचों पर साझा करने का निर्देश दिया है। राजनीतिक दलों को ऐसे उम्मीदवारों की जानकारी सार्वजनिक कर, उम्मीदवार के चयन के 72 घंटों के अंदर इस संदर्भ में चुनाव आयोग को सूचित करना होगा। यदि कोई राजनीतिक दल सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करता है तो इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा और चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलों पर कार्रवाई भी कर सकता है।

राजनीतिक अपराधीकरण पर नियंत्रण:

सर्वोच्च न्यायालय ने यह कदम राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण, चुनावी पारदर्शिता और जनता के प्रति राजनीतिक दलों के उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने के लिये उठाया है।

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-

  • सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार, राजनीतिक दलों (केंद्र व राज्य स्तर पर) को अपने चयनित उम्मीदवारों पर चल रहे आपराधिक मामलों की विस्तृत जानकारी अपने वेबसाइट पर साझा करनी होगी।
  • इसमें अपराध की प्रकृति, चार्टशीट, संबंधित न्यायालय का नाम और केस नंबर आदि जानकारियाँ शामिल हैं।
  • आदेश के अनुसार, प्रत्याशी पर दर्ज मामलों की विस्तृत जानकारी को एक राष्ट्रीय और एक स्थानीय भाषा के अखबार में प्रकाशित करने के साथ दल के आधिकारिक सोशल मीडिया खातों जैसे-फेसबुक, ट्विटर आदि पर भी साझा करना होगा।
  • राजनीतिक दलों को प्रत्याशी पर चल रहे आपराधिक मामलों से जुड़ी समस्त जानकारियाँ प्रत्याशी के चयन के 48 घंटों के अंदर या नामांकन भरने की पहली तिथि से दो सप्ताह पूर्व (जो भी पहले हो) ही सार्वजानिक करनी होगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत राजनीतिक दलों को प्रत्याशी के चयन के 72 घंटों के अंदर न्यायालय के आदेशों के अनुपालन संबंधी रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपना अनिवार्य होगा। ऐसा न करने की स्थिति में इसे न्यायालय के आदेश की अवमानना मानते हुए उन दलों पर कार्रवाई की जा सकती है।
  • इसके साथ ही राजनीतिक दलों को संबंधित प्रत्याशी के चयन का कारण बताना होगा और यह भी बताना होगा कि संबंधित प्रत्याशी के स्थान पर बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले किसी अन्य व्यक्ति का चयन क्यों नहीं किया जा सका।
  • न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि प्रत्याशी के रूप में चयन का कारण व्यक्ति की योग्यता, उपलब्धियों आदि के संदर्भ में होना चाहिये न कि उसकी चुनाव जीतने की क्षमता (Winnability) के संदर्भ में।
  • सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला केंद्र और राज्य के सभी राजनीतिक दलों पर लागू होगा।
  • ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश वर्ष 2018 के अपने ही एक फैसले पर दाखिल एक अवमानना याचिका (Contempt Petition) की सुनवाई के बाद दिया है।
    • वर्ष 2018 के अपने फैसले में न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ’ (Public Interest Foundation vs Union of India) मामले में सभी राजनीतिक दलों को अपने प्रत्याशियों पर दर्ज आपराधिक मामलों की विस्तृत जानकारी को अपनी वेबसाइट के साथ समाचार-पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जारी करने के आदेश दिये थे।

आपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या :

देश की स्वतंत्रता के समय ब्रितानी शासन द्वारा अनेक भारतीय नेताओं पर कई झूठे आपराधिक मामले दर्ज किये गए थे, अतः उस समय आपराधिक पृष्ठभूमि को चुनाव में भाग लेने की बाधा के तौर पर नहीं लिया गया। परंतु देश की स्वतंत्रता के बाद से ही राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के संदर्भ में प्रश्न उठते रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों में इनमें भारी वृद्धि देखी गई है।

