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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कितना लाभप्रद होगा सरदार सरोवर बांध: एक विवेचना

  • 22 Sep 2017
  • 12 min read

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्म-दिवस पर सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन किया और इसके साथ ही बांध के फायदे और नुकसान को लेकर बहस शुरू हो गई। आज वाद-प्रतिवाद और संवाद के माध्यम से सरदार सरोवर बांध की उपयोगिता को लेकर उठ रहे तमाम सवालों पर चर्चा करेंगे।

वाद

  • सरदार सरोवर बांध के संबंध में नर्मदा जल विवाद के समय से ही यह तर्क दिया जा रहा है कि कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात के सूखा-प्रवण क्षेत्रों को राहत पहुँचाने के लिये इसका कोई विकल्प नहीं है।
  • विडम्बना यह है कि इन क्षेत्रों में नहरों का निर्माण अभी भी अधूरा है, जबकि समृद्ध और राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक रूप से शक्तिशाली केंद्रीय गुजरात क्षेत्र (पूर्वी आदिवासी बेल्ट को छोड़कर) में नहरों के नेटवर्क का निर्माण बहुत पहले ही पूरा कर लिया गया है। अतः यह परियोजना अभी भी अपने वास्तविक लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है।
  • 1980 के दशक के अंत में जब परियोजना को मंज़ूरी दे दी गई थी, तो उस समय के अनुमानों पर आधारित ‘सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव’ (Social and environmental impacts) से संबंधित परिणामों में बदलाव की पर्याप्त संभावना है। विदित हो कि इस प्रोजेक्ट से सर्वाधिक प्रभावित लोगों के पुनर्वास का कार्य 80 प्रतिशत से अधिक पूरा नहीं हो पाया है।
  • नर्मदा नदी का 150 किलोमीटर का अनुप्रवाह क्षेत्र जो कि अब प्रायः सूखा ही रहेगा, के संबंध में कहा गया है कि 600 क्यूसेक पानी नदी के अनुप्रवाह से कई किलोमीटर दूर छोड़ा जाएगा, लेकिन ऐसा प्रमाणित करने के लिये ठोस प्रमाण नहीं दिये गए हैं।
  • दरअसल, यह कदम किसी भी प्रमाणिक आकलन का नतीजा नहीं है और यह प्रवेश में बढ़ते लवणता को रोकने के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • नर्मदा नदी के मुहाने पर निवास करने वाले 10,000 परिवारों की आजीविका नष्ट हो जाएगी, जबकि कोई भी उनके पुनर्वास और मुवावज़े की बात नहीं कर रहा है।
  • विदित हो कि इस बांध को इसकी पूरी क्षमता के अनुरूप भरा ही नहीं जा सकता। दरअसल, इस बांध के जलाशय को पूरी तरह से भरने के लिये लगातार दो मानसून का जल एकत्रित करना होगा और वर्तमान में नर्मदा नदी के जल से होने वाले बिजली उत्पादन को 95 प्रतिशत तक कम करना होगा।
  • यह परियोजना लाभदायक रहेगी या नुकसानदायक इसके आकलन के लिये एक स्वतंत्र जाँच की ज़रूरत है। गौरतलब है कि दो बार ऐसी जाँच हो चुकी है- पहली जाँच विश्व बैंक द्वारा गठित एक समिति द्वारा की गई और दूसरी जाँच भारत सरकार द्वारा की गई। दोनों ही मामलों में परिणाम एक ही था और वह यह कि परियोजना को अपने वर्तमान रूप में आगे नहीं जाना चाहिये।

प्रतिवाद

  • हाल ही में प्रधानमंत्री ने नर्मदा नदी पर बने वाली सरदार सरोवर नर्मदा बांध का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह महत्त्वाकांक्षी परियोजना नए भारत के निर्माण में करोड़ों भारतीयों के लिये प्रेरणा का काम करेगी।
  • यह बांध आधुनिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञों के लिये एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय होगा, साथ ही यह देश की ताकत का प्रतीक भी बनेगा। इस बांध परियोजना से मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के करोड़ों किसानों का भाग्य बदलेगा और कृषि और सिंचाई के लिये वरदान साबित होगा। इससे कृषि उत्पादन में लगभग 87 लाख टन प्रति वर्ष की वृद्धि होगी।
  • इस बांध की ऊँचाई को 138.68 मीटर तक बढ़ाया गया है, ताकि बिजली का उत्पादन किया जा सके। इस बांध परियोजना से पानी और यहाँ उत्पादित होने वाली बिजली से चार राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान को लाभ मिलेगा। साथ ही गुजरात के 9,500 गाँवों और 173 शहरों तथा राजस्थान के 124 गाँवों को पेयजल प्रदान किया जाएगा।
  • इस बांध के निर्माण के दौरान हुई पर्यावरणीय क्षति की भरपाई करने के लिये पेड़ लगाए जा रहे हैं और अब तक कुल 76.1 मिलियन वृक्ष लगाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि प्रत्येक डूबे हुए पेड़ के एवज़ में 92 पेड़ लगाए जा रहे हैं और लगभग 4,650 हेक्टेयर भूमि को अनिवार्य वनीकरण के लिये चिह्नित किया गया है।
  • इतने सारे संभावित लाभ इस बात  के सूचक हैं कि एसएसपी गुजरात के सूखा-प्रवण और खराब क्षेत्रों के लिये एक जीवन रेखा बन सकती है।
  • इस परियोजना को वर्ष 1940 से अमल में लाए जाने के प्रयास होते रहे हैं, लेकिन बांध के निर्माण को लंबे समय तक सही तरीके से नियोजित नहीं किया जा सका था, क्योंकि जल बँटवारे को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ था।
  • वर्ष 1969 में नर्मदा ट्रिब्यूनल की स्थापना और वर्ष 1979 में इसका फैसला आने के बाद इस परियोजना पर ज़ोर-शोर से कार्य आरंभ हुआ और यह एक समुचित आकलन के उपरांत ही शुरू किया गया है।
  • हमें यह ध्यान रखना होगा कि देश की जल-सुरक्षा, जल-संग्रहण पर निर्भर करती है। रूस (6,100 घन मीटर का प्रति व्यक्ति जल-भंडार), अमेरिका (1,960 घन मीटर), चीन (1,100 घन मीटर) की तुलना में हमारा पानी का प्रति व्यक्ति भंडारण कम है। भारत में यह केवल करीब 200 घन मीटर है।
  • 1999 की राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, हमारे पास 450 अरब घन मीटर का जल-भंडारण होना चाहिये। जब तक हमारे पास पानी का पर्याप्त भंडारण नहीं है, हम जल-सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते।