न्यायालय में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार-

  • वर्ष 2004 में संसद के 24% सदस्यों पर आपराधिक मामले लंबित थे।
  • वर्ष 2009 में संसद के कुल सदस्यों में से 30% सदस्यों पर आपराधिक मामले लंबित थे, जबकि वर्ष 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 30% हो गई।
  • वर्ष 2019 के आम चुनावों से संसद में चुनकर आए कुल सदस्यों में से 43% पर आपराधिक मामले दर्ज थे।

भारतीय चुनावी तंत्र में सुधार के पूर्व प्रयास:

भारतीय राजनीति में जनप्रतिनिधियों के चुनावों में पारदर्शिता और जनता के प्रति उनके उत्तरदायित्वों को पुनः रेखांकित करने के लिये लंबे समय से चुनावी तंत्र में सुधारों की मांग उठती रही है। इसे देखते हुए समय-समय पर चुनावी प्रक्रिया में सुधारों के लिये विभिन्न समितियों और आयोगों का गठन किया गया है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • दिनेश गोस्वामी समिति (1990): समिति ने अपनी रिपोर्ट में चुनावी खर्च पर नियंत्रण, कंपनियों द्वारा दिये गए चंदे पर रोक, चुनावों में राज्य की भूमिका और इसके साथ ही चुनावों के अन्य पहलुओं जैसे- प्रचार का समय, आयु सीमा, चुनाव आयोग के अधिकार आदि के संबंध में निगरानी और प्रावधानों की सिफारिश की।
  • वोहरा समिति (1993): वोहरा समिति ने राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण और उनके राजनीतिक संरक्षण पर चिंता व्यक्त करते हुए इस समस्या के समाधान के लिये विभिन्न अपराध नियंत्रण संस्थाओं (सीबीआई, इनकम टैक्स, नारकोटिक्स आदि) की सहायता लेने की सलाह दी।
  • इन्द्रजीत गुप्ता समिति (1998): गुप्ता समिति ने अपनी रिपोर्ट में राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराध को कम करने के लिये राज्य द्वारा चुनावी खर्च वहन किये जाने की सिफारिश की।
  • विधि आयोग रिपोर्ट (1999): वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने का समर्थन किया था।
  • एमएन वैंकट चलैया समिति (2000-02)- विधि आयोग, चुनाव आयोग, संविधान की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट।
  • वांचू समिति (प्रत्यक्ष कर जाँच समिति)- वांचू समिति ने राजनीतिक चंदे के विनियमन के साथ राजनीतिक दलों की अन्य आर्थिक गतिविधियों पर अपनी रिपोर्ट जारी।

चुनावी सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण फैसले:

  • अक्तूबर 1974 में सर्वोच्च न्यायालय ने कँवर लाल गुप्ता बनाम अमर नाथ चावला व अन्य मामले में प्रत्याशी के प्रचार पर होने वाले किसी भी प्रकार के खर्च (पार्टी प्रायोजक या किसी समर्थक द्वारा) को प्रत्याशी के लिये निर्धारित सीमा में जोड़ने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 1999 में दाखिल भारत सरकार बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म मामले पर वर्ष 2002 में फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र, राज्य अथवा स्थानीय चुनावी नामांकन भरने के दौरान प्रत्याशियों को अपनी आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि से संबंधित विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2013 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ नामक संस्था द्वारा दाखिल एक याचिका पर सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी मतपत्र या ईवीएम (EVM) में नोटा (none of the above-NOTA) को शामिल करने का आदेश दिया।
  • वर्ष 2017 के एक महत्त्वपूर्ण फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रत्याशियों के लिये अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित जानकारी सार्वजानिक करने की अनिवार्यता को दोहराते हुए, राजनीतिज्ञों पर चल रहे आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना करने का आदेश दिया।

राजनीतिक अपराधीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का प्रभाव:

  • चुनावी पारदर्शिता में वृद्धि: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद राजनीतिक दलों को प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने के लिये बाध्य किया जा सकेगा और ऐसा न करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी। इससे राजनीति के अपराधीकरण में कमी के साथ ही चुनावी पारदर्शिता में वृद्धि होगी।
  • राजनीतिक दलों पर नैतिक दबाव: राजनीतिक सुधारों के लिये सभी हितधारकों का सहयोग होना अतिआवश्यक है, न्यायालय के इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों पर नैतिक दबाव बढ़ेगा और राजनीतिक दल ऐसे किसी व्यक्ति के चयन से बचेंगे जिससे सार्वजानिक मंचों पर दल की छवि धूमिल हो।
  • जागरूक मतदान (Informed Voting): सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद राजनीतिक दलों को न सिर्फ आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी बल्कि इस संबंध में कम-से-कम तीन बार स्थानीय भाषा के समाचार-पत्र और राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के साथ सोशल मीडिया आदि पर स्पष्टीकरण देना होगा। इस व्यवस्था से मतदाताओं के बीच राजनीतिक दलों और स्थानीय प्रत्याशी के बारे में जागरूकता बढ़ेगी और वे इसके आधार पर बेहतर उम्मीदवार का चयन कर सकेंगे।

चुनौतियाँ:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राजनीति में शामिल आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों पर प्रत्यक्ष कार्रवाई के बजाय यह निर्णय राजनीतिक दलों और जनता के विवेक पर छोड़ दिया है। ऐसे में न्यायालय के आदेश से राजनीति में जल्दी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती।
  • सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में चुनाव आयोग को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों पर कार्रवाई के स्थान पर उनकी निगरानी करने और इस संबंध में नियमानुसार न्यायालय को सूचित करने के निर्देश दिये गए हैं। यह व्यवस्था राजनीतिक अपराधियों को लेकर पहले से ही लंबी न्यायिक प्रक्रिया पर समाधान प्रदान करने की बजाय उसे और अधिक जटिल बनाती है।
  • राजनैतिक पारदर्शिता के संदर्भ में न्यायालय का यह आदेश तभी प्रभावी हो सकता है जब राजनैतिक दल इस संदर्भ में नियमों का सही पालन करें और जनहित का ध्यान रखते हुए सही जानकारी दें। परंतु गलत/झूठे समाचारों (Fake News) के इस दौर में जनता तक सही जानकारी को पहुँचाना बहुत ही कठिन है, अतः न्यायालय के आदेश से राजनीति में बड़े सुधारों की उम्मीद नहीं की जा सकती।

आगे की राह:

  • सर्वोच्च न्यायालय को राजनीतिक दलों के आतंरिक मामलों में सुधार करने की बजाय अपराधियों को राजनीति से दूर रखने के लिये स्पष्ट एवं कड़े नियम निर्धारित करने चाहिये।
  • राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराध को रोकने के लिए चुनाव आयोग व अन्य नियामकों को कार्रवाई के लिए आवश्यक अधिकार प्रदान प्रदान करने चाहिए।
  • राजनीति में अपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों पर नियंत्रण में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान राजनीतिक दलों और जनता का है। राजनीतिक दलों को जनता के प्रति अपने उत्तरदयित्त्वों का पालन करते हुए आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों का चयन न कर राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में योगदान देना चाहिये।
  • इसके साथ ही यह अतिआवश्यक है कि जनता भी बिना किसी लालच या पूर्वाग्रह के अपने प्रतिनिधि के चुनाव उसकी योग्यता के आधार पर करे।
  • किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में बल प्रयोग द्वारा लंबे समय के लिये कोई भी सकारात्मक परिवर्तन नहीं लाया जा सकता, बल्कि इसके लिये जनता का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना और सरकार में जनहित से प्रेरित इच्छाशक्ति का होना बहुत ही आवश्यक है।

अभ्यास प्रश्न: बीते कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई है। राजनीति के अपराधीकरण के मुख्य कारणों पर चर्चा करते हुए इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय और सरकारों की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

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