संवाद

  • 35 वर्षों की जी-तोड़ मेहनत, 48,000 करोड़ रुपए की लागत, 45,000 बेदखल परिवारों, 245 जलमग्न गाँवों और 250,000 हेक्टेयर अधिग्रहित ज़मीन। ये कुछ ऐसे आँकड़े हैं जो सरदार सरोवर बांध के निर्माण से संबंधित हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह परियोजना इस खर्च के उत्तरोत्तर लाभदायक है?
  • इस बांध से गुजरात को प्राप्त होने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह था कि 11 बिलियन क्यूबिक मीटर जल की आपूर्ति से 1.8 मिलियन हेक्टेयर भूमि सिंचित की जाएगी। लेकिन यह दुर्भाग्यजनक है कि सरदार सरोवर बांध इस क्षेत्र के एक चौथाई से भी कम हिस्से को ही सिंचित कर सकता है।
  • वर्ष 1990 से गुजरात ने 800 करोड़ से अधिक रुपए नए बांधों के निर्माण और पुराने जलाशयों के पुनरुद्धार में खर्च किये हैं और यही कारण है कि गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने 2000 से भूजल-स्तर में सुधार किया है। भूजल-स्तर में वृद्धि के कारण ही गुजरात ने कृषि दर में भी वृद्धि की है, जबकि इसका श्रेय सरदार सरोवर को दे दिया जाता है।
  • दरअसल, भूजल हर जगह मौजूद है और सिंचाई केन्द्रित किसी भी परियोजना का मूल उद्देश्य भूजल स्तर में वृद्धि पर केंद्रित होना चाहिये और ऐसा तभी संभव है जब संग्रहित जल का उचित और समान वितरण हो। अतः सरदार सरोवर परियोजना को वर्तमान में सामने आ रही समस्याओं के व्यावहारिक समाधान को केंद्र में रखना होगा।
  • विदित हो कि गुजरात को सिंचाई कार्यों के लिये बिजली आपूर्ति पर वार्षिक ₹10,000 करोड़ की सब्सिडी खर्च का भार उठाना पड़ता है। सरदार सरोवर परियोजना द्वारा संग्रहित जल को उन क्षेत्रों तक पहुँचाना होगा, जहाँ भूजल का स्तर कम है और इससे सरकार के सब्सिडी खर्च को एक चौथाई तक कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • भारत के चार राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण सरदार सरोवर परियोजना का नर्मदा बचाओ आंदोलन वर्ष 1985 से विरोध कर रहा है। आर्थिक और राजनीतिक विषयों के अलावा इस मुद्दे की कई परतें हैं, जिनमें इस क्षेत्र के गरीबों और आदिवासियों के पुनर्वास और वन भूमि का विषय सबसे महत्त्वपूर्ण है।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस बांध के विरोध का प्रमुख कारण इसकी ऊँचाई है, जिससे इस क्षेत्र के हज़ारों हेक्टेयर वन भूमि के जलमग्न होने का खतरा है। बताया जाता है कि जब भी इस बांध की ऊँचाई बढ़ाई गई है, तब हज़ारों लोगों को इसके आस-पास से विस्थापित होना पड़ा है तथा उनकी भूमि और आजीविका भी छिनी है।
  • इस बांध की ऊँचाई बढ़ाए जाने से मध्य प्रदेश के 192 गाँव और एक नगर डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके चलते 40 हज़ार परिवारों को अपने घर, गाँव छोड़ने पड़ेंगे।
  • इस आंदोलन की नेता मेधा पाटेकर का आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद भी बांध प्रभावितों को न तो मुआवज़ा दिया गया है और न ही उनके बेहतर पुनर्वास का प्रबंध किया गया है। उसके बावजूद बांध का जलस्तर बढ़ाया गया।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलनकारियों की मांग थी कि जलस्तर को बढ़ने से रोका जाए तथा पहले पुनर्वास हो फिर उसके बाद विस्थापन। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार इस बांध के बनने से मध्य प्रदेश के चार ज़िलों के 23,614 परिवार प्रभावित हुए थे। आंदोलनकारियों की मांग है कि पुनर्वास पूरा होने तक सरदार सरोवर बांध में पानी का भराव रोका जाना चाहिये।
  • अतः इस परियोजना द्वारा विस्थापितों का पुनर्वास तो होना ही चाहिये साथ ही इसके उद्देश्यों के प्रति व्यक्त की जा रही चिंताओं का भी समाधान किया जाना चाहिये।
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